Wednesday, 26 February 2025

पिकासो (Picasso) स्पेन में जन्मे एक अति प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनकी पेंटिंग्स दुनिया भर में करोड़ों और अरबों रुपयों में बिका करती थीं...!!

पिकासो (Picasso) स्पेन में जन्मे एक अति प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनकी पेंटिंग्स दुनिया भर में करोड़ों और अरबों रुपयों में बिका करती थीं...!!
एक दिन रास्ते से गुजरते समय एक महिला की नजर पिकासो पर पड़ी और संयोग से उस महिला ने उन्हें पहचान लिया। वह दौड़ी हुई उनके पास आयी और बोली, 'सर, मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आपकी पेंटिंग्स मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं। क्या आप मेरे लिए भी एक पेंटिंग बनायेंगे...!!?'

पिकासो हँसते हुए बोले, 'मैं यहाँ खाली हाथ हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं फिर कभी आपके लिए एक पेंटिंग बना दूंगा..!!'

लेकिन उस महिला ने भी जिद पकड़ ली, 'मुझे अभी एक पेंटिंग बना दीजिये, बाद में पता नहीं मैं आपसे मिल पाऊँगी या नहीं।'

पिकासो ने जेब से एक छोटा सा कागज निकाला और अपने पेन से उसपर कुछ बनाने लगे। करीब 10 मिनट के अंदर पिकासो ने पेंटिंग बनायीं और कहा, 'यह लो, यह मिलियन डॉलर की पेंटिंग है।'

महिला को बड़ा अजीब लगा कि पिकासो ने बस 10 मिनट में जल्दी से एक काम चलाऊ पेंटिंग बना दी है और बोल रहे हैं कि मिलियन डॉलर की पेंटिग है। उसने वह पेंटिंग ली और बिना कुछ बोले अपने घर आ गयी..!!

उसे लगा पिकासो उसको पागल बना रहा है। वह बाजार गयी और उस पेंटिंग की कीमत पता की। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह पेंटिंग वास्तव में मिलियन डॉलर की थी...!!

वह भागी-भागी एक बार फिर पिकासो के पास आयी और बोली, 'सर आपने बिलकुल सही कहा था। यह तो मिलियन डॉलर की ही पेंटिंग है।'

पिकासो ने हँसते हुए कहा,'मैंने तो आपसे पहले ही कहा था।'

वह महिला बोली, 'सर, आप मुझे अपनी स्टूडेंट बना लीजिये और मुझे भी पेंटिंग बनानी सिखा दीजिये। जैसे आपने 10 मिनट में मिलियन डॉलर की पेंटिंग बना दी, वैसे ही मैं भी 10 मिनट में न सही, 10 घंटे में ही अच्छी पेंटिंग बना सकूँ, मुझे ऐसा बना दीजिये।'

पिकासो ने हँसते हुए कहा, 'यह पेंटिंग, जो मैंने 10 मिनट में बनायी है इसे सीखने में मुझे 30 साल का समय लगा है। मैंने अपने जीवन के 30 साल सीखने में दिए हैं ..!! तुम भी दो, सीख जाओगी..!!

वह महिला अवाक् और निःशब्द होकर पिकासो को देखती रह गयी...!!

एक प्रोफेशनल या सलाहकर को 10 मिनट के काम  की जो फीस दी जाती है वो इस कहानी को बयां करती है।

साभार

यह हैं जिम थॉर्प। तस्वीर को ध्यान से देखें, आप देख सकते हैं कि उन्होंने अलग-अलग मोज़े और जूते पहने हुए हैं। लेकिन यह कोई फैशन स्टेटमेंट नहीं था। यह 1912 के ओलंपिक खेलों की बात है, जहां जिम, जो ओक्लाहोमा के एक मूल अमेरिकी थे, अमेरिका का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

यह हैं जिम थॉर्प। तस्वीर को ध्यान से देखें, आप देख सकते हैं कि उन्होंने अलग-अलग मोज़े और जूते पहने हुए हैं। लेकिन यह कोई फैशन स्टेटमेंट नहीं था। यह 1912 के ओलंपिक खेलों की बात है, जहां जिम, जो ओक्लाहोमा के एक मूल अमेरिकी थे, अमेरिका का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

जिस सुबह उनकी प्रतियोगिता होनी थी, किसी ने उनके जूते चुरा लिए। लेकिन जिम ने हार नहीं मानी। उन्होंने कूड़ेदान में दो जूते खोजे और वही पहन लिए। इनमें से एक जूता बड़ा था, इसलिए उन्हें अतिरिक्त मोज़ा पहनना पड़ा। और इन असमान जूतों को पहनकर भी, जिम ने उस दिन दो स्वर्ण पदक जीते।

यह घटना हमें याद दिलाती है कि हमें अपने जीवन की परेशानियों को बहाना नहीं बनने देना चाहिए।

तो क्या हुआ अगर ज़िंदगी हमेशा न्यायपूर्ण नहीं रही? आज आप इसके बारे में क्या करने वाले हैं? चाहे सुबह उठते ही आपको कोई कठिनाई मिली हो—चोरी हुए जूते, खराब सेहत, असफल रिश्ते, या कोई डूबा हुआ व्यापार—इन्हें अपने सफर में बाधा मत बनने दें।

आपके पास या तो बहाने हो सकते हैं, या फिर परिणाम... लेकिन दोनों एक साथ नहीं।

मेरे प्रिय मित्रों, चाहे हमारे "जूते" (जीवन की परिस्थितियाँ) कैसे भी हों, हमें अपने सफर को जारी रखना चाहिए। खुश रहें और पूरे जोश के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें—"बिना पछतावे के जीवन जिएं।"

साभार सोशल मीडिया

Tuesday, 25 February 2025

एक पिता ने अपने बेटे से कहा, "तुमने सम्मान के साथ स्नातक किया है। यह एक वॉल्क्सवैगन बीटल है, जिसे मैंने कई साल पहले खरीदा था... यह 50 साल से भी पुरानी है, लेकिन इसे तुम्हें देने से पहले, इसे शहर के एक डीलरशिप पर ले जाओ और पूछो कि वे इसे कितने में खरीदेंगे।"

