Thursday, 14 August 2025

भगवान श्री कृष्ण और जन्माष्टमी -डॉ दिलीप कुमार सिंह

भगवान श्री कृष्ण और जन्माष्टमी -डॉ दिलीप कुमार सिंह 

इस वर्ष भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी 16 अगस्त शनिवार के दिन मनाई जाएगी ग्रह नक्षत्र पंचांग और लोक व्यवहार सभी के अनुसार इस वर्ष 16 अगस्त शनिवार के दिन ही जन्माष्टमी पड़ रही है और इस जन्माष्टमी को शैव वैष्णव स्मार्त सभी एक साथ मनाएंगे और सबसे बड़ी बात इस वर्ष मथुरा वृंदावन इस्कान के मंदिर सहित संपूर्ण भारत में एक साथ जन्माष्टमी इसी दिन मनाई जाएगी यह भगवान श्री कृष्ण का 5252 वां जन्मदिन है इसी दिन वह कंस के कारागार में ठीक आधी रात को प्रकट हुए थे इसे वासुदेव ने तत्काल ही गोकुल पहुंचा दिया था
[8/14, 2:17 PM] Dr  Dileep Kumar singh: इस वर्ष जन्माष्टमी 15 अगस्त को रात 11:49 पर लग रही है और 16 अगस्त को रात 9:34 पर समाप्त हो रही है जबकि रोहिणी नक्षत्र 17 अगस्त को भोर में 4:38 पर लगेगी और 18 अगस्त को 3:17 पर समाप्त हो जाएगी अर्थात इस वर्ष जन्माष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का मेल नहीं हो पाएगा इस वर्ष जन्माष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त रात में 12:04 से रात में 12:45 है इस प्रकार कुल 43 मिनट मध्य रात्रि की पूजा पाठ के प्राप्त हो रहे हैं पूजा के समय की मध्य रात्रि 12:25 पर है और इस दिन चंद्रमा का उदय रात में 11:32 पर होगा 12:04 से भगवान श्री कृष्ण की पूजा पाठ शुरू हो जाएगी और इसके बाद उनका हवन और आरती होगी इस प्रकार निराहार रहने वालों का पारण 17 अगस्त में भोर में 5:52 के बाद कभी भी हो सकता है 

भगवान श्री कृष्ण का व्रत करने वाले शुद्ध मन से केवल उनका नाम भी ले सकते हैं लेकिन जो विधि विधान से पूजा पाठ करना चाहे उनके लिए मैं कुछ रामबाण  मंत्र लिख दे रहा हूं जिसमें पहला है "अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम रामनारायणं जानकी वल्लभम" दूसरा है *ओम देवकी सुतं वासुदेवाय नमः तीसरा मंत्र है *ओम नमो भगवते वासुदेवाय* और चौथा मंत्र है #ओम देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:#

भगवान श्री कृष्ण का व्रत दो रंग से रखा जाता है एक वे होते हैं जो बिल्कुल निर्जल निराहार रहकर पूजा पाठ करके ही जल ग्रहण करते हैं और अगले दिन अन्न को ग्रहण करते हैं जबकि दूसरे फल और दूध एवं उनसे बने पदार्थ का सेवन करते हुए व्रत रहते हैं और पूजा करके अन्न जल ग्रहण करते हैं दोनों ही अपने-अपने स्थान पर सही हैं गृहस्थ के लिए दूसरा व्रत सर्वश्रेष्ठ है इस दिन व्यक्ति को आलस्य रहित होना चाहिए तामसिक भोजन मांस मछली मदिरा किसी भी प्रकार के नशे का पराई स्त्री प्याज लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए क्रोध चुगली गाली गलौज नहीं करना चाहिए और किसी को पीड़ा नहीं देना चाहिए जहां तक भगवान श्री कृष्ण के प्रसाद की बात है तो प्रसाद में दूध दही मक्खन मिश्री तुलसी का पत्ता पीला फल और फूल तथा सफेद रंग का मीठा और पंजीरी जो ज्यादातर धनिया से बनती है चढ़ाया जाता है प्रसाद को अधिक से अधिक बांटना चाहिए और यदि दान देने की इच्छा है तो अच्छे सुपात्र और सदाचारी व्यक्ति को ही दान देना चाहिए अन्यथा उसका कोई फल नहीं मिलता है।

