*योग एक रियाज़त दीनऔर पंथ एक इबादत* : *फरहत अली खान* जब कुछ लोग योग को दीन धर्म से जोड़ देते हैं जो बिल्कुल गलत है जबकी नबी ने फ़रमाया*सेहत हजार नेमत* योग आत्मा को परमात्मा से मिलाता है
जब हम योग करते हैं तब हम अपने सारे दुख दर्द सिर्फ ऊपर वाले को सोपकर हम डॉक्टर हकीम तीमारदार और सारे दर्द भूल जाते हैं योग करने के उपरांत जो आनंद की अनुभूति करते है उसको शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता । योग मात्र व्यक्तिगत ( अध्यात्मिक ) जीवन ही नहीं बल्कि बिना दुख दर्द चिंता किए बगैर जीवन के लिए गति प्रदान करने का नाम है । जब लंबी सांस लेकर धार्मिक उच्चारण किया जाता है तब अपने अपने तरीके से कोई भी व्यक्ति उच्चारण कर सकते हैं ।*ॐ बोले या अल्लाह*
फरहत अली खान
एन आई एस
अध्यक्ष मुस्लिम महासंघ
Thanks Sir
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