Friday, 30 December 2022

बाईबल शब्द यूनानी मूल शब्द 'बिबलिया' से निकला है, जिसका अर्थ है 'पुस्तकें' यानि बाईबल माने पुस्तकों का संकलन।



बाईबल शब्द यूनानी मूल शब्द 'बिबलिया' से निकला है, जिसका अर्थ है  'पुस्तकें' यानि बाईबल माने पुस्तकों का संकलन। 

ये दो भागों में बंटा है, उसका पूर्व भाग पुराना-नियम (ओल्ड-टेस्टामेंट) तथा उत्तर भाग नया-नियम (न्यू टेस्टामेंट) के नाम से जाना जाता है। पुराने नियम में ईसा से पूर्व आये यहूदी पैगम्बरों तथा यहूदी इतिहास का वर्णन है तथा नया-नियम ईसा के जीवन, उनकी शिक्षाओं से संबंधित तो है ही साथ ही ईसाईयत के आरंभिक विस्तार के बारे में भी बताता है।

ईसा मसीह का जन्म, उनका अज्ञातवास, सूलीकरण, उनके पुनर्जीवन और फिर आसमान पर उठाये जाने या भारत आने की कथाओं को लेकर ईसा के आरंभिक शिष्यों में काफी मतभिन्नताएं थी। इसलिए सूलीकरण के बाद से ही उनके शिष्यों ने अपने-अपने हिसाब से उनकी जीवन-गाथाएँ लिखनी शुरू की और उनके उपदेशों का संग्रहण आरम्भ कर दिया। हुआ ये कि सूलीकरण के करीब तीन सौ साल के अंदर-अंदर ईसा के जीवन और उपदेशों पर आधरित करीब 104 सुसमाचार रचे गए, जिनमें आपस में जबर्दस्त मतभिन्नताएं थी। किसी भी दो सुसमाचार की विषय-वस्तु एक सी नहीं थी। परिणाम ये हुआ कि एक मत या पंथ के रूप में ईसाईयत को स्थापित करना असंभव हो गया। 325 ईसवी में ईसाईयत को धराशायी होता देखकर उसे फिर से एक करने हेतू उस समय के रोमन सम्राट Caesar Flavius Constantine ने Nicea नाम के स्थान पर ईसाई मत के तमाम विद्वानों की एक सभा बुलाई, जिसे इतिहास में Council of Nicea के नाम से जाना जाता है।

इस बैठक के बुलाने के एक उद्देश्य तो ईसाईयत के भीतर के झगड़ों का समाधान खोजना था और इसके बाकी उद्देश्यों में ईसा के धर्मशिक्षाओं में से सही और गलत का चुनाव करना था। यहाँ ये भी तय किया जाना था कि ईसा नबी थे या खुदा के बेटे या फिर कोई आम इंसान, साथ ही ईसा के जीवन तथा ईसाई त्योहारों की तिथियाँ भी निरुपित की जानी थी। नीसिया के इस धर्मसभा में 300 बिशप तथा 104 दस्तावेज मौजूद थे जिसमें हरेक का दावा था कि उसका सुसमाचार ही सबसे प्रमाणिक और सत्य के करीब है। इस धर्मसभा में झगड़े शुरू हो गए और सिर्फ 18 लोगों के बहुमत से बाईबल के नए स्वरुप को थोप दिया गया। इसमें केवल मैथ्यू, मार्क, लूका और जॉन नाम के चार लोगों के सुसमाचारों को ही शामिल किया गया और बाकी सुसमाचारों को Constantine ने नष्ट करवा दिया।

