*सम्पादकीय*
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*मैं इस लिए जिन्दा हूं की मैं बोल रहा हूं*-------??
*दुनियां किसी गूंगे की कहानी नहीं लिखती*!!-----------?
बदलता परिवेश देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनतंत्र की आस्था के सवाल को लेकर उबाल पर है! चारों तरफ हलचल है! लगातार बढ़ रहा सियासी दल दल है! बिरोध की लगातार मुसलाधार वर्षांत में मुस्कराते हुवे खिल रहा जगह जगह कमल है। बंगाल से लेकर बिहार शरीफ कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक लोगों में खुमारी है?। आस्था की अजीब किस्म की बढ़ रही बिमारी है।ग़रीबी मंहगाई बेरोज़गारी महामारी बेकारी पर आस्था भारी है।सर्वशक्तिमान बन चुके हिन्दुस्तान के सियासतदारों पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं! कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जिस दिन आवाम रोई नहीं!लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बिना बिलम्ब किए सच की ईबारत तो लिख देता है! मगर वक्त का खेल देखिए उसका खामियाजा भुगतना पडता है सच के खेल मे जेल भेज दिया जाता है? निरंकुश ब्यवस्था में सस्ता न्याय कल की बात होकर रह गया है? सच की ईबारत लिखने वाला कलमकार पत्रकार आजअसहाय होकर मजबूरी में चाटुकार बनता जा रहा है।शहरी पत्रकारों में चलन है जिधर सुरा सुन्दरी धन लक्ष्मी का प्रचलन उधर ही उनका बढ़ जाता रहन सहन है! पूंजी पतियों के दलाल सियासतदारों के चाटुकार बड़े पत्रकार कहे जाने वाले कलम कार अपना मान सम्मान ईमान सब गिरवी रख देते हैं! आम आदमी के दर्द से उनको परहेज है! पंच सितारा होटलों में बैठ कर वेज और नानवेज खाने वालो की कलम वहीं बोलती है जो सत्ता के सियासतदार बोलते हैं!अब उसका असर बडे़ शहरो से निकल कर प्रदेश की राजधानियों से होते हुए जिला मुख्यालयों तक आ गया है। दलाली हलाली का कारोबार जमकर कर रहे हैं!वहीं छपता है चैनलों पर चलता है जिसको चाहती है सरकार! अधिकारीयों के पीछे पीछे पालतू के तरह दूम हिला रहे हैं आज के कलमकार!गिरावट मिलावट के इस दौर में खोजी पत्रकारिता का प्रचलन खत्म हो गया! पीत पत्रकारिता चलन वजूद में आ गया!अब न अपनी सोच है न अपनी खोज है? जो शासन प्रशासन से मिला वहीं सच है वहीं समाचार है उसी में वोज है?। कराहता लोकतन्त्र अब मुस्कराने लगा है! परिवर्तन प्रकृति का प्रभावी नियम है। आज कल सोसल मिडिया आम आदमी के लिए वरदान बन कर आ गया है! काफी संघर्ष के बाद सोसल मिडिया अपने उत्कर्ष पर किलोल कर रहा है! उस पर भी शासन प्रशासन ने नकारा होने का ठप्पा लगा दिया था! सच नहीं होता है सोसल मिडिया का समाचार! मगर इसकी महत्ता को समझ कर वाक ओभर दे दी है सरकार? कानून बनाकर पत्रकारिता के मूल धारा में इसको जोड़ने की कवायद चल रही है।आज बड़े अखबार समाचार चैनल सोसल साईट पर आधारित होते जा रहे हैं। प्रीन्ट मिडिया का वजूद खतरे में है। नैटवर्किग साईट पर लोग आगे बढ़ रहे हैं।शहर से लेकर गांव तक सोसल मिडिया ने तहलका मचा दिया है। घटना हुई नहीं की समाचार वायरल हो गया!अब तो लोग टीबी देखना तक छोड़ रहे हैं!उससे अधिकतर लोग मुंह मोड़ रहे हैं। मोबाईल के प्रोफाईल को देखकर ही स्माइल कर रहे है! हर हाथ में मोबाइल हर घर में पल पल की खबर खुलकर बात रखने की छूट!अपनी हर बात को अधिकारीयों तक पहुंचाने का मुकाम हासिल कर लिया है।।ऐसे में न अब अखबार की जरूरत है? न टीबी समाचार की! बस कानून बनाकर सोसल मिडिया को ब्यवस्थित जिस दिन सरकार ने कर दिया उसी दिन देश में भ्रष्टाचार की ईबारत लिखने वालों के किरदार पर ग्रहण लग जायेगा? सियासतदारों के हाथों गिरवी पड़े पत्रकारों की रहनुमाई से देश मुक्त हो जायेगा! जिस तरह से आज ग्रामीण अंचलों में पत्रकारों का उत्पीड़न हो रहा है उस पर विराम लग जायेगा? तेजी से मन्जिल के तरफ बढ़ रहा है सोसल मिडिया का तूफान! पूरी तरह बदल रहा है हिन्दुस्तान!समय के समन्दर में सोसल मिडिया की सुनामी दस्तक देने लगी है!आने वाला समय सोसल नेटवर्किंग का है! बस थोड़ा और इन्तजार करें! पत्रकारिता का पैटर्न पूरी तरह बदलने वाला है! न कोई शहरी होगा न कोई गवई---- धुआं धार लोकतंत्र की फील्ड पर होगी खबरों की बैटिंग! सच का समाचार दहाड़े गा खत्म हो जायेगा समाचारों के प्रकाशन की सेटिंग!दिन भी सुहाना होगा शाम भी होगी सुरमई-सुरमई------?
जयहिंद🕉️🙏🏾🙏🏾
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