पलाश जाने को है, लेकिन गधा पलाश फूला नही समा रहा है।
अब, जबकि प्रकृति पूरी तरह से होली खेलने पर लगी है, मतलब सेमल फूलकर फल बनने लगे, फिर आया पलाश वह जब जाने की कगार पर है, तो ये महाशय जाते जाते पगला रहे हैं, शायद इसी वजह से इन्हें गधा पलाश नाम दे दिया गया होगा। फिर गधे के नाम मे कोई कमी रह गयी हो तो, तो उसके स्वामी को भी घसीट दिया गया।
खैर ये तो हुयी एक बात, लेकिन मजेदार बात तो यह है कि, इसे गधे से जोड़ा ही क्यों गया, वास्तव में इसके पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है- कहा जाता है, कि पूरी बारिस का हरा घास खाकर गधा अघाता (अघाना=पेट भर जाना) नही है, और गर्मियों में सूखी घास खाकर तंदुरुस्त रहता है। अब ये पेड़ भी बसंत की विदाई पर फूला नही समा रहा है।
इससे अपन को क्या? अपन तो अपने काम की बात करें। यह एक छोटे आकार का वृक्ष है। जिसकी कोमल शाखाओं पर कांटे लगते हैं। वयस्क पेड़ की छाल पीले रंग की दरार युक्त कटि-फटी होती है। सूख जाने पर लकड़ियों का वजन कागज की तरह हल्का हो जाता है, जिनका प्रयोग हम लोग कुएं, नदी आदि में नहाते समय तैरने के लिये किया करते थे।
पत्तों को उबालकर माउथ वाश की तरह दंतरोग एवम मुँह की दुर्गंध में प्रयोग किया जाता है। इसके पत्तों को सरसों तेल में भूनकर 2 बून्द रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है। गले की खुजान भी इससे मिट जाती है। मतलब यह है, कि यह नाक- कान- गले का डॉक्टर है। एसिडिटी, पेट दर्द, दस्त आदि के उपचार में भी पत्तियों का काढ़ा लाभप्रद माना जाता है। ये तो हुये दादी- नानी के नुस्खे, आपके पास इस पेड़ या इसके गुणों की कोई अन्य जानकारी हो तो कृप्या कमेंट में बतायें...
धन्यवाद 🙏
डॉ विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग,
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिंदवाड़ा (म.प्र.)
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