*सरकार एव सूचना विभाग की भ्रष्ट कार्यशैली से चरम पर पहुंचा फर्जी पत्रकारों का आतंक*
*सूचना विभाग की कार्यशैली दे रही है दलाल पत्रकारिता को बढावा, आशियाना प्रकरण ताजा उदाहरण ।*
*बिजनौर टुडे- ए एस खान - वामिक खान, लखनऊ ब्यूरो*
लखनऊ- कभी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप मे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से लेकर अनेको सफल आंदोलनों का सूचक रही पत्रकारिता का वर्तमान स्वरूप इतना घिनौना इतना वीभत्स इतना क्रूर हो चुका है कि कोई भी नैतिकतावादी पत्रकार सार्वाजनिक रूप से अपने को पत्रकार कहते हुए शर्म महसूस करने लगा है ।
अनेको सरकारी गैर सरकारी संसथानो कार्यालयों मे पत्रकार के रूप मे सक्रिय दलालो के मकडजाल मे केवल तृतीय तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी ही नही बडे बडे अधिकारी फंसे हैं, जो नही फंसे उनको भीडतंत्र के सहारे दबाव बनाकर फंसाया जाता है, या फिर उच्च अधिकारियों पर दबाव बनाकर उनपर कार्यवाई करवा दी जाती है । ताजा उदाहरण राजधानी लखनऊ के थाना आशियाना का सामने है जहाँ एक कर्त्तव्य निष्ठ पुलिस कर्मी पर कुछ दलाल पत्रकार अवैध वसूली मे रोडा बन्ने पर भीडतंत्र के सहारे दबाव बनाने तथा पुलिस कर्मी पर कार्यवाही कराने हेतु षणयंत्र रच रहे है ।
पत्रकारिता के इस घिनौने स्वरूप के लिये सीधे तौर पर सूचना विभाग और उसके महाभ्रष्ट कर्मचारी जिम्मेदार है जो केवल मुठठी गर्म करने वाले को प्राथमिकता देते है, अखबार छपे ना छपे मानयाता, विज्ञापन, पास, से लेकर संपत्तियों तक को रेवडियो की तरहा बांट दिया जाता है ।
सूचना विभाग मे एक ओर नियम के अनुसार काम करवाने वाले धक्के खा खा कर थक कर बैठ जाते हैं तो वहीँ दूसरी ओर अनेको ऐसे पत्रकार / संपादक जिनको ना तो पत्रकारिता का क,ख,ग, मालूम और ना ही जिनके अखबार और खबरो का कोई अता पता रहता है, वे सीधे डायरेक्टर से लेकर उच्च अधिकारियों के साथ बैठकर चाय पानी करते हैं तथा पत्रकारों को मिलने वाली हर प्रकार की सुविधाओं का लाभ उठा रहे है ।
इनमे युवा पत्रकारों से लेकर 50- 60-70- साल की आयू क्रास कर चुके लोग भी शामिल है जिनहूने पत्रकारिता को मजाक बनाकर रख दिया है ।
इन पत्रकारो की खबरे भले ही कही किसी अखबार मे ना दिखे किन्तु सोशल मीडिया पर इनके उच्च अधिकारियों से लेकर मंत्रियों, वरिष्ठ अधिकारियों के साथ फोटो बराबर तैरते मिलते रहते हैं जिनके सहारे ये भोकाल मेंटेन कर युवा पत्रकारों को फंसाते हैं फिर उनहे दलाली पत्रकारिता का पाठ पढाकर माइक आईडी की तलवार थमाकर फील्ड मे छोड देते हैं इनका काम खबर की तलाश नही शिकार की तलाश होता है ।
यही नही इनमे से अनेको पत्रकार टाइटल रजिस्टर्ड कराकर खुद को संपादक घोषित कर स्वंय अपना संगठन तक गठित कर चुके हैं तथा कही फंसने या अटकने पर ये भीडतंत्र का भोकाल जमाकर प्रशासन से अनैतिक कार्य से लेकर ईमानदार अधिकारियों तर तलवार तक चलवा देते है ।
आशियाना प्रकरण मे भी यही सब हो रहा है जहाँ एक दलाल ने वसूली मे रोडा बननेपर एक ईमानदार पुलिस कर्मी पर फर्जी भोकाल जमाकर कार्यवाई कराने का प्रयास किया ।
ये कोई पहला प्रकरण नही है आए दिन पत्रकारिता की आड मे दलाली करने वाले बेनकाब होते रहते हैं किन्तु सूचना विभाग कोई ठोस कार्रवाई अथवा पत्रकारों की जांच कराने के स्थान पर अनेक ऊल जलूल नियम बनाकर नैतिकतावादी पत्रकारों तथा अखबारों को ही प्रताड़ित कर रहा है, जिनमे से अखबार जमा करने संबंधित ताजा नियम भी शामिल है ।
यदि समय रहते सूचना विभाग तथा सरकार ने कठोर नियम एव कार्रवाई नही की तो इन दलालों का हौसला और बढता ही चला जाएगा तथा ईमानदारी से कार्य करने वाले पत्रकारों, अधिकारियों के सामने गंभीर संकट खडा हो जाएगा, तथा भेड बकरिया झूंड बनाकर शेरो का जंगल मे रहना दूभर कर देंगी ।
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