Wednesday, 29 May 2024

बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा...🤔दुनिया भर की ताकत का भंडार आपके बगल में है, और एक आप हैं कि दुनिया भर में तलाश कर रहे हैं...

#गूलर

 बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा...🤔
दुनिया भर की ताकत का भंडार आपके बगल में है, और एक आप हैं कि दुनिया भर में तलाश कर रहे हैं...
ये कमाल का पौधा आपके आसपास, बगल में लगा हुआ है लेकिन लोग ड्राई फ्रूट, दवाओं और छायादार वृक्षो के पीछे भाग रहे हैं। ये अकेला वृक्ष कॉम्बो पैक है साहब जो अपने आपमे एक इकोसिस्टम है। 
बाकी की माथा पच्ची भी होगी, तब तक आप अपना अनुभव शेयर करें, जरा गैसिंग लगाइये कि मैं क्या कहने वाला हूँ। वैसे उमर के विषय मे हमारे क्षेत्र में एक कहावत है...

आंखि देख के माखी न निगलि जाए!
सहगी ऊमर फोड़ खे न खाय!!
इस देशी कहावत के अनुसार अगर ऊमर/गूलर को फोड़ कर खाया जाये तो हवा लगते ही इसमे कीड़े पड़ जाते हैं। इसीलिये इसे बिना फोड़े ही खाया जाता है। लेकिन सच तो यह है, कि इसमें छोटे छोटे कीड़े (wasp) मौजूद रहते ही हैं। वनस्पति विज्ञान की भाषा मे गूलर का फल हायपेन्थोडीयम कहलाता है, जिसमे फूल/ पुष्पक्रम के आधारीय भाग मिलकर एक बड़े कटोरे या बॉल जैसी संरचना बना लेते हैं। और इस गोलाकार फल जैसी संरचना के भीतर कई नर और मादा पुष्प/ जननांग रहते है, जिनमें परागण और संयुग्मन के बाद बीज बन जाते हैं। 
                फल के परिपक्व होने के पहले उस पर विशेष प्रकार की मक्खी  सहित कई कीट प्रवेश कर जाते हैं। कई बार वे अपना जीवन चक्र भी यहीं पूर्ण करते हैं। जैसे ही फल टूटकर जमीन से टकराता है, यह फट जाता है, और कीड़े मुक्त हो जाते हैं। ऐसा न भी हो तो कीट एक छिद्र करके बाहर निकल जाते हैं। 

चलिये इन सबसे हटकर अब चर्चा करते हैं, इसके औषधीय महत्व की, हमारे गाँव के बुजुर्गों के अनुसार इसके फलो को खाने से गजब की ताकत मिलती है, और बुढापा थम से जाता है। मतलब अंजीर की तरह ही इसे भी प्रयोग किया जाता है। 
मेरी दादी कहती थी कि ऊमर के पेड़ के नीचे से बिना इसे खाये नही गुजर सकते हैं। इसकी छाल को जलाकर राख को कंजी के तेल के साथ पाइल्स के उपचार में प्रयोग करते हैं। दूध का प्रयोग चर्म रोगों में रामवाण माना जाता है। दाद होने पर उस स्थान पर इसका ताजा दूध लगाने से आराम मिलता है। कच्चे फल मधुमेह को समाप्त करने की ताकत रखते हैं। पेट खराब हो जाने पर इसके 4 पके फल खा लेना इलाज की गारंटी माना जाता है। 
                वहीं एक ओर इसके पेड़ को घर पर या गाँव मे लगाना वर्जित है, शायद भूतों से इसे जोड़ते हैं, लेकिन वास्तव में यह दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधि है। वास्तु के अनुसार दूध और कांटे वाले पौधे घर पर लगाना उचित नही होता। 
              बुद्धिजीवियो का मानना है कि वास्तव में इसे पक्षियों और जनवरो के पोषण के लिये छोड़ने के लिए ऐसी मान्यताएँ बना दी गई होंगी, जिससे लोग इसके फलों और पेड़ का अत्यधिक दोहन न कर सकें। पक्षीयों के लिए तो यह वरदान है। और पक्षी ही इसे फैलाते भी हैं। व्यवहारिक रूप से यह पक्षियों का पसंदीदा है तो पक्षियों की स्वतंत्रता के उद्देश्य से भी इसे घर से दूर लगाना सही प्रतीत होता है।
              इसकी कोमल फलियों को सब्जियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जो चिकित्सा का एक अनुप्रयोग है। 
ऐसा कहा जाता है, कि दुनिया मे किसी ने गूलर का फूल नही देखा है, इसका कारण और जबाब मैं पहले ही बता चुका हूं। 
साभार

