Thursday, 2 March 2023

प्रेम लिखने वाली औरतेंहोती है जरा सी उथलीनही सहेज रख पातीं अपने अहसासअपने अंतस में दबा कर पूरी ज़िंदगी।

प्रेम लिखने वाली औरतें
होती है जरा सी उथली
नही सहेज रख पातीं अपने अहसास
अपने अंतस में दबा कर पूरी ज़िंदगी।

होती हैं जरा सी ज्यादा बदजात,
सुशील सुग्घर औरतों से थोड़ी सी ज्यादा
जी लेती हैं ज़िन्दगी अपने हिस्से की,
और कुछ कम रोती हैं आम औरतों से।

प्रेम लिखने वाली औरतें खोजती नही 
घर का एक अंधेरा कोना
खुद को रिक्त करने के लिए,
और एक भारी बोझ की गठरी लेकर नही मरतीं।

प्रेम लिखने वाली औरतें 
आंखों में लेकर घूमती हैं पूरा आसमान,पूरी धरती 
टाँग कर रखती हैं चरित्रहीनता का तमगा माथे पर
हर मीठे कड़वे लम्हे को शहद की तरह चखती हैं।

ये प्रेम लिखने वाली औरते भी क्या खुशनसीब होती हैं
अपनों से महरूम पर ज़िन्दगी के कितने करीब होती हैं।
रोटी से ज्यादा खाती हैं गालियां 
और उगलना भी सीख जाती हैं अपमान का गरल।

रातों को जानलेवा तन्हाई के साथ जीती हैं वो
और दिन बिताती हैं उम्मीदों के साथ।
बेहया के फूलों की तरह बिछती हैं मुरझाकर जमी पर  
नहीं चुनते,नही सम्हालते उन्हें कोई प्रेमिल हाथ।

प्रेम लिखने वाली औरतों के तलवों की चमड़ी
हो जाती है मोटी और संवेदनहीन उदासीन
क्योंकि उन्हें पार करनी है शूलों,अंगारों भरी राहें 
और बियाबान मरुस्थल की तपती जमीन।

प्रेम लिखने वाली औरतें
उतार फेंक देती हैं शर्म और लिहाज का झूठा हिज़ाब
महसूस करती हैं अपनी देह पर चुभती निगाहें, 
उनकी हर मुस्कान,हर हँसी का रखा जाता है हिसाब।

प्रेम लिखने वाली औरतें गज़ब होती है
स्याह सी ज़िन्दगी में रोशनी के दरीचों की तरह
नाउम्मीद होते इस ज़माने में 
उम्मीद की खुशनुमा शब होती हैं। 
शुभ रात्रि

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