Thursday 23 March 2023

स्त्रियां पुरुष के लिए आकर्षक क्यों बनना चाहती हैं जबकि वे पुरुषों की कामुकता जरा भी पसंद नहीं करतीं ?

🦋 आकर्षक 🦋

स्त्रियां पुरुष के लिए आकर्षक क्यों बनना चाहती हैं जबकि वे पुरुषों की कामुकता जरा भी पसंद नहीं करतीं ?

ओशो - इसके पीछे राजनीति है ।स्त्रियां आकर्षक दिखना चाहती हैं क्योंकि उसमें उन्हें ताकत मालूम होती है । वे जितनी आकर्षक होंगी उतनी पुरुष के आगे ताकतवर सिद्ध होंगी । और कौन ताकतवर बनना नहीं चाहता ? सारी जिंदगी लोग ताकतवर बनने के लिए संघर्ष करते हैं ।तुम धन क्यों चाहते हो ? उससे ताकत आती है । तुम देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति क्यों बनना चाहते हो ?उससे ताकत मिलेगी । तुम महात्मा क्यों बनना चाहते हो ?उससे ताकत मालूम होगी ।

लोग अलग-अलग उपायों से ताकतवर बनना चाहते हैं ।तुमने स्त्रियों के पास , ताकतवर बनने का और कोई उपाय ही नहीं छोडा़ है । उनके पास एक ही रास्ता है --- उनके शरीर ।इसलिए वे निरंतर अपना आकर्षण बढा़ने की फिक्र में होती हैं ।
क्या तुमने एक बात देखी है कि आधुनिक स्त्री आकर्षक दिखनेकी फिक्र नहीं करती , क्यों ? क्योंकि वह और तरह की सत्ता - राजनीति में उलझ रही है । आधुनिक स्त्री पुराने बंधनों से बाहरआ रही है । वह विश्वविद्यालयों में पुरुष से टक्कर देकर डिग्री प्राप्त करती है । वह बाजार में , व्यवसाय में , राजनीति में पुरुष के साथ संघर्ष करती है । उसे आकर्षक दिखने की बहुत फिक्र करने की जरूरत नहीं है ।

पुरुष ने कभी आकर्षक दिखने की फिक्र नहीं की । क्यों ?
उनके पास ताकत जताने के इतने तरीके थे कि शरीर को सजाना थोडा़ स्त्रेण मालूम पड़ता । साज-सिंगार स्त्रियों का ढंग है ।
यह स्थिति सदा से ऐसी नहीं थी ।
अतीत में एक समय था जब स्त्रियां उतनी ही स्वतंत्र थी जितनेकि पुरुष । तब पुरुष भी स्त्रियों की भांति आकर्षक बनने की चेष्टा करते थे । कृष्ण को देखो , खूबसूरत रेशमी वस्त्र , सब तरह
के आभूषण , मोर मुकुट , बांसुरी --- उनके चित्र देखो , वे इतने आकर्षक लगते हैं । वे दिन थे जब स्त्री और पुरुष दोनों ही जो मौज हो , वैसा करने के लिए स्वतंत्र थे ।

उसके बाद एक लंबा अंधकारमय युग आया जब स्त्रियां दमित हुई । इसके लिए पुरोहित और तथाकथित साधु-संत जिम्मेवार हैं । तुम्हारे संत सदा स्त्रियों से डरते रहे हैं । उन्हें स्त्री इतनी
ताकतवर मालूम पड़ती है कि वे संतों का संतत्व मिनटों में नष्ट कर सकती हैं । तुम्हारे संतों की वजह से स्त्रियां निंदित हुईं ।वे स्त्रियों से भयभीत थे इसलिए स्त्रियों को दबा दो ।जीवन में उतरने के , प्रवाहित होने के उनके सारे उपाय छिन गए ।फिर एक ही चीज शेष रह गई : उनके शरीर ।
और ताकतवर बनना कौन नहीं चाहता ?
बशर्ते कि तुम समझो कि ताकत दुख लाती है , ताकत हिंसक और आक्रामक होती है । यदि समझ पैदा होकर तुम्हारी ताकत की लालसा विलीन हो जाती है तो ही तुम उसे छोड़ सकते हो
अन्यथा सभी ताकत चाहते हैं ।