भुना-भिगोया या उबाला हुआ…जानें किस चने का सेवन आपकी सेहत के लिए है फायदेमंद?चना आपकी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है लेकिन भुने, भिगोये या उबले हुए चने में आपकी स्वस्थ्य के लिए ज़्यादा फादयेमंद क्या है

भुना-भिगोया या उबाला हुआ…जानें किस चने का सेवन आपकी सेहत के लिए है फायदेमंद?

चना आपकी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है लेकिन भुने, भिगोये या उबले हुए चने में आपकी स्वस्थ्य के लिए ज़्यादा फादयेमंद क्या है

चना को पोषक तत्वों का भंडार कहा जाता है। रोजाना चना खाने से शरीर को प्रोटीन, कार्ब्स, आयरन और फाइबर मिलता है। हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक एक स्वस्थ व्यक्ति को रोजाना 50 से 60 ग्राम चने का सेवन करना चाहिए। लेकिन अक्सर लोग इस बात को लेकर कंफ्यूज रहते हैं कि किस चने को खाने से हमे फायदा मिलता है...भुने हुए, भिगोये हुए या फिर उबाले हुए? अगर आप भी इसी कश्मकश में हैं तो चलिए हम आपको बताते हैं किस चने का सेवन आपके लिए लाभकारी है?

पोषक तत्वों से भरपूर है चना:

चने का सेवन करना सेहत के लिए फायदेमंद है। चाहे वो आप किसी भी रूप में करें। भुने हुए, भिगोये हुए या फिर उबाले हुए… ये तीनों ही प्रकार के चने आपकी सेहत के लिए लाभकारी ही हैं। चलिए हम आपको बताए यहीं इनका सेवन करने से आपको क्या फायदे होंगे।

भुने हुए चने-  भुने चने का स्वाद ज़्यादातर लोगों को पसंद आता है। लोग नाश्ते में इन्हें चाय के साथ खाते हैं। डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है। इसे खाने से दिल की सेहत भी सही रहती है। 

भिगोए हुए चने- भिगोए हुए चने में पोषक तत्वों का भंडार होता है। अंकुरित चने में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पायी जाती है। भीगे हुए चने मसल्स को मजबूत बनाते हैं। अगर आपको डाइजेशन की समस्या है तो इसे सीमित मात्रा में खाएं।  

उबाले हुए चने- उबाले हुए चने के सेवन से आपकी हड्डियों को मजबूत मिलती है और शरीर को कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाने में मदद करते हैं।

चना खाने से सेहत को मिलते हैं ये फायदे:

चने में आयरन पाया जाता है जो खून की कमी को दूर करने में कारगर है।

अगर आपके आंखों की रौशनी कमजोर है तो चने का सेवन करें। इससे आंखों की रोशनी तेज होती है। 

चना का सेवन कर आप ब्लड शुगर को कंट्रोल कर सकते हैं। चना शरीर में मौजूद एक्स्ट्रा ग्लूकोज की मात्रा को कम कर डायबिटीज को कंट्रोल करता है।

चने का सेवन आपकी हड्डियों को मजबूत बनाता है। 

क्या है चने खाने का सही समय?

