हमारे राजस्थान की माटी में ऐसे योद्धाओं ने जन्म लिया जो एक साधारण युवा नहीं थे वो तो एक देवता थे, ख़ुद अपने ही विवाह को छोड़कर युद्ध में चले जाना ओर नववधु को वचन देना, धन्य है यहाँ की धरा - वीर योद्धा कल्ला जी राठौड़ वे शूरवीर थे, जिन्होंने चित्तौड़गढ़ पर अकबर के आक्रमण के समय महाराणा उदयसिंह जी की सेना में शामिल होकर अपनी वीरता का परिचय दिया था।
युद्ध में सेनापति जयमल सिंह राठौड़ थे। उनके पांव घायल हुए तो 24 साल के कल्ला जी ने उन्हें कंधों पर बिठाकर चार भुजाओं के साथ युद्ध किया। दो भुजाएं कल्ला जी की और दो जयमल की। जयमल खेत रहे तो कल्ला जी लड़े और उनका सिर कट गया, लेकिन लोकमान्यता है कि उनका (कबंध) काफी समय तक यानी बिना सिर वाला धड़ काफी समय लड़ता रहा। वे करीब 180 मील रनेला (सलूम्बर) पहुंचे, जहां उनकी जागीर थी।
कल्याण शक्ति पीठ के चैतन्य रावल बताते हैं, यह मेला हर साल लगाया जाता है, क्योंकि कल्ला जी की वीरता ही ऐसी अदभुत थी। कल्ला जी का विवाह हो रहा था और इसी बीच युद्ध के नगाड़े बज गए थे। वे उसी समय अपनी नववधू कृष्णा कंवर चौहान को वचन देकर युद्ध में चले गए कि युद्ध में चाहे जो हो, लेकिन मैं मिलने जरूर आऊंगा।
कहते हैं कि कल्ला जी का (कबंध) यानी बिना शीश वाला धड़ चित्तौड़गढ़ से चलकर 180 मील दूर सलूंबर के पास रनेला आया और पत्नी के पास आकर शांत हो गया। आखिर अपने पति के इस गर्वीले बलिदान से गौरवान्वित होकर कृष्णा कंवर चौहान धूधू करती चिता में बैठ गई और उनका सौंदर्य पति के शौर्य में विलीन हो गया।
रावल के अनुसार मेले में आदिवासी अपने केसरिया ध्वज यानी नेजे लेकर आते हैं और कलाओं का प्रदर्शन करते हैं। इसमें गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों से श्रद्धालु आते हैं। जयमल और पत्ता के साथ थे युद्ध में कल्ला जी चितौड़ युद्ध में कल्ला जी #जयमल सिंह राठौड़ और #पत्ता जी चूंड़ावत के साथ थे। #जयमल बदनोर (भीलवाड़ा) के थे और #पत्ता केलवा (राजसमंद) के थे।
जय जय राजस्थान
जय जय कल्ला जी राठौड़ 🙏🚩
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