[8/20, 3:42 PM] : सीआईए के गुप्त दस्तावेजों से खुलासा होता है कि एक तरफ जॉन केनेडी, अमेरिका के राष्ट्रपति जहां लोकतांत्रिक भारत को साम्यवादी चीन के मुकाबले परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनाना चाहते थे, तो दूसरी तरफ वामपंथी सोच रखने वाले पंडित नेहरु इसे लेकर जरा भी गंभीर नही थे।
नवंबर 1961 में प्रधानमंत्री नेहरू अमेरिका गये। नेहरू अपने साथ बेटी इंदिरा और अपने एक अन्य भाई ब्रजकुमार नेहरू को साथ ले गए, जिन्हें अमेरिका में भारत के नए राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया था।
गिलबर्थ (केनेडी व नेहरू के साथ बैठक में मौजूद व भारत मे तत्कालीन अमेरिकी राजदूत) ने अपनी डायरी में लिखा है कि नेहरू केनेडी के साथ बातचीत में किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नही कर रहे थे। प्रश्न दर प्रश्न वह एक दो शब्द या वाक्य बोलते थे। राष्ट्रपति केनेडी नेहरू के इस आचरण से बेहद निराश हुए। बाद में केनेडी ने गिलबर्थ से कहा कि उनके कार्यकाल में इससे बुरा दौरा किसी भी राष्ट्राध्यक्ष का नहीं रहा।
शीत युद्ध के दौर में जब नेहरू की पूरी विदेश नीति गुट निरपेक्षता की आड़ लेकर साम्यवादी दुनिया के पक्ष में दिख रही थी और जब नेहरू सोवियत संघ व चीन, दोनों के ही द्वारा विश्वासघात के शिकार हुए, उस वक्त अमेरिका का एक राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी अपने देश में विरोध झेलकर और अपने परंपरागत मित्र पाकिस्तान को अंधेरे में रखकर भारत को परमाणु शक्ति, सैन्य व आर्थिक रूप से मजबूत करने का निजी प्रयास कर रहा था। इसी कारण जॉन एफ केनेडी ने एक बार भारत का दौरा किया था किंतु नेहरू जी ने सोवियत संघ और चीन के साथ अपनी नजदीकियों को ऊपर रखते हुए जॉन एफ कैनेडी के प्रयासों को महत्वपूर्ण नहीं माना।
जब भारत पर चीनी हमले का गंभीर खतरा मंडरा रहा था, उस समय भारत के प्रधानमंत्री पंचशील सिद्धांतों के क्रियान्वयन के दिवास्वप्न में डूबे हुए थे जो उनकी रणनीतिक सूझबूझ की सफलता का तथ्यगत उदाहरण है।
यहीं कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति यह कहने तक पर मजबूर हुए कि उनके पूरे कार्यकाल में नेहरू के साथ हुई बैठक से खराब बैठक कभी नही हुई।
महाराजा रसगोत्रा ने लिखा है, "एक बात तो सत्य है कि भारत जॉन एफ केनेडी के परमाणु परीक्षण करने के प्रस्ताव को यदि मान लेता तो चीन 1962 में भारत पर हमले की बात स्वप्न में भी नही सोच सकता था।"
संदर्भ स्रोत: द सीआईए एंड द सिन्यो-इंडियन वार: ब्रुस राइडेल, हार्पर कॉलिन्स पब्लिशर्स।
चित्र: पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा जॉन एफ कैनेडी के सम्मान में दिए गये राजकीय भोज की तस्वीरें।
[8/20, 3:42 PM] +: विश्व इतिहास में एकलौती सच्ची "अमर प्रेम" कथा
हमने सुनी कहानी थी "हाड़ी रानी"
"सिसोदिया कुलभूषण, क्षत्रिय शिरोमणि महाराणा राजसिंह को रूपनगर की राजकुमारी का प्रणाम। महाराज को विदित हो कि मुगल औरंगजेब ने मुझसे विवाह का आदेश भेजा है। आप वर्तमान समय में क्षत्रियों के सर्वमान्य नायक हैं। आप बताएं, क्या पवित्र कुल की यह कन्या उसका वरण करे? क्या एक राजहंसिनी एक गिद्ध के साथ जाए?
महाराज! मैं आपसे अपने पाणिग्रहण का निवेदन करती हूँ। मुझे स्वीकार करना या अस्वीकार करना आपके ऊपर है, पर मैंने आपको पति रूप में स्वीकार कर लिया है। अब मेरी रक्षा का भार आपके ऊपर है। आप यदि समय से मेरी रक्षा के लिए न आये तो मुझे आत्महत्या करनी होगी। अब आपकी..."