चने का सेवन आप सुबह और शाम के नाश्ते में कर सकते हैं। सुबह हमेशा हेवी ब्रेकफास्ट करना चाहिए। चना का सेवन करने से जल्दी भूख नहीं लगेगी इसलिए आप इसे सुबह खाएं। वहीं  अगर आप वेट लॉस जर्नी पर हैं तो शाम के नाश्ते में भी इसका सेवन कर सकते हैं। सुबह के  समय आप भिगोये हुए चने खाएं इससे सेहत को भी फायदा मिलेगा। वहीं, शाम में आप भुने हुए चने का सेवन करें। रात को डिनर में आप उबाले हुए चने का सेवन कर सकते हैं।
DR SAMARAJIT TRIPATHY
KRIYA YOGI SADHAK
JAGANNATH DHAM, 
DAIBI SHAKTI CHIKITSAWA & NATURPATHY HEALTH CARE,GANJAM, ODISHA
9078965195,7978846696

Tuesday, 28 May 2024

नदी से - पानी नहीं , रेत चाहिएपहाड़ से - औषधि नहीं , पत्थर चाहिएपेड़ से - छाया नहीं , लकड़ी चाहिएखेत से - अन्न नहीं , नकद फसल चाहिए

>>> बहुत ही सटीक विश्लेषण लिखा है...!!

नदी से  -  पानी नहीं , रेत चाहिए
पहाड़ से - औषधि नहीं , पत्थर चाहिए
पेड़ से  - छाया नहीं , लकड़ी चाहिए
खेत से - अन्न नहीं , नकद फसल चाहिए

उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर
काट लिए पेड़, तोड़ दी मेड़

रेत से पक्की सड़क , पत्थर से मकान बनाकर लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर,

अब भटक रहे हैं.....!!
सूखे कुओं में झाँकते,
रीती नदियाँ ताकते,
झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में
बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम....!!!
और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं आक्सीजन

फिर भी सब बर्तन खाली l                                                           सोने के अंडे के लालच में , मानव ने मुर्गी मार डाली !!!

                  ।।सोचो कैसे  मंगल हो।।

                         🚩 हर हर महादेव 🚩

༺꧁जय महाकाल की꧂༻💐
जय देवाधिदेव महादेव💐
ॐ हर हर हर महादेव💐
आदिअनादि अनन्तशिवहर💐


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सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्योहारा में मनाया गया "विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस "/"वर्ल्ड मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे"/स्योहारा-डॉ०उस्मान ज़ैदी)-------

-सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्योहारा में मनाया गया "विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस "/"वर्ल्ड मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे"/स्योहारा-डॉ०उस्मान ज़ैदी)-------                                  
शासन के आदेशों के क्रम में आज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्योहारा में अधीक्षक डॉक्टर बी के स्नेही के नेतृत्व में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया गया ।इस दौरान अधीक्षक डॉक्टर बी के स्नेही के नेतृत्व में  पूरे ब्लॉक के पीएचसी और हेल्थ वैलनेस सेंटर  और उपकेंद्रों पर भी उक्त कार्यक्रम मनाया गया और किशोरियों को सेनेटरी नेपकिन पैड वितरित किए गए।इस दौरान डॉक्टर स्नेही ने बताया कि इस बार की थीम "टूगेदर फोर ए पीरियड फ्रेंडली वर्ल्ड "। डा स्नेही ने बताया कि माहवारी के दौरान साफ सूती कपड़े या पैड का इस्तेमाल करें,कपड़े का पैड या नेपकिन गीला हो जाने पर अथवा आवश्यकता अनुसार बदले, कपड़े के पैड को हर उपयोग के बाद साबुन से धोए और धूप में सुखाए, कपड़े या पैड बदलने के पहिले और बाद में साबुन से हाथ धोए, पैड बदलते समय हर बार  अपने जननांग को पानी से धोए  और उचित सफाई नहाना खाना और खेलकूद जारी रखे। अधीक्षक सीएचसी स्योहारा डॉक्टर बी के स्नेही ने इस दौरान बताया कि प्रति वर्ष 28 मई को दुनिया भर में ‘विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस’ यानी ‘वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे’ मनाया जाता है. इस दिन को माहवारी या मासिक धर्म के प्रति स्वच्छता बनाये रखने और इस से सम्बंधित भ्रांतियां मिटाने के उद्देश्य से मनाया जाता है.
बता दें कि गांव ही नहीं, शहरों में भी रहने वाली बहुत सी महिलाएं आज के इस हाईटेक दौर में भी मासिक धर्म से जुड़ी कई जरूरी चीजों से अंजान हैं. जिसकी वजह से उनके द्वारा बरती गयी थोड़ी सी भी लापरवाही, महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर और योनी संक्रमण जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बना सकती है.
‘वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे’ मनाने की शुरुआत सबसे पहले वर्ष 2014 में की गयी थी. जिसको जर्मन नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन WASH यूनाइटेड ने शुरू किया था. तब से प्रति वर्ष 28 मई को ‘विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस’ सेलिब्रेट किया जाता है.
‘वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे’ मनाने का उद्देश्‍य, युवतियों और महिलाओं को माहवारी के दौरान स्‍वच्‍छता का ख्याल रखने के प्रति जागरूक करना है. साथ ही मासिक धर्म के सम्बन्ध में अहम जानकारी उपलब्ध करवाना है. ताकि वो किसी तरह की बीमारी का शिकार होने से बची रह सकें.
वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे’ 28 तारीख को मनाये जाने का खास महत्त्व है. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर महिलाओं और युवतियों को हर महीने 5 दिन मासिक धर्म होता है और पीरियड्स साइकिल का औसत अंतराल 28 दिन का होता है. इसी वजह से इस दिन को 28 तारिख को मनाया जाता है.!
आज के हाईटेक दौर में भी ऐसी युवतियां और महिलाएं बड़ी संख्या में हैं. जो मासिक धर्म से जुड़ी बातों पर खुलकर बात नहीं कर पाती हैं. इसलिए वो इन बातों से अंजान रहती हैं कि माहवारी के दौरान किन बातों का ख्याल रखना जरूरी है. साथ ही उनको ये बताने वाला भी कोई नहीं होता है कि पीरियड के समय किस तरह की दिक्कतें सामने आ सकती हैं और कौन सी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है. ऐसे में ‘विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस’ के अवसर पर महिलाओं और युवतियों को इन ही बातों को समझाने की कोशिश की जाती है.
साथ ही इस बात पर जोर दिया जाता है कि मासिक धर्म एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, जिस पर खुलकर बात करना जरूरी है. जिससे उनको इससे जुड़ी किसी भी तरह की बीमारी से बचाया जा सके। साथ ही इस दौरान  उपयोग में लाए जाने वाले नेपकिन पैड के उचित निस्तारण के बारे में सभी किशोरियों को बताया गया।इस दौरान स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी कोमल सिंह,डॉक्टर रहमत, डा राकेश कुमार, बीपीएम प्रमोद कुमार, बीसीपीएम सुधीर कुमार, आई ओ वीर सिंह, हेल्थ सुपरवाइजर राजेश कुमार, फार्मासिस्ट हरीश रोहियाल, फार्मासिस्ट प्रदीप रावत फार्मासिस्ट योगेश कुमार, ऑप्टोमेट्रिक धीरेंद्र कुमार स्टाफ नर्स रसीदा ,अनम,राशि, अनीता और ज्योति आदि उपस्थित रही ।

Sunday, 26 May 2024

गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।बेचा है ईमान धरम तब, घर में शानो शौकत आई है।संतोष बेच, तृष्णा खरीदी, देखो कितनी मंहगाई है।

गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।
जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।
बेचा है ईमान धरम तब, घर में शानो शौकत आई है।
संतोष बेच, तृष्णा खरीदी, देखो कितनी मंहगाई है।

बीघा बेच स्कवायर फीट खरीदा, ये कैसी सौदाई है।  
संयुक्त परिवार के वट वृक्ष से टूटी, ये पीढ़ी मुरझाई है।।  
रिश्तों में है भरी चालाकी, हर बात में दिखती चतुराई है।
कहीं गुम हो गई मिठास, जीवन से, हर जगह कड़वाहट भर आई है।।    

रस्सी की बुनी खाट बेच दी, मैट्रेस ने जगह बनाई है। 
अचार, मुरब्बे को धकेल कर, शो केस में सजी दवाई है।।  
माटी की सोंधी महक बेच के, रुम स्प्रे की खुशबू पाई है।
मिट्टी का चुल्हा बेच दिया, आज गैस पे बेस्वाद सी खीर बनाई  है।।  

पांच पैसे का लेमनचूस बेचा, तब कैडबरी हमने पाई है।
बेच दिया भोलापन अपना, फिर मक्कारी पाई है।।
सैलून में अब बाल कट रहे, कहाँ घूमता घर- घर नाई है।
दोपहर में अम्मा के संग, गप्प मारने क्या कोई आती चाची ताई है।।  

मलाई बरफ के गोले बिक गये, तब कोक की बोतल आई है।  
मिट्टी के कितने घड़े बिक गये, तब फ्रिज में ठंढक आई है ।।
खपरैल बेच फॉल्स सीलिंग खरीदा, हमने अपनी नींद  उड़ाई है। 
बरकत के कई दीये बुझा कर, रौशनी बल्बों में आई है।।

गोबर से लिपे फर्श बेच दिये, तब टाईल्स में चमक आई है।
देहरी से गौ माता बेची, फिर संग लेटे कुत्ते ने पूँछ हिलाई है ।।
बेच दिये संस्कार सभी, और खरीदी हमने बेहयाई  है।
ब्लड प्रेशर, शुगर ने तो अब, हर घर में ली अंगड़ाई है।।  

दादी नानी की कहानियां हुईं झूठी, वेब सीरीज ने जगह बनाई है।
बहुत तनाव है जीवन में, ये कह के मम्मी ने दो पैग लगाई है।।

खोखले हुए हैं रिश्ते सारे, नहीं बची उनमें सच्चाई है।
चमक रहे हैं बदन सभी के, दिल पे जमी गहरी काई है।। 

गाँव बेच कर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई  है।।
जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।।
💞🙏💞

