*आस्था व उत्साह से मनाया गया वट सावित्री पूजन*
_(संवाददाता--उपेन्द्र श्रीवास्तव_ )
जौनपुर -- हिन्दू धर्म में महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत रखतीं हैं। उत्तर भारत जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, एवं उड़ीसा राज्य में वट सावित्री व्रत हर साल सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं उत्तर भारतीयों की तुलना में पन्द्रह दिन बाद अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को समान रीति से इस दिन अखण्ड सौभाग्य के लिए व्रत रखतीं हैं। इस साल वट सावित्री व्रत के दिन सर्वार्थसिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है, इसलिए इस दिन का महत्व और बढ़ गया है। मान्यता है कि इस योग में किये गए कार्य पूर्ण होते हैं।
सावित्री व्रत कथा के अनुसार वट वृक्ष के नीचे ही उनके सास ससुर को दिव्य ज्योति, छिना हुआ राज्य तथा वहीं उनके मृत पति के शरीर में प्राण वापस आये थे। पुराणों के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत,कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था,इसीलिए वट वृक्ष को ज्ञान, निर्वाण व दीर्घायु का पूरक माना गया है।
कथा के अनुसार राजर्षि अश्वपति की एक ही सन्तान थी,जिसका नाम सावित्री था। सावित्री का विवाह वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से तय हो गया। नारद जी ने सावित्री को बताया कि उसके होने वाले पति की आयु कम है,तब भी सावित्री अपने निर्णय से नहीं हटीं। विवाह पश्चात वह राज वैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करने के लिए वन में रहने लगीं। जिस दिन सत्यवान का अंतिम दिन था,उस दिन वह लकड़ियां काटने के लिए जंगल चले गए, वहां वह अचानक मूर्छित हो कर गिर पड़े।
उसी समय यमराज वहां आये और सत्यवान के प्राण ले लिये। तीन दिनों से उपवास में रह रहीं सावित्री इस बात को जानती थीं। इसलिये वह बिना व्याकुल हुए यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना करने लगीं। सावित्री के बार बार प्रार्थना करने के बावजूद भी यमराज ने सत्यवान के प्राण ले ही लिए,और यमलोक की ओर प्रस्थान करने लगे,तब सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं। यमराज ने सावित्री को कई बार पीछे आने से मना किया,फिर भी सावित्री उनके पीछे निर्भीक होकर चलने लगीं। सावित्री का यह साहस और त्याग देखकर यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए।
उन्होंने सावित्री से तीन वरदान मांगने को कहा,तब सावित्री ने पहले वरदान के रूप में सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता की आंखें मांगी। दूसरे वरदान में उन्होंने अपने पति का छीना हुआ राज्य मांगा। तीसरे वरदान में उन्होंने सौ पुत्र मांगे। यह सुनकर यमराज ने तथास्तु कहा, तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को अब ले जाना संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया,और सत्यवान को वहीं छोड़कर अंतर्ध्यान हो गए।
उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे बैठी हुई थीं। इसलिये उस दिन से सभी सुहागिन महिलाएं अपने परिवार और पति की दीर्घायु के लिए वट वृक्ष का पूजन करतीं हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष को भोग अर्पित करके उन्हें धागे से लपेट कर उनकी पूजा करतीं हैं।
सावित्री को भारतीय संस्कृति में आदर्श नारीत्व व पातिव्रत के लिए ऐतिहासिक व पौराणिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेदमाता गायत्री व माता सरस्वती भी होता है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
जनपद में भी वट सावित्री पूजन विवाहित महिलाओं के द्वारा किया गया। धर्मप्राण व्रती महिलाओं द्वारा सुबह से ही वट वृक्ष का पूजन श्रद्धा व उत्साह पूर्वक किया जा रहा था,फिर चाहे अस्वस्थता की स्थिति हो या प्लास्टर चढ़ा हो,महिलाओं ने आस्था को प्रधानता देते हुए इसे जीवंत रखा,यद्यपि वट वृक्ष की बेहद कमी देखने को मिली,जिससे महिलाओं को असुविधा भी हुई,जिसका एकमात्र उपाय वृक्षारोपण ही है,सरकार के साथ जनता को भी बढ़चढ़ कर वृक्षारोपण करना चाहिए।
अमरेंद्र श्रीवास्तव
Great
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