मेवाड़ की राजसभा में रूपनगर के राजपुरोहित ने जब पत्र को पढ़ कर समाप्त किया तो जाने कैसे सभासदों की कमर में बंधी सैकड़ों तलवारें खनखना उठीं।
महाराज राजसिंह अब प्रौढ़ हो चुके थे। अब विवाह की न आयु बची थी न इच्छा, किन्तु राजकुमारी के निवेदन को अस्वीकार करना भी सम्भव नहीं था। वह प्रत्येक निर्बल की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझने वाले राजपूतों की सभा थी। वह अपनी प्रतिष्ठा के लिए सैकड़ों बार शीश चढ़ाने वाले क्षत्रियों की सभा थी। फिर एक क्षत्रिय बालिका के इस समर्पण भरे निवेदन को अस्वीकार करना कहाँ सम्भव था! पर विवाह...? महाराणा चिंतित हुए।
महाराणा मौन थे पर राजसभा मुखर थी। सब ने सामूहिक स्वर में कहा, "राजकुमारी की प्रतिष्ठा की रक्षा करनी ही होगी महाराज! अन्यथा यह राजसभा भविष्य के सामने सदैव अपराधी बनी कायरों की भाँती खड़ी रहेगी। हमें रूपनगर कूच करना ही होगा।"
महाराणा ने कुछ देर सोचने के बाद कहा, "हम सभासदों की भावना का सम्मान करते हैं। राजकुमारी की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, और हम अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटेंगे। राजकुमारी की रक्षा के लिए आगे आने का सीधा अर्थ है औरंगजेब से युद्ध करना, सो सभी सरदारों को युद्ध के लिए तैयार होने का सन्देश भेज दिया जाय। हम कल ही रूपनगर के लिए कूच करेंगे।"
महाराणा रूपनगर के लिए निकले, और इधर औरंगजेब की सेना उदयपुर के लिए निकली। युद्ध अब अवश्यम्भावी था।
सलूम्बर के सरदार रतन सिंह चुण्डावत के यहाँ जब महाराणा का संदेश पहुँचा, तब रतन सिंह घर की स्त्रियों के बीच नवविवाहिता पत्नी के साथ बैठे विवाह के बाद चलने वाले मनोरंजक खेल खेल रहे थे। उनके विवाह को अभी कुल छह दिन हुए थे। उन्होंने जब महाराणा का सन्देश पढ़ा तो काँप उठे। औरंगजेब से युद्ध का अर्थ आत्मोत्सर्ग था, यह वे खूब समझ रहे थे। खेल रुक गया, स्त्रियाँ अपने अपने कक्षों में चली गईं। सरदार रतन सिंह की आँखों के आगे पत्नी का सुंदर मुखड़ा नाचने लगा। उनकी पत्नी बूंदी के हाड़ा सरदारों की बेटी थी, अद्भुत सौंदर्य की मालकिन...
प्रातः काल मे मेघों की ओट में छिपे सूर्य की उलझी हुई किरणों जैसी सुंदर केशराशि, पूर्णिमा के चन्द्र जैसा चमकता ललाट, दही से भरे मिट्टी के कलशों जैसे कपोल, अरुई के पत्ते पर ठहरी जल की दो बड़ी बड़ी बूंदों सी आँखे, और उनकी रक्षा को खड़ी आल्हा और ऊदल की दो तलवारों सी भौहें, प्रयागराज में गले मिल रही गङ्गा यमुना की धाराओं की तरह लिपटे दो अधर, नाचते चाक पर कुम्हार के हाथ में खेलती कच्ची सुराही सी गर्दन... ईश्वर ने हाड़ी रानी को जैसे पूरी श्रद्धा से बनाया था। सरदार उन्हें भूल कर युद्ध को कैसे जाता?
रतन सिंह ने दूत को विश्राम करने के लिए कहा और पत्नी के कक्ष में आये। सप्ताह भर पूर्व वधु बन कर आई हाड़ी रानी से महाराणा का संदेश बताते समय बार बार काँप उठते थे रतन सिंह, पर रानी के चेहरे की चमक बढ़ती जाती थी। पूरा सन्देश सुनने के बाद सोलह वर्ष की हाड़ा राजकुमारी ने कहा, "किसी क्षत्राणी के लिए सबसे सौभाग्य का दिन वही होता है जब वह अपने हाथों से अपने पति के मस्तक पर तिलक लगा कर उन्हें युद्ध भूमि में भेजती है। मैं सौभाग्यशाली हूँ जो विवाह के सप्ताह भर के अंदर ही मुझे यह महान अवसर प्राप्त हो रहा है। निकलने की तैयारी कीजिये सरदार! मैं यहाँ आपकी विजय के लिए प्रार्थना और आपकी वापसी की प्रतीक्षा करूंगी।"
रतन सिंह ने उदास शब्दों में कहा, "आपको छोड़ कर जाने की इच्छा नहीं हो रही है। युद्ध क्षेत्र में भी आपकी बड़ी याद आएगी! सोचता हूँ, मेरे बिना आप कैसे रहेंगी।"
रानी का मस्तक गर्व से चमक उठा था। कहा, "मेरी चिन्ता न कीजिये स्वामी! अपने कर्तव्य की ओर देखिये। मैं वैसे ही रहूंगी जैसे अन्य योद्धाओं की पत्नियाँ रहेंगी। और फिर कितने दिनों की बात ही है, युद्ध के बाद तो पुनः आप मेरे ही संग होंगे न!"
