Wednesday 24 May 2023

मेरे पैर तो कब्र में लटके हुये हैं -* *पर जो कहने जा रहा हूँ- उसे दुर्बल चित्त वाले नहीं पढ़ें तो ही अच्छा-!*

*मेरे पैर तो कब्र में लटके हुये हैं -*           
*पर जो कहने जा रहा हूँ- उसे दुर्बल चित्त वाले नहीं पढ़ें तो ही अच्छा-!*
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मैं नहीं चाहता, मां सरस्वती के आशीर्वाद से आधी रात को जागकर लिखी जाने वाली इस पोस्ट की गंभीरता और महत्त्व को वह समझ ही नहीं सकें-!
वैसे भी इस लेख में सामाजिक व राजनीति का मिश्रण है-
*हम हिंदुओं में यह महारोग भर चुका है कि जब तक माँ बाप जीवित होते हैं उस अवसर का लाभ स्वयं के भविष्य को शक्तिशाली बनाने की अपेक्षा मटरगश्ती और बेपरवाही में व्यय कर दिया जाता है..*
जबकि जब तक बाप कमा रहा है उसी अवधि में स्वयं को स्थापित करना बुद्धिमानी है..
लेकिन...नहीं तब मौजमस्ती करेंगे, "जो होगा देखा जायेगा" के डायलॉग मारेंगे -
*और जिन वर्जित गलियों में झांकना भी पाप है,एक बार कौतुक से ही सही, उधर टहल कर जरूर आयेंगे-!!* 
क्योंकि पापा सब सम्भाल लेंगे ना-!!
सुशांत सिंह एक उदाहरण है, वह परिवार के होते हुये भी परिवार से दूर रहा,अपने क्या होते हैं-?
अपनों के बीच होना क्यों जरूरी है-? परायों में अपने उपलब्ध रहना कितना जरूरी है'? बन्धु कौन है-?
*उत्सवे व्यसने प्राप्ते, दुर्भिक्षे शत्रु संकटे-*
*राजद्वारे श्मशाने च यो तिष्ठति स बन्धवः!!*
खुशी में, गम में, अभाव में, संकट में, राज काज में,मृत्युस्थल तक जो साथ दे वह हमारा अपना है-!!
हा दुर्भाग्य!! सुशांत भले इंजीनियरिंग पढ़ गये लेकिन पंचतंत्र का यह वाक्य नहीं पढ़े..
महत्त्व ही नहीं समझा,वह गलत लोगों से घिर गया और बेमौत मारा भी गया-  समृद्धि, सफलता और यौवन में अंधा वह स्वयं को शेर समझ बैठा जबकि वह "उस मासूम मृगछौने सा था जो कस्तूरी के नशे में मस्त है और चारों तरफ हिंस्रपशु उसे घूर रहे थे-
*आज राष्ट्रभक्त लोग अपने सर्वोच्च संरक्षण में है, इससे बेहतर स्थिति इससे पहले तो नहीं ही थी, भविष्य में भी शायद ही हो!!*
एक समय था जब- *भारत माता की जय* और *जय श्री राम* भी खुलकर नहीं बोल सकते थे-
*"मैं हिन्दू हूँ" ऐसा कहने में संकोच, तो किसी को डर होता था-*
पर देखो, आज तो विरोधी भी कोट पर जनेऊ पहन रहे हैं, कालनेमियों ने रामनामी ओढ़ रखी है- और मुद्राराक्षस के प्रभाव से निष्ठावान संगठन के अगुवाई करने लगते हैं.. जनता बहुत जल्दी समझ लेती है, मीडिया की मोनोपोली घट गयी है- सनातन के दुश्मन वामपंथी मंच से भगाये जा रहे हैं,सारे सेक्युलर पक्षाघात व हार्ट अटैक आ रहे हैं- 
या 
ब्राह्मणों को गाली देने वाले मूर्ति लगाने की बात कर रहे हैं-
हममें से बहुत लोग इसे ही सफलता का चरम समझ रहे हैं..
लेकिन पहले इतिहास से ऐसे अभियानों की प्रकृति तो समझिये-!!
केंद्र-राज्यों में सत्ता होते हुये भी हिन्दू की स्थिति सुशांत सिंह के जैसी ही है- वह मुग्ध भाव से एक चमचमाते मंच पर खड़ा एक मस्ती में जी रहा है- *जबकि उसके बिल्कुल नीचे, जिहादी, सेक्युलर, ईसाई और वामपंथी भेड़िये सर ऊँचा कर एकटक घूरे जा रहे हैं-!!*
कल्पना कीजिए कि- 
*कल को मोदी जी हमारे साथ ना रहे तो हमारी क्या दुर्गति होगी-?*
*आपको संकेत समझ नहीं आ रहे ना- या नहीं.. !!*
क्या नड्डा और अमितशाह के कार्य का अंतर दिखाई नहीं देता-?
क्या जिस विशाल लक्ष्य, कल्पना और अपेक्षा का मन में सोचते हैं वह मात्र दो-तीन लोगों से हो जायेगा-? 
क्या आपके पास इतना समय है-?
*क्या मोदी जी की उदासी, बढ़ी दाढ़ी, उनके कुछ भूतकाल के कथन, यह सब कुछ कह नहीं रहे-??*
आज उनके रहते हुए ही यह चारों ताकतें जिस दरिंदगी, कमीनेपन और निर्लज्जता से दुस्साहसी होकर हिंदुओं को कच्चा चबा जाने की दिन रात धमकी दे रहे हैं, एक छोटा सा अवसर मिलते ही यह और इनके पीछे की आसुरी शक्तियां पूरे वेग से टूट पड़ने वाली है-!!