Thursday, 23 May 2024

क्या मस्जिदें इबादत के साथ समाजिक खिदमात को भी अंजाम दे सकती हैं फरहत अली खान*

*क्या मस्जिदें इबादत के साथ समाजिक खिदमात को भी अंजाम दे सकती हैं फरहत अली खान*
 
हलचल भरे शहरों और शांत कस्बों में, मस्जिदें आध्यात्मिक अभयारण्य और सामुदायिक सभा के प्रतीक के रूप में खड़ी होती हैं। फिर भी, पूजा स्थलों के रूप में अपनी पारंपरिक भूमिका से परे, मस्जिदों में सीखने, ज्ञान को बढ़ावा देने, ज्ञानोदय और सामाजिक उन्नति के जीवंत केंद्रों के रूप में विकसित होने की अपार क्षमता है।
शिक्षा के केंद्र के रूप में मस्जिदों के समृद्ध इतिहास पर विचार करते समय, पैगंबर मुहम्मद और प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय के जीवन में उनके गहन महत्व को स्वीकार करना अनिवार्य है। इस्लाम की शुरुआत से ही, मदीना पहुंचने पर पैगंबर का पहला कार्य एक मस्जिद की स्थापना करना था, जिसमें पूजा स्थल और सांप्रदायिक सभा के रूप में इसके सर्वोपरि महत्व पर जोर दिया गया था। समय के साथ, हज़रत अबू बक्र और हज़रत उस्मान सहित लगातार नेताओं ने समुदाय की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए इसके रखरखाव और विस्तार को सुनिश्चित किया। वास्तव में, मस्जिद केवल पांच दैनिक प्रार्थनाओं के प्रदर्शन के लिए एक स्थल नहीं थी, बल्कि गतिविधि और जुड़ाव का एक जीवंत केंद्र थी। इसने व्यक्तिगत मामलों से लेकर सामुदायिक प्रशासन तक, कई मामलों पर परामर्श और चर्चा के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया। इसके अलावा, मस्जिद समग्र देखभाल का केंद्र थी, जो अपने उपस्थित लोगों की शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करती थी। धार्मिक शिक्षा से परे, इसने इस्लामी न्यायशास्त्र पर अध्ययन मंडलों की मेजबानी की, क्लीनिकों के माध्यम से चिकित्सा सहायता प्रदान की, और कम भाग्यशाली लोगों को जीविका प्रदान की। यह बहुआयामी दृष्टिकोण इस्लाम की समग्र दृष्टि का उदाहरण देता है, जो आध्यात्मिक पूर्ति और सामाजिक कल्याण के अंतर्संबंध को पहचानता है।
पूरे इतिहास में, मस्जिदें प्रार्थना कक्षों से कहीं अधिक रही हैं। वे ज्ञानोदय के प्रकाशस्तंभ थे, जहां विद्वान विचारों का आदान-प्रदान करने, दर्शनशास्त्र पर बहस करने और ज्ञान की गहराई में जाने के लिए एकत्र होते थे। बगदाद में हाउस ऑफ विजडम और फ़ेज़, मोरक्को में अल-क़रावियिन मस्जिद जैसे संस्थानों का शानदार इतिहास मध्य युग के दौरान बौद्धिक प्रवचन को आकार देने और ज्ञान को संरक्षित करने में मस्जिदों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का प्रमाण है। आज, जब हम एक जटिल और परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में रहते हैं, तो महत्वपूर्ण सोच, नवाचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले शिक्षण केंद्रों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। मस्जिदें, समुदायों में अपने केंद्रीय स्थान और इस्लाम में शिक्षा पर अंतर्निहित फोकस के साथ, इस शून्य को भरने के लिए विशिष्ट रूप से तैनात हैं। कल्पना करें कि आप किसी मस्जिद में न केवल प्रार्थना के लिए, बल्कि आकर्षक सेमिनारों, विचारोत्तेजक व्याख्यानों और इंटरैक्टिव कार्यशालाओं के लिए भी जा रहे हैं। एक ऐसे स्थान की कल्पना करें जहां सभी पृष्ठभूमि के व्यक्ति विज्ञान, कला, साहित्य और दर्शन का पता लगाने के लिए एक साथ आते हैं - जहां ज्ञान सीमाओं से परे है और समझ को बढ़ावा देता है।
इस दृष्टिकोण को साकार करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाए जा सकते हैं। मस्जिद समितियाँ अपने घटकों की आवश्यकताओं और हितों के अनुरूप पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों, सामुदायिक संगठनों और स्थानीय सरकारों के साथ सहयोग कर सकती हैं। वे गतिशील शिक्षण वातावरण बनाने के लिए पुस्तकालयों, व्याख्यान कक्षों और मल्टीमीडिया संसाधनों सहित अत्याधुनिक सुविधाओं में निवेश कर सकते हैं। इसके अलावा, प्रौद्योगिकी को अपनाने से भौतिक सीमाओं से परे मस्जिद-आधारित शिक्षा की पहुंच का विस्तार हो सकता है । आइए हम पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों द्वारा प्रस्तुत महान उदाहरण से प्रेरणा लें, मस्जिदों को न केवल पूजा के घरों के रूप में बल्कि शिक्षा, सशक्तिकरण और सांप्रदायिक एकजुटता के गतिशील केंद्र के रूप में अपनाएं। .
फरहत अली खान
मुस्लिम महासंघ