रतन सिंह ने कोई उत्तर नहीं दिया। वे अपनी टुकड़ी को निर्देश देने और युद्ध के लिए कूच करने की तैयारी में लग गए। अगली सुबह प्रस्थान के समय जब रानी ने उन्हें तिलक लगाया तो रतन सिंह ने अनायास ही पत्नी को गले लगा लिया। दोनों मुस्कुराए, फिर रतन सिंह निकल गए।
तीसरे दिन युद्ध भूमि से एक दूत रतन सिंह का पत्र लेकर सलूम्बर पहुँचा। पत्र हाड़ी रानी के लिए था। लिखा था,
"आज हमारी सेना युद्ध के पूरी तरह तैयार खड़ी है। सम्भव है दूसरे या तीसरे दिन औरंगजेब की सेना से भेंट हो जाय। महाराणा रूपनगर गए हैं सो उनकी अनुपस्थिति में राज्य की रक्षा हमारे ही जिम्मे है। आपका मुखड़ा पल भर के लिए भी आँखों से ओझल नहीं होता है। आपके निकट था तो कह नहीं पाया, अभी आपसे दूर हूँ तो बिना कहे रहा नहीं जा रहा है। मैं आपसे बहुत प्रेम करता हूँ। आपका, सरदार रतन सिंह चूंडावत।"
रानी पत्र पढ़ कर मुस्कुरा उठीं। किसी से स्वयं के लिए यह सुनना कि "मैं आपको बहुत प्रेम करता हूँ" भाँग से भी अधिक मता देता है। रानी ने उत्तर देने के लिए कागज उठाया और बस इतना ही लिखा, "आपकी और केवल आपकी..."
पत्रवाहक उत्तर ले कर चला गया। दो दिन के बाद पुनः पत्रवाहक रानी के लिए पत्र ले कर आया। इसबार रतन सिंह ने लिखा था, "उस दिन के आपके पत्र ने मदहोश कर दिया है। लगता है जैसे मैं आपके पास ही हूँ। हमारी तलवार मुगल सैनिकों के सरों की प्रतीक्षा कर रही है। कल राजकुमारी का महाराणा के साथ विवाह है। औरंगजेब की सेना भी कल तक पहुँच जाएगी। औरंगजेब भड़का हुआ है, सो युद्ध भयानक होगा। मुझे स्वयं की चिन्ता नहीं, केवल आपकी चिन्ता सताती है।"
रानी ने पत्र पढ़ा, पर मुस्कुरा न सकीं। आज उन्होंने कोई उत्तर भी नहीं भेजा। पत्रवाहक लौट गया। अगले दिन सन्ध्या के समय पत्रवाहक पुनः पत्र लेकर उपस्थित था। रानी ने उदास हो कर पत्र खोला। लिखा था, "औरंगजेब की सेना पहुँच चुकी। प्रातः काल मे ही युद्ध प्रारम्भ हो जाएगा। मैं वापस लौटूंगा या नहीं, यह अब नियति ही जानती है। अब शायद पत्र लिखने का मौका न मिले,सो आज पुनः कहता हूँ, मैंने अपने जीवन मे सबसे अधिक प्रेम आपसे ही किया है। सोचता हूँ, यदि युद्ध में मैं वीरगति प्राप्त कर लूँ तो आपका क्या होगा। एक बात पूछूँ, यदि मैं न रहा तो क्या आप मुझे भूल जाएंगी? आपका, रतन सिंह।"
हाड़ा रानी गम्भीर हुईं। वे समझ चुकीं थीं कि रतन सिंह उनके मोह में फँस कर अपने कर्तव्य से दूर हो रहे हैं। उन्होंने पल भर में ही अपना कर्तव्य निश्चित कर लिया। उन्होंने सरदार रतन सिंह के नाम एक पत्र लिखा, फिर पत्रवाहक को अपने पास बुलवाया। पत्रवाहक ने जब रानी का मुख देखा तो काँप उठा। शरीर का सारा रक्त जैसे रानी के मुख पर चढ़ आया था, केश हवा में ऐसे उड़ रहे थे जैसे आंधी चल रही हो। सोलह वर्ष की लड़की जैसे साक्षात दुर्गा लग रही थी। उन्होंने गम्भीर स्वर में पत्रवाहक से कहा, "मेरा एक कार्य करोगे भइया?"
पत्रवाहक के हाथ अनायास ही जुड़ गए थे। कहा, "आदेश करो बहन।"
"मेरा यह पत्र और एक वस्तु सरदार तक पहुँचा दीजिये।"
पत्रवाहक ने हाँ में सर हिलाया। रानी ने आगे बढ़ कर एक झटके से उसकी कमर से तलवार खींच ली, और एक भरपूर हाथ अपनी ही गर्दन पर चलाया। हाड़ी रानी का शीश कट कर दूर जा गिरा। पत्रवाहक भय से चिल्ला उठा, उसके रोंगटे खड़े गए थे।
अगले दिन पत्रवाहक सीधे युद्धभूमि में रतन सिंह के पास पहुँचा और हाड़ी रानी की पोटली दी। रतन सिंह ने मुस्कुराते हुए लकड़ी का वह डब्बा खोला, पर खुलते ही चिल्ला उठे। डब्बे में रानी का कटा हुआ शीश रखा था। सरदार ने जलती हुई आँखों से पत्रवाहक को देखा, तो उसने उनकी ओर रानी का पत्र बढ़ा दिया। रतन सिंह ने पत्र खोल कर देखा। लिखा था,
"सरदार रतन सिंह के चरणों में उनकी रानी का प्रणाम। आप शायद भूल रहे थे कि मैं आपकी प्रेयसी नहीं पत्नी हूँ। हमने पवित्र अग्नि को साक्षी मान कर फेरे लिए थे सो मैं केवल इस जीवन भर के लिए ही नहीं, अगले सात जन्मों तक के लिए आपकी और केवल आपकी ही हूँ। मेरी चिन्ता आपको आपके कर्तव्य से दूर कर रही थी, इसलिए मैं स्वयं आपसे दूर जा रही हूँ। वहाँ स्वर्ग में बैठ कर आपकी प्रतीक्षा करूँगी। रूपनगर की राजकुमारी के सम्मान की रक्षा आपका प्रथम कर्तव्य है, उसके बाद हम यहाँ मिलेंगे। एक बात कहूँ सरदार? मैंने भी आपसे बहुत प्रेम किया है। उतना, जितना किसी ने न किया होगा।"