बुद्धिमानी तो यह है कि इन बचे हुये कुछ वर्षों में हिन्दू इतना सबल हो जाये, इतना आक्रामक हो जाए, इतना आत्मनिर्भर हो जाये, इतना द्युतिमान बन जाये -
*कि तीन चार वर्षों में ही भेड़िये हतबल और हमारी चमक से चुंधिया कर बलहीन होकर नष्ट हो जायें-*
बहुत तेजी से हर मोर्चे पर सिद्धता प्राप्त कर ली जाये- परकोटे के घाव भर दिये जायें, कवच के बंध दृढ़ किये जायें,साम दाम दण्ड भेद पर साझा रणनीति तय कर दी जाये, अपनी जाहिर व छिपी कमजोरियों पर विजय प्राप्त की जाय-
 अनेक दिख रहे छिद्रों को बन्द किया जाय- 
*आखिर हम किस चीज का इंतजार कर रहे हैं-? सुरक्षा और रणनीति के विषय में क्यों नहीं सोचते-? क्यों छोटी छोटी दुर्बलताओं के वश में अपने सुयोग को दुर्योग बनाने पर तुले हैं-?*
व्यक्ति हमेशा नहीं रहता, हम आप भी नहीं रहने वाले- बाप हमेशा नहीं रहता, उसके जाते ही भार उठाना ही पड़ता है- 
यह तो सबने कहीं न कहीं देखा होगा कि "माँ-बाप के जीवित रहते जिन लोगों ने मटरगश्ती की और बाद में अचानक जिम्मेदारी आयी तो दिशायें शून्य हो गयीं", अपने पराये की पहचान ही न रही और बुरी गत देखकर दुनियां ने हँसी उड़ाई..
*कि...#डोकरा_गया_और_डेरा_बिखरा-!!*
डेरा बिखरते देर नहीं लगती सर जी- उसे संभाले रखना, भावी अनिष्ट से बचने की पूर्व तैयारी और पूर्व योजना बनाना भी समझदार लोगों का दायित्व है- 
गैर जिम्मेदार, शिकायती, काम बिगाड़ने वाले और रोंदू लोगों को दुनियां बाद में भी कुछ नहीं कहती- संसार यही पूछेगा- *कि तुम बैठे थे और तब भी यह हो कैसे गया-?*
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*लम्हों ने खता की,सदियों ने सजा पायी-*
अवसर भी कभी कभी ही मिलता है, इतिहास के अनेक ऐसे प्रसंग हैं जब जरा सी असावधानी रखने के कारण पीढ़ियों तक रक्त के आंसू पीने पड़े- पर्वतारोही जानता है, जरा सी गलती की और हमेशा के लिये खाई में लुढ़क जायेगा- आज हरेक विशेषज्ञ इतिहास को लेकर यही भाषण देता है "अगर यह नहीं होता तो ऐसा होता, वैसा होता-!" भूल गये क्या-?
वह चूक करने वाले कौन थे-? 
किसके पूर्वज थे-? क्यों छोटी सी गलतियां भी नहीं सुधार सके-?
वह हम ही थे- आज जैसे ही, बेपरवाह, जो होगा देखा जायेगा..का भावुक, गैर जिम्मेदार वाक्य रटने वाले, समय के महत्व को ना समझ पाने वाले...कब तक देखा जायेगा-? क्यों देखा जायेगा-? अगर बाद में देखोगे, तो अभी क्यों नहीं देख लेते-!!
*जो पहले कीजै जतन सो पाछे फलदाय-*
*आग लगे खोदे कुआ कैसे आग बुझाय-*
और एक व्यक्ति कितना भी करे वह पर्याप्त नहीं होता-
जिन देशों को पेट्रोल आदि की पड़ी निधि मिली, वह भी सम्भाल के अभाव में दरिद्र हो गये, जबकि इजरायल जैसे देश के पास कुछ नहीं था पर वह सिरमौर हो गया-
जिन समाजों के लिये एक व्यक्ति ने अपने अवतारी पराक्रम से सूरज चांद तारे तोड़कर गोदी में भर दिये, सावधानी के अभाव में वह यादव भी लुट पिट कर बिखर गये थे- 
*जिस ब्रिटेन की जमीन पर कभी सूर्यास्त नहीं होता था, आज उसे अपने मैनचेस्टर को ही बचाये रखने में समस्या आ रही है-*
*समय को भरोसो कोनी, कद पलटी मार जाये सा-*
*केवल नरेंद्र मोदी के भरोसे कब तक-?*
*यह व्यक्ति अपने दम पर आपको इस युग का सर्वश्रेष्ठ दे रहा है-*
पैरों में बड़े बड़े पत्थर बंधे हैं फिर भी दौड़ रहा है-
हाथों को कई रस्मों रिवाजों, संवैधानिक प्रावधानों ने रोक रखा है, तो भी यह कार्यरत हैं- 
इस कड़वे सच को अंगीकार कीजिये कि अब मोदीजी बहुत कम वर्ष हमारे साथ रहेंगे- बुद्धिमानी दिखाइये.. 
मन को समझाइये कि हमेशा आज जैसी स्थिति नहीं रहने वाली,तब हमें क्या करना होगा-?
वही आज करें- अभी से तैयारी करें-
जो खुद कर रहे हैं, दूसरों को बतायें, सिखायें, समझायें कि क्या किया जा सकता है- और करना ही चाहिये..
*यह भी पूछें कि यह कैसे व कब तक होगा-?*
*कब तक बाप के माल पर मौज उड़ाते रहोगे-?*
                  🙏🏼
*-जय श्रीराम - वन्देमातरम-*

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