*रविश की आत्मा और यमलोक*
*व्यंग्य*
रविश कुमार का अंतिम समय आ गया। उसकी आत्मा लेने स्वयं यमराज भैंसे पर सवार होकर आए...
यमराज ने रविश की आत्मा को अपने साथ चलने को कहा...
भैंसे को देख रविश की आत्मा ने इनकार कर दिया और कहा:- ई भैसन की स्किन काली है और ई सम्प्रदायिक जानवर है...
यमराज चतुर थे, उन्होंने तुरंत भैसे का रंग लाल कर दिया। लाल रँग देखकर रविश की आत्मा की आंखों में चमक आ गई... वो "लाल सलाम" करने लगी।
किंतु रविश की आत्मा ने फिर सवाल दागा यमराज से, 'कउन जात वा'...
यमराज सकपकाये... फिर सम्भल बोले, मेरे नाम यम के पीछे का शब्द देखो। अब समझ जाओ मेरी जात वा।
रविश की आत्मा अत्यंत हर्षित हुई। यमराज के साथ यमलोक पहुंची।
चित्रगुप्त को बुलाया गया। रवीश के कर्मो का हिसाब किताब करने। रविश के कर्मो को देखकर चित्रगुप्त हैरान रह गए।
महाराज कोई आदमी इतना दोगला, धूर्त और कुटिल कैसे हो सकता है। इसे सजा देने से पहले इसका असली रूप सामने लाना होगा।
चित्रगुप्त की बात सुन रविश की आत्मा के मुख पर कुटिल मुस्कान आ गई। शरीर के हाव भाव धूर्त्तता से भर गए।
रविश की आत्मा का असली चेहरा लाने हेतु कर्मो का आईना मंगाया गया। जिससे आजतक कोई आत्मा नही बची।
आश्चर्य घोर आश्चर्य कर्मो के आईने में भी रविश की आत्मा के दो चेहरे दिखाई दे रहे थे। ये देखकर रविश आत्मा धूर्त मुस्कान के साथ मुस्कुराने लगी।
अब यमराज और चित्रगुप्त एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। क्या किया जाए।
तभी चित्रगुप्त बोले:- महाराज सीधे शस्त्रों से इसका असली चेहरा लाया जाए। यमराज बोले ठीक है।
यमदूत बुलाये गए हाथो में अत्यंत नुकीले नरक में प्रयोग होने वाले भालो के साथ। आदेश मिलते ही यमदूत रविश की आत्मा को भाले चुभोने लगे। किंतु आश्चर्य रविश की मोटी खाल के आगे भाले की नोंक टूट गई। रविश की आत्मा कुटिल मुस्कान के साथ मुस्कुरा रही थी।
ये देखकर यमराज को गुस्सा आ गया। उन्होंने स्वयं अपनी दो धारी तलवार से रविश की आत्मा पर वार किया। असली चेहरा लाने हेतु।
पर आजतक यमलोक में जो न हुआ, वो हो गया। रवीश की दोगलाई के आगे, यमराज की दो धारी तलवार भी टूटकर दो हो गई। यमराज और चित्रगुप्त ये दृश्य देख पसीने पसीने हो रहे थे।
ये सब देख रविश की आत्मा जोर जोर से हे हे कर हँसने लगी। कउन जात! क्या कीजिएगा! काली स्किन वाला भैंसा! कहकर यमराज को चिढ़ाने लगी।
रवीश की आत्मा के अट्टाहास से डरकर यमदूत भाग खड़े हुए।
यमलोक में सन्नाटा छा गया ! रविश की आत्मा का क्या करे? इसका असली चेहरा कैसे लाये? इसे इसके कुकर्मो का फल कैसे मिले?
