Monday, 29 April 2024

मुसलमानो बूथ जिताओ इनाम पाओ* *मुस्लिम महासंघ*

*मुसलमानो बूथ जिताओ  इनाम पाओ* *मुस्लिम महासंघ*
 अखिल भारतीय मुस्लिम महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष फरहत अली खान ने कहा कि मुस्लिम बाहुल्य पूरे देश में जहा पर भी बूथ हैं।
 वहां के मुसलमान एकजुट होकर भाजपा को वोट दें और इनाम पाए।
 उन्होंने कहा कि यह वक्त कुछ देने का है ना कि विरोध करने का ।
देश की अखंडता और एकता व मुख्य धारा से जोड़ने के लिए मुसलमानों लिए भाजपा को वोट देना भाईचारे और देश की तरक्की को मजबूत करना है ।
  जिसका मात्र एक ही विकल्प कमल का फूल और मोदी सरकार में हिस्सेदारी है।
 अपका बोट ही आपकी हिस्सेदारी तय करेगा।
फरहत अली खान 
राष्ट्रीय अध्यक्ष मुस्लिम महासंघ

आइये जाने प्रतापगढ़ के भाजपा प्रत्याशी सांसद संगम लाल गुप्ता को वोट हम क्यों करें ? पूरा जरुर पढ़े एक बार*

*आइये जाने प्रतापगढ़ के भाजपा प्रत्याशी सांसद संगम लाल गुप्ता को वोट हम क्यों करें ? पूरा जरुर पढ़े एक बार*

1. संगम लाल गुप्ता के पहले जितने भी सांसद थे उनसे मिल पाना एक आम नागरिक के लिए आसान नहीं था, आसान हो भी कैसे वो कभी प्रतापगढ़ में दिखाई ही नहीं पड़ते थे......उसके उलट सांसद संगम लाल गुप्ता ने जनता और सांसद के बीच की खाई को कम कर अपने आफिस में "जनता दर्शन" के माध्यम से और "गाँव-गाँव जाकर चौपाल" के माध्यम से खुद ही लोगों की समस्याओं को सुना और काफी लोगों की समस्याओं का निस्तारण भी हुआ।

2. जगेशरगंज, अंतू, चिलबिला स्टेशन का सौंदर्यीकरण सांसद संगम लाल गुप्ता ने ही कराया है।

3. प्रतापगढ़ के मुख्य स्टेशन माँ बेल्हा देवी धाम जंक्शन के भवन को एयरपोर्ट की तर्ज पर विकसित करने हेतु 32.5 करोड़ रुपये और उसके चारों ओर के इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लिए लगभग 100 करोड़ से भी जयादा का बजट लाकर उसे विकसित करने का कार्य हो रहा है, जिससे प्रतापगढ़ का नाम पूरे देश में गौरवान्वित होगा।

4. एटीएल को चालू करने के नाम पर ही इसके पहले के सांसद चुनाव जीत जाते थे लेकिन कोई प्रयास नहीं करते थे ......ढेर सारा बहाना बना लेते थे कि इसमें बहुत विवाद है हाईकोर्ट में मामला है, विद्युत विभाग, कर्मचारियों का विवाद, जमीन कम है, कोई कंपनी यहाँ आना नहीं चाहती तमाम बहाना बनाते थे पहले के सांसद...................जबकि जबसे सांसद संगम लाल गुप्ता जी प्रतापगढ़ के सांसद बने लगातार अमित शाह जी, मोदी जी, योगी जी से मिलकर जो भी एटीएल का बकाया था उसे दिलवाकर हाईकोर्ट से मैटर रफादफा कराने में सफलता प्राप्त किया और पूरे देश भर के बड़े उद्योगपतियों से मिलकर लगभग हजारों करोड़ों रुपये के निवेश के लिए MOu करवा लिया है .......अब केवल उद्योग स्थापना होनी ही शेष है....ये सांसद संगम लाल गुप्ता जी द्वारा सराहनीय कार्य है, प्रतापगढ़ के लिए।

5. पूरे हुडहा पुल, पूरे केशव राय पुल, दोमुहा पुल, डूहिया पुल, जिरियामऊ पुल का निर्माण सांसद संगम लाल गुप्ता ने ही कराया है और भी लोकसभा क्षेत्र में कई स्थानों पर पुलों का निर्माण प्रगति पर है।

6. गोडे से सुखपाल नगर बाईपास का निर्माण सांसद संगम लाल गुप्ता द्वारा ही कराया जा रहा है। 

7. गोडे से सुखपाल नगर बाईपास ही रिंग रोड है जो आगे चलकर क्रमशः राजगढ़, शनिदेव धाम, बाबा बेलखर नाथ धाम, मकूनपुर तक जाएगा ।

8. मुख्यमंत्री राहत कोष और प्रधानमंत्री राहत कोष द्वारा करोड़ों रुपये का अनुदान सरकार से अनुमन्य कराकर गरीब मरीजों का इलाज संभव कराया सांसद संगम लाल गुप्ता ने।

9. पहले के सांसद को किसी वैवाहिक, तेरहवीं, बरही, शोक संवेदना में नहीं देखते होंगे आप .........अब आप अक्सर सांसद संगम लाल गुप्ता को जबसे सांसद बने है आपको कहीं न कहीं दिखाई ही दे जायेंगे। 

10. सरल स्वभाव, जन सुलभ, मिलनसार व गरीबों के लिए शुभ चिन्तक है सांसद संगम लाल गुप्ता जी।

11 पहले के सांसदों ने कभी भाजपा कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं किया यहाँ तक पहचानते नहीं थे .....लेकिन आज सांसद संगम लाल गुप्ता जी भाजपा कार्यकर्ताओं को दीपावली पर उनको गिफ्ट देकर सम्मानित करना और होली मिलन समारोह के माध्यम से उनके साथ त्यौहार मनाना दिखाता है वो भाजपा कार्यकर्ताओं व आम नागरिक का कितना सम्मान करते है।

12. हजारों इंटरलाकिंग सड़क, सोलर लाईट, हैण्डपम्प, प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत काली सड़क, आवास, शौचालय, किसान सम्मान निधि, शादी अनुदान आदि को जनता के लिए करवाया है और बजट में कोई कमी न हो इसके लिए बराबर भारत सरकार और राज्य सरकार से प्रतापगढ़ के लिए पैरवी करते रहते है।

13. कई सारे गाँवो में "पानी की टंकी निर्माण" भी सांसद संगम लाल गुप्ता द्वारा ही कराया जा रहा है।

14. सांसद संगम लाल गुप्ता जी को केवल तीन वर्ष ही कार्य करने को मिला जबकि 02 वर्ष कोरोना काल में चला गया, जिसमे निधि पर रोक और वित्तीय स्वीकृति पर रोक लग गयी थी।

15. कोरोना काल में आपने देखा होगा किस तरह सांसद संगम लाल गुप्ता ने मुम्बई और अन्य राज्यों में फंसे लोगों को सकुशल प्रतापगढ़ लाया था .......और उनके द्वारा प्रतापगढ़ में लोगों को हर संभव मदद करायी गयी थी।

16. भुपियामऊ से सोनावा तक फोर लेन, मोहनगंज से वर्मा नगर फोर लेन, सुखपाल नगर से भुपियामऊ फोर लेन का पैसा प्रतापगढ़ में सांसद जी ने ही लाया है जिस पर कार्य होना बाकी है टेंडर की प्रक्रिया जल्द ही आरंभ होगी।

17. प्रतापगढ़ में कई सारे स्थानों पर अंडरपास का निर्माण भी सांसद जी द्वारा ही कराया गया है।

18. सौ बेड का महिला अस्पताल का निर्माण सांसद संगम लाल गुप्ता द्वारा ही कराया गया है और पुरुष अस्पताल में ट्रामा सेंटर का निर्माण लगभग हो चुका है ।

19. हजारों सार्वजनिक स्थलों पर हाईमास्ट सांसद जी द्वारा ही लगवाया गया है।

20. लगभग 14 विद्यालयों को पीएम श्री योजना में सम्मिलित कराकर उनका कायाकल्प कराकर उसमे शैक्षणिक कार्य हेतु सुख सुविधाओं की व्यवस्था सांसद संगम लाल गुप्ता जी ने ही कराया है।

21. कई सारे अमृत सरोवरों का निर्माण कराकर गाँवों का जल स्तर बढाने के लिए सरोवरों का निर्माण सांसद संगम लाल गुप्ता जी ने ही कराया है। 

22. देखिये हर कोई परफेक्ट नहीं होता है ......हम आप अपने घर के हर सदस्य को संतुष्ट नहीं कर सकते है लेकिन प्रयास करते है ईमानदारी से .......आप देखेंगे तो सांसद संगम लाल गुप्ता ने बड़ी निष्ठा ईमानदारी से प्रतापगढ़ के दिशा-दशा बदलने और गरीब-अमीर की खाई और जनता और सांसद के बीच की दूरी को कम करने का प्रयास किया है .......और मोदी जी, योगी जी द्वारा किये जा रहे सनातन धर्म, भारत देश को विश्व गुरु बनाने के लिए किये जा रहे प्रयास के लिए एक बार फिर से भाजपा प्रत्याशी सांसद संगम लाल गुप्ता जी को भारी बहुमतों से विजयी बनायें ....एक कार्यकाल इनको और देना अनिवार्य है क्योंकि इसी कार्यकाल में सांसद संगम लाल गुप्ता का कार्य इम्प्लीमेंट होगा .....जो प्रतापगढ़ की दिशा और दशा का कायाकल्प करेगी .......हमारा प्रतापगढ़ विकसित होगा। 


*जय भाजपा तय भाजपा*
*आएगा तो मोदी ही*
*प्रतापगढ़ में फिर से खिलेगा कमल*

*हर हर महादेव, जय श्री राम*

आप इतिहास की किताबों में समूचा मध्यकाल भले खिलजी, सैयद, लोदी या मुगल नाम से पढ़ लें, पर समूचे मध्यकाल में आपको एक भी बाहरी योद्धा ऐसा नहीं मिलेगा जिसने अपने जीवन मे दस बड़ी लड़ाइयां लड़ी हों। यहाँ तक कि गजनवी जैसे लुटेरे भी योद्धा कहे जाते हैं जो चोरों की तरह घुसते और तेजी से लूट पाट कर हवा की तरह गायब हो जाते थे।

आप इतिहास की किताबों में समूचा मध्यकाल भले खिलजी, सैयद, लोदी या मुगल नाम से पढ़ लें, पर समूचे मध्यकाल में आपको एक भी बाहरी योद्धा ऐसा नहीं मिलेगा जिसने अपने जीवन मे दस बड़ी लड़ाइयां लड़ी हों। यहाँ तक कि गजनवी जैसे लुटेरे भी योद्धा कहे जाते हैं जो चोरों की तरह घुसते और तेजी से लूट पाट कर हवा की तरह गायब हो जाते थे।
     इस पूरे कालखंड के बीच में बस एक नाम स्वर्ण की तरह चमकता है, जिसकी तलवार बार बार विजय का इतिहास रचती रही। जिसका नाम स्वयं में जीत का पर्याय हो गया, जो उत्तर से दक्षिण तक अपने शौर्य का ध्वज लहराते हुए दिग्विजय करता रहा है। वो बीस साल तक लड़ता रहा, जीतता रहा। तबतक, जबतक कि अंतिम विश्राम का समय न आ गया। मध्यकाल का सर्वश्रेष्ठ योद्धा पेशवा बाजीराव बल्लाळ!
     उस योद्धा को मुगल वंश का अंत करने का श्रेय मिलना चाहिए था, क्योंकि वही था जिसके कारण औरंगजेब का विशाल राज्य एक दिन चांदनी चौक से पालम तक सिमट कर रह गया। वही था जिसने दक्षिण में विधर्मी सत्ता के तेवर का ठंढा किया। वही था जिसने आज के लगभग समूचे भारत को एक भगवा ध्वज के नीचे ला खड़ा किया। पर इतिहास की किताबें उसके साथ न्याय नहीं करतीं। स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक दशकों में जैसे लोगों को शिक्षा मंत्री बनाया गया, उस हिसाब से हम न्याय की उम्मीद कर भी नहीं सकते।
     पेशवा की मस्तानी बाई से प्रेम कहानी की चर्चा सुनता हूँ तो लगता है, "बीस वर्ष में चालीस बड़ी लड़ाइयां लड़ने और जीतने वाले योद्धा को प्रेम के लिए क्या ही समय मिला होगा। पर साहित्य और सिनेमा जगत के धुरंधर जो न लिख दें, दिखा दें..."
     मराठा साम्राज्य का प्रधानमंत्री रहते हुए बीस वर्षों तक जिस योद्धा ने साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में अपना दिन रात एक कर दिया, उस योद्धा को उचित सम्मान मिलना ही चाहिये। और यह सत्ता से अधिक समाज का कार्य है। यह उस महान योद्धा का अधिकार है कि यह देश कहावतों में कहे- जो जीता, वो बाजीराव!
     भीषण गर्मी और लू के प्रचंड प्रहार के बीच उस महान योद्धा ने आज ही के दिन मध्यप्रदेश के रावड़खेड़ी में अंतिम सांस ली थी। हर वर्ष कुछ उत्साही लोग उस पुण्यभूमि पर जा कर उस अमर योद्धा को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। इस वर्ष भी गए हैं... मैं हर बार सोचता हूँ, पर नहीं जा पाता। खैर! अगली बार...
     पर आपको आज का दिन याद रहना चाहिये। याद रहना चाहिये रावड़खेड़ी। और याद रहना चाहिये, "जो जीता वही बाजीराव..."

#जो_जीता_वह_बाजीराव 
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।
दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।
दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले...
हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है.. 
बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?"
कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं..
घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी...
खैर.. 
अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी..
कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए..
दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें.. 
लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!...
दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा..
समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा.....
आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं..
क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही...
मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी.. 
दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा..

शिक्षा- कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे
 
पोस्ट पसंद आई तों फोलो करें🙏🙏🙏🙏

लगभग सभी #गांवों में 10-15 प्राणी ऐसे होते हैं जिनकी जिंदगी खेत की मेड़ कुरेदने में ही निकल जाती है100 मण अनाज #खेत में होगा लेकिन उनकी नजर में 99 मण डोल पर और 1 मण खेत में होता हैऔर फिर #झगड़े की शुरुआत होती है कई तो निपट जातें हैं 😋कुछेक चक्की पीसने वाली जगह पहुंच जाते हैं 😋और नतीजा क्या निकलता है घर बर्बाद, पीढ़ियां बर्बाद, आने वाली नस्ल का #भविष्य बर्बाद।अपने हिस्से में सब्र हो तो झगड़े की नौबत ही ना आए...

लगभग सभी #गांवों में 10-15 प्राणी ऐसे होते हैं जिनकी जिंदगी खेत की मेड़ कुरेदने में ही निकल जाती है
100 मण अनाज #खेत में होगा लेकिन उनकी नजर में 99 मण डोल पर और 1 मण खेत में होता है
और फिर #झगड़े की शुरुआत होती है कई तो निपट जातें हैं 😋
कुछेक चक्की पीसने वाली जगह पहुंच जाते हैं 😋
और नतीजा क्या निकलता है घर बर्बाद, पीढ़ियां बर्बाद, आने वाली नस्ल का #भविष्य बर्बाद।

अपने हिस्से में सब्र हो तो झगड़े की नौबत ही ना आए...

