● #आपातकाल_के_काले_दिन (1)
25-26 जून, 1975 की काली रात
12 जून, 1975 को इंदिरा गाँधी उनके चुनाव प्रचार में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट से मुक़दमा हार गयी थी। वहाँ के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जगमोहन सिन्हा ने उन्हें 6 वर्ष के लिये लोक सभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया था। तब सारे देश में इंदिरा गांधी के विरुद्ध प्रचण्ड लहर खड़ी हो गयी थी। एक-एक नगर और गाँव में प्रदर्शन करके उनसे प्रधान मन्त्री के पद से त्याग-पत्र माँगा जा रहा था। तब आज ही के दिन इंदिरा गांधी ने केवल और केवल अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए पूरे देश पर आपातकाल थोप दिया था और सारे देश को एक विशाल जेल में बदल दिया था। प्रस्तुत है उस आपातकाल के कुछ संस्मरणों की श्रृंखला की पहली कड़ी:
आपातकाल के दौरान पूरे देश में 2 लाख के लगभग स्वयंसेवकों/राजनीतिक कार्यकर्ताओं को या तो गिरफ्तार किया गया था या फिर उन्हों ने सत्याग्रह कर खुद अपनी गिरफ्तारी दी थी। उनमें से अनेक स्वयंसेवकों को थानों और जेलों में भीषण यातनाएं दी गई थीं।
15-16 साल तक के बाल स्वयंसेवक भी जेलों में बंद कर दिये गये थे। उस समय बिरले ही किसी घर में टी. वी. होता था। तब उन अनेक बच्चों के माता पिता उन्हें जेल में जा कर कहते थे:
'देखो हम तुम्हारे लिए घर में नया टी वी खरीद कर लाए हैं। तुम बस इस (काग़ज़) माफीनाामे पर दस्तखत कर दो और जेल से रिहा हो कर घर चलो और वहां जी भर कर टीवी देखना।'
उस समय किसी घर में टेलीविजन का आना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। उस घर पर 60 फुट ऊँचा लगा एंटीना दूर-दूर तक दिखायी देता था तो उस घर की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ जाती थी। तब हम फर्श पर बैठने के लिये अपने साथ बोरियें लेकर किसी पड़ौसी के यहाँ टेलीविजन देखने जाते थे। मगर वे वीर बालक फिर भी किसी लालच में नहीं आये थे।
तब उन बच्चों का जवाब होता था:
'मुझे टी वी पर तानाशाह इंदिरा गांधी की शक्ल नहीं देखनी है। जब तक देश से आपातकाल नहीं हटाया जाता है तब तक मैं जेल में ही रहूंगा।'
धन्य हैं वे वीर बालक 🙏
■ ऐसी 10 कड़ियाँ और डाली जायेंगी।
✍️ अनिल कौशिश
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