गाँधी_के_नाम_पर_गुंडा_गर्दी_और_आतंक
कुछ साल पहले की बात है मैं पुणे गया था,समय था सोचा मेरे लक्षित हीरो रहे स्व नाथूराम गोडसे जी के बारे में जो मुझे नही मालूम वो पता किया जाए तो उनके घर गया,वहाँ मेरी मुलाकात नाथूराम गोडसे जी के छोटे भाई गोपाल गोडसे जी के सुपुत्र स्व श्री नारायण गोडसे की धर्मपत्नी से हुई,उन्होंने मुझे बड़े ही प्रेम और सम्मान से घर में बिठाया,नाश्ता वगेरह दिया व काफी सारी इधर उधर की बातें हुई,मैं तो उन से ये जानना चाहता था देश के सबसे बड़े गद्दार ठरकी गाँधी के वध बाद उनके परिवार पर क्या गुजरी...?
उन्होंने जो बताया आप सब के बीच सांझा कर रहा हु ज्यो का त्यों,जिस समय गाँधी वध हुआ उस समय उनके पिता गोपाल गोडसे जी इंडियन आर्मी में सेवारत थे,उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में ईरान,इराक की धरती पर अंग्रेजी फौज की तरफ से युद्ध में भी भाग लिया था,गाँधी वध के तुरंत बाद नाथू राम गोडसे और नाना आप्टे को घटनास्थल से गिरफ्तार कर लिया गया,गोपाल गोडसे जी को भी पुणे से गिरफ्तार किया गया,निसंदेह गाँधी का वध नाथूराम गोडसे ने किया था,और नाथूराम गोडसे और नाना आप्टे ने घटनास्थल से भागने की भी कोई कोशिश नहीं की थी, गोपाल गोडसे जी पुणे में थे उनका इस घटना से संबंध नहीं था लेकिन इस वधकांड के लिए अठारह साल की सजा दी गई...? नाथूराम गोडसे की एक इंश्योरेंस पालिसी थी ₹5000 की,जिस में कि गोपाल गोडसे की धर्म पत्नी सिंधु ताई गोडसे नॉमिनी थी,
क्योंकि नाथूराम गोडसे जी तो अविवाहित थे उन्होंने अपने छोटे भाई की धर्मपत्नी को नॉमिनी बनाया था बस इसे आधार बनाते हुए काndग्रेस सरकार ने गोपाल गोडसे को अठारह वर्ष जेल में रखा,गाँधी वध के तुरंत बाद पुणे और आसपास इलाकों में चित पावन ब्राह्मणों की सामूहिक हत्या शुरू हो गई,सिंधु ताई गोडसे अपने तीन छोटे छोटे बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए इधर उधर भागती रही,ऐसे कठिन वक्त में नाते रिश्तेदारों ने भी उनसे हाथ खींच लिया,उनके पूरे घर को आग के हवाले कर जलाकर खाक कर दिया गया...?
जीविकोपार्जन के लिए सड़क के किनारे लोहार का काम शुरू किया,स्वर्गीय नारायण गोडसे ने अपना हाथ मेरे हाथ में दिया व दबाने को कहा,उनका हाथ पत्थर के माफिक कठोर था,उन्होंने कहा बारह साल की उम्र से लोहे पीट रहे थे अपनी माता जी के साथ,बहनें बड़ी होती जा रही थी,कहीं भी रिश्ते की बात होने से काndग्रेसी नेता लड़के वाले को भड़का देते थे,विवाह होने नही देते थे,उन की माता जी के साथ अभद्र व्यवहार सरे आम होता था,दो बार तो ऐसा भी हुआ जब पुलिस थाने से लड़के वाले को विवाह ना करने को कहा गया,अंजाम भुगतने की धमकीयां तक दी गयी विवाह करने की स्थिति में,आखिर में वीर सावरकर जी अपने छोटे भाई के बेटे से उनकी एक बहन का विवाह करवाया जो कि बाद में हिमानी सावरकर के नाम से अभिनव भारत की प्रेसिडेंट हुई...?
क्या लगता है कितने ब्राह्मणों की हत्या की गई होगी जब मैंने ये उनसे पूछा,उनकी आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने कहा,दिन तो किसी तरह गुजर जाता था लेकिन रात होते ही चुन-चुन कर चितपावन ब्राह्मणों के घर पर पेट्रोल से हमला होता था,घर और उसमें रहने वालो को साथ जलाकर राख कर दिया जाता था,ना कोई मामला दर्ज व ना ही पड़ोस के लोग काndग्रेसियों के डरके मारे कोई मदद कर पाते थे मदद करने वाले को अंजाम भुगतने की धमकी दी जाती थी,कुछ जगह पर तो मदद करने वालों की सार्वजनिक हत्या भी की गई,ऐसी हालत में उनकी माता अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर गाँव चली गई और एक गाँव से दूसरे गाँव तक भटकते रहे,लोगों ने सलाह दी कि वह अपने आप को नाथूराम का संबंधी ना बताएं,अन्यथा जान से मारे जाएंगे,किसी तरह से दंगा समाप्त हुआ...?