रतन सिंह की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। वे कुछ समय तक तड़पते रहे, फिर जाने क्यों मुस्कुरा उठे। उनका मस्तक ऊँचा हो गया था, उनकी छाती चौड़ी हो गयी थी। उसके बाद तो जैसे समय भी ठहर कर रतन सिंह की तलवार की धार देखता रहा था। तीन दिन तक चले युद्ध में राजपूतों की सेना विजयी हुई थी, और इस युद्ध मे सबसे अधिक रक्त सरदार रतन सिंह की तलवार ने ही पिया था। वह अंतिम सांस तक लड़ा था। जब जब शत्रु के शस्त्र उसका शरीर छूते, वह मुस्कुरा उठता था। एक एक करके उसके अंग कटते गए, और अंत मे वह अमर हुआ।
रूपनगर की राजकुमारी मेवाड़ की छोटी रानी बन कर पूरी प्रतिष्ठा के साथ उदयपुर में उतर चुकी थीं। राजपूत युद्ध भले अनेक बार हारे हों, प्रतिष्ठा कभी नहीं हारे। राजकुमारी की प्रतिष्ठा भी अमर हुई।
महाराणा राजसिंह और राजकुमारी रूपवती के प्रेम की कहानी मुझे ज्ञात नहीं। मुझे तो हाड़ी रानी का मूल नाम भी नहीं पता। हाँ! यह देश हाड़ा सरदारों की उस सोलह वर्ष की बेटी का ऋणी है, यह जानता हूँ मैं।
नमन कोटिश:नमन!
[8/20, 3:43 PM] +: जालसाजो ,ठग और धोखेबाजो Ecosystem पर मोदी सरकार की तगड़ी चोट, वह भी बिना पानी पिलाए.
केन्द्र सरकार ने येसे "52 लाख" फोन नंबरों को, बंद किया है. जिन्होंने जाली कागज के आधार पर नंबर लिए थे !! 67,000 येसे डीलर प्रतिबंधित किए गए हैं जिन्होंने एसे सिम कार्ड बाँटे इनमें से 300 प्राथमिकियाँ रजिस्टर की गई हैं, और 66,000 WhatsApp 'अकाउंट ब्लॉक' किए गए हैं. इनमें से संभवतः जामताडा और मेवात के हजारों "सायबर फ्रॉड" वाले लोग भी होंगे. सरकार की यह कार्रवाई देश की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. आप लोग सोचिए कि '52 लाख' नंबरों से किस स्तर का फ्रॉड चल रहा होगा, व देश विरोधी Propaganda चल रहे होंगे और पुलिस द्वारा ऐसे लोगों तक पहुँचना कितना दुष्कर होता होगा, क्योंकि इस तरह के लोग, केवल एक फोन नहीं, बल्कि कई फोन और कई नंबर प्रयोग करते होंगे.
इन लोगों तक 'पहुँचने में' सरकार को काफी समय लगा होगा. इस कार्रवाई से उनका Ecosystem हिला हुआ है और उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि हर तरफ़ से उन्हें चोट किया जा रहा है. नूँह-मेवात हो या जामताड़ा, बिना 'संरक्षण' के ये सब नहीं हो सकता. इसलिए भी उन लोगों में बौखलाहट ज़्यादा है...
आप सोचीये की जामताड़ा मेवात और नूंह में कौन हो गए ऐसा करने वाले
आपको तो बस बिना सोचे समझे बिना अपने बुद्धि का उपयोग किए हुए एक ही शब्द कहना है
मोदी तो मौलाना है जी
[8/20, 3:43 PM] साल 1915-1920 के दौरान अंडमान की सेल्युलर जेल में जिसे काला पानी कहा जाता था वहां भविष्य के हिन्दू महासभा के दो अध्यक्ष एक साथ उम्र कैद काट रहे थे ......
इनमें पहला नाम विनायक दामोदर सावरकर का था जो 50 साल की सजा लिए काला पानी में 1910-11 से थे और दूसरा नाम था भाई परमानंद का जो आगे चल कर 1933 में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए ...!
तो वीर सावरकर के बारे में तो हम फिर थोड़ा बहुत जानते हैं लेकिन 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हमें एक बार भाई परमानंद का जीवन उठा कर देखना चाहिए ....
औरंगजेब के खिलाफ दिल्ली के चंदनी चौक में गुरू तेगबहादुर जी के साथ बलिदान देने वाले भाई मतिदास जी की गौरवशाली वंश परंपरा में झेलम जिले के ब्राह्मण परिवार में भाई परमानंद का जन्म हुआ। वो बचपन से ही आर्य समाज के संपर्क में आ गए। आर्य समाज का प्रचार करने के लिए 1905 में दक्षिण अफ्रीका गए जहां गांधी जी से मिले और वहां से बाद में लंदन में चले गए जहां उनका संपर्क इंडिया हाउस में विनायक दामोदर सावरकर और उनके साथी लाला हरदयाल से हुआ। दो साल बाद अंग्रेजों ने वीर सावरकर को 50 साल की सजा देकर काला पानी भेज दिया लेकिन लाला हरदयाल और भाई परमानंद अमेरिका चले गए जहां उन्होंने गदर पार्टी की शुरूआत की ....!