Wednesday, 22 May 2024

आज से 8000 साल पहले लैटिन अमेरिका के पेरू इलाके में इंसानों ने जंगली आलू के पौधे की खेती करनी शुरू की.प्राचीन इंका साम्राज्य के इलाकों में आलू की जमकर खेती करने की शुरुआत हुई. आलू धीरे धीरे पूरे अमेरिकी महाद्वीप पर फैल गया.

आज से 8000 साल पहले लैटिन अमेरिका के पेरू इलाके में इंसानों ने जंगली आलू के पौधे की खेती करनी शुरू की.

प्राचीन इंका साम्राज्य के इलाकों में आलू की जमकर खेती करने की शुरुआत हुई. आलू धीरे धीरे पूरे अमेरिकी महाद्वीप पर फैल गया.

आलू मूलनिवासियों की भोजन संस्कृति का अहम हिस्सा बन गया.

लेकिन 9500 वर्षों तक आलू के बारे में यूरोप, अफ्रीका और एशिया अनजान था. धरती की बड़ी आबादी बिना आलू खाए जी रही थी.

◆◆◆
1526 में स्पैनिश साम्राज्यवाद ने पेरू को अपनी कॉलोनी बनाया. यहीं से स्पैनिश आक्रमणकारियों को आलू के बारे में जानकारी हुई.

अंग्रेजी शब्द Potato की उत्पत्ति स्पैनिश शब्द Patata से हुई.

हिस्पैनिओला द्वीप के मूलनिवासी Taino लोग शकरकंद को Batata बोलते थे. और Quechua मूलनिवासी आलू Papa बोलते थे.

शकरकंद और आलू दिखने में भले एक जैसे हो लेकिन दोनों एक ही वनस्पति परिवार के नही है. आलू तंबाकू वनस्पति परिवार से है.

स्पैनिश लोगों ने Taino शब्द Batata को अपनाया जो Patata बना, और अंग्रेजी में Potato.

लेकिन महाराष्ट्र में आज भी आलू को लोग Batata ही कहते हैं और अमरूद को Peru.

◆◆◆
यूरोपीन्स आलू को जहाजों में भर भर पर यूरोप लेकर आए.

शुरुआत में आलू की बहुत धीमी खेती हुई. यूरोपीन्स ने आलू को शक की नजर से देखा.

अफवाह फैली की आलू खाने से बीमारियां होती है. शरीर पर फोड़ी फुंसी होती है. 

1589 में आयरलैंड में आलू की खेती शुरू हुई. इसके बावजूद आलू को पूरे यूरोप में फैलने के लिए कई दशक लग गए.

1756 में युद्ध के समय पोलैंड के राजा ने आलू की खेती करना अनिवार्य बनाया. यह सोचकर कि गरीब किसान और मजदूर इसे खाकर अपने पेट को भूख मिटाएंगे.

इसका असर यह हुआ कि ज़मीन के गर्भगृह फलने फूलने वाला आलू यूरोप के भोजन संस्कृति का अहम हिस्सा बन गया.

◆◆◆
फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी, स्पेन इटली हर यूरोपीय देशों ने आलू को अपनाया. आलू अब यूरोप में एक सनक बन चुका था. फुले को तोड़कर गार्डन तक मे आलू की खेती करनी शुरुआत हुई.

आलू यूरोप के बाहर फैलने के लिए बेकरार था. यूरोपीन्स ने आलू को अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और बाद में एशिया में इंट्रोड्यूस किया.

1675 तक आलू पश्चिम भारत में दस्तक दे चुका था. अजमेर और सूरत में आलू के खेती का वर्णन मिलता है.

