आज का तथाकथित पढ़ा-लिखा शब्द और वैज्ञानिक समाज अगर देखा जाए तो सचमुच ही मानव सभ्यता का सबसे मूर्ख प्राणी है सुनने में बुरा लगे लेकिन आज सारी दुनिया इसी तकनीक और विज्ञान के पढ़े-लिखे मनुष्यों ने विनाश की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है अशुद्ध हवा पानी रह गई है न प्राकृतिक पर्यावरण स्वच्छ रह गया है और प्रदूषण अपने चरम शिखर पर है नकली खाद से धरती भी जहर बन गए हैं और पानी भी जहरीला हो गया यह कौन सी शिक्षा है और कौन सा पढ़ा लिखा समाज है
100 वर्ष पहले आज से 100 वर्ष पहले जानवर दूध लेने वाले आधे रह गए हैं दूध की खपत 100 गुना बढ़ गई है और मजे की बात यह है कि हर दुकान पर दूध दही मक्खन पनीर मच्छर लस्सी छेना खोवा कुंतल का कुंटल मौजूद है आप आर्डर कीजिए चाहे जितना 2 घंटे बाद हाजिर कभी सोचा है कि इतना सब आ कहां से रहा है
इसी इसी तरह बरसात की बात है आज से 100 वर्ष पहले वर्षा आज की अपेक्षा दोगुनी होती थी नदी नाला समुद्र ताल पोखर झील सभी एक हो जाते थे लेकिन वर्षा के 1 घंटे के अंदर सब कुछ साफ हो जाता था मुंबई जैसे पहाड़ पर बसे शहर में और पहाड़ों पर भी भयंकर बाढ़ आ रही है ऐसा क्यों है कभी सोचा आपने
इसका कारण हम आप हमारी पढ़ी लिखी वैज्ञानिक सभ्यता और अपने को टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ मानने वाली जनता है जहां पहले कई कई किलोमीटर तक नदियों का पानी निर्बाध बहता था वही अब 1 किलोमीटर के अंदर चारों ओर से सड़क और नहरों का जाल बिछा है जितने नी सी जगह थी सब मानव बस्तियों ने आबाद कर दिया है नदी के मुख्यधारा तक निर्माण करते हुए लोग पहुंच गए हैं चाहे जौनपुर में गोमती नदी का किनारा हो या प्रयागराज में गंगा का या पूरे भारत का हाल है मुंबई और पहाड़ों पर लोगों ने सारे गड्ढे ताल पोखर पाटकर वहां पर बड़ी-बड़ी बस्तियां बसा दिया तो पानी भरकर कहां जाए नतीजा दो-तीन घंटे की बारिश जल प्रलय जैसा दृश्य प्रस्तुत कर देती है
तीर्थ स्थानों और पर्यटन स्थलों पर भी यही हाल है ठोक के थोक मनुष्य चारपाई है दोपहिया 8 पहिया वाहन से हेलीकॉप्टर और जहाज से जा रहे हैं और हमेशा क्षमता से 20 से 100 गुना लोग वहां रहते हैं इसलिए प्रकृति पर्यावरण सब असंतुलित हो चुका है खाद्य श्रृंखला और पर्यावरण का पूरा चक्कर बिगड़ चुका है आसमान इतना प्रदूषित हो गया है कि ओजोन परत का छेद बढ़कर कई गुना हो गया है
दिन प्रतिदिन कल कारखाने जहरीले रसायनों की फैक्ट्रियां और उद्योग धंधे दो पहिया तीन पहिया चार पहिया वाहन जल थल नभ में चलने वाली पनडुब्बी जलयान युद्धपोत युद्धक विमान और जहाज बढ़ते चले जा रहे हैं फ्रिज एसी और बिजली से भोजन पकाने वाले ओवन और जितने भी आजकल आधुनिक आविष्कार हो रहे हैं सब के सब प्रकृति पर्यावरण को जहरीला बना कर उसे नष्ट भ्रष्ट कर रहे हैं सब कुछ उल्टा हो गया है और इसलिए मानव सभ्यता विनाश के कगार पर पहुंच गई है और आप कितना भी कर लो यह कुछ भी नियंत्रण नहीं होगा केवल संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका यूरोप में भारत में कागजी कार्यवाही होगी और जब पूरा विनाश हो जाएगा चेर्नोबिल की तरह तब लोग मानेंगे भोपाल शहर इसका एक सीधा सा उदाहरण है
जल्दी ही प्रकृति अपनी भयंकर विनाश लीला करके पर्यावरण और प्रकृति को संतुलन कर देगी मनुष्य के बस का कुछ नहीं है मनुष्य केवल भी का विनाश कर सकता है और प्रदूषण पैदा करके प्रकृत पर्यावरण को भीषण रूप से असंतुलित कर सकता है घर-घर में जेट पंप लग रहे हैं और पानी बचाने का उपदेश दिया जा रहा है पुणे और हैंडपंप समाप्त हो चुके हैं जितने भी उद्योग धंधे और मांस के व्यापार हो रहे हैं सब पानी की भयंकर खपत करने वाले हैं अभी देखो मानव कहां तक जाता है डॉ दिलीप कुमार सिंह
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