Thursday, 16 October 2025

भारत के सभी विभागों और संस्थानों में सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों में नैतिक पतन भ्रष्टाचार भोजपुरी संवेदनहीनता लालफिता शाही जैसी चीजों का बोलबाला है, लेकिन लगता है कि सभी सरकारी विभाग एक दूसरे का कीर्तिमान तोड़ने के लिए कमर कर चुके हैं ।रेल ,डॉक्टर, बैंक ,बीमा ,पुलिस ,रजिस्ट्री आबकारी ,सप्लाई कितने विभागों का नाम लिया जाए बिजली विभाग सब के सब भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं

आईपीएस अधिकारी पूरण कुमार की आत्महत्या और पुलिस का नाम भजन वैसे तो भारत के सभी विभागों और संस्थानों में सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों में नैतिक पतन भ्रष्टाचार भोजपुरी संवेदनहीनता लालफिता शाही जैसी चीजों का बोलबाला है, लेकिन लगता है कि सभी सरकारी विभाग एक दूसरे का कीर्तिमान तोड़ने के लिए कमर कर चुके हैं ।रेल ,डॉक्टर, बैंक ,बीमा ,पुलिस ,रजिस्ट्री आबकारी ,सप्लाई कितने विभागों का नाम लिया जाए बिजली विभाग सब के सब भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं और दिनों दिन सुधार होने की जगह इसमें और भी भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है 

ऐसा ही एक ताजा मामला पूरण कुमार आईपीएस के आत्महत्या प्रकरण पर उठा लोगों ने पहले ही संदेह व्यक्त किया कि इसमें कितनी सच्चाई है और उनके द्वारा लिखा गया नोट कितना सही है वैसे भी पुलिस तिल को ताड़ और लाल तार को टाइल बनाने में माहिर है और पूरे भारत में शायद ही कोई ऐसा होगा जो पुलिस के ऊपर विश्वास करता होगा खैर जब इस मामले में बड़े-बड़े घड़ियाल और मगरमच्छ बड़े-बड़े राजनेता यहां तक की पुलिस महानिदेशक शत्रु जीत कपूर भी बुरी तरह फंस गए तब एक नया खेल खेला गया और इसकी जांच कर रहे हैं उप निरीक्षक ने पूरण कुमार और उनकी पत्नी पर ही गंभीर आरोप लगाते हुए  कहा की अचानक आत्महत्या कर ली यह भी साफ नहीं है कि उसने आत्महत्या की या हत्या करके उसे आत्महत्या का रूप दिया गया यह कभी भी साफ नहीं हो पाएगा क्योंकि खेल बहुत लंबा है और जहां भी जिस भी केस में बड़े-बड़े घड़ियाल फसने शुरू होते हैं वहां पर केस का यही हाल होता है ।

अब यह रहस्य की गुत्थी सुलझने की जगह पूरी तरह उलझ गई है। और कुछ दिन के बाद तमाम अन्य बड़े-बड़े मामलों की तरह यहभी ‌ साफ हो जाएगा और कुछ दिन बाद लोग इसको इस तरह से भूल जाएंगे जैसे पालघर पुलवामा पुरुलिया जैसे कांड भूल गए सरकारी पद तो जैसे लूटपाट भ्रष्टाचार और घूसखोरी का लाइसेंस बन चुका है कहीं भी कोई उत्तरदायित्व लेने वाला नहीं दिखाई पड़ता है‌आईपीएस अधिकारी पूरण कुमार की आत्महत्या और पुलिस का नाम भजन वैसे तो भारत के सभी विभागों और संस्थानों में सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों में नैतिक पतन भ्रष्टाचार भोजपुरी संवेदनहीनतार लाल पिता शाही जैसी चीजों का बोलबाला है लेकिन लगता है कि सभी सरकारी विभाग एक दूसरे का कीर्तिमान तोड़ने के लिए कमर कर चुके हैं रेल डॉक्टर बैंक बीमा पुलिस रजिस्ट्री आबकारी सप्लाई कितने विभागों का नाम लिया जाए बिजली विभाग सब के सब भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं और दिनों दिन सुधार होने की जगह इसमें और भी भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है 

ऐसा ही एक ताजा मामला पूरण कुमार आईपीएस के आत्महत्या प्रकरण पर उठा लोगों ने पहले ही संदेह व्यक्त किया कि इसमें कितनी सच्चाई है और उनके द्वारा लिखा गया नोट कितना सही है वैसे भी पुलिस तिल को ताड़ और लाल तार को टाइल बनाने में माहिर है और पूरे भारत में शायद ही कोई ऐसा होगा जो पुलिस के ऊपर विश्वास करता होगा खैर जब इस मामले में बड़े-बड़े घड़ियाल और मगरमच्छ बड़े-बड़े राजनेता यहां तक की पुलिस महानिदेशक शत्रु जीत कपूर भी बुरी तरह फंस गए तब एक नया खेल खेला गया और इसकी जांच कर रहे हैं उप निरीक्षक ने पूरण कुमार और उनकी पत्नी पर ही गंभीर आरोप लगाते हुए अचानक आत्महत्या कर ली यह भी साफ नहीं है कि उसने आत्महत्या की यह हत्या करके उसे आत्महत्या का रूप दिया गया यह कभी भी साफ नहीं हो पाएगा क्योंकि खेल बहुत लंबा है और जहां भी जिस भी केस में बड़े-बड़े घड़ियाल हंसने शुरू होते हैं वहां पर केस का यही हाल होता है 

अब यह रहस्य की गुत्थी सुलझाने की जगह पूरी तरह उलझ गई है और कुछ दिन के बाद तमाम अन्य बड़े-बड़े मामलों की तरह यहभी ‌ साफ हो जाएगा और कुछ दिन बाद लोग इसको इस तरह से भूल जाएंगे जैसे पालघर ,पुलवामा ,पुरुलिया, जैसे कांड भूल गए सरकारी पद तो जैसे लूटपाट भ्रष्टाचार और घूसखोरी का लाइसेंस बन चुका है कहीं भी कोई उत्तरदायित्व लेने वाला नहीं दिखाई पड़ता है‌ इसी तरह का खेल अभी बिहार के चुनाव में भी होगा सत्ता पक्ष और विपक्ष मिलकर "नूरा कुश्ती" करते हुए जनता के मुद्दे ,बिजली, पानी ,महंगाई ,बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लालफिता शाही को दरकिनार करके केवल कुर्सी और वोट का मुद्दा ही जनता के सामने उछालेंगे, और जनता असली मुद्दे भूल कर जाति ,धर्म और पैसे आधारित वोट करेगी और फिर 5 साल तक पछताएगी ‌ सरकारी विभागों और संस्थाओं को सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों और राजनेताओं को देखकर तो यही कहना पड़ता है सावन जो आग लगाए उसे कौन बुझाए और मांझी ही नाव डुबाए उसे कौन बचाए यही इस देश का सच है भारत में यदि रहना है केवल हां हां कहना है

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