लगभग आठ हजार से भी ज्यादा निर्दोष चितपावन ब्राह्मणों की सरेआम हत्या कर गाँधी वध का बदला लिया गया...?
उन्होंने एक लंबी साँस ली,एक घूँट पानी पिया,उनकी आंखों से झर झर आँसू बह रहे थे,आगे कहना शुरू किया,जीवन कठिन हो चला था,दो वक्त का भोजन असंभव,माता जी ने लोहार का काम शुरू किया,सड़क के किनारे बैठ लोहे के छोटेमोटे औजार बना कर बेचना शुरू किया,1962 युद्ध के दौरान उन्होंने अपनी सेवाएं केंद्र सरकार को देने के लिए पत्र भी लिखा,जिसका उन्हें कोई जवाब नहीं मिला,1965 युद्ध के दौरान भी उन्होंने अपनी सेवाएं केंद्र सरकार को देने के लिए पत्र लिखा जिसका भी कोई जवाब नहीं मिला,स्व नाथूराम गोडसे की फाँसी के बाद परिवार ने उनके मृत शरीर की माँग की थी ताकि वे हिंदू रीति रिवाज से उनका अंतिम क्रिया कर्म कर सकें लेकिन सरकार ने पत्र का भी कोई जवाब नहीं दिया,अंबाला जेल में ही उन दोनों को फाँसी दे
कर उनकी लाश को भी वही जला दिया गया,अस्थियाँ को घग्गर नदी में फेंक दिया गया,किसी तरह से उनके परिवार को स्व नाथू राम गोडसे व स्व नाना आप्टे की अस्थियाँ मिली,जिसको उन्होंने आज भी सहेज कर घर के एक कमरे में रखा हुआ है,क्योंकि ये स्व नाथूराम गोडसे की अंतिम इच्छा थी कि उनकी अस्थियों को सिंधु नदी में बहाया जाय वो भी तब जब सिंधु नदी हिंदुस्तान के झंडे तले बह रही हो,चाहे इसके लिए कितना भी समय क्यो ना लग जाए,कितनी भी पीढ़ियाँ क्यो ना गुजर जाए...?
नाथूराम गोडसे जी का कहना था,यहूदियों को 1600 साल लगे इसराइल को पाने में,हमें भी सो दो सौ वर्ष लग सकते है इंतजार और संघर्ष करना होगा हमे,नाथूराम गोडसे जी ने एक बात और कही थी कि क्रांतिकारियों और उनके परिवार वालो को सम्मान भी मिलेगा,धन भी मिलेगा,लोग उनसे जुड़ कर गर्व भी महसूस करेंगे,वे देशभक्त भी कहलाए जाएंगे,लेकिन मेरे परिवार को ना तो कोई सम्मान मिलेगा,न ही धन मिलेगा,लोग उनसे जुड़ने तक से परहेज करेंगे उन्हें देशद्रोही भी कहा जाएगा,अंग्रेजों के समय में तो सिर्फ क्रांतिकारीयों को फाँसी दी जाती थी,उनके परिवार तो सुरक्षित रहते थे,लोगो को मेरे मरने के सो साल बाद समझ आएगा मेरा बलिदान,तब तक मोहम्मद गाँधी का मुखौटा उतर चुका होगा,लेकिन तब तक मेरे परिवार को भीषण कष्ट सहने होंगे,साथियो आजादी के बाद ना सिर्फ नाथूराम गोडसे व नाना आप्टे को फाँसी दी गई बल्कि उनके पूरे परिवार को तबाह और बर्बाद कर दिया गया,साथ में तबाह हुए 8000 से ज्यादा निर्दोष परिवार...?
लम्पट ठरकी मोहम्मद गाँधी की छद्दम अहिंसा की बहुत ही बड़ी कीमत चुकानी पड़ी निर्दोष ब्राह्मणों को,ये सब सुन कर 1984 सिख परिवारों के साथ हुये भयावह मंजर की तस्वीरो मन पटल पर चलचित्र की तरह चलने लगी,स्व नाथूराम गोडसे और नाना आप्टे की अस्थियों को मैंने प्रणाम किया,दोपहर हो चुकी थी उन के साथ भोजन कर चलने की इजाजत माँगी,भीगी आंखों से वो मुझे गेट तक छोड़ने आये,नम आँखें मेरी भी थी लेकिन सीने में दबी मामूली चिंगारी को हवा लग चुकी थी,कहने को कुछ था ही नहीं,फिर भी उन्होंने कहा,फिर आना और अबकी बार यहां घर पर ही रुकना...?
मैंने भी हाँ में सिर हिलाया और सीने में एक अनबुझी सुलगती चिंगारी और अनतुले बोझ को छाती पर रख चल दिया,साथियो स्वर्गीय नत्थूराम गोंड़से व उनके परिवार का बहुत बड़ा कर्ज है हम सब हिन्दुओ पर,शायद हम उसे उतार पाए...???
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