Friday, 1 November 2024

बात थोड़ी पुरानी है, लेकिन आज के संदर्भ में है, *जमीन है कम जमीन बचाओ।**मुर्दे को आड़ा नहीं, खड़ा गढ़ाओ।*2013 की बात है

*जमीन है कम जमीन बचाओ।*
*मुर्दे को आड़ा नहीं, खड़ा गढ़ाओ।*

2013 की बात है

सिब्बल साहब एक दुकान से पटाखों का ऑर्डर देते हैं। शायद कोई फंक्शन था कांग्रेस पार्टी का, उसके लिए। पौने दो लाख के पटाखे। सिब्बल साहब का आदमी आता है और पटाखे लेकर चला जाता है। 

हिसाब तो आगे पीछे होता ही रहता है। दुकानदार ने पटाखे लेने वाले आदमी के एक पर्ची पर दस्तखत लिए और पटाखे दे दिए। 

एक दो महीने बाद दुकानदार पेमेंट के लिए सिब्बल साहब का फोन खड़खड़ाता है। सिब्बल साहब भूले तो नहीं पर बाद में भेजने के लिए कह कर तगादे को टाल जाते हैं। और धीरे धीरे 6 महीने से ज्यादा का वक्त गुजर जाता है। 

2014 के चुनाव में चांदनी चौक से कांग्रेस मंत्री सिब्बल साहब हार जाते हैं। पर फिर भी मोटी चमड़ी के इन नेताओ में शर्म कैसी ? 
हारकर भी चांदनी चौक की गलियों में धन्यवाद यात्रा निकालते हैं साहब। 

और तभी सिर पे टोपी पैर में जूती पहने , करबद्ध हाथो और कुटिल मुस्कान के साथ सिब्बल साहब का सामना  उस दुकानदार से हो जाता है। बिचारा अपने पौने दो लाख के भुगतान के लिए अनुनय विनय करता है। 

पर सिब्बल साहब पैसे देने को साफ मना कर देते हैं और कहते हैं जब तुम लोगो ने मुझे हरवा दिया तो अब कैसे पैसे ? 
जाओ हर्षवर्धन से लो जिसको जिताए हो। बात बढ़ जाती है। 

आसपास के दुकानदार भी इक्कट्ठे हो जाते हैं। नौबत तू तू मैं मैं तक आ जाती है। और फिर कांग्रेसी पिठ्ठू धन्यवाद का मुखौटा उतार अपने असली रंग में आ जाता है। 

सीधे धमकी.....

“अब तुम पटाखे बेच कर दिखा देना, तुम लोगो का धंधा बर्बाद नहीं किया तो मैं एक बाप का नहीं!"
😲😲

और अब खेला जाता है व्यापारियों की बर्बादी का खेल। 

अभिषेक मनु सिंघवी...
जी हां सुप्रीम कोर्ट के अपने चैंबर में बम पर बूम बूम करने वाला सिंघवी। कांग्रेस का एक और बड़का वकील। कानून का दलाल। कहना और अंदाजा लगाना मुश्किल कि कौन बड़ा दल्ला..सिब्बल या सिंघवी। 

तो सिंघवी साहब के दफ्तर में शातिर योजना की रूपरेखा बनाई जाती है। 

और सिंघवी के सहायक जूनियर वकीलों के तीन बच्चों को, जिनमें से दो की उम्र महज 6 माह और एक की 14 माह थी, को पार्टी बनाकर 2015 में तत्कालीन सीजेआई टीएस ठाकुर की अदालत में सिंघवी के सबोर्डिनेट वकीलों के माध्यम से पटाखे बैन के लिए अपील दाखिल कर दी जाती है। 

ध्यान दीजिए तीनों याचिकाकर्ताओं की उम्र सिर्फ 6 महीने से लेकर सवा साल !

अब वकील अपने, 
जज भी अपने संगी साथी,
और कोर्ट तो है ही अपना। 

तो 25 नवम्बर 2016 को लगा दिया बैन। जस्टिस थे एके सीकरी। 

लेकिन रुकिए अभी इंतकाम बाकी था। दीवाली बीत चुकी थी। तो इस बैन से क्या खाक बर्बाद होते व्यापारी !!

व्यापारियों ने बैन हटाने के लिए जस्टिस बोबडे की अदालत में गुहार लगाई। और 12 सितंबर 2017 को जस्टिस बोबडे ने बैन हटा दिया। 

सिब्बल की टीम तो जैसे इसी मौके की तलाश में थी। पहुंच गई माई बाप के पास। और अपने मनपसंद जज एके सीकरी की अदालत से फिर से बैन लगाने को कहा। 

और देखिए जरा कानून और वकीलों की सांठ गांठ का बेशर्म नमूना कि दीवाली से ठीक दो  हफ्ते पहले जस्टिस एके सीकरी की अदालत ने पटाखों पर फिर से बैन लगा दिया। 
ऐसा होता है क्या ??? 
जब सुप्रीम कोर्ट के ही एक जज पटाखों से बैन हटा लेते हैं तो दीवाली से ठीक पहले फिर से बैन क्यों ? 

सिर्फ कपिल सिब्बल की अपनी कसम पूरी करने के लिए। व्यापारियों को बर्बाद करने के लिए। 15 हजार करोड़ के पटाखे व्यापरियो के गोदामों में पड़े थे। और ये खेल खेला गया।

यही नहीं 19 अक्टूबर को दीवाली जाते ही एक नवम्बर को बैन हटा दिया। 
🙄

और फिर पिछले साल दीवाली से दो हफ्ते पहले इन्हीं जस्टिस सीकरी साहब ने फिर से बैन लगा दिया 23 अक्टूबर, 2018 को। जबकि 15 दिन बाद 7 नवम्बर को दीवाली थी। फिर से व्यापारियों का हजारों करोड़ का नुक़सान। 

इतना शातिर खेल। 
सोचिए ये तो सिर्फ पौने दो लाख रुपए नहीं देने के लिए खेला गया। शिवाकासी के दस लाख लोगों को बेरोजगार कर दिया। तीन तीन पीढ़ियों का व्यापार बर्बाद कर दिया। 

तो जरा सोचिए चिदंबरम जैसे भ्रष्टाचारियों ने पैसे उगाहने के लिए क्या क्या नहीं किया होगा। 

Santosh Dubey  जिनका दिल्ली में पटाखों का बड़ा कारोबार था,अशोका फायर वर्क्स के नाम से, अपनी पीढ़ियों के चले आ रहे इस व्यापार की तबाही पर खून के आंसू बहाने पर मजबूर हैं।  
पैसा मेरा, जगह मेरी, मेहनत मेरी पर धूर्तता तेरी।

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