Monday, 26 December 2022

ये क्या हो रहा है इस देश में? भगवान को तो पहले बांट दिया था, अब राष्ट्र की मेधाओं को भी बांट रहे हो?

ये क्या हो रहा है इस देश में? भगवान को तो पहले बांट दिया था, अब राष्ट्र की मेधाओं को भी बांट रहे हो?

जाट की बेटी ने पर्वत नापे, किसान की बेटी ने तैर कर समुंदर पार किया, राजपूत बेटे ने टॉप किया, रिक्शाचालक का बेटा आईएएस बना, मुस्लिम बेटी फाइटर पायलट बनीं, हरियाणा की बेटी ने गोल्ड जीता, हैदराबाद का बेटा चांदी लाया, दलित के बेटे ने बनाया एशियन रिकार्ड आदि आदि? ये हैं आज की सुर्खियां, बेटी बेटे भी देश के नहीं रहे जातियों, पेशों और प्रांतों के हो गए! सीधे से कहिए भारत का बेटा गोल्ड लाया, भारत के लाल ने परचम लहराया, देश की बेटी ने सबको पछाड़ा वगैरह!

बांटने का सिलसिला जारी है। परशुराम ब्राह्मणों के हो गए, अग्रसेन वैश्यों के, रैदास और वाल्मीकि दलितों के, कबीर बुनकर हो गए, प्रताप क्षत्रियों के और नानक सिक्खों के। कितना बांटेंगे। अभी तो घीसा पंथी किसके, गरीबदासी किसके, रविदासी किसके, मीरा किसकी, राधा किसकी आदि होना बाकी है। कितना बांटेंगे? कब तक बांटेंगे? कल शिवाजी, भगत सिंह, चंद्रशेखर, बिस्मिल, अब्दुल हमीद और अशफाकुल्ला को भी बांटोगे क्या?

और फिर राम कृष्ण को भी बांटने का इरादा है क्या? कोशिश तो यही है। डंके की चोट पर दावा है जिस दिन देश में जातीय जनगणना की मांग सफल हो गई, यह राजनीति भगवान को टुकड़ों में बांट देगी। देशवासियों के बीच सुनियोजित ढंग से अलगाव पैदा किया जा रहा है। भाषाई विवाद तो बहुत पुराना है। धार्मिक विवाद और भी बड़ा संकट है। क्षेत्रीय विवाद नए नए राज्य बनवाता जा रहा है। अब तो धर्मों में भी धर्म निकल आए हैं।

मुसलमानों में अंसारी, कुरेशी, पठान, शिया, सुन्नी, झोझा आदि तो सुने थे। अब एक नया शब्द आया है पसमांदा मुसलमान! ब्राह्मणों में गौड़, कान्यकुब्ज, सरयू पारी, सारस्वत, मैथिली आदि के मतभेद हैं। पंजाबियों में अरोड़ा और खत्री अलग अलग। राजपूतों में चौहान भी और खाकी चौहानों के मतभेद आदि आदि। और तो और माझा, द्वाबा, मेवाती आदि के मतभेद। क्या क्या गिनाएं। देखते ही देखते समाज को सुनियोजित ढंग से टुकड़ा टुकड़ा बांटने का षड्यंत्र चल रहा है।

मतलब कोई है जो टुकड़े टुकड़े गैंग की तरह भारत को खंड खंड देखना चाहता है। कौन है वो? सौ सवाल भी पूछिए, जवाब एक ही मिलेगा। वह है इकलौती राजनीति। माना कि राजनीति पहले से थी। परंतु अब राजनीति में नफ़रत मिल चुकी है। धीरे धीरे अलगाव का ज़हर मिलाया जा रहा है। अपनी घोर राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते, सत्ता की बेहिसाब भूख के चलते समाज को टुकड़ों में बांटा जा रहा है। इसे रोकना होगा।

यह काम न सरकार करेगी और न विपक्ष। भारतवासियों की एकता और अखंडता बहुत जरूरी है। तब तो और भी जब दो दुश्मन मौके की इंतजार में घात लगाए बैठे हों। टुकड़ों में मत बांटिए हमारे देशवासियों। उनके अरमानों के ही टुकड़े टुकड़े कर डालिए, जो हमें तोड़कर दुश्मन के हाथों देश को तोड़ने का ख़्वाब देख रहे हों।


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