पूजा करने का विधि विधान बहुत सरल है भगवान श्री कृष्ण की पूजा मंदिर में भी होती है और घर में भी होती है अगर घर में पूजा करनी है तो भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रख कर उनको मक्खन मिश्री खीर पंजीरी तुलसी का पत्र पीला फल फूल सफेद मीठा गंगाजल चढ़ाना चाहिए और भगवान श्री कृष्ण की आरती करना चाहिए यदि मंदिर में पूजा पाठ कर रहे हैं तो प्रयुक्त चीजों के साथ दूध दही घी मधु और जल का पंचामृत बनाकर भगवान का अभिषेक करना चाहिए अगर उसमें यमुना जी का जल मिला दिया जाए तो और भी अच्छा है इस दिन गाय को चारा अन्न रोटी मीठा इत्यादि खिलाना चाहिए और ईश्वर का दिया हुआ है तो गौशाला में इन चीजों का दान करना चाहिए ।

इस वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी में बहुत से अच्छे-अच्छे योग लग रहे हैं जिसमें धन योग वृद्धि योग ध्रुव योग गज लक्ष्मी योग आदित्य योग सर्वार्थ सिद्धि योग अमृत सिद्धि योग प्रमुख हैं जो मनोकामना को पूरा करने वाले और इच्छित फल देने वाले हैं इस प्रकार गंगा जल पंचामृत तुलसी दल पीला फूल धूप दीप रोली अक्षत फल नारियल बांसुरी मोर पंख पान के पत्ते और खड़ी सुपारी से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने पर इच्छित फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा भी इस वर्ष अनेक सिद्ध मुहूर्त और योग मिल रहे हैं उनके कारण या जन्माष्टमी और अधिक महत्वपूर्ण और फलदाई हो गई है।

 अब हम भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय की परिस्थितियों पर आते हैं उसे समय लगभग यही परिस्थितियों थी जैसे आज भारत की हैं ईरान से लेकर इंडोनेशिया कजाकिस्तान अज़रबैजान तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक फैला हुआ विराट भारतवर्ष टुकड़ों में बात हुआ था पांडव सूरसेन चेदि चोर पांड्य गांधार मथुरा मगध विराट कश्मीर मणिपुर कामरूप अंग बंग उत्कल जैसे शक्तिशाली राज्य और और चारों ओर राक्षसी शक्तियों का प्रभुत्व था जब कि सीमा पर कोल किरात पहलव शक यवन शक्तियां बहुत शक्तिशाली हो रही थी इसमें भी कालयवन नाम का म्लैच्छ शासन बहुत ही बलवान भीम भयंकर और भारी भरकम डीलडौल वाला अजेय योद्धा था भारत में कंस जरासंध शाल्व कीचक शिशुपाल रुक्मी हिडिंब जयद्रथ जैसे दुराचारी तानाशाह प्रकृति के भयानक अत्याचारी और अहंकारी शासक थे जिसे सारी धरती कराह रही थी परिस्थितियों इतनी खराब थी कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ और उस रात में महा भयंकर मूसलाधार वर्षा हो रही थी यमुना नदी अपनी जल धारा तोड़कर पूरे उफान पर थे झंझा झकॊर गान गर्जन तड़ित और वारिद माला की काली घटाओं का घनघोर प्रलयंकारी दृश्य था भीषण वज्रपात हो रहा था बिजलियां चमक कर संपूर्ण धरती को प्रकाशित कर रही थीं इन परिस्थितियों में भगवान श्री कृष्ण का उनके पिता वसुदेव के द्वारा भयंकर यमुना को पैदल सुख में रखकर पर करना और शेषनाग जी का उनके लिए छत्र बन जाना यमुना जी का कृष्ण के चरण पकड़ना किसी चमत्कार से कम नहीं था गोकुल जाकर और उनकी बेटी को सकुशल ले जाकर जेल में आना भी चमत्कार था जो के साथ फाटक के बीच अंतिम फाटक में स्थित था हर फाटक पर पहरेदारी इसीलिए तो भगवान श्री कृष्ण का जीवन ही नहीं भगवान श्री कृष्ण स्वयं में दुनिया के सबसे बड़े चमत्कार थे।