इसका अर्थ ये है कि वर्तमान बाईबिल मूल या प्रमाणिक है ऐसा दावा नहीं किया जा सकता क्योंकि बिना किसी आधार के निसिया की धर्मसभा में 100 सुसमाचारों को ख़ारिज कर दिया गया था। आज मध्यपूर्व के देशों से नीसिया धर्मसभा में खारिज किये गये स्क्रोल्स (गोस्पेल्स) मिल रहें हैं जिसका ईसाईयत के वर्तमान स्वरुप की कोई साम्यता नहीं है और इसलिये उनके स्तंभ एक के बाद एक धाराशायी होते जा रहे हैं। ईसाई जगत खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है क्योंकि ईसाईयत के जिन सिद्धांतों और मान्यताओं के ऊपर वो आज तक आँख बंद कर विश्वास करते रहे थे वो सबके सब भ्रम की तरह टूट रहें हैं। जुडास का विश्वासघात, ईसा का सूलीकरण, पुनर्जीवन, सदेह स्वर्गारोहण के दावे ज्यों-ज्यों खारिज हो रहें हैं त्यों-त्यों ईसाईयत की बुनियाद दरक रही हैं और वहां क्रिसमस की छुट्टी केवल विंटर वेकेशन बनकर रह गई है। इसी के कारण आज जिज्ञासु ईसाई जगत परम सत्य की खोज में योग और अध्यात्म के जरिये भारत और हिंदुत्व का रुख कर रहें हैं मगर प्रश्न ये है कि सेकुलरिज्म की अफीम चाटकर हिंदुत्व से दूर जा चुका भारत क्या उनका मार्गदर्शन कर सकेगा ?

कोलकाता के पार्क स्ट्रीट चर्च के बाहर कल उमड़ी भीड़ को देखकर तो कदापि नहीं।

 *सच्चे भाव का फल अवश्य मिलेगा,*
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एक वृद्ध महिला एक सब्जी की दुकान पर जाती है,उसके पास सब्जी खरीदने के पैसे नहीं होते है। वो दुकानदार से प्रार्थना करती है कि उसे सब्जी उधार दे दे पर दुकानदार मना कर देता है। उसके बार-बार आग्रह करने पर दुकानदार खीज कर कहता है,तुम्हारे पास कुछ ऐसा है जिसकी कोई कीमत हो तो उसे इस तराजू पर रख दो,मैं उसके वज़न के बराबर सब्जी तुम्हे दे दूंगा।वृद्ध महिला कुछ देर सोच में पड़ जाती है। क्योंकि उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं था।कुछ देर सोचने के बाद वह,एक *मुड़ा-तुड़ा कागज़* का टुकड़ा निकलती है और उस पर कुछ लिख कर तराजू पर रख देती है। दुकानदार ये देख कर हंसने लगता है। फिर भी वह थोड़ी सब्जी उठाकर तराजू पर रखता है।
*आश्चर्य.!!!*
*कागज़ वाला पलड़ा नीचे रहता है और सब्जी वाला ऊपर उठ जाता है।*
इस तरह वो और सब्जी रखता जाता है पर कागज़ वाला पलड़ा नीचे नहीं होता। तंग आकर दुकानदार उस कागज़ को उठा कर पढता है और हैरान रह जाता है।
*🌹कागज़ पर लिखा था...''हे श्री कृष्ण, तुम सर्वज्ञ हो,अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है''।*
दुकानदार को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वो उतनी सब्जी वृद्ध महिला को दे देता है। पास खड़ा एक अन्य ग्राहक दुकानदार को समझाता है,कि दोस्त,आश्चर्य मत करो। केवल श्री कृष्ण ही जानते हैं की प्रार्थना का क्या मोल होता है।वास्तव में प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है।चाहे वो एक घंटे की हो या एक मिनट की। यदि *सच्चे मन* से की जाये,तो ईश्वर अवश्य सहायता करते हैं..!! 
अक्सर लोगों के पास ये बहाना होता है,की हमारे पास वक्त नहीं। मगर सच तो ये है कि ईश्वर को याद करने का कोई समय नहीं होता...!!
*🌹प्रार्थना के द्वारा मन के विकार दूर होते हैं,और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।*
*🌹जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का बल मिलता है।*
*🌹ज़रूरी नहीं की कुछ मांगने के लिए ही प्रार्थना की जाये।*
*🌹जो आपके पास है उसका धन्यवाद करना चाहिए।*
*🌹इससे आपके अन्दर का अहम् नष्ट होगा और एक कहीं अधिक समर्थ व्यक्तित्व का निर्माण होगा।*