1913 में वो भारत लौटे और पैशावर में गदर पार्टी के भविष्य के विद्रोह के लिए काम शुरू कर दिया। करतार सिंह सराबा, विष्णु गणेश पिंगले को साथ जोड़कर उन्होंने पैशावर में विद्रोह की योजना रची लेकिन विस्फोट से ठीक पहले 25 फरवरी 1915 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। करतार सिंह सराबा (जिन्हें भगत सिंह अपना आदर्श मानते थे) और विष्णु गणेश पिंगले को फांसी की सजा दी गई लेकिन भाई परमानंद को उम्र कैद देकर काला पानी भेज दिया गया। वैसे ही जैसे मदन लाल ढींगरा को फांसी हुई लेकिन सावरकर को दो उम्र कैद देकर काला पानी भेज दिया गया तो इस तरह 1915-20 तक भाई परमानंद काला पानी में रखा गया जहां के अपने अनुभवों पर उन्होंने एक किताब मेरी आपबीती लिखी ....!
यहां उनके पुराने नेता वीर सावरकर पहले से थे। 1920 में दोनों वीर सावरकर और भाई परमानंद काला पानी से रिहा हुए जिसके बाद सावरकर को 1937 तक रत्नागिरी में नजरबंदी में रखा गया इधर भाई परमानंद वापस लाहौर चले गए जहां लाला लाजपत राय ने उन्हें अपने नेशनल कॉलिज के कमान सौंप दी। इसी कालेज के पढ़ने वाले छात्रों भगत सिंह और सुखदेव ने आगे चलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया ...!
1909 में लाला लाजपत राय को लिख पत्र में भाई परमानंद ने लिखा कि अगर सिंध से पश्चिमी क्षेत्र की स्थिति नहीं सुधरी तो हिन्दुओं को निकाल कर यहां इस्लामिक देश बन जाएगा .....
बिल्कुल ये ही बात 1924 में लाला हरदयाल ने अपने दो पत्रों में लिखी। 1930 में ही उन्होंने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि मुस्लिम नेताओं का अन्तिम उद्देश्य मातृभूमि का विभाजन कर पाकिस्तान का निर्माण करना है। उन्होंने जनता से अपील की कि कांग्रेसी नेताओं पर विश्वास न करो, ये किसी दिन विश्वासघात कर देश का विभाजन करायेंगे ....!
आगे चलकर 1930 के दशक में भाई परमानंद कांग्रेस की तुष्टिकरणवादी राजनीतिक के मुखर आलोचक हो गए और 1933 में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए जिसका आगे चलकर 1937 में वीर सावरकर ने नेतृत्व किया। बाद में बता दिया गया कि विभाजन की बात सबसे पहले सावरकर ने 1937 में की थी जबकि उसका भविष्यवाणी भाई परमानंद 1909 में ही कर चुके थे और इसके बाद 1947 विभाजन की त्रासदी देखने और अपने शहर कस्बों को भारत से कटकर पाकिस्तान बनता देखते हुए उसी दुख में उनका स्वर्गवास हो गया। उनके बेटे भाई महावीर आगे चलकर जनसंघ से सांसद चुने गए लेकिन सावरकर या उनके परिवार से जुड़ा कोई व्यक्ति राजनीति में नहीं आया लेकिन उनका चित्र जरूर कांग्रेसी चित्कारों और विरोध के बावजूद संसद भवन में लगाया गया ....!
इस तरह हिन्दू महासभा के दो अध्यक्ष एक समय में एक साथ काला पानी में कोल्हू चलाने की निर्मम सजा काट रहे थे। इनमें वीर सावरकर के बड़े भाई गणेश सावरकर का नाम औऱ जोड़ लें तो ये तीन हो जाते हैं ....!
फिर 70 साल बता दिया कि हिन्दू राष्ट्रवादियों का स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं है
असली आजादी की लड़ाई उन्होंने लड़ी जिन्होंने इलाहाबाद की नैनी की जेल में घर का पका खाना खाया और पुणे अगा खां महल में नजरबंदी काटी ....
“एक शब्द में इतना कह देना जरूरी है कि पंजाब में खालसा राज्य स्थापित करके सीमा-प्रान्त की तमाम पठान जातियों को अपने अधीन करना और अफ़गानिस्तान के पठानों को कई बार हरा देना, जो कि हमारी जाति के इतिहास में अचम्भा समझा जाता है, जाट जाति के वीरों का ही काम था। इस देश में क्षत्रिय के कर्त्तव्य का जाटों ने किसी से कम पालन नहीं किया है ...!”
