Monday, 28 November 2022

मुगल सेना को धूल चटाने वाले अहोम साम्राज्य के सेनापति लचित बरफुकन की जयंती पर प्रधानमंत्री ने यह जो कहा कि हमें स्वतंत्रता के बाद भी एक षड्यंत्र के तहत गुलामी का इतिहास पढ़ाया गया, वह कितना सही है, यह इससे यही सिद्ध होता है कि पहली बार इतने बड़े पैमाने पर असम के इस योद्धा का स्मरण किया जा रहा है!

👉 *पीढ़ियों तक पढ़ाया षड्यंत्रकारी इतिहास*...*बस अब नहीं*..... ❓

👉 *इतिहास लेखन*
👉 *मुगल सेना को धूल चटाने वाले अहोम साम्राज्य के सेनापति लचित बरफुकन की जयंती पर प्रधानमंत्री ने यह जो कहा कि हमें स्वतंत्रता के बाद भी एक षड्यंत्र के तहत गुलामी का इतिहास पढ़ाया गया, वह कितना सही है, यह इससे यही सिद्ध होता है कि पहली बार इतने बड़े पैमाने पर असम के इस योद्धा का स्मरण किया जा रहा है! आखिर इसके पहले लचित बरफुकन को इस तरह स्मरण क्यों नहीं किया गया.. ❓ कोई भी समझ सकता है कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि लचित बरफुकन और इन जैसे अन्य योद्धाओं को जानबूझकर न केवल विस्मृत किया गया, बल्कि इनमें से कुछ को तो इतिहास में भी स्थान नहीं दिया गया! यदि दिया भी गया तो एक साजिश के तहत उसे पाठ्यक्रम से बाहर रखा गया! यह किसी से छिपा नहीं कि भारत में इतिहास के नाम पर जो कुछ पढ़ाया जाता है, वह मूलत: दिल्ली का इतिहास है! इसमें भी मुगलों के इतिहास की बहुलता है! यह मानने के अच्छे- भले कारण है कि ऐसा एक पक्षीय इतिहास एक साजिश के तहत लिखा और पढ़ाया गया! इसके चलते देश उस गौरवशाली और उल्लेखनीय इतिहास से अनभिज्ञ रहा, जो देश के दूसरे हिस्सों में घटित हुआ*!!
  👉 *क्या यह किसी से छिपा है कि विदेशी और बर्बर आक्रमणकारियों को तहस-नहस करने वाले सुहेलदेव, मार्तंड वर्मा, ललितादित्य, जैसे वीरों के बारे में भारत की नई पीढ़ी मुश्किल से ही कुछ जानती है! इसी तरह चोल, चालूक्य, काकतीय, समेत दक्षिण भारत के अनेक प्रतापी वशो  की गाथा से भी हमारी पीढ़ी अनभिज्ञ ही अधिक है! राजा दाहिर जैसे शासक तो इतिहास में कहीं नजर ही नहीं आते! समस्या केवल यह नहीं कि हमें एक सीमित कालखंड का खास तरह का इतिहास पढ़ाया गया, बल्कि यह भी है कि ऐसा करते हुए ऐसे कुछ आक्रमणकारियों का महिमामंडन तक किया गया, जिन्होंने देश की अस्मिता और स्वाभिमान पर आघात किया! क्या इससे अधिक लज्जा की बात और कोई हो सकती है कि ऐसे कुछ आक्रमणकारियों के नाम पर देश की राजधानी की प्रमुख सड़कों का नामकरण भी किया गया. ❓ ऐसे नामकरण गुलामी के इतिहास को प्राथमिकता दिए जाने की पुष्टि करते हैं! कोई देश अपनी सभ्यता और संस्कृति के ऐतिहासिक नायक नायिकाओं का गर्व से स्मरण तभी कर सकता है! जब उन्हें इतिहास में समुचित स्थान दिया जाए! भारत का इतिहास भारतीयता की जैसी अनदेखी और उपेक्षा करता है, उसकी मिसाल मिलना कठिन है! यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने इतिहास लेखन की विसंगतियों का उल्लेख किया! इसके पहले गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि तोड़ मरोड़कर लिखे गए गलत इतिहास को सही करने से कोई नहीं रोक सकता! उचित यह होगा कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, क्योंकि इतिहास पर गौरव का  बोध  करके ही भविष्य को संवारने का काम सही तरह किया जा सकता है*!

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