एक पिता ने अपने बेटे से कहा, "तुमने सम्मान के साथ स्नातक किया है। यह एक वॉल्क्सवैगन बीटल है, जिसे मैंने कई साल पहले खरीदा था... यह 50 साल से भी पुरानी है, लेकिन इसे तुम्हें देने से पहले, इसे शहर के एक डीलरशिप पर ले जाओ और पूछो कि वे इसे कितने में खरीदेंगे।"
बेटा डीलरशिप पर गया और वापस आकर बोला, "उन्होंने केवल 2,000 पेसो की पेशकश की क्योंकि यह बहुत पुरानी और इस्तेमाल की हुई लगती है।"

पिता ने कहा, "इसे एकpawn shop (गिरवी रखने वाली दुकान) पर ले जाओ।"

बेटा वहां गया और वापस आकर बोला, "उन्होंने सिर्फ 10,000 पेसो की पेशकश की क्योंकि उनका कहना था कि यह बहुत पुरानी है।"

आखिर में, पिता ने बेटे से कहा कि वह इस कार को एक क्लासिक कार क्लब में ले जाकर दिखाए। बेटा क्लब गया और वापस आकर बोला, "वहां कुछ लोगों ने मुझे 10 लाख से 20 लाख पेसो तक की पेशकश की, क्योंकि यह कार बहुत दुर्लभ है और क्लब के सदस्यों के बीच इसकी बहुत मांग है।"

पिता ने मुस्कुराते हुए बेटे से कहा, "मैं चाहता था कि तुम यह समझो कि सही जगह पर ही तुम्हारी सही कद्र होती है। यदि कोई तुम्हारी कद्र नहीं करता, तो नाराज़ मत होना, इसका मतलब सिर्फ इतना है कि तुम गलत जगह पर हो। तुम्हारी असली कीमत वही लोग समझेंगे जो सच में तुम्हें महत्व देते हैं। कभी भी वहां मत रहो, जहां तुम्हारी कद्र न हो!"

Thursday, 20 February 2025

लोकतंत्र और राजनीतिक भागीदारी: भारतीय मुसलमानों के लिए विकास का सबसे छोटा रास्ता

लोकतंत्र और राजनीतिक भागीदारी: भारतीय मुसलमानों के लिए विकास का सबसे छोटा रास्ता

भारत विविध संस्कृतियों, धर्मों और समुदायों का देश है, जिनमें से प्रत्येक इसके समृद्ध सामाजिक ताने-बाने में योगदान देता है। इन समुदायों में, भारतीय मुसलमान सबसे बड़े अल्पसंख्यकों में से एक हैं, जो देश की आबादी का लगभग 14% हिस्सा बनाते हैं। अपनी महत्वपूर्ण संख्या के बावजूद, भारतीय मुसलमानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, खासकर सामाजिक-आर्थिक विकास और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में। जबकि ये चुनौतियाँ ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों में गहराई से निहित हैं, राजनीतिक भागीदारी, विशेष रूप से लोकतांत्रिक चैनलों के माध्यम से, उनके सशक्तिकरण और विकास की दिशा में सबसे छोटा और सबसे प्रभावी मार्ग प्रदान करती है।

लोकतंत्र, अपने सबसे आवश्यक रूप में, सभी नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसका धर्म या पृष्ठभूमि कुछ भी हो, उसे वोट देने, अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने का अधिकार है। भारतीय मुसलमानों के लिए, यह लोकतांत्रिक ढांचा देश के राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान करता है- ऐसा कुछ जो मूर्त सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन ला सकता है। ऐतिहासिक रूप से, भारत में मुसलमानों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व एक प्रमुख मुद्दा रहा है। देश के लोकतांत्रिक लोकाचार के बावजूद, मुसलमान अक्सर खुद को राजनीतिक विमर्श में हाशिए पर पाते हैं। यह हाशिए पर आर्थिक असमानताओं, शैक्षिक अंतराल और सामाजिक बहिष्कार से और भी बढ़ जाता है। हालाँकि, लोकतंत्र परिवर्तन के लिए एक तंत्र प्रदान करता है, क्योंकि यह उन नीतियों के निर्माण की अनुमति देता है जो मुसलमानों द्वारा राजनीतिक प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने पर इन मुद्दों को संबोधित कर सकती हैं। राजनीतिक भागीदारी केवल मतदान तक सीमित नहीं है; इसमें दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाली नीतियों के निर्माण में सक्रिय भागीदारी शामिल है। एक लोकतांत्रिक प्रणाली में, निर्वाचित प्रतिनिधियों का उद्देश्य अपने निर्वाचन क्षेत्रों की चिंताओं को प्रतिबिंबित करना होता है। हालांकि, जब अल्पसंख्यक समुदाय, जैसे कि भारतीय मुसलमान, सक्रिय रूप से भाग नहीं लेते हैं या ऐसे प्रतिनिधियों को चुनने में विफल रहते हैं जो वास्तव में उनकी ज़रूरतों को समझते हैं, तो उनकी चिंताएँ अक्सर अनसुलझी रह जाती हैं। भारत में मुसलमानों के विकास को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक भागीदारी का सबसे सीधा तरीका सरकार के सभी स्तरों पर बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है। जब मुसलमानों के लिए चिंता व्यक्त करने वाले नेता स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय कार्यालयों में चुने जाते हैं, तो वे उन नीतियों की वकालत कर सकते हैं जो मुस्लिम समुदाय के भीतर गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे विशिष्ट मुद्दों को संबोधित करती हैं। उदाहरण के लिए, यदि मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व ऐसे नेताओं द्वारा किया जाता है जो समुदाय की ज़रूरतों को समझते हैं, तो वे गरीबी उन्मूलन, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच में सुधार और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए संसाधनों के बेहतर आवंटन के लिए दबाव डाल सकते हैं। यह ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहाँ मुसलमान अक्सर सार्वजनिक सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच से पीड़ित होते हैं।

मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा, खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में, जागरूकता की कमी या सिस्टम में भरोसे की कमी के कारण राजनीतिक प्रक्रिया से अलग-थलग रहता है। मतदाताओं को उनके अधिकारों, मतदान के महत्व और विभिन्न राजनीतिक विकल्पों के निहितार्थों के बारे में शिक्षित करने से भागीदारी बढ़ाने में मदद मिल सकती है। जमीनी स्तर के संगठन और नागरिक समाज समूह मुसलमानों को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ये संगठन स्थानीय मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, समुदाय के सदस्यों को राजनीतिक नेताओं से जोड़ने और स्थानीय शासन में सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए काम कर सकते हैं। मुस्लिम समुदाय के भीतर से ऐसे नेताओं को प्रोत्साहित करना और विकसित करना जो राजनीतिक क्षेत्र में उनके हितों का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व कर सकें, महत्वपूर्ण है। मुसलमानों के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों दोनों से अच्छी तरह वाकिफ नए नेताओं को बढ़ावा देकर, समुदाय को अधिक प्रामाणिक और प्रभावी प्रतिनिधित्व मिल सकता है। जबकि मुस्लिम समुदाय के भीतर राजनीतिक भागीदारी महत्वपूर्ण है, धार्मिक और सांस्कृतिक रेखाओं के पार गठबंधन बनाना भी महत्वपूर्ण है। अन्य हाशिए के समुदायों और प्रगतिशील राजनीतिक ताकतों के साथ सहयोग मुसलमानों की मांगों को बढ़ाने में मदद कर सकता है, और अधिक समावेशी और न्यायसंगत राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है। भारतीय मुसलमानों का सामाजिक-आर्थिक विकास उनकी राजनीतिक भागीदारी से गहराई से जुड़ा हुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, नौकरी और अन्य बुनियादी सेवाओं तक पहुँच अक्सर स्थानीय और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर किए गए राजनीतिक विकल्पों पर निर्भर करती है। मुसलमानों के लिए, समावेशी विकास को प्राथमिकता देने वाले और प्रणालीगत असमानताओं को दूर करने वाले उम्मीदवारों को वोट देना बेहतर अवसर ला सकता है। इसके अतिरिक्त, एक सक्रिय मुस्लिम मतदाता यह सुनिश्चित कर सकता है कि सरकारी संसाधनों के आवंटन के दौरान समुदाय की अनदेखी न की जाए। मुसलमानों को गरीबी से बाहर निकालने और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार सृजन में निवेश करना आवश्यक है। समुदाय की ज़रूरतों के प्रति सजग राजनीतिक नेता युवाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से लक्षित कार्यक्रम, छात्रवृत्ति और रोज़गार योजनाओं के निर्माण की वकालत कर सकते हैं। आर्थिक सुधारों के लिए सरकार के प्रयासों को मुस्लिम भागीदारी द्वारा आकार दिया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकास के लाभ समान रूप से वितरित किए जाएँ।

भारतीय मुसलमानों के लिए लोकतंत्र सिर्फ़ सरकार की व्यवस्था नहीं है- यह विकास के लिए एक शक्तिशाली साधन है। राजनीतिक भागीदारी बेहतर प्रतिनिधित्व, नीति निर्माण और सामाजिक-आर्थिक उन्नति सुनिश्चित करके हाशिए पर जाने के चक्र को तोड़ सकती है। जबकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, समाधान अधिक से अधिक राजनीतिक भागीदारी में निहित है, मतपेटी और व्यापक राजनीतिक विमर्श दोनों में। केवल सक्रिय भागीदारी के माध्यम से ही भारतीय मुसलमान अपनी क्षमता का पूरा एहसास कर सकते हैं, आकांक्षा और अवसर के बीच की खाई को पाट सकते हैं और समुदाय और राष्ट्र के लिए समावेशी विकास और विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
फरहत अली खान 
एम ए गोल्ड मेडलिस्ट

यही सच्ची शिक्षा का सार है—यदि सुधारने के लिए अपमान करना पड़े, तो आप सिखाने की कला नहीं जानते।"

एक बूढ़े व्यक्ति से एक युवा व्यक्ति मिलता है और पूछता है:
"क्या आप मुझे याद करते हैं?"
बूढ़ा व्यक्ति जवाब देता है, "नहीं, मुझे याद नहीं।"
तब युवा व्यक्ति बताता है कि वह उसका छात्र था।
गुरुजी पूछते हैं:
"तुम अब क्या करते हो, जीवन में क्या कर रहे हो?"
युवा व्यक्ति जवाब देता है:
"मैं एक शिक्षक बन गया हूँ।"
गुरुजी कहते हैं:
"अच्छा, मेरी तरह?"
युवा व्यक्ति कहता है:
"हाँ, वास्तव में मैं शिक्षक इसलिए बना क्योंकि आपने मुझे प्रेरित किया था।"

गुरुजी उत्सुक होकर पूछते हैं कि "तुमने कब तय किया कि शिक्षक बनना है?"
युवा व्यक्ति एक कहानी सुनाता है:

"एक दिन, मेरा एक मित्र एक नई घड़ी पहनकर आया। मुझे वह घड़ी पसंद आई, और मैंने उसे चुरा लिया। थोड़ी देर बाद, मेरे मित्र ने गौर किया कि उसकी घड़ी गायब है और उसने तुरंत आपसे शिकायत की।

तब आपने पूरी कक्षा से कहा:
‘आज कक्षा के दौरान इस छात्र की घड़ी चोरी हो गई है। जिसने भी चुराई हो, कृपया लौटा दें।’

"मैंने घड़ी वापस नहीं की क्योंकि मैं पकड़ा नहीं जाना चाहता था।

तब आपने दरवाजा बंद कर दिया और कहा:
‘सभी खड़े हो जाओ और एक घेरा बना लो। मैं सबकी जेब की तलाशी लूँगा, लेकिन इस शर्त पर कि सभी अपनी आँखें बंद रखेंगे।’

"हमने वैसा ही किया जैसा आपने कहा।
आपने एक-एक करके सभी की जेबें टटोलनी शुरू कीं। जब आपने मेरी जेब में हाथ डाला, तो आपको घड़ी मिल गई। लेकिन आपने तलाशी जारी रखी, ताकि किसी को यह न पता चले कि घड़ी किसकी जेब से मिली थी।

जब तलाशी पूरी हो गई, आपने कहा:
‘अपनी आँखें खोलो। घड़ी मिल गई है।’

"उस दिन आपने मुझे शर्मिंदा नहीं किया। न ही आपने कभी इस बारे में बात की, न मुझे अलग से बुलाकर कोई उपदेश दिया।
मुझे आपका संदेश स्पष्ट रूप से मिल गया था।
उस दिन मेरी ज़िंदगी बदल गई। मैंने निश्चय किया कि मैं कभी गलत रास्ते पर नहीं जाऊँगा।
आपने मेरी इज्जत बचाई और मुझे सही राह दिखाई।
इसीलिए मैं शिक्षक बना, क्योंकि आपसे मैंने सीखा कि एक सच्चा शिक्षक क्या होता है।"*

युवा व्यक्ति पूछता है:
"क्या आपको यह घटना याद है, गुरुजी?"

