सतयुग के पूर्व कालांतर मे एक दानव हुआ करता था तारकासुर का पुत्र विध्युतमाली जिसने भगवान शिव को वरदान के रूप मे बंधक बना लिया था और शिव को ना पा करके पार्वती जी काफी
विचलित हुई और जब ध्यान करके देखा तो पता चला कि भगवान शिव को विध्युतमाली ने पाताल लोक मे बंधक बना करके रखा हुआ है और जब मां पार्वती पाताल लोक शिव जी के पास गई
और विध्युतमाली की मंशा जानी कि शिव को आधार बना करके सारी श्रष्टि मे वो राज करना चाहता है तो पार्वती जी काफी क्रोधित हुई और विध्यतमाली से कहा कि शिव जी को बंधन मुक्त कर दें अन्यथा इस पाताल लोक मे भी तू रहने लायक नही रह जाएगा तो विध्यतमाली ने कहा कि आप शिव जी यहा से ले क्यो जाना चाहती है कैलाश यदि आप चाहे तो आप भी इनके साथ इसी पाताल लोक मे रह सकती है कैलाश मे सिर ढकने तक को स्थान नही है यहा देखिए हमारा कितना बड़ा महल है किसी भी कक्ष मे आप रह सकती है शिव जी के साथ किंतु मैने शिव जी को
वरदान के रूप मे पाया है इन्होने स्वयं मुझे वरदान दिया है इसीलिए मैने इनको चाकर के रूप मे बंधक बनाया हुआ है आप ना माने तो शिव जी से ही पूंछ लीजिए इस पर पार्वती जी बोली कि तू मुझे घर देगा रहने के लिए तो दे घर मै यही रहने को तैयार हू
तत्काल घर दे अन्यथा अभी तेरा अंत कर दूंगी मै जैसा घर चाहती हू वैसा घर मुझे दे और शिव जी को मुक्त कर मै यही रहुंगी विध्युतमाली जैसे ही पार्वती जी के लिए घर का प्रबंध करने चला वैसे ही वहा शुक्राचार्य आ गए और विध्यतमाली को सावधान करते हुए कहा कि ये करने जा रहा है मूर्ख इनको पाताल लोक मे स्थान देने जा रहा है जानता भी है
कुछ कि तू क्या करने जा रहा है अपनी मौत को तू स्वयं आमंत्रित कर रहा है यदि शिव पार्वती यहा टिक गये तो तेरी जो मंशा तेरे मन मे पनप रही है वो कभी भी पूर्ण नही हो पाएगी और यहा सभी देवत्व को प्राप्त हो जाएंगे जबकि हमलोगो का उद्देश्य है कि सारी श्रष्टि मे दानवो का राज्य स्थापित हो तू अपना भला चाहता है तो अभी इसी क्षण भगवान शिव को मुक्त कर दे और ये कहते हुए शुक्राचार्य मां पार्वती जी से विनती
करने लगे कि इस मूढ़ अग्यानी को आप क्षमा कर दे माता ये नही जानता है कि ये क्या करने जा रहा है आप तत्काल कैलाश को प्रस्थान करे माता वहा सभी आप दोनो के बिन विचलित हो रहे होंगे
तब विध्युतमाली ने भगवान शिव को मुक्त किया और क्षमा याचना की कि वो ऐसा करके कितनी बड़ी भूल करने जा रहा था और शुक्राचार्य तथा विध्युतमाली शिव पार्वती जी की आराधना करने लगे तब कही जा करके पार्वती जी शांत हुई और दोनो कैलाश आ गये वही चीज इस कलयुग मे भी हो रहा है कि जिनका शांत जीवन बाधित किया जा रहा है जिनसे उनके परिश्रम की चीजें छीनी जा रही है य कभी छीनी गई थी उनके बारे मे कुछ सोचा ही नही जा रहा है और डिनके पास अथाह भरा पड़ा हुआ है उनकी नियत और छीन लेने की है बजाय
देने के इसी लिए कहा गया है कि जबरन किसी का कुछ हथियाया हुआ कभी ना कभी उसका परिणाम जो अनिष्ट होता है वो सामने अवश्य ही आता है इसके पश्चात यदि कोई सच्चा शिव भक्त हो जिसका सबकुछ हथिया लिया गया हो उसका श्राप तो कभी विफल नही जाता है जो वैराग्य भाव मे जी रहा हो सबकुछ त्याग करके ओउम नमः शिवायः
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