Friday, 2 September 2022

03 सितंबर 2022जहां दोनों किनारे मिल जाते हैं, उसी का नाम सत्य है। एक ऐसा होश आ जाए, जिसमें स्वप्न और संसार दोनों दूर न मालूम पड़ते हों ।

03 सितंबर 2022
जहां दोनों किनारे मिल जाते हैं, उसी का नाम सत्य है। एक ऐसा होश आ जाए, जिसमें स्वप्न और संसार दोनों दूर न मालूम पड़ते हों ।

 वही ठहरा हुआ झूला है। *जहां जागृत और स्वप्न के दोनों पलड़े मिल जाते हैं और उस बिंदु/जगह/स्थिति पर ही "सत्य" का अनुभव होता है इसके अतिरिक्त सब कल्पना है। इस तरह से हम बुद्धि को जागृत करके, सावधान रहकर, ध्यान की एक विधि को अपना सकते हैं। इसी विधि में जब हम कल्पना में अधिक डूब जाते हैं और मन उससे बाहर नहीं लौट पाता, तब हम अपने शरीर की हलन-चलन/धड़कन/संवेदना या फिर सांस का आश्रय लेकर अपने स्थूल शरीर की ओर लौट आयें तो कल्पनाजाल छूटने/टूटने लगता है। यद्यपि यह क्रिया बहुत ही आसान है, तब भी हमें करने में व्यवधान आता है। क्योंकि हमारा निरंतर निद्रा/बेहोशी/कल्पना में बह जाने का अभ्यास है। यह मशीनी अभ्यास हमें बार-बार अपनी ओर आविष्ट/आकृष्ट करने का प्रयास करता रहता है। फिर भी बिना मन में ग्लानि लाये, जैसे ही हमें हमारे खो जाने का अनुभव हो तो हम अपने होश को तुरंत वापिस अपनी सांस/हलनचलन/संवेदना/वाइब्रेशन पर लगा देते हैं तो फिर जल्दी ही भीतरी आकाश के साथ समरस होकर, वर्तमान क्षण पर स्थापित होने लगेंगें। ध्यान रहे कि विचारों का प्रहार/नशा बार-बार/कई बार हम पर आक्रमण करेगा, यदि हम उससे बिना लड़े ही, बिना अपनी शक्ति व्यर्थ किये ही, उसे ध्वस्त कर सकते हैं तो यह अति उत्तम अवस्था है और उसी शक्ति का सकारात्मक उपयोग कर सकते हैं। साथ ही, कल्पना/स्वप्न/संसार के मायाजाल (illusion) से मुक्त होकर सत्य के धरातल पर खड़े होने लगते हैं। जैसे-जैसे हम भीतर के रिक्त/आकाश स्थान में ठहरेंगें, वैसे-वैसे ही हम आत्म और परमात्म की ऐकत्व से भी परिचित होते चले जायेंगें।* सुप्रभात -आज का दिन शुभ व मंगलमय हो।

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