Saturday, 1 November 2025

सुबह उठकर एक बार दर्पण में अपना मुंह अवश्य देखें और सोने के पहले भी और सोचें कि

सुबह उठकर एक बार दर्पण में अपना मुंह अवश्य देखें और सोने के पहले भी और सोचें कि
 आज हमने कितना अच्छा और कितना बड़ा काम किया कितना झूठ बोला अपना कितना समय अपनों को देने की जगह मोबाइल को दिया और जब हम दुख और बीमार होकर कष्ट में चिल्लाते हैं तो हमें अपनों से नहीं मोबाइल से पुकार कर कहना चाहिए की है मोबाइल बाबा आओ और हमारे दुख कष्ट दूर करो हमारे लिए दवा लो हमें सेवा करो हमारा पैर दबाओ ‌ और मेरे मर जाने पर सबको बता देना कि अब हम मर गए हैं ‌ सोच लो घर के लोग एक दूसरे के जरूरत नहीं रह गए हैं सब की जरूरत मोबाइल हो गया है छोटे-छोटे बच्चों की देखरेख करने की जगह लोग अपना समय मोबाइल में बिताते हैं और छोटे बच्चे भी बचपन से ही या तो अपराधी बन रहे हैं या उनकी आंख कान खराब हो रही है यह वह चुपचाप मोबाइल देखते-देखते रोग और बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान लोग मां के सच्चे बच्चों को देखकर प्रसन्न होने की जगह मोबाइल का स्क्रीन देखकर नकली बच्चों को देखकर खुश हो रहे हैं जबकि बच्चे भगवान का स्वरूप होते हैं ‌सुबह उठकर एक बार दर्पण में अपना मुंह अवश्य देखें और सोने के पहले भी और सोचें कि आज हमने कितना अच्छा और कितना बड़ा काम किया कितना झूठ बोला अपना कितना समय अपनों को देने की जगह मोबाइल को दिया और जब हम दुख और बीमार होकर कष्ट में चिल्लाते हैं तो हमें अपनों से नहीं मोबाइल से पुकार कर कहना चाहिए की है मोबाइल बाबा आओ और हमारे दुख कष्ट दूर करो हमारे लिए दवा लो हमें सेवा करो हमारा पैर दबाओ ‌ और मेरे मर जाने पर सबको बता देना कि अब हम मर गए हैं ‌ सोच लो घर के लोग एक दूसरे के जरूरत नहीं रह गए हैं सब की जरूरत मोबाइल हो गया है छोटे-छोटे बच्चों की देखरेख करने की जगह लोग अपना समय मोबाइल में बिताते हैं और छोटे बच्चे भी बचपन से ही या तो अपराधी बन रहे हैं या उनकी आंख कान खराब हो रही है यह वह चुपचाप मोबाइल देखते-देखते रोग और बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान लोग मन के सच्चे बच्चों को देखकर प्रसन्न होने की जगह मोबाइल का स्क्रीन देखकर नकली बच्चों को देखकर खुश हो रहे हैं जबकि बच्चे भगवान का स्वरूप होते हैं डॉ दिलीप कुमार सिंह‌ एक बात यहां मैं भी स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं ‌ कि मैं भी मोबाइल का खूब जमकर प्रयोग करता हूं लेकिन तभी जब तक परिवार या बच्चे हैं या मित्र लोग साथ नहीं होते हैं लेकिन अब धीरे-धीरे उसमें भी कमी कर रहा हूंडॉ दिलीप कुमार सिंह

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