Thursday, 4 December 2025

शादियों का मौसम है*

*शादियों का मौसम है*
 
तिलक है, 
बारात है, 
हल्दी है,
संगीत है, 
रोशनी है, 
आतिशबाजी है, 
 बैंड बाजा है, 
 लाईट है, 
 डी जे है, 
 कैटरर है, 
 स्टॉल है, 
 सब कुछ तो है ...

*पर*  

जनवासा नहीं है, 
पंगत नहीं है,
 संगत नहीं है 
पत्तल नहीं है, 
पीली धोती पहने समधी नहीं है, 
गालियाँ देती समधिनें नहीं हैं.
स्नेह नहीं है, 
प्यार नहीं है, 
मनुहार नहीं है,
नाई का न्योता नहीं है, ‌‌ 
नकली नौकर चौकर हे
व्हाट्सएप पर निमंत्रण है.

सारे पंडाल एक जैसे हैं.
आप कहीं भी जाकर
खाकर आ सकते हैं.
ना मेजबान का पता है.
ना मेहमान की खबर है.
ना कोई आपको पहचानता है,
ना आप किसी को जानते हैं.
घूमते बेयरों के हाथ से 
 कुछ ले लीजिए.

बारात आई नहीं है.
वरमाला हुई नहीं है.
बस आपको 
किसी को लिफाफा थमाकर
निकल जाना है.

और क ई जगह जाना है.
यही तो आज का जमाना है.

जेब गरम है.
संगीत अश्लील  मैथुनिक कानफोड़ू है.
खाने में सैकड़ों आइटम है.
बात में बात है - वहां का पनीर अच्छा था, वहां का शेक मजेदार था...
जब की पहले के कटहल और कोहड़े की सब्जी का जवाब नहीं था
क्योंकि दूल्हा और दुल्हन को तो देखा ही नहीं 

हजारों लाखों रुपए के कपड़े पहने के बाद भी सब कुछ दिखता है 
क्या दिखता है किसको दिखता है पता नहीं है ।
ने घर परिवार का ना सगे-संबंधियों कल आज शर्म है 

यही आज के विवाह मांगलिक समारोह का धर्म है 
जिस कॉलेज आना है वह लाज छोड़ बैठा है और जो बेशर्म है वह शर्मा रहा है
‌ ऐसा करने वाले को खुद यह पता नहीं है कि ऐसा क्यों करती है
सिर्फ खाना खाया अपना व्यवहार दिखाया और लिफाफा दिया और निकल लिये....

यही आज का लोकाचार है । 
सबका यही व्यवहार है और बोल भी दिया ...

आ गये   यह क्या कम है ..!!

अरे भाई !   

विवाह का मौसम है। डॉ दिलीप कुमार सिंह

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