बूढ़े शिक्षक मुस्कुराते हुए उत्तर देते हैं:
"मुझे वह घटना जरूर याद है, जब मैंने घड़ी खोजी थी। लेकिन मुझे तुम याद नहीं हो। क्योंकि जब मैं तुम्हारी जेब टटोल रहा था, तब मैंने भी अपनी आँखें बंद कर रखी थीं।"

"यही सच्ची शिक्षा का सार है—

यदि सुधारने के लिए अपमान करना पड़े, तो आप सिखाने की कला नहीं जानते।"

साभार सोशल मीडिया

वक्फ शासन को मजबूत करना: कड़े संशोधनों की आवश्यकता

वक्फ शासन को मजबूत करना: कड़े संशोधनों की आवश्यकता
वक्फ एक इस्लामी बंदोबस्ती है जिसमें कोई व्यक्ति धार्मिक, धर्मार्थ या सामाजिक कल्याण उद्देश्यों के लिए चल या अचल संपत्ति दान करता है। भारत में, वक्फ ने धार्मिक विरासत को संरक्षित करने और कल्याणकारी सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैसा कि अतीत में देखा गया है, मस्जिदों, मदरसों और धर्मार्थ संस्थाओं को बनाए रखने के लिए वक्फ प्रणाली का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है। हालाँकि, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने वक्फ संपत्तियों के पारंपरिक शासन को बाधित करने के बाद, कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और अवैध अतिक्रमण के मामले प्रचलित हो गए। पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार के लिए भारत में वक्फ संपत्तियों के कानूनी ढांचे में कई संशोधन हुए हैं। प्रमुख विधानों में वक्फ अधिनियम 1954, वक्फ अधिनियम 1995 शामिल है- जिसने 1954 के अधिनियम की जगह ली और सख्त नियम पेश किए, 2013 में संशोधन- वक्फ प्रशासन को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए वक्फ संपत्तियों का अनिवार्य सर्वेक्षण, वक्फ बोर्डों के लिए बढ़ी हुई शक्तियाँ और कुप्रबंधन के लिए सख्त दंड जैसे प्रावधान पेश किए गए। वर्तमान बहस 2025 में प्रस्तावित संशोधनों के इर्द-गिर्द घूम रही है, जिसमें वक्फ दावों को संपत्ति के कामों द्वारा समर्थित किया जाना, जिला मजिस्ट्रेटों द्वारा निगरानी बढ़ाना और वक्फ संपत्तियों की ऑनलाइन घोषणा अनिवार्य करना आदि शामिल हैं। वक्फ का मूल उद्देश्य जनता की भलाई करना है। ऐतिहासिक रूप से, वक्फ संस्थाओं ने सामाजिक कल्याण, विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और गरीबी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वक्फ के उद्देश्य को तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: धार्मिक वक्फ, धर्मार्थ वक्फ और पारिवारिक वक्फ (वक्फ अल-औलाद)। हालांकि वक्फ का सार सार्वजनिक कल्याण में गहराई से निहित है, भारत में वास्तविकता अक्सर अलग रही है। खराब शासन, कानूनी खामियों और भ्रष्टाचार के कारण, कई वक्फ संपत्तियों का कुप्रबंधन, अवैध रूप से अतिक्रमण या निजी लाभ के लिए बेचा गया है। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा प्रस्तावित नवीनतम संशोधन भारत में वक्फ संपत्तियों के बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का सीधा जवाब है। पिछले कुछ वर्षों में, कई मामले सामने आए हैं जहां वक्फ संपत्ति को धोखाधड़ी से हस्तांतरित, बेचा गया या उसका दुरुपयोग किया गया। इन परिस्थितियों में, संशोधनों का उद्देश्य जिला मजिस्ट्रेटों और उच्च रैंक के अधिकारियों (संशोधन प्रस्तावित) को अनुमति देकर सरकारी निगरानी को बढ़ाना है यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले मामलों से पता चला है कि कैसे सरकारी भूमि को अक्सर धोखाधड़ी के दावों के कारण वक्फ संपत्ति के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत किया जाता था। संशोधनों का उद्देश्य छह महीने के भीतर वक्फ संपत्तियों को ऑनलाइन सूचीबद्ध करके डिजिटल रिकॉर्ड के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करना है, जिससे अधिकारियों और जनता के लिए स्वामित्व को ट्रैक करना और अनधिकृत लेनदेन को रोकना आसान हो जाता है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए यह डिजिटल हस्तक्षेप आवश्यक है। संशोधनों का उद्देश्य वक्फ दान की अखंडता की रक्षा करना है, यह सुनिश्चित करके कि वक्फ को जमीन दान करने वालों को अब यह प्रदर्शित करना होगा कि वे कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहे हैं और पुष्टि करते हैं कि उनका दान स्वैच्छिक है। इससे जबरदस्ती या धोखाधड़ी वाले बंदोबस्ती को रोका जा सकेगा। जबकि ये संशोधन महत्वपूर्ण शासन मुद्दों को संबोधित करते हैं, वक्फ सुधारों की सफलता उनके प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करेगी। संपत्तियां। कई वक्फ बोर्ड राजनीतिक हितों से प्रभावित होते हैं, जिससे पक्षपातपूर्ण निर्णय लेने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। एक अधिक स्वतंत्र और पारदर्शी विनियामक ढांचे की आवश्यकता है। इसके अलावा, गरीब मुसलमानों सहित वक्फ के कई इच्छित लाभार्थी अपने अधिकारों से अनजान हैं। उन्हें लाभ का दावा करने में मदद करने के लिए जागरूकता अभियान और कानूनी सहायता कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए। प्रस्तावित संशोधनों में से एक उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ प्रावधान को संशोधित करने का प्रयास करता है, जिसने ऐतिहासिक रूप से धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली संपत्तियों को औपचारिक दस्तावेज के अभाव में भी वक्फ के रूप में मान्यता देने की अनुमति दी है। जबकि धोखाधड़ी के दावों पर चिंताएं मौजूद हैं, यह पहचानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि कई वक्फ संपत्तियां- विशेष रूप से मस्जिदें, कब्रिस्तान और दरगाह- ऐतिहासिक कारणों से आधिकारिक दस्तावेज के बिना सदियों से अस्तित्व में हैं। इनमें से कई संपत्तियां मौखिक घोषणाओं या सामुदायिक उपयोग के माध्यम से दान की गई थीं, और सभी मामलों के लिए संपत्ति के कामों की आवश्यकता धार्मिक संस्थानों को उनके वक्फ दर्जे से वंचित कर सकती है। एक अधिक संतुलित दृष्टिकोण एक सत्यापन तंत्र शुरू करना होगा जो उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को पूरी तरह से खारिज नहीं करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि धोखाधड़ी के दावों को रोकते हुए वास्तविक वक्फ संपत्तियों की रक्षा की जाती है। इसमें ऐतिहासिक और नए वक्फ दावों के बीच अंतर करना शामिल हो सकता है- कानून नए वक्फ घोषणाओं पर सख्त दस्तावेजी आवश्यकताओं को लागू कर सकता है, जबकि ऐतिहासिक रूप से स्थापित संपत्तियों को सीधे खारिज करने के बजाय एक विशेष न्यायाधिकरण के माध्यम से समीक्षा की अनुमति देता है। संशोधन में एक प्रावधान शामिल होना चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि वास्तविक वक्फ संपत्तियों को केवल दस्तावेज की कमी के कारण उनकी स्थिति से वंचित नहीं किया जाए, खासकर जब मजबूत ऐतिहासिक और सामुदायिक साक्ष्य उनकी वैधता का समर्थन करते हैं। इस प्रावधान को परिष्कृत करके, संशोधन दुरुपयोग को रोकने और यह सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बना सकता है कि ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण वक्फ संपत्तियां इस्लामी कानून के तहत संरक्षित रहें। सदियों से, वक्फ संस्थानों ने सामाजिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, समुदाय को आवश्यक सेवाएं प्रदान की हैं। हालांकि, भारत में वक्फ संपत्तियों के कुप्रबंधन ने जनता के विश्वास को खत्म कर दिया है और महत्वपूर्ण वित्तीय नुकसान हुआ है सख्त कानूनी सुरक्षा, बाहरी निगरानी और डिजिटल पारदर्शिता की शुरुआत करके, इन सुधारों में कदाचार पर अंकुश लगाने और जिम्मेदार वक्फ शासन के एक नए युग को लाने की क्षमता है। अंततः, जबकि ये सुधार अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करते हैं, वक्फ संस्थानों की धार्मिक और कानूनी पवित्रता को संरक्षित करने पर सावधानीपूर्वक ध्यान दिया जाना चाहिए। एक अच्छी तरह से विनियमित वक्फ प्रणाली सामाजिक विकास के लिए एक शक्तिशाली उपकरण हो सकती है, जिससे भारत में इस्लामी परोपकार की समृद्ध विरासत की रक्षा करते हुए लाखों जरूरतमंदों को लाभ मिल सकता है।
फरहत अली खान 
एम ए गोल्ड मेडलिस्ट

