आज से लगभग 15-20 साल रंगीन टीवी एक बड़ी बात होती थी.
और, रंगीन टीवी मतलब कि... 21 इंच की फ्लैट स्क्रीन वाली टीवी ही होती थी.
उस जमाने में मैंने 29 इंच का टीवी खरीदा था.
जिसे देखकर अक्सर मेरे मित्र कहते थे.... बाप रे, कितना बड़ा टीवी है.
इसमें कितना बड़ा बड़ा फोटो आता है.
लेकिन, उसके महज 5-6 साल बाद ही समय बदला और LCD टीवी मार्केट में आ गई.
और, LCD TV का बेसिक मॉडल ही 32 इंच से शुरू होने लगा.
तत्पश्चात 40 इंच, 43 इंच, 55 इंच और 65 इंच तक के LED tv आने लगे.
और, आज हालात ये है कि... आप अगर किसी को 29 इन्चिया CRT टीवी दिखाओगे तो वो आपको ऐसे देखेगा मानो वो कोई एलियन देख रहा है.
क्योंकि, नई LCD और LED टीवी ने टीवीयों की पहचान ही बदल कर रख दिया.
और, फिर दिखाएंगे क्या.... क्योंकि, LCD और LED टीवी आने के बाद मैंने खुद अपनी पुरानी वाली CRT टीवी अपने लेबर को महज 700 रुपये में बेचकर नया 43 इंच वाला LED टीवी खरीद लाया.
कहने का मतलब है कि किसी ने मेरे 29 इन्चिया टीवी को न तो तोड़ा और न ही छीना...
बल्कि, उससे बेहतर और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी (निर्माण ) आ जाने के कारण वो खुद ही अप्रासंगिक हो गया.
ठीक यही बात किसी भी देश और समाज के संबंध में भी लागू होती है.
बात बहुत ज्यादा पुरानी नहीं है... बल्कि, अभी महज 7-8 साल पहले अर्थात 2014 से पहले कहीं न कहीं मन में ये एहसास होने लगा था कि... यार, हम खुद को खुश करने के लिए चाहे जितना भी कश्मीर कश्मीर कर लें लेकिन अब कश्मीर लगभग हमारे हाथों से निकल चुका है.
तथा, बंगाल और असम भी कश्मीर बनने के राह पर अग्रसर हैं.
जहाँ कश्मीर एक खास कम्युनिटी का गढ़ माना जाने लगा था वहीं बंगाल और असम को रोहिंग्या एवं बांग्लादेशियों का गढ़ माना जाने लगा था.
जबकि, इसके अलावा पूरे भारत की पहचान ताजमहल, हज हाउस, कुतुबमीनार आदि बनते जा रहे थे.
फिल्मों में अपने आराध्यों एवं अपनी परंपरा एवं मान्यताओं का मजाक उड़ना हम अपनी नियति मान चुके थे.
लेकिन, 2014 में एक चमत्कार हुआ और उस चमत्कार के बदौलत समय का पहिया रिवर्स घूमने लगा.
और, अभी परिस्थिति बिल्कुल बदल चुकी है.
सच कहूं तो कल असम की झांकी देखते ही एकबारगी मैं चौंक गया और सुखद आश्चर्य से भर गया.
क्योंकि, कल किसी मुगल-फुगल अथवा कथित निर्माण को पहचान नहीं बताया जा रहा था..
बल्कि, पहचान बताया जा था उस महावीर लचित बरफुकन को... जिन्होंने बख्तियार खिलजी को दौड़ा दौड़ा कर कुत्ते की मौत मारा था.
साथ ही... बंगाल की पहचान बताया जा रहा था माँ दुर्गा को...
जो कि बंगाल के राजनीतिक हालात के कारण हमारे स्मृति से लगभग मिटता सा जा रहा था.
उसी तरह... जिस कश्मीर के बारे में हमलोग लगभग संतोष कर चुके थे... उस कश्मीर की पहचान बाबा बर्फानी को बताया जा रहा था.
मतलब कि... कल देश समेत पूरी दुनिया को बता दिया गया कि.... भारत में चाहे किसी भी धर्म , महजब अथवा पंथ के लोग रहें... हमें उनके रहने से कोई दिक्कत नहीं है..
लेकिन, वहाँ की पहचान उनके धर्म अथवा महजब से नहीं बल्कि हमारी हमारी सनातन परंपरा से है...
और, उसकी सनातनी परंपरा ये है.
निश्चय ही यह एक बेहद सुखद एवं अहम बदलाव है..
असल में यह एक मनोवैज्ञानिक लड़ाई है जिसमें दुश्मन को यह बताया जाना आवश्यक है कि.... जिसे तुम अपने बाप का समझते हो वैसा है नहीं...
बल्कि, यहाँ के इंच इंच पर सिर्फ और सिर्फ हम सनातनियों का अधिकार है एवं हम सनातनी ही उस जगह की पहचान हैं..
तथा, इस पहचान में तुम कहीं नहीं हो.
मेरे ख्याल से कश्मीर, बंगाल और असम की झांकी को विशेष रूप से इसीलिए चुना गया होगा कि जब उसी क्षेत्र को कूट देंगे जिसपर उन को सबसे ज्यादा गर्व है तो बाकी के क्षेत्र खुद ही पीछे हट जाएँगे.
और, ये झाँकियाँ तो वास्तव में अभी सिर्फ ट्रेलर ही है.
शायद अगले साल से.... काशी कॉरिडोर, श्री राम मंदिर, महाकाल कॉरिडोर, स्टेचू ऑफ यूनिटी, नई वैष्णोदेवी कॉरिडोर आदि की झांकी दिखाई जाएगी...
ताकि, पूरी दुनिया में हिंदुस्तान की पहचान को पूरी तरह से एक सनातनी सभ्यता संस्कृति वाले देश के तौर पर स्थापित की जा सके.
ये मैंने पहले भी कई बार बताया है कि.... हम सनातनी हैं..
और, उन की तरह विध्वंस हमारा स्वभाव नहीं है और न ही हमारा जनमानस किसी तरह के विध्वंस को स्वीकार करता है.
इसीलिए, अगर वास्तव में हिन्दुस्तान की पहचान बदलनी है तो.... विध्वंस का रास्ता छोड़कर इतने बेहतरीन निर्माण का रास्ता चुनना होगा जो आगामी समय में हिंदुस्तान की पहचान बन जाएं..
एवं, ताजमहल... फाजमहल आदि की लकीरें उसी 29 इन्चिया CRT टीवी की तरह बेहद छोटी एवं अप्रासंगिक लगने लगे.
रही बात फिल्मों की ....
तो, ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि जहाँ, पहले हमारे आराध्य और हमारी सभ्यता संस्कृति का मजाक उड़ाने वाली फिल्में भी सुपर हिट हो जाया करती थी..
वहीं, अब अपना झूठा बखान करने वाली फिलिम फटान एक एक दर्शक के लिए तरस रही है.
आखिर, ये बदलाव नहीं तो और क्या है ???
क्या ये देखकर भी समझ नहीं आ रहा है कि... अब समय का चक्र उल्टा घूमना शुरू हो चुका है और वो समय दूर नहीं है जब अपना पेट पालने के लिए इन को फिर से.... यूसुफ खान की तरह अपना नाम छुपा कर दिलीप कुमार बनना पड़ जायेगा.
यही तो है हिन्दू राष्ट्र का आगाज...!!
जय महाकाल...!!!
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