Thursday 23 March 2023

मैं इसलिए औरत नहीं हूँकि मेरी माँग में तुम्हारे नाम का सिन्दूर हैऔर माथे पे बिन्दिया ।मैं इसलिए औरत नहीं हूँ कि तुम्हारे शर्ट की टूटी हुई बटन टाँक सकूँ ।या तुम्हारे जूते के शू लैशेज

छलकते दर्द को होठों से बताऊं कैसे
ये खामोश गजल मैं तुमको सुनाऊं कैसे

दर्द गहरा हो तो आवाज़ खो जाती है
जख़्म से टीस उठे तो तुमको पुकारूं कैसे

मेरे जज़्बातों को मेरी इन आंखों में पढ़ो
अब तेरे सामने मैं आंसू भी बहाऊं कैसे

इश्क तुमसे किया, जमाने का सितम भी सहा
फिर भी तुम दूर हो हमसे, ये जताऊं कैसे....!!t



#जानती हो ज़ब तक बात नहीं होती 
सिर्फ तुम्हारी तस्वीर कों देखकर 
रात को सोचते हैं कि बात हो रही है 
सारे मैसेज देखता हूँ फिर खो जाता हूँ 

सपनो मे ...
जानती हो ज़ब हफ्ते गुजर जाते हैं 
एक लफ्ज़ सुने हुए तुम्हारे मुंह से ...

जब दुनिया भर की तकलीफों से तंग हो जाता हूं 
तो चला आता हूं तुम्हारे करीब... 
एक नन्हे बालक की तरह.. 
जो सुकून तुम्हारी आवाज़ सुनकर 
और तुम्हारा चेहरा देख कर  मिलता है 
वो मुझे दुनिया मे कही नहीं मिलता है ...

शायद उसको ही तो प्रेम कहते हैं 
क्यों की मुझे उसी मे शांति मिलती है 
एक सुकून मिलता है ....
तुम्हे याद है जब तुम्हारे शहर आया था...
तुमसे मिलने को
और तुम सब कुछ भुला कर मिलने चली आई थी... 
उस  शहर के भीड़ मे ...
और वहां अपना होकर भी तुम्हे बार बार डर भी लग रहा था कि कोई तुम्हे पहचान तो नहीं लेगा, 
कहीं तुम्हारी चोरी पकड़ी तो नहीं जाएगी....
मगर तुमको रत्ती भर भी डर नहीं,
तुम बोली जो होगा देखा जायेगा
... 
तुम्हारे साथ तुम्हारे शहर में.. 
एक कमरे मे ज़ब तुम अपने हाथों से जो खाना बनाकर लायी थी मेरे पसंद का गाजर का हलवा पानीर की सब्जी और वो रोटी जो मैं कहता था एक बार मे सब खा जाऊंगा लेकिन तुम्हे देखते सब भूख प्यास मिट गयी बस एक ही तम्मना की बस ऐसे सामने बैठी रहो और मैं तुम्हे देखता रहूं लेकिन ये सब कह नहीं पाया और जिद करने लगा की नहीं अभी बाद मे खा लूंगा 
लेकिन तुम भी कम नहीं न हो मुझे डॉट के खिला रही थी जैसे मासूम बच्चे कों उसकी माँ डॉट के खिलाती है 
और मैं ज़ब तुम्हे अपने हाथों से एक ही निवाला खिलाया और तुम बोली रहने दो पेट भर गया, 
फिर एक बोतल से आधा आधा पानी पीना हुआ ...

या फिर वो टीशर्ट जिसे जिद करके तुम्हे बोला पहन लो आज भी उसमे तुम्हारे प्यार की खुश्बू है 
उसे सांभल कर रखा हूँ कभी कभी पहन लेता हूँ

लेकिन जानती हो तुमसे झूठ मे बोल देता हूँ 
की उसे धूल दिया तुम्हे चिढ़ाने के लिए,,,
ताकि तुम्हारी नाक फुल जाए उसमे तुम और भी सुंदर लगती हो,,

अच्छा तुम्हे याद है न वो मेरा तुम्हारे टीशर्ट मे घुस जाना 
 सब कुछ कितना यादगार है ..
अभी वो डिब्बा जिसमे तुम पानीर की सब्ज़ी और गाजर का हलवा लायी थी 
और वो बैग जिसमे कुछ लायी थी घर ले जाने के लिए वो सब अभी तक मैंने संभाल कर रखा है...  

जानती हो अगर वो सब बेकार भी हो गया कभी तो उसका टुकड़ा भी सांभल कर रख लूंगा 
क्यों की तुम्हे उसमे महसूस करता हूँ 
तुम्हारे साथ बिताए वो कुछ पल... 
वो कुछ घंटे ...
 मेरे जीवन के सुनहरे पल हैं...

वो तुम्हारे शहर की भीड़ भाड़ मे ...
एक बंद कमरे में देर घंटो हाथो में हाथ मेरे सीने से चिपक कर लेटना मेरे सीने के बालो कों अपनी ऊगलियों से फेरना ,,.
ये उन दिनों के सबसे खूबसूरत पलों में से है..

 जिसको शायद स्वर्णिम पल कहूं तो गलत नहीं होगा.... वो एक प्लेट में खाना...
एक बोतल का पानी पीना...
साथ में ठंड से मेरे सीने में तुम्हारा वो चेहरा छिपा लेना... कैसे भूल सकता हूं भला...???