भाई परमानंद
(तस्वीर में वीर सावरकर के साथ भाई परमानंद हैं)
नोट_""जैसे कोई हिंदू मदरसे में नहीं पढ़ा सकता, वैसे ही कोई मुसलमान परम्परागत विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ा सकता""
श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय भारत की राजधानी दिल्ली स्थित एक विश्वविद्यालय है। वर्तमान कुलपति प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक हैं। 👆इनके द्वारा लिया गया मूर्खता पूर्ण निर्णय भारत विरोधी हिन्दु राष्ट्रविरोधी सनातन की परम्परा को कलंकित करने वाला काला कलुषित निर्णय।
श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय भारत की राजधानी दिल्ली स्थित एक परम्परागत संस्कृत विश्वविद्यालय है। जिसमे संस्कृत शिक्षा विभाग मुस्लिम यासीन खान की नियुक्ति सहायक अध्यापक पद पर की गयी है यह एक कलुषित मूर्खता वाला निर्णय कुलपति के द्वारा लिया गया है ।
यह निर्णय ऋषि परम्परा के साथ घोर अपराध है क्षमा करने योग्य नही है ।
संस्कृत शिक्षा विभाग में यासीन खान किस मानसिक्ता के साथ हिन्दु सनातन परम्परा के छात्रों को ज्ञान देगी । क्यों संस्कृत शिक्षा विभाग छात्रों को राष्ट्रवादी सर्वांगीण विकास के लिए संस्कृत साहित्य के उद्धरण देने पड़ेंगे तब मुस्लिम यासीन खान के धर्म में तो सारे संस्कृत साहित्य का नाम लेना ही ☪️"""हराम""" ☪️है यहाँ तक कि भारत माता या बन्दे मातरम कहना तक हराम है तब कक्षा में उद्धरण देने कुलपति जी आइगें जब ""यासीन खान"" छात्रों को पढ़ा रही होंगी ।
कुलपति जी यह सुन लो "एक मुस्लिम हमें हमारा धर्म नहीं सिखा सकता हमारे धर्म शास्त्रों के उद्धरण नही दे सकता "" क्योंकि उनके यहाँ सब हराम है क्या यह गोरखपुर में पहले नही सुना था। यह कदापि सहन नही होगा यह तो सनातन संस्कृति की कमर तोड़ना रीढ़ की हड्डी तोड़ने वाला कलुषित निर्णय है ।
जैसे कोई हिंदू मदरसे में नहीं पढ़ा सकता, वैसे ही कोई मुसलमान गुरुकुल में नहीं पढ़ा सकता क्योकि ८०/ छात्र गुरुकुल से विश्वविद्यालय में पढ़ने आते है आप सनातनी छात्र को मुस्लिम मानसिक्ता वाली यासीन खान से गुरुकुल के छात्रों को शिक्षित कराना चाहते भारत को फिर से मुस्लिम मानसिक्ता थोपना चाहते हो ।
जैसे कोई हिंदू मदरसे में नहीं पढ़ा सकता, वैसे ही कोई मुसलमान गुरुकुल में नहीं पढ़ा सकता। यह परम्परागत विश्वविद्यालय है। किसी गैर-हिन्दू को प्रवेश की अनुमति नहीं देता है।
हमारा गुरुकुल गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करता है, जहां हम अपने गुरु के पैर छूते हैं और हवन में भाग लेते हैं। हम सहायक अध्यापक यासीन खान के पैर नहीं छू सकते । क्योंकि वह एक मुस्लिम हैं। परंपराओं का पालन करना हमारे लिए बहुत जरूरी है। हम ऋषि परम्परा के अनुगामी है संस्कृत देववाणी है देवता शब्द बोलना मुस्लिम अध्यापक यासीन खान को हराम है शैतान है।
यह भ्रष्टाचार का स्पष्ट संकेत है. कथित भ्रष्टाचार से ध्यान भटकाने के लिए ही पूरे मामले को हिंदू-मुस्लिम एंगल दे दिया गया है। बेवजह हिंदुओं को बदनाम किया जा रहा है।
यह कलंकित कलुषित अपवित्र करने वाला निर्णय कुलपति प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक हैं। यह ग़लत है ग़लत है ग़लत है क्या आपको कोई सनातनी छात्र नही मिला नियुक्ति के लिए।
☪️☪️❌❌❌❌ चाँद मियां कुलपति
निवेदन- समस्त सनातनी राष्ट्रवादी संगठनों तथा भारत सरकार शिक्षा मंत्रालय श्रीमान प्राधानमन्त्री जी तथा वर्तमान सरकार के सभी मुख्यियाओं से निवेदन करता हूं इस निर्णय का संज्ञान लिया जाए इस चाँद मियां कुलपति को शीघ्रातिशीघ्र पद से हटाया जाए।❌❌❌
नोट_"" इस विज्ञप्ति को इतना शेयर करें कि इस मुस्लिम मानसिक्ता वाले व्यक्ति को सनातनी समाज के समाने कलुषित किया जाए""
[8/20, 7:04 PM] +91 खालि!स्तान की मांग पर इन्दिरा गांधी ने जान दे दी, फिर क्यों गांधी परिवार पर देश के टुकड़े करने का इल्ज़ाम लगता है ?*
*किस भ्रम में हो आप ?*
*पंजाब में भिंडरावाले को किसने खड़ा किया था ? और इंद्रा ने कब खालिस्तान के कारण जान "दी" थी?*
*👉अगर आपकी स्मृति कमजोर नहीं है तो आपको याद होगा की इंदिरा गाँधी,...... करपात्री जी महाराज के पास पीएम बनने का आशीर्वाद लेने गई थी....... क्योंकि करपात्री जी महाराज का आशीर्वाद कभी निष्फल नहीं जाता था।*
*👉👉तब करपात्री जी ने कहा था कि मैं आशीर्वाद तो दे दूँगा लेकिन मेरी एक शर्त है कि पीएम बनते ही सबसे पहले गो हत्या के विरुद्ध कानून बना कर गौ हत्या बंद करनी होगी,*
*इंदिरा जी ने वादा किया कि पीएम बनते ही सबसे पहला कानून गौ हत्या के विरुद्ध बनाऊँगी और देश में गौ हत्या बिलकुल बंद कर दूँगी। करपात्री जी महाराज के आशीर्वाद से इंदिरा गाँधी पीएम बनी।*
