Thursday, 28 September 2023

ईद मिलादुन्नबी अर्थात बारावफात या मोहम्मस साहब का जन्म दिवस*=मोहर्रम अली की कलम से।ईद का शाब्दिक अर्थ खुशी के होते है।बचपन से ले कर अंतिम सांस तक सामाजिक बुराईयों से लड़ कर मुस्लिम समाज के योद्धा बने मोहम्मद साहब जब अपनी माँ के पेट मे मानव आकृत का रूप धारण कर रहे थे।एक अजीब से सुगंध घर से आने लगी थी।आप के दादा ने कहा था।बहु से पूछो ।कौन सा खुशबू बहु लगाती है। जिससे यह तेज खुशबू आती है।नह ने कहा था ।

*ईद मिलादुन्नबी अर्थात बारावफात या मोहम्मस साहब का जन्म दिवस*=
मोहर्रम अली की कलम से।
ईद का शाब्दिक अर्थ खुशी के होते है।
बचपन से ले कर अंतिम सांस तक सामाजिक बुराईयों से लड़ कर मुस्लिम समाज के योद्धा बने मोहम्मद साहब जब अपनी माँ के पेट मे मानव आकृत का रूप धारण कर रहे थे।एक अजीब से सुगंध घर से आने लगी थी।
आप के दादा ने कहा था।बहु से पूछो ।कौन सा खुशबू बहु लगाती है। जिससे यह तेज खुशबू आती है।
नह ने कहा था ।
मेरे पास कोई खुशु नहीं हैं। में भी महसूस कर रही हूं इस सुगन्ध को ।हैरान हूं मैं।
और जब मोहम्मद साहब पैदा हुए कोई कचड़ा था ही नहीं आप के साथ।
साफ सुथरे धुले धुलाए।कहा जाता है कि जब आप अपनी मां के शिकम से बाहर हुए। आप का सर सजदे की हालत में जमीन पर पड़ा हुआ था।
पता यह चला अगर तुम मोहम्मद साहब को दिल से मानते हो।तुमको हल हाल में नमाज पढ़नी ही पड़ेगी।
आप की नमाज़ हर हाल में हर कीमत पर पूछी जाएगी।
आप का हाल यह है।आप कभी लूलू माल में कभी सार्वजनिक स्थलों पर और कभी रेलवे स्टेशन पर नमाज पढ़ कर जेल ही हवा खाने लगते हो।
नमाज एक महिला भी पड़ती थी इस्लाम के इतिहास में ।
नाम राबिया बसरी।
आप बसरा की रहने वाली थीं।
जिसके यहाँ वह नोकरी करती थीं।
उस माकिल ने दिन में नमाज पढ़ने पर पाबंदी लगा दिया था ।आप रात में सभी कामों से फारिग होकर मुसल्ला बिछा कपनी नमाज़ पूरी करती थीं।
कहा जाता है कि काबा अपनी डर से उठ कर उनके पास चला गया था ।
मात्र कुछ साल बाद एक बीमारी में माता जी का भी देहांत हो गया।
अब आप के माता पिता दोनो विलुप्त। यतीम हो गए बचपन मे मोहम्मद साहब।
सन्देश आप के 
लिए यहाँ यह है कि अगर तुम मुस्लिम हो बचपन मे यतीम हो तो समझ लेना कि तुम्हारे नबी मोहम्मद साहब जिनका तुम कलमा पढ़ते हो ।वह भी यतीम और बे सहारा थे।
जब मोहम्मद साहब 14 साल के हो गए।घर मे खाने को कुछ था ही नहीं। आप के दादा उस समय मक्का की सब से बड़ी व्यवसायी खदीजा के पास ले गए।
और कहा यह मेरा पोता है।
इसको काम पर लगा लीजिये।
खदीजा ने मोहम्मस साहब को निहारा देखा कुछ पूछा भी।
और काम पर लगा दिया।
मोहम्मद साहब की नैकरी का लाभ खदीजा को यह मिला कि उनका कारोबार बहुत तेज होगया।
कुछ दिन गुजरने के बाद मोहम्मद साहब के दादा से खदीजा ने मोहम्मद साहब से निकाह करने को कहा। आप के दादा हैरान की मेरा पोता सिर्फ बीस साल का है।
और खदीजा की उम्र चालीस साल से ऊपर।और वह भी विधवा।
लेकिन यह निकाह हुआ।
