Friday 5 May 2023

*खलनायक बने नायक* 👉 *अपराधियों में नायक खोजने की आदत*👉 *अपराधी और माफिया तत्वों का बचाव करके समाज को बीमार बनाने का ही काम किया जा रहा है👉 *चिंतित करता माफिया का महिमामंडन* 😡✍️ *ज्वलंत समाचार*

🤔 *खलनायक बने नायक*

 👉 *अपराधियों में नायक खोजने की आदत*
👉 *अपराधी और माफिया तत्वों का बचाव करके समाज को बीमार बनाने का ही काम किया जा रहा है

👉 *चिंतित करता माफिया का महिमामंडन* 😡
✍️ *ज्वलंत  समाचार*
👉 *बाहुबली आनंद मोहन को क्यों रिहा किया गया,  इस सवाल का जवाब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ही दे सकते हैं, लेकिन यह धारणा प्रबल है कि वोट बैंक की सस्ती राजनीति के कारण उस पर कृपा  की गई!! कहा जा रहा है कि महागठबंधन को एक राजपूत नेता की जरूरत थी!! उसकी निगाह दलित आईएएस जी. कृष्णया की हत्या में सजा काट रहे आनंद मोहन पर गई!! वह आजीवन कारावास की सजा काट रहा था!! उसे समय से पहले जेल से बाहर लाने के लिए जेल नियमावली में संशोधन कर दिया गया!! एक समय सुशासन बाबू की छवि रखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस फैसले का बचाव किया!! उनके अलावा जहां जदयू और राजद के कई नेता आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को लेकर  कुतर्क देने में लगे हुए हैं, वही आनंद मोहन के समर्थक उसे शेरे- ऐ- बिहार बताने में लगे हुए हैं!! उसकी रिहाई से पहले उसके गृह जिले सहरसा में ऐसे पोस्टर लगाए गए, जिनमें उसे बिहार का शेर बताया गया!! एक पोस्टर तो सहरसा आयुक्त कार्यालय के सामने लगा दिया गया!! उसकी रिहाई के मौके पर उसके समर्थकों ने मिठाई बाटी!! कुछ ने तो बेशर्मी की हद पार करते हुए आनंद मोहन को बिहार का नेल्सन मंडेला करार दिया!! स्वमभू राजपूत नेताओं ने दावा किया कि उसकी रिहाई से उनके समाज में खुशी की लहर है!! पता नहीं उनका दावा कितना सही है, लेकिन कुख्यात अपराधी और माफिया तत्वों  में नायक खोजने का यह इकलौता मामला नहीं है*!! 
👉 *ऐसे उदाहरणों की गिनती करना कठिन है, जिसमें किसी अपराधी का उसकी जाति या संप्रदाय के लोग महिमामंडन करने में शर्म- संकोच नहीं करते!! याद कीजिए जब कुख्यात बदमाश विकास दुबे पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था, तब किस तरह कुछ स्वयंभू  ब्राह्मण नेता न केवल गम में डूब गए थे, बल्कि यह कहने में भी जुट गए थे कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के साथ अन्याय हो रहा है!! ताजा प्रसंग अतीक अहमद का है!! अतीक अहमद एक दुर्दांत अपराधी था!! वह अपनी समानांतर सत्ता चला रहा था!! कानून का शासन उसकी जेब में था, और इसलिए था, क्योंकि  समय - समय पर राजनीतिक दलों ने उसे बड़ी बेशर्मी से संरक्षण दिया!! प्रयागराज में उसे उसके भाई अशरफ संग जिस तरह पुलिस की मौजूदगी में मारा गया, उसका बचाव नहीं किया जा सकता, लेकिन उसके मारे जाने के बाद जिस तरह कई नेताओं में आंसू बहाने की होड़ मची, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती!! पटना में जुमे की नमाज के बाद लोगों ने सारी लाज - शर्म- तजकर  "अतीक अहमद अमर रहे" के नारे लगाए!! इसी तरह महाराष्ट्र के वीड़ में भी कुछ लोगों ने अतीक और अशरफ के समर्थन में पोस्टर लगाया, जिसमें उन्हें "शहीद"  बताया गया*!!! 