स्त्री की ताकत इसी में है कि वह तुम्हारे सामने गाजर की तरह झूलती रहे । कभी मिलती नहीं हमेशा उपलब्ध रहती है --इतनी पास लेकिन कितनी दूर । यही उसकी ताकत है ।
यदि वह फौरन तुम्हारी गिरफ्त में आ जाती है तो उसकी ताकतचली गई । और एक बार तुमने उसके शरीर को भोग लिया ,उसका उपयोग कर लिया तो बात खतम हो गई ।फिर उसकी तुम्हारे ऊपर कोई ताकत नहीं होती । इसलिए वह
आकर्षित करती है और अलग खडी़ होती है ।
वह तुम्हें उकसाती है , उत्तेजित करती है और जब तुम पास आते हो तो इनकार करती है ।

अब यह सीधा-सादा तर्क है । यदि वह हां करती है तो तुम उसे एक यंत्र बना देते हो , उसका उपयोग करते हो ।और कोई नहीं चाहता कि उनका उपयोग हो । यह उसी सत्ता -राजनीति का दूसरा हिस्सा है ।सत्ता का मतलब है दूसरे का उपयोग करने की क्षमता ।और जब कोई तुम्हारा उपयोग करता है तब तुम्हारी ताकत खो जाती है 
तो कोई स्त्री भोग्य वस्तु होना नहीं चाहती ।
और तुम सदियों से उसके साथ यह करते आए हो ।
प्रेम एक कुरूप बात हो गई है ।
प्रेम तो परम गरिमा होना चाहिए लेकिन वह है नहीं ।क्योंकि पुरुष स्त्री का उपयोग करता आया है और स्त्री इसबात को नापसंद करती है , इसका विरोध करती है स्वभावतः ।वह एक वस्तु बनना नहीं चाहती ।

इसलिए तुम देखोगे कि पति पत्नियों के आगे पूंछ हिला रहे हैं और पत्नियां इस मुद्रा में घूम रही हैं कि वे इस सबसे ऊपर हैं --होलियर दैन दाऊ , पाक , पवित्र । 
स्त्रियां दिखावा करती रहती हैं कि उन्हें सेक्स में , घृणित सेक्स में जरा भी रस नहीं है । वस्तुतः उन्हें उतना ही रस है जितना कि पुरुष को लेकिन मुश्किल यह है कि वे अपना रस प्रकट नहीं
कर सकतीं अन्यथा तुम तत्क्षण उनकी सारी ताकत खींच लोगे और उनका उपयोग करोगे ।

तो स्त्रियां बाकी बातों में रस लेती हैं ।

🦋 शुभ संध्या 🦋
प्रेम ही तो एकमात्र वस्तु है इस जगत
में जिसमें ईश्वर की थोड़ी झलक है।
प्रेम ही तो एकमात्र ऊर्जा है यहां जो
आदमी की बनाई हुई नहीं है। जो
अकृत्रिम है, स्वाभाविक है। जो तुम्हारे
प्राणों के प्राण में बसी है, जो तुम्हारी
आत्मा का भोजन है।

प्रेम करो,
और इतनी गहराई से प्रेम करो कि तुम
अपने प्रेमी में, अपने प्रेमपात्र में ईश्वर
को पा सको।
मित्र बनो,
और तुम इतने मित्रवत बनो कि तुम
ईश्वर को उस में पा सको।
जहां कहीं भी तुम 
पूर्णता से जिओगे, 
ईश्वर भी वहीं होगा।
तुम्हारा पूर्णता में होना 
ईश्वर का द्वार है।

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