वह मूर्ख लड़की उस लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती थी। जानते हैं क्यों? क्योंकि उसने देखा, सुना होगा कि देश के सारे पढ़े लिखे बुद्धिजीवी, अभिनेता, साहित्यकार आदि लिव इन को ही जीवन जीने का आधुनिक और बढ़िया तरीका बताते हैं।

वह मूर्ख लड़की उस लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती थी। जानते हैं क्यों? क्योंकि उसने देखा, सुना होगा कि देश के सारे पढ़े लिखे बुद्धिजीवी, अभिनेता, साहित्यकार आदि लिव इन को ही जीवन जीने का आधुनिक और बढ़िया तरीका बताते हैं।
    लड़की की मां इस अवैध रिश्ते का विरोध करती थी, क्योंकि लड़का दूसरे सम्प्रदाय का था। पर लड़की को माँ की बातें फालतू और दकियानूसी लगती थीं। क्यों? क्योंकि देश के पढ़े लिखे लोग कहते तो हैं- जाति/धर्म तो बकवास बातें हैं। विवाह के लिए जाति धर्म नहीं, दिल मिलना जरूरी होता है। उसका दिल मिल गया था, सो वह उसी के साथ रहने लगी थी।
     पिछले दिनों लड़की की मां ने पुलिस केस किया था। पुलिस ने जब लड़के को पकड़ा, तो लड़की उसके बचाव में खड़ी हो गयी। बताने लगी कि उसकी माँ ही अत्याचारी है, वही उसे मारती-पीटती रहती है। इसी कारण वह माँ को छोड़ कर अपने बाबू-सोना के साथ रहती है। पुलिस क्या करती? छोड़ना पड़ा।
     हाँ तो अब बात यह है कि एक दिन लड़के का मन भर गया। नकली समान चार दिन नहीं टिकता, तो नकली प्यार कितना टिकेगा? मन भर गया तो प्रेम मारपीट में बदल गया। बेल्टे-बेल्ट! लगभग रोज ही... एक दिन लड़के ने लड़की को खूब मारा। हाथ पैर बांध कर मारा... पूरे शरीर पर दाग हो गए तो दागों पर नमक छिड़क कर मारा... मिर्च पाउडर छिड़क छिड़क कर... यही वह प्रेम था जिसके लिए लड़की ने मां को छोड़ा था।
     अभी रुकिये। जब घाव पर मिर्च पाउडर पड़ता तो लड़की चीख पड़ती थी। बताइये! कितनी बुरी बात है? कोई बेचारा प्रेम दिखा रहा है और आप चीख रहे हैं? उसे गुस्सा नहीं आएगा? उसे गुस्सा आया। उसने लड़की के होठों पर फेवीक्विक लगा दिया। होठ ही चिपक गए। अब चीखो... आवाजे नहीं निकलेगी ससुर! टेंशने खतम... वाह! मोहब्बत जिन्दाबाद...
     खैर! लड़की हॉस्पिटल में है, और उसके जख्मों पर मरहम वही बूढ़ी माँ लगा रही है, जिसे उसने पुलिस के सामने बुरा बताया था। क्या करे, माँ है न। 
     लड़का जेल में है। जानते हैं पुलिस ने जब लड़के को पकड़ा तब वह क्या कर रहा था? वह शराब की तस्करी कर रहा था। 93 हजार की अवैध शराब के साथ पकड़ा गया हीरो।
     कहानी बहुत पुरानी नहीं है, न बहुत दूर की है। गूना मध्यप्रदेश में घटी इस घटना की पीड़िता 22 वर्ष की लड़की अभी अस्पताल में ही है, और पठान का बच्चा जेल में है।
      इस पूरी कहानी में मेन विलेन कौन है जानते हैं? क्या वह लड़का? नहीं जी। वह तो प्यादा है। वह वही कर रहा था जो उसे सिखाया गया था। अब जेल में सड़ेगा कुछ दिन, फिर निकल कर कहीं मजूरी करेगा। बुरी वह लड़की भी नहीं। सिनेमा के नशे में डूबी उस मूर्ख को कभी लगा ही नहीं कि वह जाल में फँस गयी है। उसे विलेन क्या कहेंगे। विलेन हैं वे धूर्त, जो खुद को बुद्धिजीवी बताते हुए लिविंग रिलेशनशिप को जायज ठहराते हैं, जो इसके लिए माहौल बनाते हैं। विलेन हैं वे नीच, जो अंतर्धार्मिक विवाहों की पैरवी करते हैं पर ऐसी घटनाओं के समय चुप्पी साध लेते हैं। यही हैं वे बिके हुए लोग, जो मासूम बच्चों को इस भयानक दलदल में धकेलते हैं।
     ऐसी घटनाओं की बार-बार, हजार बार चर्चा होनी चाहिये, ताकि यह देश की अंतिम लड़की तक पहुँचे। ऐसी घटनाओं की कोई खबर दिखे तो उसे हजार जगह शेयर कीजिये। यही एकमात्र उपाय है, यही एकमात्र विकल्प है।

12 वीँ शताब्दी के अँतिम वर्षो मे जालोर दुर्ग पर चौहान राजा कान्हडदेव का शासन था इनका पुत्र कूँवर विरमदेव चौहान समस्त राजपूताना मे कुश्ती का प्रसिद्ध पहलवान था एवँ कूशल यौद्धा था छोटी आयू मे भी कई यूद्धो मे कुशल सैन्य सँचालन कर अपनी सैना को विजय दिलाई थी ।

“आभ फटे धर उलटे कटे बखत रा कोर
सिर कटे धर लडपडे जद छूटे जालोर ”

12 वीँ शताब्दी के अँतिम वर्षो मे जालोर दुर्ग पर चौहान राजा कान्हडदेव का शासन था इनका पुत्र कूँवर विरमदेव चौहान समस्त राजपूताना मे कुश्ती का प्रसिद्ध पहलवान था एवँ कूशल यौद्धा था छोटी आयू मे भी कई यूद्धो मे कुशल सैन्य सँचालन कर अपनी सैना को विजय दिलाई थी ।

बादशाह अलाउदीन खिलजी ने गुजरात पर चढाई की वहा की प्रजा को मारा और सोमनाथ मंदिर से सोमनाथ ज्योतिलिंग को उठा कर गीले चमड़े में बांध कर, राजपुताना को लूटने के इरादे से जालोर पहूचा, उसने जालोर से 09 कोस दूर सकराणे गाँव में अपना डेरा डाला, जालोर के शासक राव कान्हडदेव चौहान ने जब ये बात सुनी तो उसने अपने 04 अच्छे राजपूत बादशाह के पास अपना सन्देश ले कर भेजा और कहलवाया “तुमने इतने हिन्दुओ को मारा और कैद किया, सोमनाथ महादेव को भी बांध कर ले आये, ये तुमने अच्छा नहीं किया और फिर तुमने मेरे ही गढ़ के नीच आ कर डेरा डाला, क्या तुमने हमें क्या राजपूत नहीं समझा”, बादशाह को सन्देश पहूचा गया चारो राजपूतो को दरबार में बुलाया गया, राव कान्हडदेव का खास राजपूत कांधल आपने साथियों के साथ दरबार में हाज़िर हुए पर उन्होंने बादशाह के सामने सर नहीं झुकाया,

बादशाह गुस्से से लाल हो गये, वजीर ने समझाया ये अखड़ दिमाग के राजपूत है ये राव कान्हडदेव के सिवा किसी के सामने सर नहीं झुकाते , बादशाह ने कहा “ हमारा ये नियम है की मार्ग में कोई गढ़ आ जावे तो उसको जीते बिना आगे नहीं बढ़ते क्योकि राव राव कान्हडदेव मुझे आखे दिखा रहा है तो अब तो जालोर फ़तेह करे बिना आगे नहीं जायेगे “ इतना कह कर बादशाह से एक उडती हुई चील पर तुक्का चलाया, जिसकी चोट से चील गिरने लगी, बादशाह का हुकुम हुआ ये चील नीचे नहीं गिरनी चाइये, तीरंदाजो तीर चलने लगे, कांधल वही खड़ा देख रहा था वो समझ गया की ये सब मुझे दिखने के लिए करा गया है, उसकी वक़्त एक सैनिक एक बड़े से भैसे को ले कर वह से निकला,

कांधल ने फुर्ती से अपनी तलवार निकली और एक ही झटके में भैसे के दो टुकड़े कर दिया, तभी तीरंदाजो ने अपने कमान की मुठ कांधल की तरफ की, वजीर के बीच में पड़ कर बादशाह से कहा ‘मैंने तो आप को पहले ही कहा था की ये अखड़ राजपूत है’ बादशाह तीरंदाजो को रोक देता है, और कांधल और उसके साथीयो को जाने देता है, कांधल जालोर पहुच कर कान्हडदेव के सामने सारी बात रखता है, तो कान्हडदेव कहता है

“जल पिए बिना तो रहा नहीं सकते परन्तु अन्न तो अब जब ही खायेगे जब सोमनाथ महादेव को छुड़ा कर लायेगे” हम रात को उनके डेरे पर छापा मारेंगे, तीसरे दिन रात को कान्हडदेव की सेना अलाउदीन खिलजी के डेरे पर हमला कर देते है,बादशाह के बहुत से आदमी मरे जाते है और बादशाह को अपनी जान बचा कर भागना पड़ता है,

सोमनाथ ज्योतिलिंग को तुर्कों से छुड़ा कर कान्हडदेव उन्हें जालोर ले आते है और उनको अपने जागीरी के गाँव मकराना (सरना गांव) मे शास्त्रोक्त रीती से ही प्राण प्रतिष्ठित कर एक बड़ा मंदिर बनवाते है ।
मुंहता नैन्सी की ख्यात के अनुसार इस युद्ध में जालौर के राजकुमार विरमदेव की वीरता की कहानी सुन खिलजी ने उसे दिल्ली आमंत्रित किया |

उसके पिता कान्हड़ देव ने अपने सरदारों से विचार विमर्श करने के बाद राजकुमार विरमदेव को खिलजी के पास दिल्ली भेज दिया जहाँ खिलजी ने उसकी वीरता से प्रभावित हो अपनी पुत्री फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव राजकुमार विरमदेव के सामने रखा जिसे विरमदेव एकाएक ठुकराने की स्थिति में नही थे अतः वे जालौर से बारात लाने का बहाना बना दिल्ली से निकल आए और जालौर पहुँच कर खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया |

मामो लाजे भाटिया, कुल लाजे चव्हान |
जो हूँ परणु तुरकड़ी तो उल्टो उगे भान ||

शाही सेना पर गुजरात से लौटते समय हमला और अब विरमदेव द्वारा शहजादी फिरोजा के साथ विवाह का प्रस्ताव ठुकराने के कारण खिलजी ने जालौर रोंदने का निश्चय कर एक बड़ी सेना जालौर रवाना की जिस सेना पर सिवाना के पास जालौर के कान्हड़ देव और सिवाना के शासक सातलदेव ने मिलकर एक साथ आक्रमण कर परास्त कर दिया | इस हार के बाद भी खिलजी ने सेना की कई टुकडियाँ जालौर पर हमले के लिए रवाना की और यह क्रम पॉँच वर्ष तक चलता रहा लेकिन खिलजी की सेना जालौर के राजपूत शासक को नही दबा पाई आख़िर जून १३१० में ख़ुद खिलजी एक बड़ी सेना के साथ जालौर के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर हमला किया और एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त डलवा दिया जिससे वहां पीने के पानी की समस्या खड़ी हो गई अतः सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध का ऐलान कर दिया जिसके तहत उसकी रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया व सातलदेव आदि वीरों ने शाका कर अन्तिम युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की |

इस युद्ध के बाद खिलजी अपनी सेना को जालौर दुर्ग रोंदने का हुक्म दे ख़ुद दिल्ली आ गया | उसकी सेना ने मारवाड़ में कई जगह लूटपाट व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई मंदिरों को खंडित किया | इस अत्याचार के बदले कान्हड़ देव ने कई जगह शाही सेना पर आक्रमण कर उसे शिकस्त दी और दोनों सेनाओ के मध्य कई दिनों तक मुटभेडे चलती रही आखिर खिलजी ने जालौर जीतने के लिए अपने बेहतरीन सेनानायक कमालुद्दीन को एक विशाल सेना के साथ जालौर भेजा जिसने जालौर दुर्ग के चारों और सुद्रढ़ घेरा डाल युद्ध किया लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी कमालुद्दीन जालौर दुर्ग नही जीत सका और अपनी सेना ले वापस लौटने लगा तभी कान्हड़ देव का अपने एक सरदार विका से कुछ मतभेद हो गया और विका ने जालौर से लौटती खिलजी की सेना को जालौर दुर्ग के असुरक्षित और बिना किलेबंदी वाले हिस्से का गुप्त भेद दे दिया | विका के इस विश्वासघात का पता जब उसकी पत्नी को लगा तब उसने अपने पति को जहर देकर मार डाला | इस तरह जो काम खिलजी की सेना कई वर्षो तक नही कर सकी वह एक विश्वासघाती की वजह से चुटकियों में ही हो गया और जालौर पर खिलजी की सेना का कब्जा हो गया |

खिलजी की सेना को भारी पड़ते देख वि.स.१३६८ में कान्हड़ देव ने अपने पुत्र विरमदेव को गद्दी पर बैठा ख़ुद ने अन्तिम युद्ध करने का निश्चय किया | जालौर दुर्ग में उसकी रानियों के अलावा अन्य समाजों की औरतों ने १५८४ जगहों पर जौहर की ज्वाला प्रज्वलित कर जौहर किया तत्पश्चात कान्हड़ देव ने शाका कर अन्तिम दम तक युद्ध करते हुए वीर गति प्राप्त की |
कान्हड़ देव के वीर गति प्राप्त करने के बाद विरमदेव ने युद्ध की बागडोर संभाली | विरमदेव का शासक के रूप में साढ़े तीन का कार्यकाल युद्ध में ही बिता | आख़िर विरमदेव की रानियाँ भी जालौर दुर्ग को अन्तिम प्रणाम कर जौहर की ज्वाला में कूद पड़ी और विरमदेव ने भी शाका करने हेतु दुर्ग के दरवाजे खुलवा शत्रु सेना पर टूट पड़ा और भीषण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ | विरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की धाय सनावर जो इस युद्ध में सेना के साथ आई थी विरमदेव का मस्तक काट कर सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई | कहते है विरमदेव का मस्तक जब स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सम्मुख लाया गया तो मस्तक उल्टा घूम गया तब फिरोजा ने अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाई..