Tuesday, 18 February 2025

सभी लड़कियां और महिलाएं विशेष ध्यान दें।

सभी लड़कियां और महिलाएं विशेष ध्यान दें।

भारत में आज नारी 18 वर्ष की आयु के बाद ही बालिग़ अर्थात विवाह योग्य मानी जाती है। परंतु मशहूर अमेरिकन इतिहासकार कैथरीन मायो (Katherine Mayo) ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक "मदर इंडिया" (जो 1927 में छपी थी) में स्पष्ट लिखा है कि भारत का रूढ़िवादी हिन्दू वर्ग नारी के लिए 12 वर्ष की विवाह/सहवास आयु पर ही अडिग था।
1860 में तो यह आयु 10 वर्ष थी। इसके 30 साल बाद 1891में अंग्रेजी हकुमत ने काफी विरोध के बाद यह आयु 12 वर्ष कर दी। कट्टरपंथी हिन्दुओं ने 34 साल तक इसमें कोई परिवर्तन नहीं होने दिया। इसके बाद 1922 में तब की केंद्रीय विधान सभा में 13 वर्ष का बिल लाया गया। परंतु धर्म के ठेकेदारों के भारी विरोध के कारण वह बिल पास ही नहीं हुआ।
1924 में हरीसिंह गौड़ ने बिल पेश किया। वे सहवास की आयु 14 वर्ष चाहते थे। इस बिल का सबसे ज्यादा विरोध पंडित मदन मोहन मालवीय ने किया, जिसके लिए 'चाँद' पत्रिका ने उनपर लानत भेजी थी। अंत में सिलेक्ट कमेटी ने 13 वर्ष पर सहमति दी और इस तरह 34 वर्ष बाद 1925 में 13 वर्ष की सहवास आयु का बिल पास हुआ।
6 से 12 वर्ष की उम्र की बच्ची सेक्स का विरोध नहीं कर सकती थी उस स्थिति में तो और भी नहीं, जब उसके दिमाग में यह ठूस दिया जाता था कि पति ही उसका भगवान और मालिक है। जरा सोचिये! ऐसी बच्चियों के साथ सेक्स करने के बाद उनकी शारीरिक हालत क्या होती थी? इसका रोंगटे खड़े कर देने वाला वर्णन Katherine Mayo ने अपनी किताब "Mother India" में किया है कि किस तरह बच्चियों की जांघ की हड्डियां खिसक जाती थी, मांस लटक जाता था और कुछ तो अपाहिज तक हो जाती थीं।
6 और 7 वर्ष की पत्नियों में कई तो विवाह के तीन दिन बाद ही तड़प तड़प कर मर जाती थीं। स्त्रियों के लिए इतनी महान थी हमारी मनुवादी संस्कृति। अगर भारत में अंग्रेज नहीं आते तो भारतीय नारी कभी भी उस नारकीय जीवन से बाहर आ ही नहीं सकती थी।
संविधान बनने से पहले स्त्रियों का कोई अधिकार नहीं था। मनुस्मृति के अनुसार बचपन में पिता के अंडर, जवानी में पति की दासी और बुढ़ापे मे बेटे की कृपा पर निर्भर रहती थी। बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने संविधान मे इनको बराबरी का दर्जा दिया। संपत्ति का अधिकार, नौकरी में बराबरी का अधिकार, ये सब बाबा साहब की देन है
ये सन्देश उन महिलाओं के लिए, जो कहती है कि बाबा साहेब ने कुछ नहीं किया