इसके करीब दो महीने बाद करपात्री जी महाराज इंदिरा जी से मिले और उनका वादा याद दिला कर गौ हत्या के विरुद्द कानून बनाने के लिए कहा तो *इंदिरा जी ने कहा कि महाराज जी अभी तो मैं नई नई हूँ, कुछ समय दीजिए। कुछ समय बाद करपात्री जी फिर गए और कानून की मांग की लेकिन इंदिरा ने फिर टाल दिया।*
*कई बार मिलने और वादा याद दिलाने के बाद भी जब इंदिरा ने गौ हत्या बंद नहीं की, कानून नहीं बनाया तो........ 7 नवम्बर 1966, उस दिन कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी,*
*जिसे हम-आप..... गोपाष्ठमी नाम से जानते हैं, को देश का संत समाज, शंकराचार्य, अपने छत्र आदि छोड़ कर पैदल ही, ने आम जनता के साथ, गायों को आगे आगे करके संसद कूच किया, करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय के सातों पीठों के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, मध्व संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज के प्रतिनिधि, सिखों के निहंग व हजारों की संख्या में मौजूद नागा साधुओं को पंडित लक्ष्मीनारायण जी चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे।*
*लालकिला मैदान से आरंभ होकर नई सड़क व चावड़ी बाजार से होते हुए पटेल चौक के पास से संसद भवन पहुंचने के लिए इस विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में अपने घरों से लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे। हर गली फूलों का बिछौना बन गया था।*
यह हिंदू समाज के लिए सबसे बड़ा ऐतिहासिक दिन था। इतने विवाद और अहं की लड़ाई होते हुए भी सभी शंकराचार्य और पीठाधिपतियों ने अपने छत्र, सिंहासन आदि का त्याग किया और पैदल चलते हुए संसद भवन के पास मंच पर समान कतार में बैठे।
*उसके बाद से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चौक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहा था। कम से कम 10 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी, जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग गो हत्या बंद कराने के लिए कानून बनाने की मांग लेकर संसद के समक्ष जुटे थे। उस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे।*
*इस सिंहनाद को देख कर इंद्रा ने सत्ता के मद में चूर होकर संतों, साधुओं, गायों और जनता पर अंधाधुंध गोलियों की बारिश करवा दी, हजारों गाय, साधु, संत और आमजन मारे गए। गोरक्षा महाभियान समिति के तत्कालीन मंत्रियों में से एक मंत्री और पूरी घटना के गवाह, प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक आचार्य सोहनलाल रामरंग के अनुसार इस गोलीबारी में कम से कम 10 हजार लोग मारे गए थे। बड़ी त्रासदी हो गई थी और इंदिरा गाँधी के लिए इसे दबाना जरूरी था।*
*ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिंदा-सभी को उसमें ठूंसा जाने लगा। जिन घायलों के बचने की संभावना थी, उनकी भी ट्रक में लाशों के नीचे दबकर मौत हो गई। आखिरी समय तक पता ही नहीं चला कि सरकार ने उन लाशों को कहां ले जाकर फूंक डाला या जमीन में दबा डाला। पूरे शहर में कर्फ्यू लागू कर दिया,*
*तब करपात्री जी महाराज ने मारी हुई गायों के गले से लिपट कर रोते हुए कहा था कि "हम तो साधु हैं, किसी का बुरा नहीं करते लेकिन तूने माता समान निरपराध गायों को मारा है, जा इसका फल तुझे भुगतना पड़ेगा, मैं श्राप देता हूँ कि एक दिन तेरी देह भी इसी प्रकार गोलियों से छलनी होगी और तेरे कुल और दल का विनाश करने के लिए मैं हिमालय से एक ऐसा तपस्वी भेजूँगा जो तेरे दल और कुल का नाश करेगा"।*
*जिस प्रकार करपात्री जी महाराज का आशीर्वाद सदा सफल ही होता था उसी प्रकार उनका श्राप भी फलीभूत होता था।*
*इस घटना की चर्चा गावँ गावँ में बच्चे बच्चे की जुबान पर थी और सभी इंद्रा को गालियां, बददुआएं दे रहे थे कि "हत्यारी ने गायों को मरवा दिया इसका भला नहीं होगा, भगवान करे ये भी इसी प्रकार मरे। भगवान इसका दंड जरूर देंगे"।*
अब इसे संयोग कहेंगे या करपात्री जी महाराज का श्राप कि इंद्रा का शरीर ठीक गोपाष्टमी के दिन उसी प्रकार गोलियों से चालनी हुआ जैसे करपात्री जी महाराज ने श्राप दिया था और अब नरेंद्र दामोदर दास मोदी के रूप में वह तपस्वी भी मौजूद है जो कांग्रेस का विनाश कर रहा है और जिसका खुला आव्हान है "कांग्रेस मुक्त भारत"।
*आपको शायाद पता होगा कि मोदी ने लगभग 6 साल हिमालय में तपस्या की हुई है और वे भगवान शंकर के अनन्य भक्त है।*
*अब आप खुद सोचिये क्या ये संयोग है ?*
*1- संजय गांधी मरे आकाश में तिथि थी गोपाष्टमी*
*2- इन्दिरा गाँधी मरी आवास में तिथि थी गोपाष्टमी*
*3- राजीव गाँधी मरे मद्रास में तिथि थी गोपाष्टमी*
अब आप सोच कर बताइए कि क्या इंदिरा गाँधी ने वास्तव में खालिस्तान के लिए जान दी थी ?
