Thursday, 22 May 2025

पापी पेट और भौतिक आवश्यकताएं

पापी पेट और भौतिक आवश्यकताएं 

विधि का विधान विचित्र है एक छोटा बच्चा या बच्ची जन्म लेती है पूरे परिवार में अपार खुशियां होती हैं प्रारंभ में एक-एक पल बच्चों की देखभाल की जाती है धीरे-धीरे बच्चा हाथ पैर फेंकता है है सरकता है फिर करवट बदलता है फिर घुटनों के बल चलकर  9 से 12 महीने में खड़ा हो जाता है और जैसे-जैसे वह बड़ा होता है वैसे-वैसे उस पर ध्यान घर परिवार का कम हो जाता है ।

 फिर एक वर्ष से 5 वर्ष तक उसका समय बहुत ही निश्चिंत और स्वच्छ निर्दोष वातावरण में बीतता है जो उसके जीवन का स्वर्ण काल होता है मन में पाप और पुण्य अच्छा और बुरा जैसा कोई भी विचार नहीं बिल्कुल निष्पाप होता है इसलिए  कहा जाता है जन्म से लेकर 5 वर्ष तक ईश्वर हर बच्चे के साथ रहकर उसकी रक्षा करते हैं ।

5 वर्ष के बाद बच्चे का विद्यालय प्रारंभ हो जाता है और इसी के साथ उसका समय घर में कम बाहर अधिक बीतने लगता है और धीरे-धीरे घर परिवार के लोग काफी निश्चित हो जाते हैं बहुत अधिक विलंब होने पर ही उसका ध्यान दिया जाता है।

10 से 15 वर्ष का बच्चा जीवन की शक्ति ऊर्जा और ताकत के सर्वोच्च शिखर पर रहता है इसलिए इस कालखंड में उसकी ऊर्जा का सही उपयोग करने वाले घर परिवार माता-पिता का बच्चा ही जीवन में सर्वोच्च सफलता पाता है इस कालखंड में जो भी लड़का या लड़की पथ से भटक गया वह संभल नहीं पता है विशेष करके बच्चियों पर ज्यादा ही ध्यान रखा जाता है क्योंकि उन्हें 100 में 99 लोग गलत रास्ते पर डालने वाले और वह काफिला कर उनका उपभोग करने वाले मिलते हैं इसमें अपने घर परिवार गांव घर के सदस्य अधिक होते हैं।

फिर 15 वर्ष से लेकर 20 22 या 25 वर्ष के बाद एक समय ऐसा आता है जब लड़का या लड़की शिक्षा या नौकरी के लिए घर परिवार गांव संबंधी सगे रिश्तेदार समाज को छोड़कर दूसरे जगह दूर निकल जाते हैं और इस समय दोनों पक्ष में भावनाओं का ज्वार  रहता है कोई भी माता-पिता परिवार अपने बेटा बेटी या घर वालों को दूर नहीं रखना चाहता परंतु दोनों हृदय और कलेजे पर पत्थर रखकर देशकाल की स्थिति स्थिति समझ कर रोते-रोते  अलग हो जाते हैं 

और आज के परिवेश में विवाह होने के बाद लगभग सभी अपने मूल घर गांव परिवार माता-पिता से दूर अलग हो जाते हैं यहां पर संबंध धीरे-धीरे कमजोर होकर टूटने लगता है और दोनों एक दूसरे को भूलने लगते हैं ऐसा देश कल परिस्थितियों के कारण ही होता है अपवाद छोड़कर कोई भी अपनों को भूलना नहीं चाहता।

कुछ लोगों का भ्रम है कि बच्चा या बच्ची माता-पिता परिवार को अधिक भूल जाता है लेकिन ऐसी कोई बात नहीं वह भी घर परिवार मां-बाप गांव खेत स्कूल नदी तालाब बगीचे उतना ही याद करता है जितने मां-बाप मित्र मंडली सगे संबंधी उसे याद करते हैं लेकिन ज़रूरतें आवश्यकताओं का बोझ और दिन-रात काम के बाद चार-छह घंटे सोकर अगले दिन फिर नौकरी पर भागना धीरे-धीरे इसमें दूरी बढ़ा देता है ।

इसी जरूरत और भौतिकवाद को पूरा करने के चक्कर में धीरे-धीरे छोटा सा बच्चा एक दिन खुद प्रौढ़ और अंत में बुड्ढा होने लगता है और एक-एक कर उसके माता-पिता घर परिवार समाज मित्र छूटने लगते हैं और कालचक्र और समय अपनी गति से भागता रहता है और एक दिन ऐसा आ जाता है जब उसे जन्म देने वाले मां-बाप घर परिवार के लोग मित्र सगे संबंधी एक-एक करके छूट जाते हैं हर सुखद घटना के दुख में बदलने पर हर व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष हो रोता है कोई अकेले में तो कोई सबके सामने और दुख इस आंसू में पिघल कर बह जाता है।

और जब वह अवकाश प्राप्त करता है तो उसके चारों ओर बहुत लंबा अंधेरा और शून्य होता है जिसको वह भरने और बांटने की वह पूरी कोशिश करता है लेकिन पाट नहीं पाता और दिन-रात उसी का चिंतन करते-करते एक अपनी स्थिति में पता है जब वह लगभग अकेला होता है और उसके अपने बच्चे भी बाहर भौतिकवाद और जरूरत को पूरा करने में दूर-दूर हो जाते हैं कुछ भाग्यशाली लोगों को छोड़कर लगभग सब के साथ ऐसा ही हो रहा है और अंत में वह अपने को देखा है कि अब काल और यमराज उसको इस लोक से ले जाने के लिए उसके द्वारा पर खड़े हैं 

यही दुनिया का अंतिम चक्र और माया है जो निरंतर लाखों करोड़ों अर्बन साल और न जाने कब से चला चला आ रहा है केवल धरती पर नहीं सौरमंडल और आकाशगंगा में नहीं परम विश्व में कृष्ण विवर और श्वेत विवर में एक-एक अणु परमाणु में यही गति व्याप्त है इसलिए कोशिश करो जब तक संभव हो घर परिवार सगे संबंधी समाज धर्म अपनों से जुड़कर रहो डॉ दिलीप कुमार सिंह

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