Monday, 9 October 2023

भारत लौटकर वे तत्कालीन रामपुर राज्य के शिक्षा निदेशक बने और बाद में बड़ौदा सिविल सेवा में गए। द टाइम्स, लंदन, द मैनचेस्टर गार्जियन और द ऑब्जर्वर जैसे प्रमुख ब्रिटिश और भारतीय समाचार पत्रों में लेख लिखकर एक लेखक, वक्ता और एक दूरदर्शी राजनीतिक नेता के रूप में धाक बना

मोहम्मद अली का जन्म 1878 में ब्रिटिश भारत के उत्तर -पश्चिमी प्रांत के रामपुर में एक धनी रोहिल्ला परिवार में हुआ था । जब वह सिर्फ पाँच वर्ष के थे तब उनके पिता अब्दुल अली खान की मृत्यु हो गई। उनके भाई शौकत अली और जुल्फिकार थे। शौकत अली तो खिलाफत के नेता भी थे । उनकी मां आबादी बेगम, जिन्हें प्यार से 'बी अम्मान' के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने बेटों को ब्रिटिश हुकूमत  से आजादी के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। इस बात पर वह दृढ़संकल्प थीं कि  उनके बेटों को उचित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले । सर पर पिता की छत्रछाया की ग़ैर मौज़ूदगी के बावजूद जौहर लगातार अध्ययनरत रहे । पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय गए फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय और अंततः 1898 में लिंकन कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड, इंग्लैंड चले गए और आधुनिक इतिहास का अध्ययन किया।

भारत लौटकर वे तत्कालीन रामपुर राज्य के शिक्षा निदेशक बने और बाद में बड़ौदा सिविल सेवा में गए। द टाइम्स, लंदन, द मैनचेस्टर गार्जियन और द ऑब्जर्वर जैसे प्रमुख ब्रिटिश और भारतीय समाचार पत्रों में लेख लिखकर एक लेखक, वक्ता और एक दूरदर्शी राजनीतिक नेता के रूप में धाक बनाई । 1911 में कलकत्ता में अंग्रेजी साप्ताहिक द कॉमरेड की शुरुआत की जिसका अंतरराष्ट्रीय प्रसार बड़ी तेज़ी से हुआ । फिर 1912 में दिल्ली चले गये और वहां 1913 में एक उर्दू दैनिक समाचार पत्र हमदर्द शुरू किया । किन्तु ब्रिटिश सरकार ने 1914 में दोनों समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा दिया और इसके ही फलस्वरूप वे 1915 से 1919 तक राजनैतिक बंदी के रूप में जेल में रहे । जेल से निकलने के बाद 1920 में भारत की ओर से यूरोप में ख़िलाफ़त आंदोलन की अगुआई की । ब्रिटिश सरकार ने एक बार फिर 1921 से 1923 के बीच ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश में शामिल होने के कारण इन्हें बंदी बना कर जेल में डाल दिया । लगातार जेल की सज़ा, मधुमेह और जेल में उचित पोषण की कमी ने उन्हें बहुत बीमार बना दिया। अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद, उन्होंने 1930 में लंदन में आयोजित पहले गोलमेज 'सम्मेलन' में भाग लिया । 

कथित तौर पर ब्रिटिश सरकार से उनके शब्द थे कि जब तक देश आज़ाद नहीं हो जाता तब तक वह जीवित भारत नहीं लौटेंगे, और यदि आप हमें आज़ादी नहीं देते हैं, आपको मुझे यहीं कब्र देनी होगी।

अपने एक भाषण में वे कहते हैं, "यहां करोड़ों मनुष्यों के इस देश में, जो धर्म से गहराई से जुड़े हुए हैं, और फिर भी समुदायों और संप्रदायों में असीम रूप से विभाजित हैं यह आस्थाओं के संघ से कम कुछ नहीं है । बीस वर्षों से अधिक समय से मैंने एक ऐसे संघ का सपना देखा है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में अधिक भव्य, महान और असीम रूप से अधिक आध्यात्मिक को, और आज जब कई हिंदू-मुस्लिम राजनीतिक मतभेदों के वापसी की भविष्यवाणी करते हैं परन्तु मैं  अभी भी 'यूनाइटेड फेथ्स ऑफ इंडिया' का वह पुराना सपना देखता हूं।''

मौलाना मोहम्म्मद अली हिन्दू मुस्लिम एकता के बड़े पक्षधर थे । उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा कर स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम योगदान दिया । इनका जीवन हमें राष्ट्र के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा देता है । 
लेखक: फरहत अली खान
एम ए गोल्ड मेडलिस्ट

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