: *श्रीगणेश - पुराण अध्याय – २३३:--*
*(३. महोदरावतार का वर्णन – मोहासुर की शरणागति)*
*महोदर ने प्रसन्न होकर अभयदान दिया - 'देवताओ ! मुनियो ! तुम सब चिन्ता का त्याग करो । मैं संसार के हितार्थ उस प्रबल दैत्य मोहासुर का संहार कर दूंगा ।*
*तुम सब लोग उसके साथ युद्ध करने के लिए आगे बढ़ो।'*
*देवर्षि नारद ने मोहासुर को जा बताया कि 'भगवान् महोदर ने तुम्हारे वध का विचार किया है ।*
*जब तक तुम्हारा कोई अनिष्ट न हो तब तक उनकी शरण लेने में तुम्हारा कल्याण है ।'*
*उक्त परामर्श देकर नारदजी चले गए ।*
*मोहासुर ने अपने राजपुरोहित शुक्राचार्य से इस विषय में परामर्श किया तो वे बोले - दैत्यराज ! भगवान् महोदर ही इस समस्त विश्व के कर्ता और लय करने वाले हैं । समस्त देवताओं और दैत्यों को भी उन्होंने उत्पन्न किया है ।*
*वे प्रभु काल के भी महाकाल हैं। उनके लिए अपना-पराया कोई नहीं है । इसलिए तुम निर्भय होकर उनकी शरण में जाओ तो वे तुम्हें भी अपना लेंगे।*
*अतः तुम अपनी श्रेय कामना से उनको प्रसन्न करके कृपा प्राप्त कर लो।'*
*तभी महोदर के दूत रूप से भगवान् विष्णु वहाँ पधारे ।*
*दैत्यराज ने उन्हें सम्मान सहित आसन दिया और बोला - 'कहिए प्रभो ! आप यहाँ किस प्रयोजन से पधारे हैं ?'*
*विष्णु बोले - 'हे मोहासुर ! मैं महोदर का दूत हूँ। उन्होंने यह संदेश दिया है कि यदि तुम देवताओं, मुनियों, ब्राह्मणों, एवं समस्त धार्मिक स्त्री-पुरुषों के सुख में व्यवधान उपस्थित न करने का वचन देते हुए उन दयामय प्रभु की शरण ले लो तो वे तुम्हें क्षमा कर देंगे । अन्यथा रणक्षेत्र में तुम्हारा वध अवश्यम्भावी है।'*
*मोहासुर का मोह और गर्व भंग हो गया ।*
*उसके चित्त में ज्ञान का प्रकाश हुआ और तब वह भगवान् विष्णु से बोला - 'हे देवदूत ! आप उन भगवान् से जाकर निवेदन करिए कि मैं उनकी शरण ले रहा हूँ।*
*वे मेरे नगर में सादर पधार कर अपने अभिनन्दन का अवसर प्रदान करें।*
*विष्णु ने 'साधु ! साधु !' कहकर उसकी प्रशंसा की और महोदर के पास लौट गए ।*
*महोदर ने उनके द्वारा मोहासुर का सन्देश सुना तो उसके नगर में पधारे ।*
*दैत्यराज ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया और श्रद्धा-भक्तिपूर्वक षोडशोपचार से पूजन कर स्तुति की और उनकी सभी आज्ञाओं का पालन करने का वचन दिया ।*
*फिर उसने सुदृढ़ भक्ति की याचना की ।*
*महोदर ने उसे इच्छित प्रदान किया और अन्तर्धान हो गए ।*
*मोहासुर ने सभी आज्ञाओं का पालन कर संसार भर में सुख-शान्ति स्थापित कर दी।*
जय श्री कृष्णा
*श्रीगणेश - पुराण अध्याय – २३२:--*
*(३. महोदरावतार का वर्णन – मोहासुर द्वारा ब्रह्माण्ड विजय-वर्णन)*
*तदुपरान्त उसने दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया ।*
*समस्त देवता, मनुष्य, नाग, यक्ष, किन्नर, आदि पर विजय प्राप्त कर वह त्रैलोक्याधिपति बन बैठा ।*
*उसके क्रूर शासन में देवता, एवं मुनि आदि अत्यन्त पीड़ित हो उठे ।*
*धर्म-कर्म का लोप हो गया । ब्राह्मणों की जीविका का साधन भी समाप्त हो गया ।*
*देवता उसके भय से वन-पर्वतों में छिपे फिर रहे थे। निरीह प्रजा उसके अत्याचारों से त्रस्त हो उठी थी।*
*सभी ने सोचा कि अब क्या किया जाय ? इस असुर के उत्पीड़न से किस प्रकार छुटकारा मिले ?*
*ऐसी चिन्ता करते हुए देवताओं और ऋषियों से भगवान् भास्कर ने ही प्रकट होकर कहा - 'मूषकवाहन महोदर की आराधना करो तुम सब । वे ही प्रभु तुम्हारे सङ्कट दूर करेंगे।'*
*सूर्य की बात सुनकर देवगणादि ने महोदर भगवान् की प्रसन्नता के लिए घोर तप किया।*
*जिससे प्रसन्न हुए गणेश्वर ने प्रकट होकर उनसे पूछा - 'क्या चाहते हो ?'*
*सर्वेश्वर एवं समर्थ प्रभु को अपने समक्ष प्रकट हुए देखकर वे सब अत्यन्त प्रसन्न हो गये और उनके चरणों में प्रणाम कर गद्गद कण्ठ से बोले - 'प्रभो !
*हमसब मोहासुर के उत्पीड़न से संत्रस्त हो रहे हैं, आप हमारी रक्षा कीजिए।'*
जय श्री कृष्णा
*श्रीरामचरितमानस*
*गुर पद पंकज सेवा*
*तीसरि भगति अमान ।*
*चौथी भगति मम गुन गन*
*करइ कपट तजि गान ।।*
_(अरण्यकांड, दो. 35)_
_राम राम बंधुओं, राम जी सीता को खोजते शबरी जी के आश्रम आते हैं और उन्हें नौ प्रकार की भक्ति बताते हैं। इसी क्रम में तीसरी व चौथी प्रकार की भक्ति बताते हुए राम जी कहते हैं कि तीसरी भक्ति अभिमान रहित होकर गुरू के चरण कमलों की सेवा करना तथा चौथी भक्ति कपट छोड़कर मेरे गुण समूहों का गान करना है।_
मित्रों! कपट छूटे तो अभिमान छूटे और अभिमान छूटे तो जीव सेवा में लगें और ये दोनों तब छूटे जब जीव निरंतर हरि गुन गान करें, हरि गुन गान करें अस्तु
🙏🏻श्रीराम जय राम
जय जय राम🙏🏻🚩🚩🚩
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