एक बार पुनः संजीव जी का आभार...
उनकी चयन दृष्टि उम्दा है...
आइए इस बार मौन को साधते हैं...
*"हम इंडियन्स (Native Americans) मौन को जानते हैं। हमें मौन से डर नहीं लगता। वास्तव में, हमारे लिए मौन शब्दों से अधिक शक्तिशाली होता है।
हमारे बुज़ुर्ग मौन की परंपरा में प्रशिक्षित थे, और उन्होंने यह ज्ञान हमें सौंपा।
वे हमें कहते थे — 'देखो, सुनो, और फिर कार्य करो।'
यही जीवन जीने का तरीका था।
लेकिन तुम लोगों में सब कुछ उल्टा है।
तुम बोलकर सीखते हो।
तुम स्कूलों में उन बच्चों को पुरस्कार देते हो जो सबसे ज़्यादा बोलते हैं।
तुम्हारी पार्टियों में सब एक साथ बोलने की कोशिश करते हैं।
काम की जगहों पर तुम्हारी बैठकों में हर कोई एक-दूसरे की बात काटता है, और सब पाँच, दस या सौ बार बोलते हैं।
और तुम उसे 'समस्या सुलझाना' कहते हो।
जब तुम किसी कमरे में होते हो और वहाँ मौन होता है, तो तुम असहज हो जाते हो।
तुम्हें वह खाली स्थान आवाज़ों से भरना होता है।
इसलिए तुम अनिवार्य रूप से बोलने लगते हो — यहाँ तक कि उस वक़्त भी जब तुम्हें पता नहीं होता कि तुम क्या कहने वाले हो।
हमारे बुज़ुर्गों ने हमें सिखाया था कि धरती हमसे लगातार बात करती है, लेकिन उसे सुनने के लिए हमें मौन रहना चाहिए।
हमारी आवाज़ के अलावा और भी कई आवाज़ें हैं।
बहुत सारी आवाज़ें।"**
~ एला कारा डेलोरिया
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