Thursday 18 May 2023

मन शांत और संतुष्ट होगा तो समृद्धि भी जरूर मिलेगी*

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*🚩🌹मन शांत और संतुष्ट होगा तो समृद्धि भी जरूर मिलेगी*

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*🚩🌺एक बार एक व्यक्ति ने अपनी गरीबी से तंग आकर घोर तपस्या करनी शुरू कर दी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और बोले, ‘वत्स, मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। बोलो क्या चाहते हो?’ व्यक्ति ने कहा, ‘भगवन, मैं बहुत निर्धन हूं। मेरी निर्धनता दूर कर मुझे धनवान बना दो।’ भगवान तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद तो उस व्यक्ति के पास किसी चीज की कमी ही नहीं रही। उसकी धन-दौलत में लगातार वृद्धि होती रही। उसके व्यापार-व्यवसाय में वृद्धि के साथ-साथ उसकी व्यस्तता भी बढ़ती चली गई। व्यस्तता के कारण उसका स्वास्थ्य प्रभावित होने लगा। इन सब बातों को लेकर वह आकुल और अशांत रहने लगा। उसकी बेचैनी बढ़ती ही चली गई। अब वह व्यक्ति हर हाल में मन की शांति चाहता था, लेकिन उसकी दिनचर्या और जीवनचर्या ऐसी बन चुकी थी कि शांति असंभव हो गई थी।*

*🚩🌺संतुष्ट व्यक्ति शांत रहता है*

*🚩🌺उस व्यक्ति ने इस बार अपनी अमीरी से तंग आकर फिर तपस्या शुरू की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान एक बार फिर प्रकट हुए और बोले, ‘वत्स, तुम्हारे पास सब-कुछ तो है। अब और क्या चाहते हो?’ व्यक्ति ने कहा, ‘भगवन, बेशक मुझसे सारी समृद्धि वापस ले लो, लेकिन मुझे मन की शांति और संतुष्टि चाहिए।’ भगवान ने कहा, ‘अरे भले आदमी, यह पहली बार ही मांग लेता तो तेरी यह दशा तो नहीं होती। जो जीवन में संतुष्ट रहता है और जिसके मन में शांति रहती है, भौतिक समृद्धि तो उसके यहां अपने आप आ ही जाती है। खैर, देर आयद, दुरुस्त आयद।’ भगवान तथास्तु कह कर फिर अंतर्ध्यान हो गए।*

*🚩🌺सद्गुणों का क्या करोगे*

*🚩🌺यह एक प्रतीक कथा है, जो हमारे जीवन की वास्तविकता को प्रकट करती है। अक्सर हम सब की यही स्थिति होती है। जीवन में हम सब खूब धन-दौलत पाना चाहते हैं और इसके लिए कुछ भी कसर नहीं रख छोड़ते।* 

*🚩🌺असल में, हम जो चाहते हैं वही पाते हैं, इसलिए मनचाही चीजें या धन-दौलत हमें मिल भी जाती है। इसके विपरीत अगर हम धन-दौलत की बजाय सद्गुणों की अपेक्षा करें, तो उनका मिलना भी संभव है। मगर होता यह है कि अक्सर हम यह सोचने लगते हैं कि मात्र सद्गुणों से क्या लाभ होगा? सद्गुणों का लाभ तभी मिलता है जब हम आर्थिक रूप से भी समृद्ध हों। खाली सद्गुणों का क्या अचार डालेंगे?*

*🚩🌺पहले समृद्धि, और फिर सद्गुण। यही सबसे बड़ी भूल और गलत सोच है। हम जीवन में भौतिक सुख-समृद्धि किसलिए चाहते हैं? शांत, संतुष्ट या फिर प्रसन्न रहने के लिए ही तो?* 

*🚩🌺वास्तविकता यह है कि अगर हम प्रसन्न और शांत-संतुष्ट रहते हैं तो भौतिक समृद्धि तो अपने आप आ जाती है, अवगुण भी गुण बन जाते हैं। यह एक बहुत सरल सी बात है कि एक प्रसन्न और शांत-संतुष्ट व्यक्ति ही हमेशा स्वस्थ रह सकता।*

*🚩🌺शांति और संतुष्टि का महत्व*

*🚩🌺शांति और संतुष्टि का मतलब यह नहीं कि पुरुषार्थ से दूर हो जाना है। शांत रहकर कर्म करने वाले व्यक्ति की सोच भी संतुलित और सकारात्मक होती है। वह सोच-विचार कर केवल सही कार्य ही करता है, गलत नहीं। ऐसा व्यक्ति न तो असंतुष्ट रहता है और न ही निराश। इसलिए भौतिक समृद्धि से पूर्व जीवन में शांति और संतुष्टि की कामना करना ही श्रेयस्कर है, क्योंकि एक बार जीवन में यह आ गई तो भौतिक समृद्धि तो स्वयं अवतरित होने लगती है।*

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