Friday, 14 February 2025

मुझे धारा के विपरीत चल कर खुद को सही साबित करने वाले बहुत पसंद हैं🥰❣️

मुझे धारा के विपरीत चल कर खुद को सही साबित करने वाले बहुत पसंद हैं🥰❣️
    #बिना_बालों_की_दुल्हन_जिसने_खूबसूरती_के_मायने_बदल_दिए

फैशन इन्फ्लूएंसर #निहार_सचदेवा ने अपने वेडिंग लुक से यह साबित कर दिया है कि असली खूबसूरती का कोई फिक्‍स स्‍टैंडर नहीं होता, बल्कि सुंदरता खुद को स्‍वीकारने और आत्मविश्वास से आती है!

दरअसल, निहार को केवल छह महीने की उम्र में एक बीमारी डाइगनोसिस हुई थी, एलोपेशिया, ये  एक ऐसी स्थिति है जिसमें इम्यून सिस्टम बालों की जड़ों पर हमला करता है, जिससे बाल गिरने लगते हैं। निहार ने इस स्थिति के बावजूद बड़ी ही मजबूती से खुद को स्‍वीकारा और आत्म-स्वीकृति का मजबूत संदेश देते हुए अपने काम के जरिए अपनी पहचान भी बनाती रही☺️, 

अपनी शादी के दिन भी उन्होंने विग पहनने के बजाय आत्मविश्वास के साथ अपने लुक को गर्व से दिखाया❤️।

उनका यह कदम उन लोगों के लिए एक संदेश है जो मानते हैं कि सुंदरता का एक ही पैमाना है,  लोग जरा सी कमी होने पर खुद को ही हैं भावना से देखने लगते हैं और फिर वे अपनी कमियों को छुपाने के लिए पूरी ज़िंदगी खुद को अस्‍वीकार करते  हुए गुज़ार देते हैं😊।

दुनियाभर में बालों को अक्सर सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन निहार ने यह दिखा दिया है कि खूबसूरती को किसी तय किए गए ढांचे में बांधकर नहीं रखा जा सकता, असली खूबसूरती पूरे आत्मविश्वास के साथ खुद को जैसे हो वैसे ही स्वीकार करने में है  💓

आत्मविश्वास ही सबसे बड़ी कुंजी है जिससे हम खुद हर परिस्थिति में विजय प्राप्त करते हैं❣️। 

#postoftheday #fb #2025goals #viralchallenge #viralpost2025シ #devendrasinghdev #viralpost2024 #viralpost2025シ #everyoneシ゚ 
#Inspiring #NiharSachdeva #Alpecia #breakingstereotypes #Motivation #Wedding

Tuesday, 11 February 2025

कहानी किसी और की हैफूड वीडियो शूट करने जब राजस्थान गया तो वहां दादा दादी मिले जो सड़क के किनारे बैठ के बाजरे की रोटी सांगरी की सब्जी बना रहे थे

कहानी किसी और की है
फूड वीडियो शूट करने जब राजस्थान गया तो वहां दादा दादी मिले जो सड़क के किनारे बैठ के बाजरे की रोटी सांगरी की सब्जी बना रहे थे 
जब हमारी गाड़ी रुकी तो दादा मारवाड़ी में कुछ बोलते हैं जिसे मुझे समझ नहीं आया और फिर मैं हिंदी में बोला की मुझे राजस्थानी समझ नही आती 
तो उन्होंने बोला पानी पिओगे साहब जी, अब उनकी उम्र तकरीबन 75 साल थी तो मैने बताया की मेरा नाम प्रबल है आप उम्र में काफी बड़े हैं इस लिए नाम लेके बुलाएं साहब जी बोलना अच्छा बोलना अच्छा नही लगता, इतना सुनते ही दादा  ही ही ही कर के हंसने लगे और बोले आप बेटा दुकान में आओ
जब अंदर गया तो चूल्हे पर 70 साल की दादी बाजरे की रोटी बना रही थी हमने चूल्हे पर किन रोटी और बैंगन  सांगरी की सब्जी के लिए बोला 

अब बात का सिलसिला शुरू हुआ दादा ने पूछा की कहा से आए हो हमने बताया बनारस से तो उन्होंने बोला की जवानी के दिनों में सोमनाथ जाते थे तो काशी विश्वनाथ जाने का बहुत मन था पर कभी गए नही मैने उत्सुकता से बोला दादा आप आइए मैं वही का हूं घुमा दूंगा 
जिसपे दादी और दादा दोनों हंसने लगे और बोले बेटा पैसा कहां है इतना लेकिन ये बोलते हुए भी उनके चेहरे पर थोड़ा भी शिकन नहीं था 
हमने ऑफर दिया की आप पैसा का चिंता मत कीजिए अपना शहर है खाने पीने रहने की कोई दिक्कत नही रही ट्रेन की बात तो साथ चलो वहां से टिकट करा देंगे आजाना 
जिसपर दोनों बोले की उमर लगभग 75 साल हो गयो है अब शरीर साथ नथी दी 

खैर बात करते करते रोटी खाई फिर मैने पूछा आप के बेटे या बच्चे नहीं हैं जिस पर दादा खुश होकर बोले की हैं न 1 बेटा है 3 बेटियां हैं फिर मैने बोला की जब 4 बच्चे हैं तो काम करने की क्या जरूरत 
जिसपे तपाक से दादी बोली 
जब तक जिंदगी है पेट पालना है, काम करना है 
हमने बोला बेटे के साथ रहो ना 
तो दादा ने कहा बेटा विदेश में हैं बेटी जामनगर और पुणे में हैं 
तो मैंने बोला विदेश में कहां 
और जैसा कि हम उम्मीद थी उन्होंने बोला कनाडा में है एक बड़ी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, 
मैने बोला जब इतना सब है तो फिर क्या जरूरत है काम करने की 
उन्होंने बोला की बेटा कुछ भेजता नहीं है मैने बोला क्यों 
तो उन्होंने बड़ी मासूमियत से बोला, विदेश से पैसा भारत नहीं आता और अगर पोस्ट से भेजे तो रास्ते में लोग गायब कर लेते हैं फिर मैने बोला अच्छा सही में तो उन्होंने बोला की 2 3 बार मेरा बेटा पैसा भेजा लेकिन मेरे तक आया नहीं फिर हमने मना कर दिया और बोला की जब तुम आना तो लेके आना 

