▪️राणा सांगा का बाबर के खिलाफ युद्ध▪️
वीरता की प्रत्यक्ष मूर्ति महाराणा संग्राम सिंह जिन्हें इतिहास में सांगा के नाम से जाना जाता हैं का जन्म 12 अप्रैल 1484 को मेवाड़ रियासत में हुआ। ये महाराणा कुम्भा के पौत्र एवं महाराणा रायमल के पुत्र थे । ये बचपन से ही वीर एवं बुद्धिमान थे। इनकी राजयोग की भविष्वाणी बचपन में ही कर दी गयी थी जिससे इनका बचपन बेहद मुसीबत भरा रहा एवं इस संघर्ष में इनको अपनी एक आँख खोनी पड़ी एवं राज्य छोड़ना पड़ा । ये अपने मुसीबत के समय अजमेर के करमा पवार के पास रहे थे । अपने बड़े भाई की मृत्यु के बाद ये मेवाड़ लोटे एवं 1509 में राजगद्दी पे बैठे।जब ये राजगद्दी पे बैठे उस समय मेवाड़ की स्थति नाजुक थी। अतः इन्होंने पडोसी राजाओं को अपना मित्र बनाया। महाराणा सांगा हिन्दूपत के नाम से जाने जाते थे। ये राजपूताने के अन्तिम शासक थे जिनके झंडे के नीचे सारा राजपुताना लड़ा। इन्होंने अपने जीवन में अनेकों युद्ध लड़े एवं 1 को छोड़कर सभी में विजयी हुए।
खानवा का युद्ध:-
1526 में इब्राहिम लोदी को हराने के बाद बाबर एक शक्तिशाली शासक बन चूका था।
महाराणा सांगा के जो उस समय उत्तरी भारत के सबसे शक्तिशाली शासक थे के साथ बाबर का युद्ध होना अवश्यम्भावी था। यह वो युद्ध था जो भारत की तस्वीर बदलने वाला था। अतः महाराणा सांगा नेराजपूतो की पोती परवन की पुरानी परम्परा को पुनः जीवित किया एवं राजपूताने के सभी शासको को अपने साथ युद्ध में मिलाया।
राजपूत शासक जो महाराणा के साथ लड़े:-
अलवर महाराजा -हसन खा मेवाती
आमेर महाराजा-पृथ्वीराज
बीकानेर युवराज-कल्याणमल
जोधपुर युवराज -मालदेव
ईडर राजा - भारमल
चंदेरी राजा -मेदनीराय
राव वीरम देव -मेड़ता
डूंगरपुर महारावल -उदयसिंह
महमूद लोदी
महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य पहला युद्ध फरवरी 1527 में हुआ जब महारणा सांगा ने बयाना के किले पर हमला किया एवं बाबर की सेना को भगा दिया।
अतः बाबर महाराणा की और भड़ा एवं उसने खानवा के मैदान में डेरा डाला।
लेकिन महाराणा ने छोटा रास्ता छोड़कर लंबा रास्ता अपनाया जिससे बाबर को तैयारी का वक़्त मिल गया।17 मार्च 1527 में दोनों की सेना आमने सामने हुई। राजपूतो को अपने सामने देखकर तुर्को में खलबली मच गई एवं उनके पैर उखड़ने लगे उस समय बाबर ने घबराकर मदिरा ना पीने की शपथ ली एवं युद्ध को जिहाद घोषित किया। इस युद्ध में उसने तुलगमा पद्धति एवं तोपखाने का प्रयोग किया जिससे राजपूत अनजान थे.भयंकर युद्ध चला रहा था की अचानक एक तीर महाराणा के सिर में लगा एवं वो बेहोश हो गए एवं उनको युद्ध मैदान से ले बाहर ले जाया गया एवं उनका स्थान झाला अज्जा ने लिया।राजपूतो को इस युद्ध में हर झेलनी पड़ी एवं बाबर ने युद्ध के पश्चात राजपूतो के सिर की मीनार बनवाई।
महाराणा को बसवा (दौसा) ले जाया गया जहा पे होश आने पर उन्होंने मेवाड़ लौटने से इंकार कर दिया एवं दूसरे युद्ध की तैयारी करना शुरु कर दिया अतः वो सरदार जो नए युद्ध के विरोधी थे उन्होंने महाराणा को जहर दे दिया एवं 30 जनवरी 1528 को महाराणा वीरगति को प्राप्त हुए। इनकी समाधी मांडलगढ़ (भीलवाड़ा ) में बनी हुई है। रायसीन के राजा सिह्लदी तंवर ने महाराणा के साथ धोखा किया एवं वो बाबर के साथ मिल गया ।
महाराणा के शरीर पर 80 घाव थे उनके एक आँख ,एक हाथ व एक पैर देश की रक्षा में कुर्बान हुए किन्तु उन्होंने अंतिम दम तक देश सेवा की।
कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा को सैनको का भग्नावशेष कहा है।
महाराणा सांगा राजपूताने के वो शासक थे जिनके सेनापतित्व में लड़ना अन्य राजपूत राजा अपना गौरव समझते थे।
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