तभी यमराज ने कहा:- चित्रगुप्त तुमने तो लाखों आत्माओ के कर्मो का हिसाब किया है। अब तुम ही कोई युक्ति सोचो। ये तुम्हारी परीक्षा का समय है।
चित्रगुप्त ने कुछ देर सोचा फिर वे बोले:- महाराज में जैसा कहु आप वैसा करे। यमराज ने स्वीकरोक्ति में सिर हिलाया। यमराज बड़ी उकसुकता से देखने लगे। चित्रगुप्त क्या करते है।
चित्रगुप्त ने दो भगवा गमछे मंगाए एक खुद के गले मे डाला दूसरा यमराज के। भगवा गमछा देख रविश की आत्मा के चेहरे के भाव बिगड़ने लगें। ये देख चित्रगुप्त मुस्कुराये।
अब यमराज की उकसुकता और बढ़ती जा रही थी। इस ढीठ रवीश की आत्मा का सच कैसे आयेगा। वो चित्रगुप्त के अगले उपाय का बेसब्री से इंतजार करने लगे।
चित्रगुप्त बोले महाराज जैसा में बोलूं वैसा आप बोले और मेरा साथ दे। यमराज ने भी पूरी उत्साह से हामी भरी।
चित्रगुप्त जोर से चिल्लाए, 'भारत माता की जय'
यमराज और जोर बोले, 'भारत माता की जय'
ये सुन रविश की आत्मा बेचैन हो गई। असहज हो गई। चेहरे के कुटिल भाव खत्म होने लगे।
अब चित्रगुप्त ने अगला वार किया। 'वन्दे मातरम', यमराज और जोर से चिल्लाए। 'वन्दे मातरम'
अब रविश की आत्मा को चक्कर आने लगे। दोनो हाथ कान पर रखकर नही नही चिल्लाने लगी। ये दृश्य देख चित्रगुप्त और यमराज हँसने लगे।
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चित्रगुप्त बोले:- महाराज अब समय आ गया रविश का असली चेहरा बाहर लाने का।
ये कहकर चित्रगुप्त ने अंतिम वार किया।
यमदूतों को बुलाया गया। जो सफ़ेद शर्ट, ख़ाकी हाफ पेण्ट पहने हाथो में भगवा झंडा लिए लहरा थे। ये दृश्य देख रवीश की आत्मा दोनो कान हाथ से बन्द कर आँखे बंद कर जोर जोर से नही नही चिल्लाते हुए इधर उधर भागने लगी।
सफेद शर्ट, खाकी हाफ पेण्ट पहने यमदूतों की टोली ने रविश की आत्मा को घेर लिया।
अब भगवा लहराते हुए यमदूत जोर जोर से 'जय जय श्रीराम' का उद्घोष करने लगे।
श्रीराम सुनते ही रविश की आत्मा तड़पने लगी जैसे किसी ने खौलता तेल डाल दिया हो। असहनीय पीड़ा से पीड़ित हो रवीश की आत्मा यमराज के पैरों में गिर रहम की भीख मांगने लगी। गिड़गिड़ाने लगी।
यमराज ने अंतिम दांव चला और बोले ठीक है। लेकिन तुम्हे अपना असली चेहरा दिखाना होगा। उधर यमदूत लगातार श्रीराम के नारे लगा रहे थे। चित्रगुप्त भी 'वन्दे मातरम', 'भारत माता की जय' से रवीश की आत्मा के जख्मो पे नमक छिड़क रहे थे।
असहनीय पीड़ा से पीड़ित रवीश की आत्मा जोर से चिल्लाई, और बोली:- हाँ हाँ में हूँ दोगला। मैंने पत्रकार की खाल में लोगो को बहकाया।
'कउन जात' पूछ पूछ लोगो को जाति और धर्म मे बांटा।
मेरा सिर्फ एक एजेंडा था अंधविरोध। इसी प्रोपेगेंडा के तहत मेने जीवन भर काम किया।
ये सुन चित्रगुप्त ने राहत की सांस ली। वो परीक्षा में पास हो चुके थे।
रविश की आत्मा को एक कोठरी में भेज दिया गया। जहाँ की दीवारों और दरवाजे का रंग भगवा था। हर आधे घण्टे में 'वन्दे मातरम', 'भारत माता की जय' से कोठरी गूँज उठती। रविश की आत्मा रोज रहम की भीख मांगती। और खुद ही खुद से पूछती 'कउन जात'...
कर्मो का फल सबको मिलता है...
(रविश ने मैग्ससे पुरुष्कार लेते समय अपनी स्पीच मे विदेश में देश का अपमान किया, तो मुझे अपना लिखा ये पुराना व्यंग्य याद आ गया)
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