"वह लड़का"कहानी।
जब मैं अभी छोटा ही था ,तो गर्मियों और बसंत के दिनों में रविवार को, अपनी गली के बच्चों को इकट्ठा कर लेता था और उन्हें खेतों के पार ,जंगल में ले जाता था। आमतौर पर हम सुबह सुबह ही शहर से बाहर निकल आते थे। दोपहर के वक्त , जब दिन की गर्मी अपने शिखर पर होती तो खाना खा लेने के बाद छोटे बच्चे घास पर ही सो जाते , झाड़ियों की छांव में जबकि बड़े बच्चे मुझे कोई कहानी सुनाने के लिए कहते। मैं कहानी सुनाने लगता और किसी 20 वर्षीय बच्चे सा महसूस करता ।एक दिन जब बच्चों की भीड़ के साथ शहर से निकलकर मैं एक खेत में पहुंचा,_ तो हमें एक अजनबी मिला एक छोटा सा यहूदी, नंगे पांव ,फटी कमीज़ ,काली भ्राकुटीया, दुबला शरीर और मैं मिनी से घुंघराले बाल। वह किसी वजह से दुखी था और लग रहा था कि वह अब तक रोता रहा है। बच्चों की भीड़ के बीच से होता हुआ, वह गली के बीचो बीच रुक गया। "उसे पकड़ लो !"बच्चे एक खुशी से चिल्ला उठे, "नन्हे यहूदी को पकड़ लो!"
मुझे उम्मीद थी कि वह भाग खड़ा होगा । वह पाव उठा उठाकर अपने आपको जैसे ऊंचा बनाने की कोशिश कर रहा था। उसने अपने कंधे रहा की बाड पर टिका दिए थे ।और हाथों को पीट के पीछे बांध लिया था।
तब अचानक वह बड़ी शांत और साफ आवाज में बोल उठा _"मैं तुम लोगों को एक खेल दिखाऊं?"
" दिखाओ _जरूर दिखाओ "
वह खूबसूरत, दुबला पतला लड़का बाड से परे हट गया। उसने अपने छोटे से शरीर को पीछे की ओर झुकाया ।और अपनी उंगलियों से जमीन को छुआ और अपनी टांगों को ऊपर की ओर उछाल कर हाथों के बल खड़ा हो गया। तब वह घूमने लगा, जैसे कोई लपट उसे झुलसा रही हो _वह अपनी बाहों और टांगों से खेल दिखाता रहा ।उसकी कमीज़ और पैंट के छेदों में से उसके दुबले पतले शरीर की भूरी खाल दिखाई दे रही थी। लगता था अगर एक बार फिर झुका तो यह पतली हड्डियां टूट जाएगी उसका पसीना आने लगा था ,एक बार फ़िर झुका,तो ये पतली हड्डियां चटककर टूट जाएगी। उसका पसीना चुने लगा था। उसकी कमीज पूरी तरह भीग चुकी थी ।हर खेल के बाद बच्चों की आंखों में ,बनावटी निर्जीव मुस्कुराहट लिए हुए ,झांककर देख लेता। कई एक तो उसकी नकल करने लगे थे ।
लेकिन अचानक ये मनोरंजक क्षण खत्म हो गए। लड़का अपनी कलाबाजी छोड़कर खड़ा हो गया और किसी अनुभवी कलाकार की सी नजर से बच्चों की ओर देखने लगा । अपना दुबला सा हाथ आगे फैलाकर वह बोला "अब मुझे कुछ दो! "बे सब खामोश थे। किसी ने पूछा "पैसे?"
" हां ,"लड़के ने कहा .
"यह अच्छी रही। पैसे के लिए ही करना था तो हम भी ऐसा कर सकते थे....." ।
लड़के हंसते हुए और गालियां बकते हुए खेतों की ओर दौड़ने लगे। दरअसल उनमें से किसी के पास पैसे थे भी नहीं और मेरे पास केवल 7 कोपैक थे। मैंने दो सिक्के उसकी धूल भरी हथेली पर रख दिए। लड़के ने उन्हें अपनी अंगुली से छुआ और मुस्कुराते बोला "धन्यवाद !"
वह जाने को मुड़ा, तो मैंने देखा कि उसकी कमीज की पीठ पर काले काले धब्बे पड़े हुए थे ।"रुको वह क्या है?"
वह रुका ,मुड़ा ,उसने मेरी ओर ध्यान से देखा और बड़ी शांत आवाज में मुस्कुराते हुए बोला "वह पीठ पर ?" ईस्टर के मौके पर एक मेले में ट्रैपिज करते हुए हम गिर पड़े थे पिता अभी तक चारपाई पर पड़े हैं ,पर मैं बिल्कुल ठीक हूं ।"
मैंने कमीज़ उठाकर देखा पीठ की खाल पर ,बाएं कंधे से लेकर जांघ तक, एक काला जख्म फैला हुआ था , जिस पर मोटी सख्त पपड़ी जम चुकी थी ।अब खेल दिखाते समय पपड़ी फट गई थी ।और वहां से गहरा लाल खून निकल आया था ।
"अब दर्द नहीं होता," उसने मुस्कुराते हुए कहा," अब दर्द नहीं होता..... बस, खुजली होती है....."
और बड़ी बहादुरी से ,जैसे कोई हीरो ही कर सकता है, मेरी आंखों में झांका और किसी बुजुर्ग की_ सी गंभीर आवाज में बोला," तुम क्या सोचते हो कि अभी मैं अपने लिए काम कर रहा था ।
कसम से नहीं !
मेरे पिता ....हमारे पास एक पैसा तक नहीं है और मेरे पिता बुरी तरह जख्मी है। इसलिए एक को तो काम करना ही पड़ेगा, साथ ही..... हम यहूदी हैं ना !हर आदमी हम पर हंसता है.... अच्छा अलविदा!"
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