*प्रार्थना करते समय मन को ईर्ष्या,द्वेष,क्रोध घृणा जैसे विकारों से मुक्त रखें..!!*
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*मनोज सिंह रावत*
*RSS प्रचारक*
*नागपुर महाराष्ट्र*
      🙏🙏
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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     💫💦  परमात्मा से सम्बन्ध  💫💦



एक बार एक पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पांच सौ रुपये रख दिए।
उन्होंने सोचा कि जब मेरी बेटी की शादी होगी तो मैं ये पैसा ले लूंगा।
कुछ सालों के बाद जब बेटी सयानी हो गई,
तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गए।

लेकिन दुकानदार ने नकार दिया और बोला- आपने कब मुझे पैसा दिया था?
बताइए! क्या मैंने कुछ लिखकर दिया है?

पंडित जी उस दुकानदार की इस हरकत से बहुत ही परेशान हो गए और बड़ी चिंता में डूब गए।
फिर कुछ दिनों के बाद पंडित जी को याद आया,
कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दूं।
ताकि वे कुछ फैसला कर देंगे और मेरा पैसा मेरी बेटी के विवाह के लिए मिल जाएगा।

फिर पंडित जी राजा के पास पहुंचे और अपनी फरियाद सुनाई।

राजा ने कहा- कल हमारी सवारी निकलेगी और तुम उस दुकानदार की दुकान के पास में ही खड़े रहना।

दूसरे दिन राजा की सवारी निकली।
सभी लोगों ने फूलमालाएं पहनाईं और किसी ने आरती उतारी।

पंडित जी उसी दुकान के पास खड़े थे।
जैसे ही राजा ने पंडित जी को देखा,
तो उसने उन्हें प्रणाम किया और कहा- गुरु जी! आप यहां कैसे?
आप तो हमारे गुरु हैं।
आइए! इस बग्घी में बैठ जाइए।

वो दुकानदार यह सब देख रहा था।
उसने भी आरती उतारी और राजा की सवारी आगे बढ़ गई।

थोड़ी दूर चलने के बाद राजा ने पंडित जी को बग्घी से नीचे उतार दिया और कहा- पंडित जी! हमने आपका काम कर दिया है।
अब आगे आपका भाग्य।

उधर वो दुकानदार यह सब देखकर हैरान था,
कि पंडित जी की तो राजा से बहुत ही अच्छी सांठ-गांठ है।
कहीं वे मेरा कबाड़ा ही न करा दें।
दुकानदार ने तत्काल अपने मुनीम को पंडित जी को ढूंढ़कर लाने को कहा।

पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार-विमर्श कर रहे थे।
मुनीम जी बड़े ही आदर के साथ उन्हें अपने साथ ले आए।

दुकानदार ने आते ही पंडित जी को प्रणाम किया और बोला- पंडित जी! मैंने काफी मेहनत की और पुराने खातों को‌ देखा,
तो पाया कि खाते में आपका पांच सौ रुपया जमा है।
और पिछले दस सालों में ब्याज के बारह हजार रुपए भी हो गए हैं।
पंडित जी! आपकी बेटी भी तो मेरी बेटी जैसी ही है।
अत: एक हजार रुपये आप मेरी तरफ से ले जाइए,
और उसे बेटी की शादी में लगा दीजिए।

इस प्रकार उस दुकानदार ने पंडित जी को तेरह हजार पांच सौ रुपए देकर बड़े ही प्रेम के साथ विदा किया।

------ तात्पर्य ------
जब मात्र एक राजा के साथ सम्बन्ध होने भर से हमारी विपदा दूर जो जाती है, तो हम अगर इस दुनिया के राजा यानि कि परमात्मा से अपना सम्बन्ध जोड़ लें, तो हमें कोई भी समस्या, कठिनाई या फिर हमारे साथ किसी भी तरह के अन्याय का तो कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होगा।



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