यही एक सन्देश उभर कर सामने आया।
अगर तुम मोमिन हो तो विधवाओं से शादी कर लिया करो।
शादी उपरांत अपना लम्बा छोड़ा व्यावसाय।सोना चांदी हीरे जवाहरात अपना सब कुछ मोहम्मद साहब को सौप दिया ।अब यह सब मेरे लिए बेकार हैं।
और मोहम्मद साहब ने वह सभी धन दौलत एक झटके में गरीबों में बाट दिया।
बता दें कि अरब हजारों हजार साल तक खजूर और बकरी तथा ऊंटनी के दूध पर जीवन यापन किया है।
अपनी उम्र के 43 साल तक एक सच्चा ईमानदार और अमानत मे खयानत न करने वाला चरित्र और चेहरा बनने के बाद।
आप पर कुरान पार्ट पार्ट में उतरा।
रमजान के रोजे लगाता नमक पानी से रखने और खोलने की बाते सार्वजनिक रूप से हैं मोहम्मद साहब की।
कभी इस्लाम के इस महानायक ने सब कुछ होते हुए भी राजसी जीवन नहीं जिया।
शॉर्ट कर रहा हूँ।
अब आप की आखिरी साँसों पर आता हूँ।
आप को बुखार आ रहा था।
तबियत बिगड़ती जा रही थी।
आप अपना सर अपनी बिटिया फात्मा के पर पर रख कर आराम कर रहे थे।
उस दिन घर मे चिराग भी पड़ोसी के मकान से उधार  तेल मांग कर 
इतने में बाहर से कुछ आवाज़ आई।
फात्मा ने फकीर समझ कर कहा।
हमारे पास आप को देने के लिए कुछ नहीं है। कहीं और देख लिजिये।
मोबम्मद साहब ने कहा था ।वह फकीर नहीं है।
जान निकालने वाला फरिश्ता है।वह मेरी जान निकाकने आया है।
वह देव दूत कमरे में आता है।
सम्मान पूर्वक सलाम करता है।
और कहता है।
साहब अब तक जितने लोगो की जान निकाली है किसी को सलाम नहीं किया।आप प्रथम हैं जी को सलाम करने के लिए हमसे कहा गया है।
मोहम्मद साहब ने कहा था।
मेरे उम्र तो 93 साल थी ।फिर 63 सालम
 साल में तुम मेरी जान कैसे निकाल सकते हो।
इसी समय जिब्राईल दूत आते हैं।
कहते हैं।
या रसूल अल्लाह
आप के तीस साल मेराज में कट गए हैँ।
फिर भी हमसे कहा गया है।उनसे पूछो वह क्या चाहते हैं।
मोहम्मद साहब ने कहा ।उससे पूछो वह क्या चाहता है।
दूत ने आ कर बताया जन्नत आप का इंतज़ार कर रही है।
यही एक टर्निग पल आया।
जब मोहम्मद साहब ने कहा ।
जाकर अल्लाह से पूछो।
वह मेरी उम्मत के साथ क्या करेगा।
जिब्राईल फिर गए अल्लाह के पास।
फिर आकर बोले जा कर उनसे कह दो।
उनकी उम्मत का ख्याल रखूंगा।
अब नबी साहब ने रूह निकलने वाले फ़रिश्ते से कहा।
अब तुम मेरी रूह निकालो।
यही एक वादा अगर मोहम्मद साहबने अगर अल्लाह से न लिया होता तो हमारे गुनाह और अपराध देख कर पूर्व के नबियों की उम्मतों की तरह से हमे भी अल्लाह ताला बन्दर और सुवर बना देता।
इस तरह से मोहम्मद साहब की जाहरी जिंदगी आउट ऑफ लाइफ हो गई।
इस्लाम के इस महानायकने लगभग पूरा जीवन आभाव और तकलीफों में गुज़ार दिया।
ताकि अगर तुम भूखे हो। आभाव की जिंदगी जी रहे हो।
तो मां लेना तुम्हारे मोहम्मद ने भी आभाव और संकट का जीवन जी कर हमें नसीहत दी है।
बताया जाता है कि जिस दिन मोहम्मद साहब ने जन्म लिया उस दिन आप का शारीरिक अंत भी हुआ।
मोहम्मद साहब के जन्म दिवस की आप सभी को बधाईया और मुबारकबाद।

No comments:

Post a Comment