तज तुरकाणी चाल हिंदूआणी हुई हमें |
भो-भो रा भरतार , शीश न धूण सोनीगरा ||

फिरोजा ने उनके मस्तक का अग्नि संस्कार कर ख़ुद अपनी माँ से आज्ञा प्राप्त कर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो गई..
जय राजपूताना🚩
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पंख वाले बीजों की चिट्ठी"

"पंख वाले बीजों की चिट्ठी"
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घर से पूरब दिशा में- ताल के किनारे भीट जैसी एक ऊँची खाईं पर एक बूढ़ा चिलबिल का पेड़ हुआ करता था। मुझसे उसका पहला परिचय मेरे बाबा ने करवाया था।

चिलबिल का नाम भी अलग-अलग भाषा और जगहों पर अलग-अलग - चिरमिल या बनचिल्ला, अंग्रेज़ी में इंडियन एल्म या मंकी बिस्किट ट्री तो संस्कृत में चिरबिल्व। 

वैसे तो वह पेड़ साल भर गुमनामी में रहता, लेकिन चैत-बैसाख यानी अप्रैल मई के महीने में अपनी मौजूदगी की चिट्ठी भेजता। जब पुरवाई बयार चलती तो उसके पंख लगे हुए बीज हमारे दुआर तक उड़ कर आ जाते और बता देते कि लो हम भी आ गए हैं। सुनहले-भूरे पंख लगे हुए बीज जिनको कि कुदरत ने बनाया ही इसीलिए है कि हवा के साथ वो उड़ कर हमारे पास तक आ जाएँ।

ताल से घर तक उड़ कर आते-आते वो लगभग एक फ़र्लांग दूरी तय करते। आते-आते उनके थके-थके पंख सूख-सूख कर ख़ुश्क हो जाते। छूते ही टूट-टूट जाते, हथेलियों में बिखर-बिखर कर रह जाते। बीच में उनका बीज रह जाता। कुछ कुछ दिल के आकार के। हम उन्हें छील कर उनका सुवाद लेते। कुछ-कुछ मेवे जैसा। माँड़ से भरे और तैलीय पुट लिए। स्टार्च और ऑइल से भरे चिकने, चमकीले और चपटे बीज। लेकिन ये मशक़्क़त वाला उद्यम होता। सैकड़ों छिलका उतारने पर बमुश्किल कुछ ग्राम बीज ही प्रयोज्य मिलते। 

फिर मौसम बदलता और धीरे-धीरे वर्षा ऋतु आ जाती। पंख लगे हुए कुछ बीज अपनी मंज़िल पा लेते। ऐसी जगह पहुँच जाते जहाँ वो नमी पाकर दुबारा उग सकें। उसके बाद चिलबिल का वो बूढा पेड़ जैसे बेमानी हो जाता। हमें उसकी साल भर याद न आती। लेकिन अगले बरस फिर चैत-बैसाख के महीने में, गेहूँ की दौंराही के बीच, कट चुके खेतों से होते हुए वे पंख लगे बीज उड़ते-सरकते हम तक आ धमकते और कहते कि हम कहीं गए नहीं हैं, अपितु यहीं हैं। 

फिर एक बार की गर्मी में गाँव गया तो पता चला कि चिलबिल का वह बूढ़ा पेड़ कट गया। 

मैं उदास हो गया।

इधर कुछ सालों से मुझे उन सभी पेड़ों की बहुत-बहुत याद आने लगी जिन्हें मैंने बचपन में देखा था। ख़त्म हो चुके सभी पेड़ों को दुबारा लगाने की उत्कट इच्छा सी होने लगी है। 

अभी होली में घर गया तो देखा कि पुराने वाले चिलबिल की जगह ही एक नवयुवा पेड़ खड़ा था। उसने भी यथाशक्ति फल दिए थे लेकिन बसंत में वो पंख लगे बीज किसी नवयौवना सी धानी चादर ओढ़े डाली से लिपटे पड़े थे। तो उन्हें पाने की लालसा फलीभूत नहीं हो पाई। उन्हें प्रौढ़ होने में माह भर का समय था। ख़ैर, मायूस हुआ और मन मसोस कर रह गया। 

लेकिन उनकी तलाश एक दिन यहाँ गोरखपुर में पूरी हुई। एक दिन जब भरी दुपहरी में गोलघर के सिटी मॉल से थोड़ी विकर्णीय दिशा में, कोटक महिंद्रा बैंक के ठीक सामने धरती पर चिपके कुछ पंख लगे बीजों को देखा तो हठात अवाक रह गया कि यहाँ कॉन्क्रीट और अलकतरे के बीच ये कहाँ से उड़ कर आ गए। ऊपर देखा तो एक विशाल वृक्ष का नख-शिख उन्हीं सुनहले-भूरे पंखों वाले बीजों से लदा था।

ऐसा लगा कि कोई पुराना परिचित किसी भीड़ भरी जगह पर पीछे से आकर कंधे पर हाथ रख दिया हो और मैं उसे देखकर चौंक गया, फिर जवाब में उसने कहा हो तुम मेरी नहीं बल्कि मैं तुम्हारी तलाश में भटक रहा था।

मैंने कुछ बीजों को हाथ में लिया। बिलकुल काग़ज़ी नीज़ ख़स्ता। छूते ही हाथों में भुस-भुस टूट गए। जैसे कि वे खुद अपने मेवे वाले बीजों को मुझ पर न्योछावर कर मेहमानवाज़ी कर रहे हैं।

मैंने महसूस किया कि वे नहीं, बल्कि मैं ही उनकी तलाश में भटक रहा था। 

ये कुदरत भी अजीब है, बहुतों को इसने वो शय बख़्शी जिससे कि वे अपनी जड़ों से कहीं दूर जाकर जड़ें जमा सकें। ये चिलबिल भी वही रवायत अदा कर रहे हैं। हर बरस चैत-बैसाख में किसी से मिलने के बहाने वो बिखरते रहेंगे और उनकी संतति दूर-दूर तक फैलती रहेगी।
 
Prashant Dwivedi 
24/04/2024
(Repost)

भारतीय सेना का सर्वोच्च सम्मान है ..परमवीर चक्र। इस चक्र में चार इंद्र के वज्र की आकृति उकेरी होती हैं। इस परमवीर चक्र पदक की डिजाइन किसने किया था ??

भारतीय सेना का सर्वोच्च सम्मान है ..परमवीर चक्र। इस चक्र में चार  इंद्र के वज्र की आकृति उकेरी होती हैं। 
 इस परमवीर चक्र पदक की डिजाइन किसने किया था ?? 
परमवीर चक्र की डिजाईन तैयार किया था सावित्री बाई खनोलकर ने ! 
सावित्री बाई खानोलकर का जन्म स्विट्ज़रलैंड में हुआ था। इनके पिता हंगरी मूल के और माता रसियन मूल की थी ! इनके बचपन का नाम था 'इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज ' था ।
इवा के पिता जिनेवा में  लीग आफ नेशंस के पुस्तकालय में पुस्तकालयाध्यक्ष ( लाईब्रेरियन ) थे ! 
बचपन में ही ईवा की मा का निधन हो गया था। इनका पालन पोषण इनके पिता ने किया ! 
ईवा पुस्तकालय में खूब किताबे पढ़ती थी ! किताबो से ही ईवा को भारतीय धर्म व संस्कृति के बारे में परिचय हुआ तो वो भारत से बहुत प्रभावित हुई ! 
जब ईवा 14 वर्ष की थी ..तो वहाँ ब्रिटेन के सेण्डहर्सट मिलिटरी ऐकडमी से एक समूह आया था !
 इसी समूह में एक भारतीय मूल का लड़का था,जिसका नाम था विक्रम खनोलकर । ईवा का परिचय विक्रम से हुआ ! दोनों के बीच पत्र व्यवहार होने लगा ! चार पाच वर्ष तक पत्र व्यवहार होता रहा ! एक दिन ईवा भारत चली आयी ! ईवा का विवाह विक्रम से हो गया ! विवाह के बाद ईवा पूरी तरह से भारतीय संस्कृति अपना लिया ! यहाँ तक की इन्होंने संस्कृत भाषा भी सीखी ! शास्त्रीय नृत्य सीखा ! कला में सीखा ! 
आजादी के समय विक्रम सेना में अधिकारी बन चुके थे ! उसी समय भारतीय सेना में पदक के बारे में विचार किया जा रहा था ! पदको के नाम जैसे परमवीर चक्र व महावीर चक्र सोच लिये गये थे। 
पदको के डिजाइन का काम ईवा जिनका नाम अब सावित्री बाई हो चुका था , को दिया गया ! सावित्री बाई ने भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार ही पदको का डिजाइन बनाया ! 
जैसे परमवीर चक्र में इंद्र के अस्त्र वज्र की आकृति ! वज्र दधीचि की हड्डी से बना है। जिन्हें बलिदान का सर्वोच्च उदाहरण माना जाता हैं ! 
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एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।
दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।
दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले...
हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है.. 
बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?"
कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं..
घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी...
खैर.. 
अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी..
कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए..
दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें.. 
लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!...
दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा..
समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा.....
आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं..
क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही...
मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी.. 
दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा..

शिक्षा- कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे
 
पोस्ट पसंद आई तों फोलो करें🙏🙏🙏🙏

आप इतिहास की किताबों में समूचा मध्यकाल भले खिलजी, सैयद, लोदी या मुगल नाम से पढ़ लें, पर समूचे मध्यकाल में आपको एक भी बाहरी योद्धा ऐसा नहीं मिलेगा जिसने अपने जीवन मे दस बड़ी लड़ाइयां लड़ी हों। यहाँ तक कि गजनवी जैसे लुटेरे भी योद्धा कहे जाते हैं जो चोरों की तरह घुसते और तेजी से लूट पाट कर हवा की तरह गायब हो जाते थे।

आप इतिहास की किताबों में समूचा मध्यकाल भले खिलजी, सैयद, लोदी या मुगल नाम से पढ़ लें, पर समूचे मध्यकाल में आपको एक भी बाहरी योद्धा ऐसा नहीं मिलेगा जिसने अपने जीवन मे दस बड़ी लड़ाइयां लड़ी हों। यहाँ तक कि गजनवी जैसे लुटेरे भी योद्धा कहे जाते हैं जो चोरों की तरह घुसते और तेजी से लूट पाट कर हवा की तरह गायब हो जाते थे।
     इस पूरे कालखंड के बीच में बस एक नाम स्वर्ण की तरह चमकता है, जिसकी तलवार बार बार विजय का इतिहास रचती रही। जिसका नाम स्वयं में जीत का पर्याय हो गया, जो उत्तर से दक्षिण तक अपने शौर्य का ध्वज लहराते हुए दिग्विजय करता रहा है। वो बीस साल तक लड़ता रहा, जीतता रहा। तबतक, जबतक कि अंतिम विश्राम का समय न आ गया। मध्यकाल का सर्वश्रेष्ठ योद्धा पेशवा बाजीराव बल्लाळ!
     उस योद्धा को मुगल वंश का अंत करने का श्रेय मिलना चाहिए था, क्योंकि वही था जिसके कारण औरंगजेब का विशाल राज्य एक दिन चांदनी चौक से पालम तक सिमट कर रह गया। वही था जिसने दक्षिण में विधर्मी सत्ता के तेवर का ठंढा किया। वही था जिसने आज के लगभग समूचे भारत को एक भगवा ध्वज के नीचे ला खड़ा किया। पर इतिहास की किताबें उसके साथ न्याय नहीं करतीं। स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक दशकों में जैसे लोगों को शिक्षा मंत्री बनाया गया, उस हिसाब से हम न्याय की उम्मीद कर भी नहीं सकते।
     पेशवा की मस्तानी बाई से प्रेम कहानी की चर्चा सुनता हूँ तो लगता है, "बीस वर्ष में चालीस बड़ी लड़ाइयां लड़ने और जीतने वाले योद्धा को प्रेम के लिए क्या ही समय मिला होगा। पर साहित्य और सिनेमा जगत के धुरंधर जो न लिख दें, दिखा दें..."
     मराठा साम्राज्य का प्रधानमंत्री रहते हुए बीस वर्षों तक जिस योद्धा ने साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में अपना दिन रात एक कर दिया, उस योद्धा को उचित सम्मान मिलना ही चाहिये। और यह सत्ता से अधिक समाज का कार्य है। यह उस महान योद्धा का अधिकार है कि यह देश कहावतों में कहे- जो जीता, वो बाजीराव!
     भीषण गर्मी और लू के प्रचंड प्रहार के बीच उस महान योद्धा ने आज ही के दिन मध्यप्रदेश के रावड़खेड़ी में अंतिम सांस ली थी। हर वर्ष कुछ उत्साही लोग उस पुण्यभूमि पर जा कर उस अमर योद्धा को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। इस वर्ष भी गए हैं... मैं हर बार सोचता हूँ, पर नहीं जा पाता। खैर! अगली बार...
     पर आपको आज का दिन याद रहना चाहिये। याद रहना चाहिये रावड़खेड़ी। और याद रहना चाहिये, "जो जीता वही बाजीराव..."

#जो_जीता_वह_बाजीराव 
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

पलाश जाने को है, लेकिन गधा पलाश फूला नही समा रहा है।कुछ तो मतलब है इन पुराने नामो में, यूँ ही नही कहा जाता old is gold...

पलाश जाने को है, लेकिन गधा पलाश फूला नही समा रहा है।
कुछ तो मतलब है इन पुराने नामो में, यूँ ही नही कहा जाता old is gold...
            अब, जबकि प्रकृति पूरी तरह से होली खेलने पर लगी है, मतलब सेमल फूलकर फल बनने लगे, फिर आया पलाश वह जब जाने की कगार पर है, तो ये महाशय जाते जाते पगला रहे हैं, शायद इसी वजह से इन्हें गधा पलाश नाम दे दिया गया होगा। फिर गधे के नाम मे कोई कमी रह गयी हो तो, तो उसके स्वामी को भी घसीट दिया गया। 

खैर ये तो हुयी एक बात, लेकिन मजेदार बात तो यह है कि, इसे गधे से जोड़ा ही क्यों गया, वास्तव में इसके पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है- कहा जाता है, कि पूरी बारिस का हरा घास खाकर गधा अघाता (अघाना=पेट भर जाना) नही है, और गर्मियों में सूखी घास खाकर तंदुरुस्त रहता है। अब ये पेड़ भी बसंत की विदाई पर फूला नही समा रहा है। 
            इससे अपन को क्या? अपन तो अपने काम की बात करें। यह एक छोटे आकार का वृक्ष है। जिसकी कोमल शाखाओं पर कांटे लगते हैं। वयस्क पेड़ की छाल पीले रंग की दरार युक्त कटि-फटी होती है। सूख जाने पर लकड़ियों का वजन कागज की तरह हल्का हो जाता है,  जिनका प्रयोग हम लोग कुएं, नदी आदि में नहाते समय तैरने के लिये किया करते थे। 

      पत्तों को उबालकर माउथ वाश की तरह दंतरोग एवम मुँह की दुर्गंध में प्रयोग किया जाता है। इसके पत्तों को सरसों तेल में भूनकर 2 बून्द रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है। गले की खुजान भी इससे मिट जाती है। मतलब यह है, कि यह नाक- कान- गले का डॉक्टर है। एसिडिटी, पेट दर्द, दस्त आदि के उपचार में भी पत्तियों का काढ़ा लाभप्रद माना जाता है। ये तो हुये दादी- नानी के नुस्खे, आपके पास इस पेड़ या इसके गुणों की कोई अन्य जानकारी हो तो कृप्या कमेंट में बतायें... 
धन्यवाद 🙏
डॉ विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग,
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिंदवाड़ा (म.प्र.)