जानती हो होटल के बाहर घंटों खड़े रहकर कभी इधर उधर घूमना तुम्हारे आने का इंतजार करना 
वो बेसब्री से तुम आओगी उस पल कों 
महसूस करना ...
सब कुछ लगता है मानो कल की बात है 

#___मै प्रेम हूं...!!
‼🌷❤❤❤🌷‼
शुभ संध्या दोस्तो


मैं इसलिए औरत नहीं हूँ
कि मेरी माँग में 
तुम्हारे नाम का सिन्दूर है
और माथे पे बिन्दिया ।
मैं इसलिए औरत नहीं हूँ 
कि तुम्हारे शर्ट की टूटी हुई 
बटन टाँक सकूँ ।
या तुम्हारे जूते के शू लैशेज बान्ध सकूँ
धोती रहूँ तुम्हारे गन्दे कपड़े
और खाना परोसने के बाद 
पानी देने के लिए भी दोडूँ
मैं इसलिए औरत नहीं हूँ
कि पकाती रहूँ 
तुम्हारी पसन्द का खाना
और सोचूँ 
कि पति के दिल का रास्ता 
उसके पेट से गुजरता है ।
क्यों तुम्हें याद है क्या
कि मेरे दिल का रास्ता 
कहाँ से गुजरता है ।
तुम्हारी तरह पेट या पीठ से नहीं
थोड़ा सा प्यार
थोड़ा सी परवाह 
मान सम्मान से है ।
मैं औरत हूँ
क्योंकि प्रकृति ने बनाया मुझे
रचा है मेरे अस्तित्व को मेरे लिए
तुम्हें खुश करने के लिए नहीं ।
मैं औरत हूँ 
क्योंकि मेरे अपने कुछ ख़्वाब हैं
मेरी अपनी कुछ इच्छाएँ हैं
कुछ अपनी ख़्वाहिशें हैं
कुछ अपनी आशाएँ हैं ।
मैं ख़ुद की औरत हूँ 
मेरा कोई परमेश्वर नही
बन्दिशें मुझे स्वीकार नही
मैं आज़ाद हूँ उन्मुक्त हूँ
हाँ मैं औरत हू 
शुभ रात्रि मित्रो



परतंत्र व्यक्ति प्रेम नहीं दे सकता। इसलिए जब तक स्त्रियां परतंत्र हैं, मैं निरंतर कहूंगी, कहे जाऊंगी कि दुनिया में प्रेम नहीं हो सकता। स्त्रियां परतंत्र हैं तो प्रेम असंभव है। क्योंकि दो स्वतंत्र व्यक्ति ही प्रेम का आदान-प्रदान कर सकते हैं। जिस स्त्री को तुम दहेज लेकर ले आए हो, जिस स्त्री को तुमने कभी देखा भी नहीं था और तुम्हारे मां-बाप ने तय कर दिया है और कोई पंडित-पुरोहितों ने जन्मकुंडली देख कर निर्णय लिया है; जिसका निर्णय तुम्हारे हृदय से नहीं आया; जिसका निर्णय उधार, बासा, दूसरों का है, ऐसी स्त्री को तुम घर ले आए हो। इसमें सुविधा तो बहुत है, इसमें झंझट कम है; इसमें घर-गृहस्थी ठीक से चलेगी।

  लेकिन एक बात खयाल रखना, तुम्हारे जीवन में नृत्य का क्षण कभी भी न आ पाएगा; तुम्हारा प्रेम कभी समाधिस्थ न हो सकेगा। तुम इस प्रेम के मार्ग से परमात्मा को न जान सकोगे।

 एक स्वतंत्र व्यक्ति ही प्रेम दे सकता है। गुलाम सेवा कर सकता है, प्रेम नहीं दे सकता। मालिक सहानुभूति दे सकता है, प्रेम नहीं दे सकता। पति अगर मालिक है तो ज्यादा से ज्यादा दया कर सकता है। दया प्रेम है? कोई स्त्री दया नहीं चाहती। तुम जरा थोड़े हैरान होओगे, जहां प्रेम का सवाल हो वहां दया बड़ी बेहूदी और कुरूप है। कौन दया चाहता है? क्योंकि दया का अर्थ ही होता है कि मैं कीड़ा-मकोड़ा हूं और तुम आकाश के देवदूत हो। दया का अर्थ ही यह होता है कि मैं दयनीय हूं; तुम देने वाले हो, दाता हो, मैं भिखारी हूं। प्रेमी कभी दया से तृप्त नहीं होता। लेकिन मालिक दया दे सकता है, प्रेम कैसे देगा?

 और गुलाम सेवा कर सकता है, लेकिन सेवा प्रेम नहीं है। सेवा कर्तव्य है; करना चाहिए इसलिए करते हैं। पत्नी पति के पैर दबा रही है, क्योंकि पति परमात्मा है, पैर दबाने चाहिए; ऐसा शास्त्रों में कहा है। वह पैर दबा रही है शास्त्रों के कारण, अपने कारण नहीं। और जो पैर शास्त्रों के कारण दबाए जा रहे हैं वे न दबाए जाएं तो बेहतर। क्योंकि इन पैरों से कोई लगाव नहीं है, इन पैरों में कोई आस्था नहीं है, कोई श्रद्धा नहीं है, कोई प्रेम नहीं है। यह एक गुलामी का संबंध है। इन पैरों के साथ जंजीरें बंधी हैं। ये आकाश में उड़ते दो मुक्त पक्षी नहीं हैं; एक कारागृह में बंद हैं।

           🙏 शुभ रात्रि 🙏

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