प्रेम ही तो एकमात्र वस्तु है इस जगत
में जिसमें ईश्वर की थोड़ी झलक है।
प्रेम ही तो एकमात्र ऊर्जा है यहां जो
आदमी की बनाई हुई नहीं है। जो
अकृत्रिम है, स्वाभाविक है। जो तुम्हारे
प्राणों के प्राण में बसी है, जो तुम्हारी
आत्मा का भोजन है।
प्रेम करो,
और इतनी गहराई से प्रेम करो कि तुम
अपने प्रेमी में, अपने प्रेमपात्र में ईश्वर
को पा सको।
मित्र बनो,
और तुम इतने मित्रवत बनो कि तुम
ईश्वर को उस में पा सको।
जहां कहीं भी तुम
पूर्णता से जिओगे,
ईश्वर भी वहीं होगा।
तुम्हारा पूर्णता में होना
ईश्वर का द्वार है।
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