Saturday, 13 July 2024

संविधान सभा में इस बात पर चर्चा हो रही थी कि सरकार के पास आपातकाल लगाने का अधिकार होना चाहिए या नहीं। कुछ सदस्यों ने इस पर आपत्ति की।*

AUM News 


*संविधान सभा में इस बात पर चर्चा हो रही थी कि सरकार के पास आपातकाल लगाने का अधिकार होना चाहिए या नहीं। कुछ सदस्यों ने इस पर आपत्ति की।*

तब बाबा साहेब अंबेडकर खड़े हुए और समझाया कि बहुत से हालात ऐसे हो सकते हैं जब सरकार को आपातकाल लगाना होगा। इसलिए हम संविधान में आपातकाल लगाने का प्रावधान रख रहे हैं।

*आपातकाल लगाने की परिस्थितियां मोटे तौर पर यही बतायी गई कि सीमा पर कोई गंभीर ख़तरा हो या फिर देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा खड़ा हो जाए। ऐसे हालात के लिए डॉक्टर अम्बेडकर ने चुनी हुई सरकार को आपातकाल लगाने का अधिकार भारत के संविधान में दिया था।*

जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी तो उनकी चुनी हुई सरकार को गिराने की कोशिश वे शक्तियाँ कर रही थी जिन्हें जनता ने ख़ारिज कर दिया था। 

*लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के पास 352 सीट का बहुमत था और 22 सीट वाला जनसंघ असंवैधानिक तरीक़े से तख्तापलट करना चाहता था।*

एक चुनी हुई सरकार को गिराने की इस हवस में देश के छात्रों को भ्रमित किया गया। बिहार और उत्तर प्रदेश सहित देश के तमाम राज्यों में विश्वविद्यालय उपद्रव का केंद्र बन गए। कॉलेजों में आगज़नी और बम फोड़ने की घटनाएँ आम हो गई।

*सार्वजनिक संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुँचाया जाने लगा।*

चुने हुए मुख्यमंत्री और विधायकों का इन उपद्रवियों द्वारा घेराव और पथराव शुरू हो गया। विधायक और सांसदों को बंधक बना लेना आम बात हो गई। एक सांसद की हत्या कर दी गई।

*यही कम नहीं था इसके बाद रामलीला मैदान से सेना को सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत करने के लिए उकसाया गया। यानी कि भारत में पाकिस्तान की तर्ज़ पर सैनिक तख्तापलट को विपक्ष उकसा रहा था।*

इंदिरा गांधी चाहती है तो इन सारे गंभीर आरोपों में विपक्ष के चुने हुए नेताओं पर सीधे देशद्रोह का मुक़दमा लगा देतीं और उन्हें लंबे समय के लिए जेल के अंदर डाल देती। 

*वे चाहती तो आज की सरकार की तरह इन नेताओं और छात्रों के घर पर बुलडोजर चलवा देतीं। या फिर आज की सरकार की तरह इन छात्रों के माँ बाप को प्रताड़ित करना शुरू कर देती।*

लेकिन इंदिरा गांधी ने ऐसा कोई भी असंवैधानिक क़दम नहीं उठाया।उन्होंने संविधान में इस तरह के घरेलू उपद्रव के हालात में दिये गये आपातकाल के प्रावधान का इस्तेमाल किया। यह संविधान की हत्या नहीं थी, यह संविधान का पालन था।

*अगर वे तानाशाह होती तो विपक्ष के नेता सिर्फ़ डेढ़ साल के लिए जेल में नहीं होते, तो इंदिरा गाँधी बिना किसी बाहरी दबाव के आपातकाल समाप्त नहीं करती, तो इंदिरा गाँधी खुला और निष्पक्ष चुनाव नहीं कराती और चुनाव लड़ने के लिए विपक्ष के नेताओं को जेल से बाहर नहीं कर देतीं।*

लेकिन इंदिरा गांधी ने यह सब किया और उन्होंने 1977 के चुनाव में ज़बरदस्त हार को स्वीकार किया।

*शांति से विपक्ष में बैठी। विपक्ष में रहकर उन्होने तख्तापलट की बात नहीं कीऔर न किसी तरह की हिंसा को बढ़ावा दिया।*

जनता ने जल्द ही जनता पार्टी की सच्चाई को पहचान लिया और 1980 में इंदिरा गाँधी दोबारा प्रचंड बहुमत से भारत के प्रधानमंत्री बनी।

*यही इतिहास है, यही तथ्य हैं और यही सच्चाई है। जो 25 जून 19,75 को संविधान हत्या दिवस कहने वालों के दिमाग़ में कभी नहीं आएगी क्योंकि उनका संविधान में विश्वास है ही नहीं।*
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