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Sunday, 28 April 2024

चुनाव...(एक कहानी)सबको अपनी अपनी ड्यूटी मिल गयी लेकिन माटसाब का नाम आ गया रिजर्व दल में। रिजर्व दल वालों की हालत उस फूफा जैसी होती है जिसको सम्मान चाहिए लेकिन कोई पानी तक नहीं पूछता। इसलिए माटसाब

चुनाव...(एक कहानी)
सबको अपनी अपनी ड्यूटी मिल गयी लेकिन माटसाब का नाम आ गया रिजर्व दल में। 
रिजर्व दल वालों की हालत उस फूफा जैसी होती है जिसको सम्मान चाहिए लेकिन कोई पानी तक नहीं पूछता। 
इसलिए माटसाब किस्मत को दोष दे रहे थे कि इससे अच्छा तो रनिंग में ड्यूटी आ जाती तो कम से कम दिन तो काम करते करते आराम से कट जाता।
रिजर्व दल वालों को किसी कस्बे की कोई एक सरकारी बिल्डिंग में  पटक दिया जाता है और वहां से जरूरत पड़ने पर उठा लिया जाता है।
तो माटसाब के ग्रुप को भी एक पुरानी तहसील बिल्डिंग में  पटक दिया जहाँ सभी टीमों के मेम्बर्स ने अपना अपना कोना पकड़ लिया।
जैसे तैसे शाम हुई सभी को खाने की चिंता सताने लग गयी क्योंकि रिजर्व पार्टी को खाने पीने की सारी व्यवस्थाएं अपने स्तर पर देखनी होती है। 
माटसाब भी अपने पेट भरने के जुगाड़ में किसी होटल में गए। वहाँ 280 वाली थाली ऑर्डर की😜
खाना शुरू ही किया था कि अधिकारियों का कॉल आ गया। और माटसाब को ऑर्डर दिया गया कि आपको तुरंत फलाने बूथ पर अतिरिक्त मतदान अधिकारी द्वितीय के रूप में लगाया जाता है।
माटसाब जल्दी से खाना खाकर वहां पहुंचे तो उन्हें लेने जीप आई जिसमें उनके जैसे ड्यूटी लगने वाले और भी कार्मिक थे।
माटसाब को उनके बूथ पर छोड़ दिया गया जहाँ पर उन्होंने बाकी साथियों से परिचय किया और उन्हें आश्वासन दिया कि काम मे कोई कमी नहीं आएगी।

खैर रात तो जैसे तैसे गुजर गई। अगले दिन सुबह 4 बजे उठकर मतदान की तैयारियां शुरू की। 
निर्धारित समय पर मतदान शुरू हो गया। माटसाब PO2 थे इसलिए उनका काम था आने वाले मतदाता की रजिस्टर में एंट्री करना। 
9 बजे के आसपास भीड़ ज्यादा ही थी इसलिए माटसाब को ऊपर देखने का टाइम ही नहीं मिल रहा था।
PO1  मतदाता का निर्वाचक नामावली में नम्बर और नाम जोर से पुकारता और माटसाब बस ID मांगते और रजिस्टर में एंट्री कर देते। चूंकि टीम में 2 PO2 थे इसलिए दूसरे को पर्ची देने और स्याही लगाने का काम दे दिया।
अचानक से माटसाब के कानो में एक परिचित सा नाम सुनाई पड़ा। उन्होंने गौर नही किया और पूर्ववत अपने काम मे लगे रहे, रजिस्टर में नम्बर एंट्री की और ID के लिए हाथ आगे बढ़ाया।
उनके हाथ मे एक आधार कार्ड आया जिसको देखकर उनके हाथ रुक गए। हालांकि उन्हें केवल उसके अंतिम 4 अंक ही लिखने थे। लेकिन उनकी नजर आधार कार्ड की फोटो पर चली गयी। फिर उन्होंने नाम पढ़ा "अरुणा" और ऊपर नजर उठाकर देखा तो देखते ही रह गए। गोद मे बच्चा लिए हुए बहुत दुबली पतली सी एक औरत सामने खड़ी थी जिसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी। 
माटसाब के मुंह से निकला अरुणा!
माटसाब ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस लड़की से कभी जीवन मे दुबारा मुलाकात होगी। 
पूरे 15 साल बीत गए थे फिर भी उसने देखते ही माटसाब को पहचान लिया।
और पहचानती भी क्यो नहीं, क्योंकि कॉलेज के दिनों में अरुणा माटसाब के साथ पढ़ती थी। माटसाब की अच्छी दोस्त थी। माटसाब उसे छोटी बहन की तरह मानते थे।
एक पल के लिए समय रुक गया और माटसाब फ्लेशबैक में चले गए जब माटसाब एक स्टूडेंट थे।
माटसाब के पास एक दिन अरुणा के पापा का फोन आया, उन्हें साहिल के बारे में पता चल गया था। और इसी सिलसिले में  बात करने के लिए उन्होंने माटसाब को घर बुलाया था
दरअसल अरुणा साहिल से बहुत प्यार करती थी। और उनके रिश्ते के बारे में माटसाब को भी पता था। माटसाब अरुणा को बहुत समझाते भी थे कि ये लड़का तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। क्योंकि साहिल छपरी लौंडा था, नशे भी करता था। लेकिन अरुणा का मानना था कि प्यार अंधा होता है। धीरे धीरे साहिल सुधर जाएगा।

कोई साहिल के लिए कुछ भी कहता तो अरुणा कहाँ किसी की सुनती...
माटसाब उनके घर पहुंचे वहां अरुणा और अरुणा के पापा   पहले से बहस कर रहे थे। 
दरअसल अरुणा के लिए एक रिश्ता आया था लड़का स्टेशन मास्टर था।
माटसाब ने अरुणा को समझाया कि अगर सच मे साहिल अच्छा लड़का होता तो मैं जरूर तुम्हारे पापा को समझाता
लेकिन वो साहिल के प्यार में इस कदर अंधी थी कि उसे किसी की बात समझ नहीं आती।
उसके पापा ने तो पगड़ी भी उसके पाँव में रख दी। खूब हाथ जोड़े लेकिन वो टस से मस नही हुई। 
अब एक तरफ साहिल का प्यार था दूसरी तरफ उसके पापा की पगड़ी थी। एक तरफ साहिल की खुशी दूसरी तरफ उसके पिता के आँसू। साफ था कि उसे साहिल या पिता में से किसी एक को चुनना था।
माटसाब ने अरुणा से कहा कि तुम्हें किसी एक का चुनाव करना होगा और ये चुनाव तुम्हारा भविष्य तय करेगा।
इतना कहकर माटसाब वहां से चले गए।
उस दिन के बाद माटसाब ने कभी अरुणा को नहीं देखा। क्योंकि अरुणा ने साहिल को चुना। अरुणा के पिता ये सदमा नहीं सहन कर सके और उन्हें हार्ट अटैक आ गया।

अचानक से आवाज आई माटसाब थोड़ा जल्दी काम करो भीड़ बढ़ रही है। माटसाब की चेतना लौटी।
उन्होंने अरुणा को देखा और मुस्कुरा दिए। 
अरुणा की आंखें पश्चाताप से झुक गयी।
उसे एहसास हो गया था कि उसका चुनाव गलत था। 
माटसाब अपने काम मे बिजी हो गए।

शाम को पेटियां जमा कराने के लिए बस से जाते टाइम  माटसाब सोचते रहे कि एक गलत चुनाव की वजह से अरुणा की जिंदगी पर क्या असर पड़ा...

इसलिए चुनाव कोई भी हो, उसमें दूरदर्शिता जरूरी है। किसी भी चुनाव से अपने भविष्य पर पड़ने वाले असर पर जरूर गौर करें।
✍️✍️सतपाल नायक (माटसाब) ✍️✍️

4 फरवरी, 1670 ई. को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश से तानाजी मालुसरे को 300 सिपाहियों के साथ कोंडाना दुर्ग पर आक्रमण करने भेजा गया। कोंडाना पर मुगलों की तरफ से उदयभान तैनात था। तानाजी के नेतृत्व में सिपाहियों ने रस्सी की सीढ़ी के सहारे किले पर चढ़कर किले के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया।

4 फरवरी, 1670 ई. को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश से तानाजी मालुसरे को 300 सिपाहियों के साथ कोंडाना दुर्ग पर आक्रमण करने भेजा गया। कोंडाना पर मुगलों की तरफ से उदयभान तैनात था। तानाजी के नेतृत्व में सिपाहियों ने रस्सी की सीढ़ी के सहारे किले पर चढ़कर किले के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया।
तानाजी मालुसरे वीरगति को प्राप्त हुए, तो उनकी जगह फौरन उनके भाई सूर्याजी ने ली और दुर्ग के द्वार खोलने में सफल रहे। दुर्ग के अन्दर हुई लड़ाई में मुगल पक्ष की तरफ से उदयभान सहित 1200 सैनिक मारे गए।

राजगढ़ में बैठे शिवाजी महाराज को विजय की खबर मिली, तो उन्होंने कहा कि "इस विजय के लिए तानाजी मालुसरे के रुप में हमें भारी कीमत चुकानी पड़ी"। शिवाजी महाराज ने तानाजी की याद में दुर्ग का नाम 'सिंहगढ़' रख दिया।

पोस्ट लेखक - तनवीर सिंह सारंगदेवोत

कहानी वीर योद्धा डूंगर सिंह भाटी की:

कहानी वीर योद्धा डूंगर सिंह भाटी की: 
राजपुताना वीरो की भूमि है। यहाँ ऐसा कोई गांव नही जिस पर राजपूती खून न बहा हो, जहाँ किसी जुंझार का देवालय न हो, जहा कोई युद्ध न हुआ हो। भारत में मुस्लिम आक्रमणकर्ताओ कोे रोकने के लिए लाखो राजपूत योद्धाओ ने अपना खून बहाया बहुत सी वीर गाथाये इतिहास के पन्नों में दब गयी। इसी सन्दर्भ में एक सच्ची घटना-
उस वक्त जैसलमेर और बहावलपुर(वर्तमान पाकिस्तान में) दो पड़ोसी राज्य थे। बहावलपुर के नवाब की सेना आये दिन जैसलमेर राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रो में डकैती, लूट करती थी परन्तु कभी भी जैसलमेर के भाटी वंश के शासको से टकराने की हिम्मत नही करती थी।
उन्ही दिनों एक बार जेठ की दोपहरी में दो राजपूत वीर डूंगर सिंह जी उर्फ़ पन्न राज जी, जो की जैसलमेर महारावल के छोटे भाई के पुत्र थे और उनके भतीजे चाहड़ सिंह जिसकी शादी कुछ दिन पूर्व ही हुयी थी, दोनों वीर जैसलमेर बहावलपुर की सीमा से कुछ दुरी पर तालाब में स्नान कर रहे थे। तभी अचानक बहुत जोर से शोर सुनाई दिया और कन्याओ के चिल्लाने की आवाजे आई। उन्होंने देखा की दूर बहावलपुर के नवाब की सेना की एक टुकड़ी जैसलमेर रियासत के ही ब्राह्मणों के गाँव “काठाडी” से लूटपाट कर अपने ऊँटो पर लूटा हुआ सामान और साथ में गाय, ब्राह्मणों की औरतो को अपहरण कर जबरदस्ती ले जा रही है।
तभी डूंगर सिंह उर्फ़ पनराजजी ने भतीजे चाहड़ सिंह को कहा की तुम जैसलमेर जाओ और वहा महारावल से सेना ले आओ तब तक में इन्हें यहाँ रोकता हूँ। लेकिन चाहड़ समझ गए थे की काका जी कुछ दिन पूर्व विवाह होने के कारण उन्हें भेज रहे हैँ। काफी समझाने पर भी चाहड़ नही माने और अंत में दोनों वीर क्षत्रिय धर्म के अनुरूप धर्म निभाने गौ ब्राह्मण को बचाने हेतु मुस्लिम सेना की ओर अपने घोड़ो पर तलवार लिए दौड़ पड़े।
डूंगर सिंह को एक बड़े सिद्ध पुरुष ने सुरक्षित रेगिस्तान पार कराने और अच्छे सत्कार के बदले में एक चमत्कारिक हार दिया था जिसे वो हर समय गले में पहनते थे।
दोनों वीर मुस्लिम टुकडी पर टूट पड़े और देखते ही देखते बहावलपुर सेना की टुकड़ी के लाशो के ढेर गिरने लगे। कुछ समय बाद वीर चाहड़ सिंह (भतीजे)भी वीर गति को प्राप्त हो गए जिसे देख क्रोधित डूंगर सिंह जी ने दुगुने वेश में युद्ध लड़ना शुरू कर दिया। तभी अचानक एक मुस्लिम सैनिक ने पीछे से वार किया और इसी वार के साथ उनका शीश उनके धड़ से अलग हो गया। किवदंती के अनुसार, शीश गिरते वक़्त अपने वफादार घोड़े से बोला-
“बाजू मेरा और आँखें तेरी”
डूंगर सिंह भाटी युद्ध में झुंझार रूप में
घोड़े ने अपनी स्वामी भक्ति दिखाई व धड़, शीश कटने के बाद भी लड़ता रहा जिससे मुस्लिम सैनिक भयभीत होकर भाग खड़े हुए और डूंगर जी का धड़ घोड़े पर पाकिस्तान के बहावलपुर के पास पहुंच गया। तब लोग बहावलपुर नवाब के पास पहुंचे और कहा की एक बिना मुंड आदमी बहावलपुर की तरफ उनकी टुकडी को खत्म कर गांव के गांव तबाह कर जैसलमेर से आ रहा है।
वो सिद्ध पुरुष भी उसी वक़्त वही थे जिन्होंने डूंगर सिंह जी को वो हार दिया था। वह समझ गए थे कि वह कोई और नहीं डूंगर सिंह ही हैं। उन्होंने सात 7 कन्या नील ले कर पोल(दरवाजे के ऊपर) पर खडी कर दी और जैसे ही डूंगर सिंह नीचे से निकले उन कन्याओं के नील डालते ही धड़ शांत हो गया।
ना मृत्यू का भय वीरो ना जीवन से प्रित…
शिश कटे पर धड़ लडे यही राजपूती रित..
बहावलपुर, जो की पाकिस्तान में है जहाँ डूंगर सिंह भाटी जी का धड़ गिरा, वहाँ इस योद्धा को मुण्डापीर कहा जाता है। इस राजपूत वीर की समाधी/मजार पर उनकी याद में हर साल मेला लगता है और मुसलमानो द्वारा चादर चढ़ाई जाती है।
वहीँ दूसरी ओर भारत के जैसलमेर का मोकला गाँव है, जहाँ उनका सिर कट कर गिरा उसे डूंगरपीर कहा जाता है। वहाँ एक मंदिर बनाया हुआ है और हर रोज पूजा अर्चना की जाती है। डूंगर पीर की मान्यता दूर दूर तक है और दूर दराज से लोग मन्नत मांगने आते हैँ।
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अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ट्रस्ट जिला ग्वालियर 
श्री अ.भा. क्षत्रिय महासभा

एक महिला को सब्जीमंडी जाना था...उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे सब्जी मंडी की और चल पड़ी। तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी : 'कहाँ जायेंगी माता जी...?'' महिला ने ''नहीं भैय्या'' कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया। अगले दिन महिला अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी...तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी :— बहनजी चन्द्रनगर जाना है क्या...? महिला ने मना कर दिया।

एक महिला को सब्जीमंडी जाना था...उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे सब्जी मंडी की और चल पड़ी। तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी : 'कहाँ जायेंगी माता जी...?'' महिला ने ''नहीं भैय्या'' कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया। अगले दिन महिला अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी...तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी :— बहनजी चन्द्रनगर जाना है क्या...? महिला ने मना कर दिया।

पास से गुजरते उस ऑटोवाले को देखकर महिला पहचान गई कि ये कल वाला ही ऑटो वाला था। आज महिला को अपनी सहेली के घर जाना था। वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो की प्रतीक्षा करने लगी। तभी एक ऑटो आकर रुका :— ''कहाँ जाएंगी मैडम...?'' महिला ने देखा ये वो ही ऑटोवाला है जो कई बार इधर से गुज़रते हुए उससे पूंछता रहता है चलने के लिए...महिला बोली :— ''मधुबन कॉलोनी है ना सिविल लाइन्स में, वहीँ जाना है, चलोगे...?''

