3 प्रकार की स्त्रियाँ होती हैं- कन्या, पुनर्भु और वेश्या।
आचार्य वात्स्यायन के अनुसार इन तीनों प्रकार की स्त्रियों से पुरुष को प्रेम संबंध जोड़ने चाहिए। पहली स्त्री अर्थात कन्या को सबसे अच्छा माना जाता है। पुनर्भु स्त्री को उससे नीचा और वेश्या स्त्री को सबसे नीचा माना गया है। जिस लड़की का विवाह नहीं होता उसे कन्या कहा जाता है। जो लड़की विवाह से पहले किसी पुरुष के साथ संभोग करती है तो उसे पुनर्भु तथा कई पुरूषों के साथ संबंध बनाने वाली स्त्री को वेश्या कहा जाता है।
आचार्यों ने कामसूत्र के अलावा दूसरे ग्रंथों में भी कई प्रकार की स्त्रियों के लक्षण बताए हैं-
1- चित्रिणी
2- परकीया
3- सामान्या
4- स्वकीया
5- पदमिनी
6- हस्तिनी
7- शंखिनी
8- मुग्धा
9- ज्ञातयौवना
10- मध्यमा
11- प्रौढ़ा
12- आरूढ़ यौवना मुग्धा
13- नवलअनंग
14- लज्जाप्रिया मुग्धा
15- लुब्धपत्ति प्रौढ़ा
16- प्रगल्भव चना मध्या
17- आक्रमिता प्रौढ़ा
18- सुरतविचित्रा मध्या
19- विचित्र-विभ्रमा प्रौढ़ा
20- समस्तरत कोवि प्रौढ़ा
21- कलहातरिता
22- धीरा
23- उत्कण्ठिता
24- धीरा-धीरा
25- स्वाधीन पतिका
26- प्रादुर्भतमनोभवा मध्या
27- सम्सयाबन्धु
28- खंडिता
29- स्वयंदूतिका
30- प्रोषितापतिका
31- लक्षिता
32- लघुमानवती
33- मुदिता
34- अयुशयना
35- मध्य मानवती
36- अनूढ़ा
37- गुरू मानवती
38- रूपगर्विता
39- गर्विता
40- अन्य संभोग दुःखिनी
41- कुलटा
42- कनिष्ठा
43- अदिव्या
44- वचनविदग्धा
45- क्रियाविदिग्धा
46- दिव्या
47- दिव्या दिव्या
48- कामगर्विता
49- मध्यमा
50- उत्तमा
51- प्रेमगर्विता
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