Friday, 15 September 2023

आरक्षण से किसी मानस को कोई आपत्ति नहीं है* आपत्ति है तो यह है कि ~जिसको आरक्षण दिया जा रहा है वो सामान्य आदमी बन ही नहीं पा रहा है ! समय सीमा तय हो जो व्यक्ति विशेष जाति में पैदा हुआ हैं वह सामान्य नागरिक कब बन जायेगा ?

*आरक्षण से किसी मानस को कोई आपत्ति नहीं है* 
   
आपत्ति है तो यह है कि ~
जिसको आरक्षण दिया जा रहा है वो सामान्य आदमी बन ही नहीं पा रहा है !
  
समय सीमा तय हो जो व्यक्ति विशेष जाति में पैदा हुआ हैं वह सामान्य नागरिक कब बन जायेगा ?

किसी व्यक्ति को आरक्षण दिया गया और वो किसी सरकारी नौकरी में आ गया ! अब उसका वेतन ₹25000 से ₹50000 व 
इससे भी अधिक है , पर जब उसकी संतान हुई तो वह भी पिछडी ही पैदा हुई जबकि उसका जन्म हुआ प्राईवेट अस्पताल में ~
पालन पोषण हुआ राजसी माहोल में ~फिर भी वह गरीब पिछड़ा और सवर्णों के अत्याचार का मारा  हुआ ?

उसका पिता लाखों रूपए सालाना कमा रहा है उच्च पद पर आसीन है ! सारी सरकारी सुविधाएं ले रहा है ! वो खुद जिले के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है , और सरकार उसे पिछड़ा मान रही है सदियों से सवर्णों के अत्याचार का शिकार मान रही है !

आपको आरक्षण देना है , बिलकुल दो पर उसे नौकरी देने के बाद तो सामान्य बना दो ! ये गरीबी ओर पिछड़ा दलित आदमी होने का तमगा तो हटा दो !

यह आरक्षण कब तक मिलता रहेगा इसकी कोई समय सीमा तय कर दो या ~ बस जाति विशेष में पैदा हो गया तो आरक्षण का हकदार हो गया , और वह कभी सामान्य नागरिक नही होगा !

दादा जी जुल्म के मारे !
बाप जुल्म का मारा !
अब ... पोता भी जुल्म का मारा !
आगे जो पैदा होगा वह भी जुल्म का मारा ही पैदा होगा ! पहले से ही तय कर रहे हो ?

वाह रे मेरे देश का राजनीतिक दुर्भाग्य ! वाह रे महान देश ! 

जिस आरक्षण से उच्च पदस्थ अधिकारी, मन्त्री, प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर भी पिछड़े ही रह जायें, गरीब ही बने रहें ऐसे अभियान को तुरंत बंद कर देना चाहिए !

क्या जिस कार्य से कोई आगे न बढ़ रहा हो उसे जारी रखना मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं है ?

हम में से कोई भी आरक्षण के खिलाफ नहीं, पर आरक्षण का आधार जातिगत ना होकर आर्थिक होना चाहिए !
 *सबका साथ सबका विकास* 
  
*अन्त्योदय योजना लाओ* ~अंत को सबल बनाओ !
और तत्काल प्रभाव से प्रमोशन में आरक्षण बंद करे, नैतिकता भी यही कहती है और संविधान की मर्यादा भी !
              
क्या कभी ऐसा हुआ है कि ~
किसी मंदिर में प्रसाद बँट रहा हो और एक व्यक्ति को चार बार मिल जाये और अन्य व्यक्ति लाइन में रहकर अपनी बारी का इंतजार ही करता रहेगा ? 

*आरक्षण देना है तो उन गरीबों लाचारों को चुन चुन के दो जो बेचारे दो वक्त की रोटी को मोहताज हैं... चाहे वे अनपढ़ ही क्यों न हों ! चौकीदार, सफाई कर्मचारी , सेक्युरिटी गार्ड कैसी भी नौकरी दो ! हमें कोई आपत्ति नहीं है और ना ही होगी ! ऐसे लोंगो को  मुख्य धारा में लाना सरकार का सामाजिक व नैतिक उत्तरदायित्व भी है!* परन्तु भरे पेट वालों को बार बार 56 व्यंजन परोसने की यह नीति बंद होनी ही चाहिए !

जिसे एक बार आरक्षण मिल गया , उसकी अगली पीढ़ियों को सामान्य मानना चाहिये और आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिये !

 *अगर सहमत हो तो जन-जन तक पहुचायें,*

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