ऑटोवाला मुस्कुराते हुए बोला :— ''चलेंगें क्यों नहीं मैडम, आ जाइये...! "ऑटो वाले के ये कहते ही महिला ऑटो में बैठ गयी. ऑटो स्टार्ट होते ही महिला ने जिज्ञासावश उस ऑटोवाले से पूछ ही लिया :—''भैय्या एक बात बताइये..? दो-तीन दिन पहले आप मुझे माताजी कहकर चलने के लिए पूछ रहे थे, कल बहन जी और आज मैडम, ऐसा क्यूँ...?'' ऑटोवाला थोड़ा झिझककर शरमाते हुए बोला :—''जी सच बताऊँ... आप चाहे जो भी समझेँ पर किसी का भी पहनावा हमारी सोच पर असर डालता है।

आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थीं तो एकाएक मन में आदर के भाव जागे, क्योंकि मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती है। इसीलिए मुँह से स्वयं ही "माताजी" निकल गया। कल आप सलवार-कुर्तें में थीँ, जो मेरी बहन भी पहनती है। इसीलिए आपके प्रति स्नेह का भाव मन में जागा और मैंने ''बहनजी'' कहकर आपको आवाज़ दे दी। आज आप जीन्स-टॉप में हैं, और इस लिबास में माँ या बहन के भाव तो नही जागते। इसीलिए मैंने आपको "मैडम" कहकर पुकारा।
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उपरोक्त कहानी से हमें यह सीख मिलती हैं कि हमारे परिधान (वस्त्र) न केवल हमारे विचारों पर वरन दूसरे के भावों को भी बहुत प्रभावित करते है।

Friday, 26 April 2024

अदहन गांव में दाल या भात बटलोही में बनता था। बटलोही सामान्यतया पीतल या कांसा के हुआ करते थे।

अदहन 
गांव में दाल या भात बटलोही में बनता था। बटलोही सामान्यतया पीतल या कांसा के हुआ करते थे। लकड़ी के चूल्हे पर इसे चढ़ा कर पकाया जाता था। लकड़ी की आग से खाना बनने पर बटलोही की पेंदी में कालिख लग जाती थी! करिखा से बचाव हेतु मिट्टी का लेवा लगाया जाता था। लेवा भी गोरिया माटी का। इस हेतु पहले से ही गोरिया माटी की पिंडी बना कर घर में रख लिया जाता था ताकि दिक्कत नहीं हो लेवा लगाने हेतु। यह गोरिया माटी हमारी कामवाली लाती थी वह भी एक ही जगह से वह था बाला जी का घर। हमारे गांव के ठीक पश्चिम रोड से सटे एक बहुत बड़ा मकान था मिट्टी का। मुझे लगता है बिहार में एकमात्र ही ऐसा मकान होगा जो शुद्ध मिट्टी की दीवाल के बना था और दुतल्ला था । मकान में पंखे लटके रहते थे जिसे बाहर नौकर खींच कर हवा पैदा करता था। इस मकान की भी गज्जब कहानी है पर अभी हम गोरिया माटी पर ही ध्यान दें। तो उन्हीं के मकान के टूटे भाग से गोरिया माटी पूरे गांव के लोग लाते थे।( यह आलेख आप अनूप नारायण सिंह के फेसबुक पेज पर पढ़ रहे हैं)तो हमारे यहां भी  आता था।इसी गोरिया माटी का लेवा लगता था फिर चूल्हे पर बटलोही चढ़ाया जाता था। लकड़ी की आग सुलगाई जाती थी। चूल्हा पर धुंआ निकलने हेतु खीपटे का उचकुन दिया जाता था। खीपटा खपड़े का टुकड़ा हुआ करता था। जलावन की लकड़ी जरना कहलाती थी। जरना भी पूरा सूखा हुआ खन खन होता था नहीं तो मेहराएल जलावन से दिक्कत होती थी।  
बटलोही में नाप कर अदहन का पानी डाला जाता था। अदहन का पानी जब खूब गर्म हो जाये यानी खौलने लगे तो कहा जाता था कि अदहन हो गया अब चावल या दाल इसमें डाला जाए। अदहन की एक अलग आवाज होती थी मानो कोई संगीत हो! स्त्रियां अदहन नाद पर तुरंत फुर्ती से चावल या दाल जो धुल कर रखे होते थे उनको बटलोही में डाल देती थीं। इस डालना को चावल मेराना कहते थे । चावल मेराने के पहले चावल के कुछ दाने चूल्हें में जलते आग को अर्पित किया जाता था। अग्नि यानी अगिन देवता को समर्पित! पानी से धुले चावल ही मेराया जाता था। चावल धो कर जो पानी  निकलता था वह चरधोइन कहलाता था। क्योंकि चरधोइन में चावल के गुंडे का अंश होता था तो उसे फेंका नहीं जाता था बल्कि गाय,भैंस को पीने हेतु एक घड़े में जमा कर दिया जाता था।चावल जब मेरा दिया गया है तो समआंच पर चावल पकाया जाता था। समय समय पर करछुल से चावल को चलाया जाता था ताकि एकरस पके। चावल जब डभकने लगता था तो उसे पसाया जाता था। यानी माड़ पसाया जाता था। एक साफ बर्तन यानी किसी कठौते या बरगुन्ना में माड़ पसाया जाता था। यह माड़ गर्म गर्म पीने या माड़ भात खाने में जो आनंद होता था वह लिख कर नहीं समझाया जा सकता।माड़ भात सामान्यतया गरीबों का भोजन होता था पर जिसने खाया है उसे पता है कि असली अन्नपूर्णा का आशीर्वाद क्या होता है! भात पसाने हेतु बटलोही पर एक ठकनी डाली जाती थी जो तब काठ की होती थी। यह भात पसाना भी एक कला होती थी नहीं तो नौसिखिया  हाथ या पैर ही जला बैठे! ढकनी को एक साफ सूती कपड़े से पकड़ माड़ पसाया जाता था। यह साफ कपड़ा भतपसौना होता था।भोजन जब बन जाये तो भात, दाल ,तरकारी मिला कर अगिन देवता को जीमा कर घर के कुटुंब जीमते थे। जीमने हेतु चौका पूरा होता था। गोरिया मिट्टी से ही धरती को एक पोतन से लीप चौका लगता था। इस चौके पर आसन पर बैठ गर्म गर्म भोजन जिसे माँ ,दादी बड़े मनुहार से खिलाती थी उसका आनंद अलौकिक था। 
अनूप
                               C

आप कवि हो सकते हैं, पर...' ~ परिपूर्णानन्द वर्मा

'आप कवि हो सकते हैं, पर...'   ~ परिपूर्णानन्द वर्मा
"प्रेमचंद जी का शव पड़ा हुआ था। उस निर्जीव शरीर को गोद में चिपटाए भाभी शिवरानी आकाश का भी हृदय दहला देने वाला करुण क्रन्दन कर रही थीं। श्मशान जाने के लिए नगर के सैकड़ों संभ्रान्त साहित्यिक उतावले हो रहे थे। कुछ अपने दु:ख का वेग नहीं सँभाल पा रहे थे। कुछ को 'और भी बहुत से काम थे।' उन्हें जल्दी थी 'इस काम से निबट जाने की।' और कुछ ने मुझे बतलाया था कि वे रास्ते से ही अलग हो जाएँगे, श्मशान तक न जा सकेंगे। और भाभी शिवरानी शव को किसी को छूने नहीं दे रही थीं। सबने 'प्रसाद' जी से कहा--'आप ही समझाएँ!' वे आगे बढ़े। भाभी से बोले--'अब इन्हें जाने दीजिए!' वे क्रोधपूर्वक चीख़ उठीं--'आप कवि हो सकते हैं, पर स्त्री का हृदय नहीं जान सकते। मैंने इनके लिए अपना वैधव्य खंडित किया था। इनसे इसलिए नहीं शादी की थी कि मुझे दुबारा विधवा बनाकर चले जाएँ। आप हट जाइए।' प्रसाद जी के कोमल हृदय को वेदना तथा नारी की पीड़ा ने जैसे दबोच लिया। उनका गला भर आया। नेत्रों में आँसू छलछला उठे। मैं ही सामने खड़ा दिखाई पड़ा। मुझसे भर्रायी आवाज़ में बोले--'परिपूर्णा, तुम्हीं सँभालो!' भाभी चिल्लाती-चीख़ती रहीं और मैंने 'अब यह प्रेमचंद जी नहीं हैं, मिट्टी है'--कहकर मुर्दा उनकी गोद से छीन लिया। उस घटना के बाद मैंने प्रसाद जी को कभी हँसते नहीं देखा। उनके शरीर में क्षय घुस चुका था।..." {'बीती यादें' से} 

चित्र : मृत्यु से दो दिन पहले, प्रेमचंद जी की सेवा करतीं शिवरानी देवी। ['ज़माना' (उर्दू), कानपुर, अक्टूबर, 1936 में प्रकाशित।] 

[ Courtesy : @pankaj.chaturvedi.5621 ]

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28 मार्च 1737 को मराठों की एक बड़ी सेना दिल्ली के उस जगह धमक पड़ी जहां आज तालकटोरा स्टेडियम है। शहंशा ए आलम रंगीले दिल्ली ते पालम हो गए, मीर हसन कोका की सेना मराठों द्वारा रौंद दी गई। मराठे अपने नायक के नेतृत्व में हिंदू पद पादशाही की सर्वोच्चता स्थापित कर पुणे लौट आए। वह नायक था पेशवा बाजीराव बल्लाळ ।

28 मार्च 1737 को मराठों की एक बड़ी सेना दिल्ली के उस जगह धमक पड़ी जहां आज तालकटोरा स्टेडियम है। शहंशा ए आलम रंगीले दिल्ली ते पालम हो गए,  मीर हसन कोका  की सेना मराठों द्वारा रौंद दी गई। मराठे अपने नायक के नेतृत्व में हिंदू पद पादशाही की सर्वोच्चता स्थापित कर पुणे लौट आए। वह नायक था पेशवा बाजीराव बल्लाळ ।
बाजीराव एक ऐसा नाम जो चुभता है मुगलई इतिहासकारों को, चुभता है हिंदुत्व के विरुद्ध चाल कुचाल करने वाले अकादमिक एजेंडाबाजों को, चुभता है टुकड़े गैंग को, चुभता है सनातन परम्परा के प्रति ईर्ष्यालुओं को।

अपराजेय योद्धा  बाजीराव बल्लाळ को अधिकांश लोग मस्तानी से जोड़कर देखते हैं, यह हिंदू जाति के शौर्य को दलित दमित करने का रोमिलाई कुटिलता थी। इतिहास लिखते समय मैकाले के मानसपुत्रों ने अशोक और अकबर से भारत की पहचान जोड़ी। ऐसा इसलिए कि एक तो टॉक्सिक नव बौद्धों के जरिए जोशुआई विमर्श से मिले अथाह पैसे के आधार पर वे पश्चिमी आकाओं को खुश कर रहे थे, दूसरा अकबर के सहारे वे मध्यकालीन भारत के सभी पराक्रमी योद्धाओं को दोयम दर्जे का साबित करना चाह रहे थे। इस क्रम में महाराणा प्रताप और शिवाजी के चित्र  को भी  मुगलिया सेकुलरई रंग में रंग कर पाठ्यक्रम में प्रस्तुत किया गया।

महाकालेश्वर का पुनः निर्माण कर श्रीमंत बाजीराव ने काशी विश्वनाथ को भी म्लेच्छ से मुक्त कराने का संकल्प लिया था, ऐसा व्यक्ति लाल इतिहासकारों को भला क्यों सुहाएगा। 

हिंदू पद पादशाही का विकट योद्धा बाजीराव इन्हे सूट नहीं करता था पर ज्यादा दुःख की बात है कि आज भी बाजीराव हमारी पाठयपुस्तकों से गायब है, हमारी चर्चाओं से गायब है, हमारी  सोशल मीडिया के वाल से गायब है। बाजीराव की जयंती पर किसी बड़े नेता, सामाजिक विचारक का ट्वीट बहुत मुश्किल से मिलेगा। 

सिकंदर को महान बना दिया गया पर वह योद्धा जो अपने बयालीस युद्धों में कभी नही हारा हो उसके नाम एक पैरा देकर भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने इति श्री कर लेता है।

हम अपने नायकों के प्रति कृतघ्न रहे हैं। मेरा आग्रह है कि यह रवायत, यह आदत और जाति में बांट कर विमर्श करने की परंपरा खत्म हो।

हिंदू पद पादशाही के ध्वजवाहक श्रीमन्त पेशवा बाजीराव बल्लाळ  की पुण्यतिथि आने वाली है। मेरा आग्रह है कि इस अजेय योद्धा के नाम पर प्रत्येक ग्राम के किसी हिंदू परिवार के एक संतान का नामकरण अवश्य हो।

Thursday, 25 April 2024

ये डेविड लेटीमर हैं, अमेरिका इस शख़्स ने शौक़ शौक़ में एक ऐसा कारनामा किया है जो भविष्य में बहुत काम आने वाला है, डेविड जो अब 83 साल के हैं, उन्होंने 1960 में एक 35 लीटर की कैपेसिटी वाली बॉटल में एक्सपेरिमेंट के लिए स्पाइडरवॉर्ट्स नाम के पौधे के बीज डाले, मिट्टी में थोड़ी सी खाद मिलाई और तार की मदद से इस पौधे के बीजॉ को इस बॉटल में टॉप दिया, और बॉटल का ढक्कन बंद कर दिया, उन्होंने बॉटल को अपने घर की खिड़की पास ऐसी जगह रखा जहां दिन भर इस बॉटल पर धूप पड़ती रहे, धीरे धीरे बॉटल के अंदर पौधों का पनपना शुरू हो गया, और पनपते पनपते एक बोतल के अंदर एक पूरा ईको सिस्टम यानि पारिस्थितिकी तंत्र डेवलोप हो गया, सड़ी गली पत्तियाँ खाद और पोषक तत्वों का निर्माण करती हैं और धूप से प्रकाश संश्लेषण करके पौधे विस्तार पाते गए, उन्होंने केवल एक बार सन् 1972 में इस बॉटल का ढक्कन खोला था और उसमें 1 ग्लास पानी डाला था, आज 63 साल बाद एक बोतल के अंदर बना तंत्र पूरी तरह से विकसित है, यहीं पौधों की ज़रूरत की कार्बन डाइऑक्साइड भी बन जाती है और सूक्ष्म जीव भी इसके अंदर पनप चुके हैं,