बात ही बात में पता चला की उनका बेटा 10 साल से है अब भारत नहीं आता, पढ़ाई के लिए जमीन बेच दी और बेटियों को शादी के लिए घर और गहने 

उनकी बातों से पता चल गया था की इनका लड़का उन्हे गुमराह कर रहा है लेकिन वो इतने भोले थे की उन्हे सब सच लग रहा था मैंने कोई बात नहीं बताई की आज विदेश से पैसा आना कितना आसान है 

लड़कियों के बारे उन्होंने बोला की बेटियां अपने परिवार में सुखी है लेकिन कोई मदद नहीं करती 

ये कहानी सिर्फ इनकी नहीं है जिन्होंने इतनी मेहनत से बच्चे को पढ़ाया लिखाया और बाद में वही बच्चे अपने मां बाप से मोह भंग कर लेते हैं इसका बहुत बड़ा कारण है बचपन से ही अपने बच्चों को बेहतर भविष्य के लिए अपने से अलग रखना 
लेकिन इस संतान को भी ये सोचना चाहिए की जिनकी बदौलत आज वो काबिल बना है बुढ़ापे में उनका सहारा बनना उसी का काम है 

आज भी मेरे जान पहचान में बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने मां बाप के लिए अपने सपनों को छोड़ देते हैं नमन है ऐसे लोगों को ।

सभी लड़कियां और महिलाएं विशेष ध्यान दें।

सभी लड़कियां और महिलाएं विशेष ध्यान दें।

भारत में आज नारी 18 वर्ष की आयु के बाद ही बालिग़ अर्थात विवाह योग्य मानी जाती है। परंतु मशहूर अमेरिकन इतिहासकार कैथरीन मायो (Katherine Mayo) ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक "मदर इंडिया" (जो 1927 में छपी थी) में स्पष्ट लिखा है कि भारत का रूढ़िवादी हिन्दू वर्ग नारी के लिए 12 वर्ष की विवाह/सहवास आयु पर ही अडिग था।
1860 में तो यह आयु 10 वर्ष थी। इसके 30 साल बाद 1891में अंग्रेजी हकुमत ने काफी विरोध के बाद यह आयु 12 वर्ष कर दी। कट्टरपंथी हिन्दुओं ने 34 साल तक इसमें कोई परिवर्तन नहीं होने दिया। इसके बाद 1922 में तब की केंद्रीय विधान सभा में 13 वर्ष का बिल लाया गया। परंतु धर्म के ठेकेदारों के भारी विरोध के कारण वह बिल पास ही नहीं हुआ।
1924 में हरीसिंह गौड़ ने बिल पेश किया। वे सहवास की आयु 14 वर्ष चाहते थे। इस बिल का सबसे ज्यादा विरोध पंडित मदन मोहन मालवीय ने किया, जिसके लिए 'चाँद' पत्रिका ने उनपर लानत भेजी थी। अंत में सिलेक्ट कमेटी ने 13 वर्ष पर सहमति दी और इस तरह 34 वर्ष बाद 1925 में 13 वर्ष की सहवास आयु का बिल पास हुआ।
6 से 12 वर्ष की उम्र की बच्ची सेक्स का विरोध नहीं कर सकती थी उस स्थिति में तो और भी नहीं, जब उसके दिमाग में यह ठूस दिया जाता था कि पति ही उसका भगवान और मालिक है। जरा सोचिये! ऐसी बच्चियों के साथ सेक्स करने के बाद उनकी शारीरिक हालत क्या होती थी? इसका रोंगटे खड़े कर देने वाला वर्णन Katherine Mayo ने अपनी किताब "Mother India" में किया है कि किस तरह बच्चियों की जांघ की हड्डियां खिसक जाती थी, मांस लटक जाता था और कुछ तो अपाहिज तक हो जाती थीं।
6 और 7 वर्ष की पत्नियों में कई तो विवाह के तीन दिन बाद ही तड़प तड़प कर मर जाती थीं। स्त्रियों के लिए इतनी महान थी हमारी मनुवादी संस्कृति। अगर भारत में अंग्रेज नहीं आते तो भारतीय नारी कभी भी उस नारकीय जीवन से बाहर आ ही नहीं सकती थी।
संविधान बनने से पहले स्त्रियों का कोई अधिकार नहीं था। मनुस्मृति के अनुसार बचपन में पिता के अंडर, जवानी में पति की दासी और बुढ़ापे मे बेटे की कृपा पर निर्भर रहती थी। बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने संविधान मे इनको बराबरी का दर्जा दिया। संपत्ति का अधिकार, नौकरी में बराबरी का अधिकार, ये सब बाबा साहब की देन है
ये सन्देश उन महिलाओं के लिए, जो कहती है कि बाबा साहेब ने कुछ नहीं किया

