पूरा देश ब्रिटिश हुकूमत के कब्जे में था अंग्रेजों द्वारा देशभर के लोगो पर शोषण और अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ था। ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी झेल रहा देश अत्याचार सहते हुए खून के आंसू रो रहा था। इसी समय काल में विश्व के अलग-अलग हिस्सों से शोषण और दमनकारी नीति के खिलाफ आवाज उठाने वाले कुछ बाशिंदों का जन्म हुआ। जिनमें इतिहास के पन्नों से कोसों दूर आदि आदिवासी समुदाय का वह मसीहा जिसका नाम है रेंगू कोरकू।
रेंगा_कोरकू .........
आदिवासियों के विद्रोह की शुरुआत 1757 प्लासी युद्ध के बाद ही शुरू हो गई थी और यह संघर्ष बीसवीं सदी के शुरू रात तक चलता रहा जिसमें सन 1857 की क्रांति की चिंगारी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ऐसी भड़की कि देखते ही देखते पूरे भारत में फैल गई। ब्रिटिश हुकूमत से छुटकारा पाने के लिए कई शासक आवाज उठा रहे थे और कई उनकी फूट डालो शासन करो नीति के शिकार हो रहे थे। अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार और उनकी गुलामी से आजादी पाने के लिए भारत के हर वर्ग संप्रदाय जाति के लोग अपने स्तर से लोहा लेकर संघर्ष कर रहे थे इसी दौरान मध्य प्रदेश राज्य के होशंगाबाद जिले के आदिवासी अंचल का एक छोटा सा गांव सोनखेड़ी का वीर योद्धा रेंगू कोरकू आदिवासियों को अंग्रेजों के अत्याचार से बचाने वाला एवं जल जंगल जमीन की रक्षा करने वाला ब्रिटिश गुलामी के खिलाफ आवाज उठाने वाला आज इतिहास के पन्नों से कोसों दूर है जो कहीं एक नींव का पत्थर बना हुआ है।
जी हां यही आदिवासियों का जननायक इंडियन राबिनहुड टंट्या भील का बांया हाथ कहे जाने वाले वीर स्वतंत्रता सेनानी शहिद रेंगू कोरकू।
शौक: वीर रेंगू को भाला फेंकना ,तीर कमान चलाना, गोफन चलाना, घुड़सवारी करना ,आदिवासी परंपरागत लोक नृत्य ढोल मांदल बांसुरी बजाने एवं गदली डंडा फगफगाने चाचरिया गोगलिया का बहुत शौक था।
No comments:
Post a Comment