ये डेविड लेटीमर हैं, अमेरिका इस शख़्स ने शौक़ शौक़ में एक ऐसा कारनामा किया है जो भविष्य में बहुत काम आने वाला है, डेविड जो अब 83 साल के हैं, उन्होंने 1960 में एक 35 लीटर की कैपेसिटी वाली बॉटल में एक्सपेरिमेंट के लिए स्पाइडरवॉर्ट्स नाम के पौधे के बीज डाले, मिट्टी में थोड़ी सी खाद मिलाई और तार की मदद से इस पौधे के बीजॉ को इस बॉटल में टॉप दिया, और बॉटल का ढक्कन बंद कर दिया, उन्होंने बॉटल को अपने घर की खिड़की पास ऐसी जगह रखा जहां दिन भर इस बॉटल पर धूप पड़ती रहे, धीरे धीरे बॉटल के अंदर पौधों का पनपना शुरू हो गया, और पनपते पनपते एक बोतल के अंदर एक पूरा ईको सिस्टम यानि पारिस्थितिकी तंत्र डेवलोप हो गया, सड़ी गली पत्तियाँ खाद और पोषक तत्वों का निर्माण करती हैं और धूप से प्रकाश संश्लेषण करके पौधे विस्तार पाते गए, उन्होंने केवल एक बार सन् 1972 में इस बॉटल का ढक्कन खोला था और उसमें 1 ग्लास पानी डाला था, आज 63 साल बाद एक बोतल के अंदर बना तंत्र पूरी तरह से विकसित है, यहीं पौधों की ज़रूरत की कार्बन डाइऑक्साइड भी बन जाती है और सूक्ष्म जीव भी इसके अंदर पनप चुके हैं,
ब्रिटेन की रॉयल हार्टिकल्चर सोसाइटी इस ईकोसिस्टम को पाना चाहती है ताकि वो इस प्रयोग से और जानकारियाँ जुटा सके, लेकिन डेविड अपनी बसाई एक छोटी सी दुनिया अपने नाती पोतों के लिए एक निशानी बतौर उन्हें देकर जाना चाहते हैं, मुझे लगता है, ये प्रयोग भविष्य में अंतरिक्ष और अन्य ग्रहों पर इंसानी कॉलोनी बनाने में काफ़ी मददगार हो सकता है, 
ख़ैर जो भी हो, अभी तक तो यही होता आया है कि प्रकृति ने हम इंसानों को बनाया, लेकिन ये किसी इंसान का एक छोटी ही सही लेकिन पूरी प्रकृति को रचने का पहला मामला है,

Tuesday, 23 April 2024

रीठे से कपड़े धोने का लिक्विड बनाने की विधि :- BUT THIS LIQUID IS ALL IN ONE ... रीठा फोड़कर उसका छिलका अलग कर लीजिए।

रीठे से कपड़े धोने का लिक्विड बनाने की विधि :- BUT THIS LIQUID IS ALL IN ONE ... 
रीठा फोड़कर उसका छिलका अलग कर लीजिए।  
जितना रीठा उसकी  आधी मात्रा मे नींबू लीजिए  और तीन गुणा पानी साथ मे  खूब उबाल लीजिए । जब खूब उबल जाये तो  रीठा हल्का ठंडा होने पर अच्छे से  मसल लीजिए ।
गाढ़ा पल्प बनेगा ध्यान रखियगा । अब इस लिक्विड को छान लीजिए और जार मे या बोतल मे भर लीजिए ।
बचे हुए छिलके मे फिर से पानी डालकर उबाल लीजिए पर पानी पहले से आधा डालिये ।
अब आप इसको हर तरह के कपड़े पर प्रयोग कीजिए पर एक ढक्कन का नाप रख लीजिए कि कितने ढक्कन एक कपड़े पर डलेंगे । हर stuff पर ये अलग अलग परिणाम देता है मतलब किसी पर अच्छी झाग तो किसी पर कम । it means it works according to stuff of cloth..
अनुभव के अनुसार अब तक ये 99% सफल है । 99% इसलिए कि किसी किसी stuff पर कपड़ा गंदा होने के कारण थोड़ा अधिक  लिक्विड लगता है तो इसको ओर अच्छा बनाने का प्रयास जारी है पर इससे कपड़े धोने पर आत्मसंतुष्टि है कि धरती मां को जहर नही दे रहे हम बेशक ये लिक्विड थोड़ा अधिक लग जाये । 
✍️
सुरभि मंगला

फोटू डॉ. शिव दर्शन मलिक चाचाजी की वॉल से 🙏

रीठे से आप अपने सभी प्रकार के कपड़े व सिर के बाल साफ करने के साथ साथ इसके पानी से स्नान भी कर सकते हैं। रीठे को किस प्रकार और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है इस पर विस्तार से लिखुँगा।

पढ़ते रहिये अणपढ़ जाट की फेसबुक पोस्ट✍️

आओ आपको एक दिलचस्प जानकारी देता हूँ। हमारे साथ नॉर्थ ईस्ट में मेघालय घूमने वालों को ये ज़रूर पढ़ना चाहिए। असम के गुवाहाटी के अलावा हम पांच दिन मेघालय में रहते हैं। मेघालय मेघों का घर माना जाता है और यहां रातें अक्सर बहुत ठंडी होती हैं। ब्रिटिश काल मे मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग को पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड कहा जाता था। शिलॉन्ग में आज भी ब्रिटिश राज के दौरान बनायी इमारतें खड़ीं हैं और मेघालय की राजकीय भाषा आज भी अंग्रेजी ही है।

आओ आपको एक दिलचस्प जानकारी देता हूँ। हमारे साथ नॉर्थ ईस्ट में मेघालय घूमने वालों को ये ज़रूर पढ़ना चाहिए। असम के गुवाहाटी के अलावा हम पांच दिन मेघालय में रहते हैं। मेघालय मेघों का घर माना जाता है और यहां रातें अक्सर बहुत ठंडी होती हैं। ब्रिटिश काल मे मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग को पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड कहा जाता था। शिलॉन्ग में आज भी ब्रिटिश राज के दौरान बनायी इमारतें खड़ीं हैं और मेघालय की राजकीय भाषा आज भी अंग्रेजी ही है। 

अब एक खास बात, मेघालय मूलतः तीन भागों में बंटा है, पहला खासी हिल्स दूसरा जैंतिया हिल्स और तीसरा गारो हिल्स। मेघालय के दर्शनीय स्थल खासी और जैंतिया हिल्स में ही पड़ते हैं, गारो हिल्स में पर्यटन नाम मात्र ही है। भारत मे मेघालय ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां स्त्रियों को पुरुषों से ज्यादा अधिकार हैं। यही एक ऐसा राज्य है जहां शादी के बाद पुरुष अपना घर छोड़ के लड़की के घर रहने आता है। पुरुष के ऊपर घर को संभालने की जिम्मेदारी होती है जिसमे वह हर वो काम जो आम महिला अपने घर मे करती है, वही सब काम मेघालय में पुरुषों को करने पड़ते हैं। 

घर चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है, शादी के बाद कमाने की जिम्मेदारी महिला की होती है। बच्चों के नाम के पीछे पिता का नही बल्कि माँ का नाम लिखा जाता है। माँ की प्रॉपर्टी में सबसे बड़ा भाग सबसे छोटी बेटी के हिस्से में आता है। अन्य बेटियाँ होने पर सबसे छोटी बेटी के अलावा उनमे भी प्रोपर्टी बाँट दी जाती है।
साल के एक महीने में शादी शुदा पुरुष अपने घर भी रहने जाता है जैसे सामान्यतः हमारे यहां स्त्री अपने मायके जाती है।

अब सबसे मजेदार बात, चाहे खासी हो, जैंतिया हो या गारो हो, शादी के लिए कोई अरेंज मैरिज का सिस्टम नही है। पूरे मेघालय में अरेंज मैरिज कोई नही जानता। यहाँ का कल्चर सिर्फ लव मैरिज पर टिका है। अब इसमें भी एक ट्विस्ट है, मेघालय की लड़की सिर्फ अपनी जनजाति यानी खासी, जैंतिया या गारो लड़के से ही शादी कर सकती है। शादी के लिए लड़की खुद अपनी पसंद का लड़का कभी नही चुन सकती, चुनने का अधिकार सिर्फ लड़के के पास होता है, सिर्फ लड़का ही लड़की को प्रपोज़ कर सकता है, अगर लड़की ने सहमति दे दी तो दोनो का ब्याह हो जाएगा लेकिन इसमें लड़की की सहमति बहुत ज़रूरी है। लड़का जितनी चाहे उतनी लड़कियों को प्रपोज़ल दे सकता है लेकिन लड़की पूरी उम्र किसी लड़के को प्रपोज़ नही कर सकती। ऐसे भी कई मामले देखने मे आए हैं कि लड़की को कभी किसी लड़के ने प्रपोज़ ही नही किया, इस केस में लड़की पूरी ज़िंदगी या तो प्रपोज़ल का इंतज़ार करेगी या फिर बिना शादी के रहेगी।

ये भारत ही है जहां हमे इतनी विविधताएं देखने को मिलती हैं वार्ना आज के इस मॉडर्न युग मे कौन सा ऐसा इलाका होगा जो इतनी रूढ़िवादी परंपराओं का आज भी पालन कर रहा होगा। लड़की के गैर जातीय लड़के से शादी कर लेने पर या फिर किसी अन्य के साथ बंधन में बंध जाने पर, उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं और फिर कभी वह अपने पैतृक घर नही जा सकती। तो कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट में ज़रूर बताना।

अचानक एडीएम ने किया जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय का निरीक्षण*

*अचानक एडीएम ने किया जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय का निरीक्षण*


*मिली खामियों पर लगाई जमकर फटकार*


 *कार्यालय में अधिकतर बाबू मिले लंबे समय से एक ही पटल पर बने बाबू*


*एसी में बैठ मजा लेते बाबू को बोला कार्यालय में लूट खसोट मचाने का हो रहा काम...प्रबल सूत्र*


अम्बेडकरनगर। जिला मुख्यालय पर स्थित जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय का निरीक्षण अपर जिला अधिकारी सदानंद गुप्ता ने अचानक सुनील कुमार तिवारी जिला विकास अधिकारी के साथ किया।
  प्रबल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कार्यालय परिसर में मौजूद संबंधित पटलो का कार्य भार देख रहे बाबू के ऑफिस का निरीक्षण किया।
बारी बारी बाबूवो से उनके कार्यालय से संबद्ध होने के कार्यकाल के बारे में पूछताछ की। सभी बाबुओं के दफ्तर में ए सी लगा मिला जिसपर नाराज होते हुए बोले कि 2000 ग्रेड पे के कर्मचारी और एसी लगा कर मौज मस्ती चल रही है। बाबुओं को लूट घसोट मचाने के संबोधन के साथ एक एक बाबुओं के पटल कब से उनके पास मौजूद है इसकी जांच पड़ताल कर जानकारी हासिल की जिसमे बड़ी खामियां पाई गई। इसी दौरान सभी बाबुओं को कड़ी फटकार लगाई जब की उक्त  कार्यालय में हो रहे भ्रष्टाचार की खबर लगातार समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रही थी।

Monday, 22 April 2024

*पाकिस्तान से आई धमकी पुलिस अधीक्षक से की लिखित शिकायत* सत्यम सेवक संघ के अनुसांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच के जिला संयोजक एवं मुस्लिम महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष को कल दिनांक 19 =04 =2024 को 11:54 पर पाकिस्तानी नंबर+92313 3426 799 से व्हाट्सएप कॉल पर धमकी देने वाले ने कहा कि अगर तूने देश और वर्ग विशेष का साथ दिया तो तुझे और तेरे परिवार को मार दिया जाएगा ।इस व्हाट्सएप कॉलिंग पर कॉलिंग करने वाले व्यक्ति की भाषा मैं कट्टर ता सुनाई दे रही थी । जिसके शिकायत आज पुलिस अधीक्षक महोदय को लिखित रूप में कर दी गई है ।ज्ञात रहे की फरहत अली खान कई राष्ट्रीय चैनल के डिबेट पैनलिस्ट है और उनकी पत्नी श्रीमती मारिया फरहत भाजपा महिला मोर्चा की जिला उपाध्यक्ष है और काफी डरी हुई है । फरहत अली खान ने कहा कि *मैं किसी धमकी से नहीं डरता राष्ट्र के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार* ।*ऐसी धमकियां देने वालों के लिए तो मेरे पैर का जूता ही काफी है*

*पाकिस्तान से आई धमकी पुलिस अधीक्षक से की लिखित शिकायत* सत्यम सेवक संघ के अनुसांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच के जिला संयोजक एवं मुस्लिम महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष को कल दिनांक 19 =04 =2024 को 11:54 पर पाकिस्तानी नंबर+92313 3426 799 से  व्हाट्सएप कॉल पर धमकी देने वाले ने कहा कि अगर तूने देश और वर्ग विशेष का साथ दिया तो तुझे और तेरे परिवार को मार दिया जाएगा ।
इस व्हाट्सएप कॉलिंग पर कॉलिंग करने वाले व्यक्ति की भाषा मैं कट्टर ता सुनाई दे रही थी । जिसके शिकायत आज पुलिस अधीक्षक महोदय को लिखित रूप में कर दी गई है ।
ज्ञात रहे की फरहत अली खान कई राष्ट्रीय चैनल के डिबेट पैनलिस्ट है और उनकी पत्नी श्रीमती मारिया फरहत भाजपा महिला मोर्चा की जिला उपाध्यक्ष है और काफी डरी हुई है ।
 फरहत अली खान ने कहा कि *मैं किसी धमकी से नहीं डरता राष्ट्र के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार* ।
*ऐसी धमकियां देने वालों के लिए तो मेरे पैर का जूता ही काफी है*

जितनी बार पढ़ो उतनी बार जिंदगी का सबक दे जाती है ये कहानी ....

जितनी बार पढ़ो उतनी बार जिंदगी का सबक दे जाती है ये कहानी ....

जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो, दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।
फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। 

उम्र 25 हो गयी।और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए।

और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार ।

समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।

इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला।

बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता। 

उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी इतने में मैं 35 का हो गया। घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।

इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब 10वि आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए। बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया।

एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"

उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि "तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे बातो की सूझ रही है ।"

कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी। तो फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।

बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में शुन्य बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेश।

उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे चश्मा भी लग गया। मैं खुद बुढा हो गया। वो भी उमरदराज लगने लगी।

दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।

अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।

एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक के फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था। जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा।
उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना। और आप भी वही रह लेना। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।

मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं "

वो तुरंत बोली " अभी आई"। मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया। हमेशा के लिए !!

उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी "बोलो क्या बोल रहे थे?"

लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।
क्षण भर को वो शून्य हो गयी।

" क्या करू ? "

उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। इश्वर को प्रणाम किया। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।
मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली
"चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे ? क्या बातें करनी हैं तुम्हे ?" बोलो !!

ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......
वो एकटक मुझे देखती रही। आँखों से अश्रु धारा बह निकली। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।
क्या ये ही जिन्दगी है ? 

नहीं ??

जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।

जय श्री राम 🙏🚩

आइये जाने प्रतापगढ़ के भाजपा प्रत्याशी सांसद संगम लाल गुप्ता को वोट हम क्यों करें ? पूरा जरुर पढ़े एक बार*

*आइये जाने प्रतापगढ़ के भाजपा प्रत्याशी सांसद संगम लाल गुप्ता को वोट हम क्यों करें ? पूरा जरुर पढ़े एक बार*

1. संगम लाल गुप्ता के पहले जितने भी सांसद थे उनसे मिल पाना एक आम नागरिक के लिए आसान नहीं था, आसान हो भी कैसे वो कभी प्रतापगढ़ में दिखाई ही नहीं पड़ते थे......उसके उलट सांसद संगम लाल गुप्ता ने जनता और सांसद के बीच की खाई को कम कर अपने आफिस में "जनता दर्शन" के माध्यम से और "गाँव-गाँव जाकर चौपाल" के माध्यम से खुद ही लोगों की समस्याओं को सुना और काफी लोगों की समस्याओं का निस्तारण भी हुआ।

2. जगेशरगंज, अंतू, चिलबिला स्टेशन का सौंदर्यीकरण सांसद संगम लाल गुप्ता ने ही कराया है।

3. प्रतापगढ़ के मुख्य स्टेशन माँ बेल्हा देवी धाम जंक्शन के भवन को एयरपोर्ट की तर्ज पर विकसित करने हेतु 32.5 करोड़ रुपये और उसके चारों ओर के इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लिए लगभग 100 करोड़ से भी जयादा का बजट लाकर उसे विकसित करने का कार्य हो रहा है, जिससे प्रतापगढ़ का नाम पूरे देश में गौरवान्वित होगा।

4. एटीएल को चालू करने के नाम पर ही इसके पहले के सांसद चुनाव जीत जाते थे लेकिन कोई प्रयास नहीं करते थे ......ढेर सारा बहाना बना लेते थे कि इसमें बहुत विवाद है हाईकोर्ट में मामला है, विद्युत विभाग, कर्मचारियों का विवाद, जमीन कम है, कोई कंपनी यहाँ आना नहीं चाहती तमाम बहाना बनाते थे पहले के सांसद...................जबकि जबसे सांसद संगम लाल गुप्ता जी प्रतापगढ़ के सांसद बने लगातार अमित शाह जी, मोदी जी, योगी जी से मिलकर जो भी एटीएल का बकाया था उसे दिलवाकर हाईकोर्ट से मैटर रफादफा कराने में सफलता प्राप्त किया और पूरे देश भर के बड़े उद्योगपतियों से मिलकर लगभग हजारों करोड़ों रुपये के निवेश के लिए MOu करवा लिया है .......अब केवल उद्योग स्थापना होनी ही शेष है....ये सांसद संगम लाल गुप्ता जी द्वारा सराहनीय कार्य है, प्रतापगढ़ के लिए।

5. पूरे हुडहा पुल, पूरे केशव राय पुल, दोमुहा पुल, डूहिया पुल, जिरियामऊ पुल का निर्माण सांसद संगम लाल गुप्ता ने ही कराया है और भी लोकसभा क्षेत्र में कई स्थानों पर पुलों का निर्माण प्रगति पर है।

6. गोडे से सुखपाल नगर बाईपास का निर्माण सांसद संगम लाल गुप्ता द्वारा ही कराया जा रहा है। 

7. गोडे से सुखपाल नगर बाईपास ही रिंग रोड है जो आगे चलकर क्रमशः राजगढ़, शनिदेव धाम, बाबा बेलखर नाथ धाम, मकूनपुर तक जाएगा ।

8. मुख्यमंत्री राहत कोष और प्रधानमंत्री राहत कोष द्वारा करोड़ों रुपये का अनुदान सरकार से अनुमन्य कराकर गरीब मरीजों का इलाज संभव कराया सांसद संगम लाल गुप्ता ने।

9. पहले के सांसद को किसी वैवाहिक, तेरहवीं, बरही, शोक संवेदना में नहीं देखते होंगे आप .........अब आप अक्सर सांसद संगम लाल गुप्ता को जबसे सांसद बने है आपको कहीं न कहीं दिखाई ही दे जायेंगे। 

10. सरल स्वभाव, जन सुलभ, मिलनसार व गरीबों के लिए शुभ चिन्तक है सांसद संगम लाल गुप्ता जी।

11 पहले के सांसदों ने कभी भाजपा कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं किया यहाँ तक पहचानते नहीं थे .....लेकिन आज सांसद संगम लाल गुप्ता जी भाजपा कार्यकर्ताओं को दीपावली पर उनको गिफ्ट देकर सम्मानित करना और होली मिलन समारोह के माध्यम से उनके साथ त्यौहार मनाना दिखाता है वो भाजपा कार्यकर्ताओं व आम नागरिक का कितना सम्मान करते है।

12. हजारों इंटरलाकिंग सड़क, सोलर लाईट, हैण्डपम्प, प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत काली सड़क, आवास, शौचालय, किसान सम्मान निधि, शादी अनुदान आदि को जनता के लिए करवाया है और बजट में कोई कमी न हो इसके लिए बराबर भारत सरकार और राज्य सरकार से प्रतापगढ़ के लिए पैरवी करते रहते है।

13. कई सारे गाँवो में "पानी की टंकी निर्माण" भी सांसद संगम लाल गुप्ता द्वारा ही कराया जा रहा है।

14. सांसद संगम लाल गुप्ता जी को केवल तीन वर्ष ही कार्य करने को मिला जबकि 02 वर्ष कोरोना काल में चला गया, जिसमे निधि पर रोक और वित्तीय स्वीकृति पर रोक लग गयी थी।

15. कोरोना काल में आपने देखा होगा किस तरह सांसद संगम लाल गुप्ता ने मुम्बई और अन्य राज्यों में फंसे लोगों को सकुशल प्रतापगढ़ लाया था .......और उनके द्वारा प्रतापगढ़ में लोगों को हर संभव मदद करायी गयी थी।

16. भुपियामऊ से सोनावा तक फोर लेन, मोहनगंज से वर्मा नगर फोर लेन, सुखपाल नगर से भुपियामऊ फोर लेन का पैसा प्रतापगढ़ में सांसद जी ने ही लाया है जिस पर कार्य होना बाकी है टेंडर की प्रक्रिया जल्द ही आरंभ होगी।

17. प्रतापगढ़ में कई सारे स्थानों पर अंडरपास का निर्माण भी सांसद जी द्वारा ही कराया गया है।

18. सौ बेड का महिला अस्पताल का निर्माण सांसद संगम लाल गुप्ता द्वारा ही कराया गया है और पुरुष अस्पताल में ट्रामा सेंटर का निर्माण लगभग हो चुका है ।

19. हजारों सार्वजनिक स्थलों पर हाईमास्ट सांसद जी द्वारा ही लगवाया गया है।

20. लगभग 14 विद्यालयों को पीएम श्री योजना में सम्मिलित कराकर उनका कायाकल्प कराकर उसमे शैक्षणिक कार्य हेतु सुख सुविधाओं की व्यवस्था सांसद संगम लाल गुप्ता जी ने ही कराया है।

21. कई सारे अमृत सरोवरों का निर्माण कराकर गाँवों का जल स्तर बढाने के लिए सरोवरों का निर्माण सांसद संगम लाल गुप्ता जी ने ही कराया है। 

22. देखिये हर कोई परफेक्ट नहीं होता है ......हम आप अपने घर के हर सदस्य को संतुष्ट नहीं कर सकते है लेकिन प्रयास करते है ईमानदारी से .......आप देखेंगे तो सांसद संगम लाल गुप्ता ने बड़ी निष्ठा ईमानदारी से प्रतापगढ़ के दिशा-दशा बदलने और गरीब-अमीर की खाई और जनता और सांसद के बीच की दूरी को कम करने का प्रयास किया है .......और मोदी जी, योगी जी द्वारा किये जा रहे सनातन धर्म, भारत देश को विश्व गुरु बनाने के लिए किये जा रहे प्रयास के लिए एक बार फिर से भाजपा प्रत्याशी सांसद संगम लाल गुप्ता जी को भारी बहुमतों से विजयी बनायें ....एक कार्यकाल इनको और देना अनिवार्य है क्योंकि इसी कार्यकाल में सांसद संगम लाल गुप्ता का कार्य इम्प्लीमेंट होगा .....जो प्रतापगढ़ की दिशा और दशा का कायाकल्प करेगी .......हमारा प्रतापगढ़ विकसित होगा। 


*जय भाजपा तय भाजपा*
*आएगा तो मोदी ही*
*प्रतापगढ़ में फिर से खिलेगा कमल*

*हर हर महादेव, जय श्री राम*

ये हैं करौली के महाराजा शूरवीर्य परम वीर्य चंद्रपाल सिंह...

ये हैं करौली के महाराजा शूरवीर्य परम वीर्य  चंद्रपाल सिंह...
जिनका कद था 11 फुट साढ़े दस इंच , वजन 802 किलो,
 छाती 96 इंच, भुजाएं 74 इंच,
 तलवार का भार 268 किलो, ढाल 306 किलो, विद्युत की गति से दौड़ते, 95 फुट ऊंची छलांग...

एक बार शेरों के झुंड में घिरे तो 30 शेरों को निहत्था ही फाड़ डाला, फिर कुछ दिनों बाद हाथियों के झुंड में घिर गए तो 20 हाथियों को सूंढ पकड़ कर उछाल कर दूर फेंक दिया, 🙏
फिर कुछ दिनों बाद मगरमच्छों के झुंड में घिरे तो 80 मगरमच्छों को निहत्था चीर दिया...

मुगल इनके नाम से घबराते थे,  ये  बहुत बड़े राजा थे .

और इनका सेनापति भी  परंपरा के अनुसार 95 वर्ष का बूढ़ा होता...

महाराजा चंद्रपाल भी हर युद्ध में सर कटवा बैठते और बिना सर के ही शत्रु को हज़ारों किलोमीटर तक दौड़ा दौड़ा कर पेलते थे.. 

शूरवीर्य परम वीर्य  चंद्रपाल सिंह जी जो थे उनकी आंखो  से ही खूंखार मुगल अपने हथियार डाल कर हार मान लेते थे... 

     किसी ने खूब लिखा है: 🚩
चंद्रपाल लड़ियो एसो लड़ियो मुगल पठान से
जैसो सुबह-सुबह जाए लोटा ले के कोई मैदान में 🚩
Manu Bairwa

Sunday, 21 April 2024

बचपन से उसे मेहनत करने की आदत थी। ना करता तो ज़िंदा बच पाना मुश्किल था। वो अपना देश और शहर छोड़कर परदेस में इसलिए जान खपा रहा था ताकि गरीबी के अभिशाप से जान छुड़ा सके। पांच महीने की जी तोड़ मेहनत के बाद वो फिलाडेल्फिया से ऊबने लगा था। एक हफ्ते की छुट्टी पर जाने का मौका मिला तो उसने ज़िंदगी में पहली बार अमीरों की तरह बर्ताव करने की ठानी।

बचपन से उसे मेहनत करने की आदत थी। ना करता तो ज़िंदा बच पाना मुश्किल था। वो अपना देश और शहर छोड़कर परदेस में इसलिए जान खपा रहा था ताकि गरीबी के अभिशाप से जान छुड़ा सके। पांच महीने की जी तोड़ मेहनत के बाद वो फिलाडेल्फिया से ऊबने लगा था। एक हफ्ते की छुट्टी पर जाने का मौका मिला तो उसने ज़िंदगी में पहली बार अमीरों की तरह बर्ताव करने की ठानी।

अच्छा एक्टर था इसलिए वैसी एक्टिंग करने भी लगा। तुरत-फुरत एक शोरूम में पहुंचा और पाई-पाई बचाने की कंजूसी के उलट महंगा ड्रेसिंग गाउन और 75 डॉलर का शानदार सूटकेस खरीदा। दुकानदार ने प्रभावित होकर सूटकेस घर पर ही भिजवाने का प्रस्ताव रखा तो उसे अचानक अहसास हुआ कि वो किसी पिरामिड के शीर्ष पर खड़ा है। ज़िंदगी उसके साथ ऐसे अदब से कभी पेश नहीं आई थी। इसके बाद उसने शहर के सबसे महंगे होटल का रुख किया। डर्बी टोप पहन शान से छड़ी घुमाते हुए उसने होटल एस्टॉर में प्रवेश किया। अमीरी और शानो शौकत के साथ सहज नहीं था इसलिए जगमगाहट देख थोड़ी देर के लिए घबराहट हुई। डेस्क पर संभलकर अपना नाम दर्ज कराया और जब कमरे का एक दिन का किराया पता किया तो पैसा एडवांस में जमा करने की पेशकश की। अब तक सरायों और सस्ते होटलों में ठहरने का तजुर्बा उसका पीछा कर रहा था। गरीबी का भूत चारों तरफ नाच रहा था और वो था कि दौड़े चला जा रहा था।

दमकती लॉबी से गुज़रा तो मन भर आया। कमरे में पहुंचकर बाथरूम के हर आइने और नल का मुआयना करने लगा। हाथों से सब कुछ छूकर देखता रहा। वो अपना हर पैसा वसूल लेना चाहता था। अपने पैसों पर ऐश करने का उसका पहला मौका था। नहा धोकर कुछ पढ़ने की इच्छा हुई लेकिन फोन करके अखबार तक मंगाने का आत्मविश्वास खुद में पैदा नहीं कर सका। कुछ रुक कर कपड़े पहने और बाहर निकल आया।

वो किसी सम्मोहन में बंधा डिनर हॉल तक पहुंच गया। वेटर ने एक टेबल तक उसे गार्ड किया और पल भर बाद वो फिर से अदब की दुनिया के पिरामिड पर बैठा था। वेटरों की फौज उसे ठंडा पानी, मेन्यू, मक्खन और ब्रेड पेश कर रही थी। वो बेचारा संभल कर अपनी सबसे उम्दा अंग्रेज़ी बोल रहा था। खा-पी कर उसने एक डॉलर की बड़ी टिप दी। वो कमरे में लौट फिर बाहर निकल आया। उसके भीतर कुछ तो था जो बाहर आने को खदबदा रहा था। समझ वो भी नहीं पा रहा था कि ये ज्वालामुखी आखिर किस वजह से फटना चाहता है। चलते-चलते मेट्रोपॉलिटन ओपेरा पहुंच उसने ना जाने क्यों जर्मन ग्रैण्ड ओपेरा का टिकट खरीदा। उसे ये कभी पसंद नहीं था। जर्मन भाषा में ओपेरा चलता रहा और वो ऐसे ही बैठा रहा। जैसे ही रानी के मरने का दृश्य आया अचानक फूट-फूट कर रोने लगा। आसपास कौन है और क्या सोच रहा है उसे कुछ खबर नहीं थी। वो बस रोये चला जा रहा था। वो तब तक रोया जब तक बदन की ताकत बाहर नहीं निकल गई। आखिरकार निढाल होकर उसे चैन मिला.