[8/20, 9:19 PM] +:
मोदी के प्रति ईर्ष्या की अग्नि में जलते
कांग्रेसी रोते रोते ही दुनिया से उठ जाएंगे -
जयराम रमेश याद रहे -
मोदी की वजह से राहुल गांधी
अपने Event Management
करता फिरता है -
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति ईर्ष्या की अग्नि में इस कदर जल रहे हैं कांग्रेस के नेता कि जिसकी कोई सीमा नहीं है - सभी ने जैसे Specialized course किए हुए हैं कि किस तरह हर बात पर मोदी की निंदा करनी है लेकिन वो अकेला इन सब पर भारी है - ये मोदी विरोध में ऐसे अंधे हो चुके हैं कि इन्हें पता ही नहीं चलता कि कब मोदी विरोध में ये देश विरोध करने लगते हैं -
G20 की अध्यक्षता यदि 2023 के लिए भारत को मिलना भी कांग्रेस को रास नहीं आया - इस सम्मेलन के लिए भारत अलग अलग विषयों पर चर्चा देश के अनेक शहरों में करा रहा है लेकिन कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश को यह मोदी का Event Management दिखाई दे रहा है और 2024 का चुनाव प्रचार लग रहा है - इस “वहम” का कोई इलाज किसी के पास नहीं हो सकता और उसे केवल पागलपन के लक्षण कहा जा सकता है -
यही जयराम रमेश था जिसने नए संसद भवन के लिए कहा था कि -” The first of personal vanity projects. Every dictator wants to leave behind his architecture legacy, Colossal waste of money".
मोदी के हर काम को कांग्रेस आज से नहीं शुरू से Event Management कहती रही है लेकिन खुद कम कोशिश नहीं करती ऐसे ही Event Management करने की - एक तो अभी “मणिपुर” का किया, इसके पहले अडानी, पेगासस, राफेल और न जाने क्या क्या ऐसे Event Management कांग्रेस ने किए हैं - क्या राहुल की सजा पर रोक के लिए Event Management नहीं किया कांग्रेस ने - कांग्रेस के लिए तो सबसे बड़ा Event Management वो नारा लगाना है - “मोदी तेरी कब्र खुदेगी”
राहुल गांधी जीवन में कभी न श्रीनगर गया और न कभी जाने का सोचा होगा मगर कथित “भारत जोड़ो यात्रा” का Event Management मोदी के 370 हटाने की वजह से कर सका और कश्मीर की वादियों में सैर सपाटा कर सका -
अभी दो दिन के लिए लद्दाख गया हुआ है जहां कांग्रेस के राज में सड़कों की खस्ता हालत थी लेकिन आज मोदी सरकार की बनाई हुई चमचमाती सड़कों पर मोटर साइकिलों की दौड़ लगा कर Event Management कर रहा है अपने 2 केन्याई मुस्लिम दोस्तों और एक इटालियन दोस्त के साथ - ये लोग राहुल के साथ हैं तो जाहिर है, भारत के तो मित्र होंगे नहीं -
राहुल के ये दोस्त है केन्या के Shakir Mohammad Nurali Merali, Sadiq Irfan Kimani Merali और इटली के Luigi Vinci -
राहुल गांधी ने कहा है कि उसके पिता राजीव गांधी कहते थे कि पैंगोंग त्सो झील दुनिया की सबसे सुन्दर जगह है और वो उसी जगह पर अपने पिता को श्रद्धांजलि देगा - राजीव जी की मृत्यु हुए 32 साल हो गए और न जाने उसके पहले उन्होंने कब यह बात राहुल से कही होगी लेकिन 32 साल से कभी राहुल इस पैंगोंग त्सो झील को देखने नहीं गया - अब जाकर Event Management कर रहा है -
दरअसल राहुल गांधी पैंगोंग त्सो झील इसलिए देखने गया क्योंकि वह देखना चाहता था कि कोरोना काल में उसके साथ MOU Sign करने वाले चीनी दोस्त कहां तक पहुंच सके और शायद उनके भविष्य में आने के लिए Reiki करने गया है क्योंकि तभी उसने मोदी सरकार पर वहां पहुंच कर हमला बोलते हुए कहा कि चीन यहां तक आया था -
मेरा अनुमान है कि चंद्रयान - 3 की Landing को लेकर Left Liberal Gang का Ecosystem सब तैयारी कर चुका है कि यदि चंद्रयान - 3 सफल हुआ (जैसी आशा है) तो पूरा मीडिया और ट्विटर ऐसे भर दिया जाएगा कि इसमें मोदी का कोई योगदान नहीं है जिससे मोदी को कोई Credit न मिल सके और यदि सफलता नहीं मिली (जिसकी उम्मीद विरोधी कर रहे हैं) तो कैसे मोदी पर सारी जिम्मेदारी थोप दी जाए -
(सुभाष चन्द्र)
“मैं वंशज श्री राम का”
20/08/2023
No comments:
Post a Comment