👉 *अतीक - अशरफ के मारे जाने के पहले जब उमेश पाल की हत्या में शामिल उसका बेटा असद और एक अन्य सूटर झांसी में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया, तो असदुद्दीन ओवैसी समेत अन्य कई लोगों की प्रतिक्रिया सुनकर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद का आजमगढ़ में दिया गया वह भाषण याद आ गया, जिसमें उन्होंने कहा था,   "जब मैंने बाटला हाउस में मारे गए लड़कों के फोटो मैडम सोनिया जी को दिखाएं तो उनकी आंखों में आंसू फूट पड़े और उन्होंने मुझसे कहा कि इस बारे में वजीर - ए - आजम (प्रधानमंत्री) मनमोहन सिंह को बताएं",!! यह कोई दबी - छिपी बात नहीं कि बाटला हाउस मुठभेड़ को किस तरह एक के बाद एक नेताओं ने फर्जी करार दिया था!! इसका एकमात्र कारण वोट बैंक की घटिया राजनीति थीं!! उस समय के गृह मंत्री पी. चिदंबरम इस मुठभेड़ को सही बता रहे थे, लेकिन कांग्रेस के ही दिग्विजय सिंह समेत अन्य नेता उसे  फर्जी बताने में लगे हुए थे और वह भी तब, जब इस मुठभेड़ में इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा ने बलिदान दिया था!! बाद में अदालत ने इस मुठभेड़ को सही करार दिया*!! 
👉 *वोट बैंक अथवा जातीय- सांप्रदायिक अस्मिता की सस्ती राजनीति के कारण अपराधियों का महिमामंडन कोई नई- अनोखी बात नहीं!! यह राजनीति इतना अधिक विकृत रूप ले चुकी है कि आतंकियों तक का महिमामंडन किया जाता है!! याद करें कि 1993 के मुंबई बम धमाकों की साजिश में शामिल आतंकी याकूब मेमन को फांसी के बाद उसके जनाजे में किस तरह भीड़ उमड़ी थी!! यह भी न भूले कि  तब एक अंग्रेजी दैनिक ने किस तरह निर्लज्जता की पराकाष्ठा का परिचय देते हुए हेडिंग लगाई थी - एंड दे हैंगड याकूब मेमन!! यह भी शायद सबको स्मरण होगा कि आतंकी बुरहान वानी  के मारे जाने के बाद किस तरह उसे एक हेड मास्टर का बेटा बताया गया था!! चंद दिन पहले जब माफिया मुख्तार अंसारी और उसके सांसद भाई अफजाल अंसारी को सजा सुनाई गई तो कई लोगों के आंसू छलक पड़े!! स्पष्ट है कि जाति, मजहब की गंदी राजनीति के पतन की कोई सीमा नहीं!! इस पतन में राजनीतिक दलों के साथ मीडिया का एक हिस्सा भी शामिल है!! जो समाज कुख्यात अपराधियों और यहां तक कि आतंकियों और बर्बर आक्रांतऔ  तक में नायक खोजता  हो, वह और कुछ हो सकता है, लेकिन प्रगतिशील तो हरगिज़ नहीं हो सकता!! लोग जाति और संप्रदाय के आधार पर अपराधी विशेष का महिमामंडन इसलिए करते हैं, क्योंकि  सस्ती राजनीति उन्हें इसके लिए प्रेरित करती है!! इसके चलते डाकुओं, लुटेरों, गैंगस्टर, माफिया तत्वो को बड़ी आसानी से रॉबिनहुड, मसीहा आदि करार दिया जाता है!! ऐसा करके समाज को बीमार बनाने का ही काम किया जा रहा है!! इसका एक और उदाहरण हाल में पंजाब में तब देखने को मिला, जब अतिवादी और अराजक अमृतपाल सिंह के समर्थन में कई संगठन आंसू बहाते हुए नजर आए*!! 

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