इसके बाद संक्षेप में साड़ी कथाएं भारत के जन-जन को मालूम है किस तरह से मथुरा में पहले बड़े बलराम और ग्वाल वालों के साथ खेल कूद कर उतना बकासुर अघासुर शकटासुर और और कालिय नाग का दमन किया गोपियों के साथ शुद्ध अंतःकरण से प्रेम किया फिर मथुरा चले गए और 11 वर्ष की आयु में ही राक्षस कंस का वध करके गोकुल मथुरा और आसपास के क्षेत्र को निष्कंटक किया परम बलशाली दीर्घ जीवी महायुद्ध जामवंत को हराकर उनकी पुत्री से विवाह किया और बर्बरीक को महाभारत युद्ध के पहले ही मार गिराया। अत्याचारी अटाई शैतान राक्षसों और छल कपट वालों को कभी भी न्याय और धर्म से नहीं जीता जा सकता यह भगवान श्री कृष्णा नहीं सिखाया इनके साथ हर करम करना बिल्कुल सही है बस उनका विनाश होना चाहिए।इसके बाद पांडव लोगों से उनकी मित्रता और उनकी सहायता से जरासंध और अन्य राक्षसों का वध सम्राट मुकुंद की सहायता से विराट शैतानी योद्धा कालयवन का वध करना उनके चमत्कारों में से एक था।

गोकुल छोड़ने के बाद कभी भी वह गोकुल वृंदावन वापस नहीं आए धीरे-धीरे उनकी कीर्ति दिग दिगंत में फैलती चली गई और रुक्मिणी सत्यभामा जामवंती अनेक रानियों से विवाह किया भयंकर विमानों का लड़ाकू बेड़ा रखने वाले शाल्व को मार गिराया बाणासुर को परास्त किया और राजसूय यज्ञ में मर्यादा की सारी सीमाएं पार करने वाले शिशुपाल को सुदर्शन चक्र से मार गिराया  परम क्रोधी दुर्वासा ऋषि को उनकी सीमा बताई और महाभारत में अधर्मी और धर्म का साथ देने वालों का संघार कर कर धरती को पाप से मुक्त कर दिया । अपने गुरु के बच्चों को यमराज की पुरी से वापस लेकर आएफिर पांडव पक्ष को राजपाट और प्रेम वैस अर्जुन के सारथी बने द्रोपदी की लज्जा बचाई। दिया द्वारका नगरी का और अपना अंत समय जानकर मूसल युद्ध में सभी अत्याचारी अन्याई और निरंकुश हो चुके मदिरा पीने वाले यादव लोगों का जड़ से संघार कर दिया जिससे उनके जाने के बाद धरती पर राक्षसी शक्तियां सिर ना उठा सके गीता में महाभारत के ब्रह्माण्ड  व्यापी युद्ध के बीच शांति का और कर्म का उनका दिया गया उपदेश संपूर्ण संसार में अद्वितीय है । उनके बैकुंठ लोक जाने के बाद ही कलयुग इस धरती पर शुरू हो गया

भगवान श्री कृष्णा पर अनगिनत ग्रंथ लिखे गए महाभारत भागवत पुराण गीता तो स्वयं श्री कृष्ण मय है ही और श्री कृष्ण भारत भूमि के कण-कण में समाए हुए हैं वह साक्षात श्री हरि विष्णु के अवतार और 64 कलाओं से पूर्ण योगीराज श्री कृष्णा है भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम है तो श्री कृष्ण भगवान सभी मर्यादाओं की सीमा से परे हैं और अगर वर्तमान समय में रहना है तो भगवान श्री कृष्ण बनकर जीना होगा इसलिए कहा गया है कि जग में सुंदर है दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम ।

आज भारत भूमि बहुत ही विकट परिस्थितियों में है भगवान श्री कृष्ण की कूटनीति युद्ध नीति राजनीति उनके जीवन शैली उनका योग उनकी रणनीति बुद्धि चातुर्य अपना कर ही भारत को राक्षसी शक्तियों से बचाया जा सकता है और ऐसा भगवान श्री कृष्ण के पद चिन्हों पर चलने वाला व्यक्ति ही कर सकता है जिस तरह हरि अनंत हरि कथा अनंता है वैसे ही भगवान श्री कृष्ण अनंत हैं और किसी एक लेख में उनके जीवन का वर्णन करना पूरी तरह असंभव है आज तो देश का कण-कण भगवान श्री कृष्ण को पुकारते हुए कह रहा है कोई नहीं है तुम बिन मोहन भारत का रखवाला बड़ी देर भई नंदलाला। डॉ दिलीप कुमार सिंह

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