ये चार्ली चैप्लिन था जिसने बला की गरीबी के बाद पैसे और शोहरत की इंतहां देखी और आज मेरी जान का जन्मदिन है.

- नितिन ठाकुर

Wednesday, 17 April 2024

महारानी जोधाबाई, जो कभी थी ही नहीं, लेकिन बड़ी सफाई से उनका अस्तित्व गढ़ा गया और हम सब झांसे में आ गए* ....

*महारानी जोधाबाई, जो कभी थी ही नहीं, लेकिन बड़ी सफाई से उनका अस्तित्व गढ़ा गया और हम सब झांसे में आ गए* .... 

जब भी कोई हिन्दू राजपूत किसी मुग़ल की गद्दारी की बात करता है तो कुछ मुग़ल प्रेमियों द्वारा उसे जोधाबाई का नाम लेकर चुप कराने की कोशिश की जाती है!

बताया जाता है कि कैसे जोधा ने अकबर की आधीनता स्वीकार की या उससे विवाह किया! परन्तु अकबर कालीन किसी भी इतिहासकार ने जोधा और अकबर की प्रेम कहानी का कोई वर्णन नहीं किया है!

उन सभी इतिहासकारों ने अकबर की सिर्फ 5 बेगम बताई है!
1.सलीमा सुल्तान
2.मरियम उद ज़मानी
3.रज़िया बेगम
4.कासिम बानू बेगम
5.बीबी दौलत शाद

अकबर ने खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी किसी हिन्दू रानी से विवाह का कोई जिक्र नहीं किया। परन्तु हिन्दू राजपूतों को नीचा दिखाने के षड्यंत्र के तहत बाद में कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृत्यु के करीब 300 साल बाद 18 वीं सदी में “मरियम उद ज़मानी”, को जोधा बाई बता कर एक झूठी अफवाह फैलाई!

और इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेम कहानी के झूठे किस्से शुरू किये गए! जबकि खुद अकबरनामा और जहांगीर नामा के अनुसार ऐसा कुछ नहीं था!

18वीं सदी में मरियम को हरखा बाई का नाम देकर हिन्दू बता कर उसके मान सिंह की बेटी होने का झूठा पहचान शुरू किया गया। फिर 18 वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब "एनालिसिस एंड एंटीक्स ऑफ़ राजस्थान" में मरियम से हरखा बाई बनी इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया!

और इस तरह ये झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया कि आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है और जन जन की जुबान पर ये झूठ सत्य की तरह आ चुका है!

और इसी झूठ का सहारा लेकर राजपूतों को नीचा दिखाने की कोशिश जाती है! जब भी मैं जोधाबाई और अकबर के विवाह प्रसंग को सुनता या देखता हूं तो मन में कुछ अनुत्तरित सवाल कौंधने लगते हैं!

आन, बान और शान के लिए मर मिटने वाले शूरवीरता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं??
हजारों की संख्या में एक साथ अग्नि कुंड में जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती हैं???? जोधा और अकबर की प्रेम कहानी पर केंद्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक मेरे मन की टीस को और ज्यादा बढ़ा देते हैं!

अब जब यह पीड़ा असहनीय हो गई तो एक दिन इस प्रसंग में इतिहास जानने की जिज्ञासा हुई तो पास के पुस्तकालय से अकबर के दरबारी 'अबुल फजल' द्वारा लिखित 'अकबरनामा' निकाल कर पढ़ने के लिए ले आया, उत्सुकतावश उसे एक ही बैठक में पूरा पढ़ डाली । पूरी किताब पढ़ने के बाद घोर आश्चर्य तब हुआ, जब पूरी पुस्तक में जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं मिला!

मेरी आश्चर्य मिश्रित जिज्ञासा को भांपते हुए मेरे मित्र ने एक अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ 'तुजुक-ए- जहांगिरी' जो जहांगीर की आत्मकथा है उसे दिया! इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहांगीर ने अपनी मां जोधाबाई का एक भी बार जिक्र नहीं किया!

हां कुछ स्थानों पर हीर कुँवर और हरका बाई का जिक्र जरूर था। अब जोधाबाई के बारे में सभी ऐतिहासिक दावे झूठे समझ आ रहे थे । कुछ और पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के पश्चात हकीकत सामने आयी कि “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोई जिक्र या नाम नहीं है!

इस खोजबीन में एक नई बात सामने आई, जो बहुत चौंकाने वाली है! इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में 'रुकमा' नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी, जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी!

रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को 'रुकमा-बिट्टी' नाम से बुलाते थे आमेर की महारानी ने रुकमा बिट्टी को 'हीर कुँवर' नाम दिया चूँकि हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ, इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भांति परिचित थी!

राजा भारमल उसे कभी हीर कुँवरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे। राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी परसियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुँवर का विवाह अकबर से करा दिया, जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी नाम दिया!

चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था, इसलिये ऐतिहासिक ग्रंथों में हीर कुँवरनी को राजा भारमल की पुत्री बता दिया! जबकि वास्तव में वह कच्छवाह राजकुमारी नहीं, बल्कि दासी-पुत्री थी!

राजा भारमल ने यह विवाह एक समझौते की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था। इस विवाह के विषय में अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है!

(“ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس”) हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें 
 संदेह है, इसी तरह ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में एक भारतीय मुगल शासक का विवाह एक परसियन दासी की पुत्री से करवाए जाने की बात लिखी है!

'अकबर-ए-महुरियत' में यह साफ-साफ लिखा है कि (ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں) 

हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है, क्योंकि निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नहीं थे और ना ही हिन्दू गोद भराई की रस्म हुई थी!

सिक्ख धर्म गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के विषय में कहा था कि क्षत्रियों ने अब तलवारों और बुद्धि दोनों का इस्तेमाल करना सीख लिया है, मतलब राजपूताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धि का भी काम लेने लगा है!

17वी सदी में जब 'परसी' भारत भ्रमण के लिये आये तब अपनी रचना ”परसी तित्ता” में लिखा “यह भारतीय राजा एक परसियन वैश्या को सही हरम में भेज रहा है अत: हमारे देव (अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें"!

भारतीय राजाओं के दरबारों में राव और भाटों का विशेष स्थान होता था, वे राजा के इतिहास को लिखते थे और विरदावली गाते थे उन्होंने साफ साफ लिखा है-

”गढ़ आमेर आयी तुरकान फौज ले ग्याली पसवान कुमारी ,राण राज्या राजपूता ले ली इतिहासा पहली बार ले बिन लड़िया जीत! (1563 AD)

मतलब आमेर किले में मुगल फौज आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर ले जाती है! हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत 1563 AD!

ये ऐसे कुछ तथ्य हैं, जिनसे एक बात समझ आती है कि किसी ने जानबूझकर गौरवशाली क्षत्रिय समाज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की और यह कुप्रयास अभी भी जारी है!

लेकिन अब यह षड़यंत्र अधिक दिन नहीं चलेगा।

दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश के पहले शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु दौड़ते हुए घोड़े से गिरने के कारण हुई थी।

दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश के पहले शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु दौड़ते हुए घोड़े से गिरने के कारण हुई थी।

लेकिन क्या यह सच में संभव है कि एक सेनापति जिसने 11 साल की उम्र में पहली बार घोड़े की सवारी की और अनगिनत लड़ाइयाँ घोड़ों पर सवार होकर लड़ी, वह दौड़ते हुए घोड़े से गिरकर मर सकता है?

असली इतिहास बनाम झूठी मनगढ़ंत कहानी

जब कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना को लूटा, तो उसने मेवाड़ के राजा को मार डाला और राजकुमार करण सिंह को बंदी बना लिया। लूटी गई संपत्ति और राजकुमार के साथ, वह राजकुमार के घोड़े *"..शुभ्रक.."* को भी लाहौर ले गया।

लाहौर में करण सिंह ने भागने की कोशिश की और इस प्रक्रिया में पकड़ा गया। कुतुबुद्दीन ने उसका सिर काटने का आदेश दिया और अपमान को बढ़ाने के लिए मृत राजकुमार के सिर को गेंद की तरह इस्तेमाल करते हुए पोलो मैच खेलने का आदेश दिया।

सिर काटने वाले दिन कुतुबुद्दीन शुभ्रक पर सवार होकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचा।  अपने स्वामी करण सिंह को देखते ही घोड़ा बेकाबू होकर उछलने लगा, जिससे कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर पड़ा और शुभ्रक ने गिरे हुए कुतुबुद्दीन को जोरदार लात मारी। छाती और सिर पर घातक खुरों से किए गए शक्तिशाली प्रहार घातक साबित हुए। कुतुबुद्दीन ऐबक की मौके पर ही मौत हो गई।

सभी लोग स्तब्ध रह गए। शुभ्रक करण सिंह की ओर भागा और उसके बाद मची अफरा-तफरी का फायदा उठाते हुए राजकुमार कूद पड़ा और अपने वीर घोड़े पर सवार हो गया, जिसने तुरंत ही दौड़ना शुरू कर दिया और अपने जीवन की सबसे कठिन दौड़ शुरू कर दी।

यह लगभग 3 दिनों तक लगातार चलने वाली दौड़ थी, जो अंत में मेवाड़ राज्य के द्वार पर जाकर रुकी। जब राजकुमार काठी से उतरा, तो शुभ्रक मूर्ति की तरह स्थिर खड़ा था। करण सिंह ने प्यार से घोड़े के सिर पर हाथ फेरा, लेकिन जब शुभ्रक जमीन पर गिरा, तो वह चौंक गया।

शक्तिशाली घोड़ा अपने मालिक को बचाने में सफल रहा और मरने से पहले उसे सुरक्षित उसके राज्य तक पहुँचाया। हमने चेतक के बारे में पढ़ा है, लेकिन शुभ्रक की कहानी वफ़ादारी से परे है!  इस तरह के तथ्य हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में कभी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बनते। हममें से ज़्यादातर लोगों ने यह नाम भी नहीं सुना है। यह इतिहास में दफन हो चुका है.  

साहब, वो तो एक फरिश्ता थे। एक दफा मैं बीमार पड़ गया था। वो मेरे घर आए। साथ में फल और दवाईयां मेरे लिए लाए थे। मेरे हाल-चाल पूछने के बाद उन्होंने मेरे पैर दबाने शुरू कर दिए।

"साहब, वो तो एक फरिश्ता थे। एक दफा मैं बीमार पड़ गया था। वो मेरे घर आए। साथ में फल और दवाईयां मेरे लिए लाए थे। मेरे हाल-चाल पूछने के बाद उन्होंने मेरे पैर दबाने शुरू कर दिए। मैं हैरान था। वो मेरे साहब थे। उनका मेरे पैर दबाना मेरे लिए बहुत भारी था।" ये बात के.एल.सहगल साहब के ड्राइवर यूसुफ ने एक कॉलमिस्ट को बताई थी। और ये बातें करते वक्त यूसुफ की आंखें आंसुओं से भर गई थी। आज के.एल.सहगल साहब का जन्मदिवस है। 11 अप्रैल 1904 को जम्मू में सहगल साहब का जन्म हुआ था। वो जितने शानदार गायक थे। उतने ही बेहतरीन और प्यारे इंसान भी थे। आज सहगल साहब की इंसानियत के दो किस्से आपको सुनाऊंगा। और मुझे पूरा यकीन है कि आप भी सहगल साहब को सैल्यूट करेंगे ये किस्से जानकर।

पहला किस्सा साल 1945 के किसी महीने का है। मुंबई(तब बॉम्बे) के किसी अमीर आदमी ने विले पार्ले के अपने बंगले के उदघाटन में फिल्म जगत की हस्तियों को भी इनवाइट किया था। सहगल साहब डायरेक्टर किदार शर्मा के साथ वहां गए थे। मेहमानों की अच्छी-खासी भीड़ उस दिन वहां जमा हुई थी। अचानक सहगल साहब को कुछ अजीब महसूस होने लगा। उन्हें लगा कि शायद उनकी तबियत सही नहीं है। वो किदार शर्मा के साथ पास ही मौजूद समंदर के किनारे जाकर बैठ गए। शाम का वक्त था और सूरज डूब चुका था। हल्का-हल्का अंधेरा छा चुका था। तभी सहगल साहब का ध्यान कुछ दूरी पर बैठे एक फकीर पर गया। वो फकीर हारमोनियम पर गज़ल गा रहा था। सहगल साहब और किदार शर्मा जी उस फकीर के पास जाकर बैठ गए और उसकी गज़लें सुनने लगे। सहगल साहब उस फकीर की गज़लें सुनकर बहुत खुश हुए। जब उस फकीर का गाना खत्म हुआ तब सहगल साहब ने उसके पैर छुए और अपनी जेब से पांच हज़ार, जी हां पांच हज़ार रुपए निकाले और फकीर को दे दिए। इतनी बड़ी रकम देखकर किदार शर्मा भी दंग रह गए। ये लोग जब फकीर से थोड़ा दूर आ गए तो किदार शर्मा ने सहगल साहब से कहा,"तुम्हें पता भी है तुमने उस फकीर को कितने रुपए दे दिए हैं?" सहगल साहब ने पंजाबी में जवाब दिया,"ऊपर वाले ने कि मैन्नू गिन के दित्ते सी।"

दूसरा किस्सा- साल 1946 तक सहगल साहब की तबियत काफी खराब हो चुकी थी। वो डायबिटीज़ के गंभीर रोगी हो चुके थे। और उन्हें अहसास हो गया था कि अब वो बहुत ज़्यादा नहीं जी सकेंगे। उन्होंने मुंबई छोड़ने का फैसला कर लिया। जिस दिन वो मुंबई छोड़कर जा रहे थे उस दिन उनके जिग्री दोस्त के.एन.सिंह व कुछ और उन्हें विदा करने रेलवे स्टेशन तक उनके साथ आए थे। फिर फ्रंटियर मेल में सवार होकर सहगल साहब मुंबई छोड़कर पंजाब की तरफ बढ़ चले। 26 नवंबर 1946 को सुबह लगभग चार बजे वो जालंधर पहुंचे। सर्दियों का मौसम था और जालंधर में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। सहगल साहब ने एक बढ़िया सा गरम कोट पहना हुआ था जो उन्होंने कुछ ही दिन पहले खरीदा था। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते वक्त उन्होंने देखा कि एक भिखारी ठंड के मारे बुरी तरह कंपकंपा रहा है। सहगल साहब ने अपना वो कोट उतारा और उस भिखारी को पहना दिया। और 1800 रुपए भी दे दिए। सहगल साहब के रिश्तेदार ये देखकर हैरान रह गए। हालांकि उनके घरवाले जानते थे कि सहगल साहब ऐसा अक्सर करते रहते थे। जालंधर में ही 18 जनवरी 1947 को सहगल साहब का निधन हो गया था। कुंदल लाल सहगल साहब को किस्सा टीवी का नमन। शत शत नमन। #KLSaigal