Thursday 25 May 2023

मुस्लिम महिलाओं के लिए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का महत्व

मुस्लिम महिलाओं के लिए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का महत्व
क्या सरकारी संस्थानों की उपेक्षा करके मुसलमान, विशेष रूप से वंचित मुस्लिम महिलाएं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के किफायती अवसर से वंचित हैं? यह सवाल भारतीय मीडिया के साथ-साथ बुद्धिजीवियों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है। यह चर्चा हाल ही में एक प्रमुख राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक द्वारा की गई जांच से जुड़ी है, जो कर्नाटक हिजाब विवाद के बाद सरकार समर्थित प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों से लेकर निजी कॉलेजों तक में मुस्लिम छात्रों के एक कट्टरपंथी बदलाव से संबंधित है। आंकड़ों के अनुसार, उडुपी जिले के सरकारी कॉलेजों में नामांकन में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जहां नामांकन पिछले वर्ष की तुलना में लगभग आधे से कम हो गया है। यह इंगित करता है कि हिजाब विवाद ने असुरक्षा और गुणवत्ता वाली किफायती शिक्षा के अधिकार की धारणाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसलिए इस तरह के निराधार विवाद से दूर रहने का सही समय है।
सरकारी से निजी कॉलेजों में स्थानांतरण महंगा होगा और मुस्लिम परिवारों में आर्थिक सामर्थ्य का सवाल खड़ा करेगा। यह आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के मामले में स्कूल छोड़ने का कारण भी बन सकता है। इस बदलाव का अर्थ सरकारी कॉलेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए उपलब्ध किफायती अवसर खोना भी है। हर कोई इस बात से सहमत होगा कि शिक्षा और नौकरी  के लिए महिलाओं को काफी संघर्ष से गुजरना पड़ता है। मुस्लिम महिलाओं को अपने जीवन में और भी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। धर्म की गलत व्याख्या के साथ समुदाय का पिछड़ापन और आर्थिक ठहराव संयुक्त रूप से उनकी सामाजिक गतिशीलता को बाधित कर रहा है। आधुनिक युग की शुरुआत के बाद से, मुस्लिम महिलाओं ने पुरुषों के समान अधिकारों के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया है। कर्नाटक हिजाब विवाद और मुस्लिम महिलाओं का महंगी निजी शिक्षा क्षेत्र में प्रवासन जैसे मुद्दे सशक्तिकरण हासिल करने की दिशा में उनके वर्षों के संघर्ष को निष्प्रभावी कर देंगे।
तदनुसार, किफायती शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने और सांप्रदायिक व राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों से दूर रहने की आवश्यकता है। हालांकि, हिजाब के मुद्दे पर कानून को अपना काम करने दें। इस बीच, मुस्लिम छात्रों को तर्क के बजाय भावनाओं के आधार पर लिए गए फैसलों में नहीं पड़ना चाहिए । बहिष्करण पर आधारित ऐसे निर्णय लंबे समय में पूरे समुदाय और राष्ट्र के लिए अनुत्पादक हो सकते हैं। 

लेखक : फरहत अली खान 
एम. ए. गोल्ड मेडलिस्ट

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