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एक महिला रोटी बनाते बनाते
*"गुरुमंत्र"* का जाप कर रही थी काम करते-करते भी उसे *"गुरुमंत्र"* का जाप करने की आदत हो गई थी ।
एकदिन एकाएक धड़ाम से जोरों की आवाज हुई और साथ में दर्दनाक चीख। कलेजा धक से रह गया जब आंगन में दौड़ कर ऊपर से नीचे झांकी तो आठ साल का उनका लाडला बेटा चित्त पड़ा था, खून से लथपथ। दहाड़ मार मार कर रोने लगी। घर में उसके अलावा कोई नहीं था, रोकर भी किसे बुलाती, फिर बेटा को संभालना भी तो था।
दौड़ कर नीचे गई तो देखा बेटा आधी बेहोशी में माँ-माँ की रट लगाए हुए है। मां की ममता तड़प गई, आंखों से निकल कर अपनी मौजूदगी का अहसास करवाया। फिर 10 दिन पहले ही करवाये अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बावजूद ना जाने कहाँ से इतनी शक्ति आ गयी कि बेटे को गोद मे उठा कर पड़ोस के नर्सिंग होम की ओर दौड़ी। रास्ते भर अपने सद्गुरु को जी भर कर कोसती रही, बड़बड़ाती रही, हे गुरुदेव क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा, जो मेरे ही बच्चे को..। खैर डॉक्टर मिल गए और समय पर इलाज होने पर बेटा बिल्कुल ठीक हो गया।
चोटें गहरी नहीं थी, ऊपरी थीं तो कोई खास परेशानी नही हुई।... रात को घर पर जब सब टीवी देख रहे थे तब उस औरत का मन बेचैन था। सद्गुरु से विरक्ति होने लगी थी। एक मां की ममता गुरुसत्ता को चुनौती दे रही थी।
उसके दिमाग में दिन की सारी घटना चलचित्र की तरह चलने लगी। कैसे बेटा आंगन में गिरा। और फिर एकाएक उसकी आत्मा सिहर उठी, कल ही तो पुराने हैंडपंप का पाइप का टुकड़ा आंगन से हटवाया है, ठीक उसी जगह था जहां बेटा गिरा था। अगर कल मिस्त्री न आया होता तो..?
उसका हाथ अब अपने पेट की तरफ गया जहां टांके अभी हरे ही थे, ऑपरेशन के। आश्चर्य हुआ कि उसने 20-22 किलो के बेटे को उठाया कैसे, कैसे वो आधा किलोमीटर तक दौड़ती चली गयी? फूल सा हल्का लग रहा था बेटा। वैसे तो वो कपड़ों की बाल्टी तक छत पर नही ले जा पाती है।
फिर उसे ख्याल आया कि डॉक्टर साहब तो 2 बजे तक ही रहते हैं और जब वो पहुंची तो साढ़े 3 बज रहे थे, उसके जाते ही तुरंत इलाज हुआ, मानो किसी ने उन्हें रोक रखा था।
उसका सर गुरु चरणो में श्रद्धा से झुक गया। अब वो सारा खेल समझ चुकी थी। मन ही मन सद्गुरु से अपने शब्दों के लिए रोते रोते क्षमा मांगने लगी।
तभी टीवी पर प्रवचन आ रहा था,
*"मैं तुम्हारे आने वाले संकट रोक नहीं सकता क्योंकि वह तुम्हारा ही कर्म है। लेकिन तुम्हें इतनी शक्ति दे सकता हूँ कि तुम आसानी से उन्हें पार कर सको, तुम्हारी राह आसान कर सकता हूँ। बस धर्म के मार्ग पर चलते रहो।"*
उस औरत ने घर के मंदिर में झांक कर देखा तो सद्गुरु की छवी मुस्कुरा रही थी.!!ॐ श्री गुरुवे नमः।
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