सभी लड़कियां और महिलाएं विशेष ध्यान दें।

सभी लड़कियां और महिलाएं विशेष ध्यान दें।

भारत में आज नारी 18 वर्ष की आयु के बाद ही बालिग़ अर्थात विवाह योग्य मानी जाती है। परंतु मशहूर अमेरिकन इतिहासकार कैथरीन मायो (Katherine Mayo) ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक "मदर इंडिया" (जो 1927 में छपी थी) में स्पष्ट लिखा है कि भारत का रूढ़िवादी हिन्दू वर्ग नारी के लिए 12 वर्ष की विवाह/सहवास आयु पर ही अडिग था।
1860 में तो यह आयु 10 वर्ष थी। इसके 30 साल बाद 1891में अंग्रेजी हकुमत ने काफी विरोध के बाद यह आयु 12 वर्ष कर दी। कट्टरपंथी हिन्दुओं ने 34 साल तक इसमें कोई परिवर्तन नहीं होने दिया। इसके बाद 1922 में तब की केंद्रीय विधान सभा में 13 वर्ष का बिल लाया गया। परंतु धर्म के ठेकेदारों के भारी विरोध के कारण वह बिल पास ही नहीं हुआ।
1924 में हरीसिंह गौड़ ने बिल पेश किया। वे सहवास की आयु 14 वर्ष चाहते थे। इस बिल का सबसे ज्यादा विरोध पंडित मदन मोहन मालवीय ने किया, जिसके लिए 'चाँद' पत्रिका ने उनपर लानत भेजी थी। अंत में सिलेक्ट कमेटी ने 13 वर्ष पर सहमति दी और इस तरह 34 वर्ष बाद 1925 में 13 वर्ष की सहवास आयु का बिल पास हुआ।
6 से 12 वर्ष की उम्र की बच्ची सेक्स का विरोध नहीं कर सकती थी उस स्थिति में तो और भी नहीं, जब उसके दिमाग में यह ठूस दिया जाता था कि पति ही उसका भगवान और मालिक है। जरा सोचिये! ऐसी बच्चियों के साथ सेक्स करने के बाद उनकी शारीरिक हालत क्या होती थी? इसका रोंगटे खड़े कर देने वाला वर्णन Katherine Mayo ने अपनी किताब "Mother India" में किया है कि किस तरह बच्चियों की जांघ की हड्डियां खिसक जाती थी, मांस लटक जाता था और कुछ तो अपाहिज तक हो जाती थीं।
6 और 7 वर्ष की पत्नियों में कई तो विवाह के तीन दिन बाद ही तड़प तड़प कर मर जाती थीं। स्त्रियों के लिए इतनी महान थी हमारी मनुवादी संस्कृति। अगर भारत में अंग्रेज नहीं आते तो भारतीय नारी कभी भी उस नारकीय जीवन से बाहर आ ही नहीं सकती थी।
संविधान बनने से पहले स्त्रियों का कोई अधिकार नहीं था। मनुस्मृति के अनुसार बचपन में पिता के अंडर, जवानी में पति की दासी और बुढ़ापे मे बेटे की कृपा पर निर्भर रहती थी। बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने संविधान मे इनको बराबरी का दर्जा दिया। संपत्ति का अधिकार, नौकरी में बराबरी का अधिकार, ये सब बाबा साहब की देन है
ये सन्देश उन महिलाओं के लिए, जो कहती है कि बाबा साहेब ने कुछ नहीं किया

Sunday, 9 February 2025

ऐसा मुख्यमंत्री न 1947 के बाद हुआ है न होगा, सबको चुनौती है आज तक जितने मुख्यमंत्री हुए हैं और जितने वर्तमान समय में हैं उनको भी अपना संक्षिप्त परिचय देना चाहिएlबहुत से लोग सोचते हैं कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भगवा पोशाक पहनते हैं*

* ऐसा मुख्यमंत्री न 1947 के बाद  हुआ है न होगा, सबको चुनौती है आज तक जितने मुख्यमंत्री हुए हैं और जितने वर्तमान समय में हैं उनको भी अपना संक्षिप्त परिचय देना चाहिएl
बहुत से लोग सोचते हैं कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भगवा पोशाक पहनते हैं*
*इसलिए  एक "सन्यासी" हैं,*
लेकिन उनके बारे में जो तथ्य सामने आए हैं वो ये हैं -अवश्य पढ़ें
●अजय मोहन बिष्ट  (ओरिजिनल नाम)                        सन्यास के बाद
योगी आदित्यनाथ
आयु-50 वर्ष 
जन्म स्थान- पंचूर गाँव,गढ़वाल, उत्तराखंड 
●एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से उत्तर प्रदेश के इतिहास में सर्वाधिक अंक (100%)
●योगी जी गणित के छात्र हैं, जिन्होंने बीएससी गणित स्वर्ण पदक के साथ उत्तीर्ण किया है।।  
●भारतीय सेना की सबसे पुरानी गोरखा रेजीमेंट के आध्यात्मिक गुरु हैं। * नेपाल में योगी समर्थक का विशाल समूह है जो योगी को गुरु के रूप में पूजते हैं।
●मार्शल आर्ट में अद्भुत उत्कृष्टता। चार लोगों को एकसाथ हराने का रिकार्ड।
●उत्तर प्रदेश के जाने-माने तैराक। कई विशाल नदियां पार की।
●एक लेखा विशेषज्ञ जो कंप्यूटर को भी हरा देता है। प्रसिध्द गणितज्ञ शकुंतला देवी ने भी योगीजी की तारीफ की।
 ●रात में केवल चार घंटे की नींद।  रोजाना सुबह 3:30 बजे उठ जाते हैं।
  ●योग, ध्यान गोशाला, आरती, पूजा प्रतिदिन की दिनचर्या है।
 ●दिन में दो बार ही खाते हैं..
 पूर्णतः शाकाहारी। भोजन में शामिल रहता है कन्द, मूल, फल और देशी गाय का दूध।
●वह अब तक किसी भी कारण से कभी अस्पताल में भर्ती नहीं हुए..
 ●योगी आदित्यनाथ एशिया के सर्वश्रेष्ठ वन्यजीव प्रशिक्षकों में से एक हैं उन्हें वन्यजीवों से बहुत प्रेम है।।
●योगी का परिवार अभी भी उसी स्थिति में रहता है जैसा उनके सांसद या मुख्यमंत्री बनने के पहले रहता था।
●योगी सालों पहले सन्यास लेने के बाद सिर्फ एक बार घर गए हैं। 
●योगी का सिर्फ एक बैंक अकाउंट है और कोई जमीन संपत्ति उनके नाम नहीं है और न ही उनका कोई खर्च है।
●अपने भोजन कपडे का खर्च वो स्वयं के वेतन से करते हैं और शेष पैसा राहत कोष में जमा कर देते हैं।
*ये है योगी आदित्यनाथ की प्रोफाइल..*
* योगी जी के सोने वाले कमरे मे कोई  AC या रूम कूलर नही है केवल एक सीलिंग फैन है
* योगी जी एक लकडी के तख्त पर एक कम्बल उसके उपर चादर  बिछाकर सोते है no Dunlop  cushion  & pillow 
भारत में एक सच्चे लीडर की प्रोफाइल ऐसी ही होनी चाहिए। 
ऐसे संत ही भारत को फिर से विश्व गुरु बना सकते हैं।
यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगे तो आगे भेज दीजिए 
 *जय श्रीराम*  *जय  गुरू गोरखनाथ*CM Yogi Adityanath YogiAdityanathji