Wednesday 17 May 2023

जुलाहे के आम"

जुलाहे के आम"

एक जुलाहा और एक ब्राह्मण की आपस में गहरी मित्रता थी। दोनों बैष्णव थे। और आपसी बैठक में केवल हरि कथा हरि गुणगान करते।

 कारण भी ऐसा था जिससे आपसी प्रीति और श्री हरि के प्रेम में वृद्धि बढ़ने लगी। इन दोनों को श्री जगन्नाथ जी में प्रगाढ़ निष्ठा थी। 

एक बार ब्राह्मण ने जुलाहे से कहा कि भैया मैं तो पुरी धाम जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए जा रहा हूँ। यदि तुम भी चलो तो यात्रा का आनंद बढ़ जाएगा। 

जुलाहे ने विचार किया की मैं तो शूद्र हूँ, यदि भगवान् के किसी सेवक से स्पर्श हो गया तो अपराध बन जायेगा। वैसे भी शुद्रों का मंदिर में प्रवेश वर्जित है। जुलाहे ने कहा कि भैया आप जानें से पहले मुझसे मिलके जाना।

 ब्राह्मण ने कहा कि वह सातवें दिन जायेगा। 
सातवें दिन ब्राह्मण जुलाहे से मिलने आया। तो जुलाहे ने एक टोकरी आम ब्राह्मण को दिए, और कहा भैया मैं तो शूद्र हूँ। मेरा मंदिर में प्रवेश उचित नहीं है। 

 ये आम मेरे ले जाओ क्योंकि उनके मंदिर में प्रवेश उचित नहीं है। अतः तुम सिंह द्वार पर खड़े होकर कहना ठाकुर ये जुलाहा के आम हैं। खाना हो तो खाओ नहीं तो फेंक दो।

 ब्राह्मण सिंह द्वार के पास जाकर एक आम उठाया और बोला कि ठाकुर ये जुलाहा के आम हैं। खाना हो तो खाओ नहीं तो फेंक दो ; आम गायब हो गया।

 दूसरा आम लेकर फिर यही कहा, वह आम भी गायब हो गया। यह क्रिया ब्राह्मण दोहराता गया आम भी गायब होते गए। सैनिकों ने उसकी क्रिया देख कर उसे बंदी बनाकर राजा के पास ले आये। 

राजा ने उसका अपराध पूछा। सैनिको ने बताया कि यह जादू से आम गायब करके रास्ता जाम कर रहा था। राजा ने ब्राह्मण से सच्चाई पूछी। तो ब्राह्मण ने मित्र जुलाहे की सारी बात बता दी। 

राजा ने आदेश दिया कि मुख्य पुजारी जी को सारी बात बताई जाय तब न्याय होगा। सेवकों ने पुजारी जी को सारी बात बता कर राजदरबार में उपस्थिति के लिए प्रार्थना की, पुजारी जी बोले ठाकुरजी के कपाट खोल कर आता हूँ। 

पुजारी जी ने जैसे ही मंदिर के कपाट खोले तो देखा एक तरफ आम की गुठली और दूसरी तरफ आम के छिलके पड़े थे।ऐसे है मेरे प्रभु प्रेम के भूखे......

"जय जय श्री राधे

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