18वीं सदी तक आलू पूरे उत्तर भारत में उगाए जाने लगा.

◆◆◆
वैसे आलू अमीर गरीब सभी खाते थे. लेकिन ग्रामीण इलाकों में विशेषकर खेतिहर मजदूर, कारीगर, कामगार बिना तेल मसाला आदि के आलू केवल आग में भुजकर खा सकते थे.

आलू ने गरीबों को भूख से बचाया. आलू देवता का दूसरा रूप है.

सब्ज़ियों का राजा कोई है तो आलू है.

मुग़लों के समोसे से मांस निकाल कर उसमें आलू भरा गया. और इस तरह भारतीय समोसे का जन्म हुआ.

अब तो ऐसी कोई सब्ज़ी नही जो बिना आलू की बनती हो.

शराब, तंबाकू के बाद अगर दुनिया में लोगों को किसी चीज का नशा है तो वो आलू खाने का है.

गेंहू, मक्का, चावल और शक्कर के बाद दुनिया में सबसे जरूरी फसल कोई है तो वो आलू है.

बिना आलू के हम दुनिया की कल्पना नही कर सकते.

Photo : ग्रामीण पेरू में आलू की खेती करती हुई महिला.
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महिला खेल प्रशिक्षक पर हुए जान लेबा हमले की घोर निंदा की*

*महिला खेल प्रशिक्षक पर हुए जान लेबा हमले की घोर निंदा की* 

एन आई एस खेल प्रशिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष फरहत अली खान खेलो इंडिया द्वारा मुरादाबाद स्पोर्टस
 स्टेडियम नियुक्त हॉकी प्रशिक्षिका नेहा सिंह पर एक खिलाड़ी द्वारा हॉकी से किए गए जानलेवा हमले की घोर निंदा करते हुए कहा , की नेहा सिंह को खेलो इंडिया द्वारा निशुल्क अच्छा उपचार कराया जाए । जिससे वह शीघ्र से अतिशीघ्र स्वस्थ होकर मैदान में फिर से राष्ट्रीय खेल हॉकी को बढ़ावा दें ।  नेहा सिंह को भारतीय खेल प्राधिकरण खेलो इंडिया और खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश अच्छे उपचार करने की निशुल्क व्यवस्था करें ,जिससे उन्हें भविष्य में कोई कठिनाई सामने ना आए । उन्होंने कहा कि हमने भारतीय खेल प्राधिकरण और खेलो इंडिया को पत्र लिखकर अवगत कराया है कि भविष्य में इस तरह की कोई अपराधिक घटना ना हो । इसके लिए उचित और नियम अनुसार प्रबंध किया जाए । महिला प्रशिक्षिका के स्वास्थ्य संबंधी सभी सुविधाओं का प्रबंध खेल प्राधिकरण भारत खेलो इंडिया द्वारा किया जाना चाहिए । उन्होंने कहा के देश भर के खेल प्रशिक्षकों के साथ खेल प्रशिक्षक संघ का हमेशा साथ रहेगा और खेल प्रशिक्षकों को न्याय दिलाने का पूरा प्रयास करेगा।
फरहत अली खान 
प्रदेश अध्यक्ष 
एन आई एस खेल प्रशिक्षक 
उत्तर प्रदेशl

Wednesday, 15 May 2024

भारत में मुसलमान: आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियों के बावजूद लोकतंत्र में विश्वास*फरहत अली खान*

*भारत में मुसलमान: आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियों के बावजूद लोकतंत्र में विश्वास*फरहत अली खान* 

भारत की विविध आबादी की जटिल संरचना में, मुस्लिम समुदाय एक महत्वपूर्ण और जीवंत धागे के रूप में खड़ा है। भारत की 1.4 अरब आबादी का लगभग 14% हिस्सा मुस्लिम हैं, जो एक विकसित होते सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव ला रहे हैं। विभिन्न आर्थिक और शैक्षणिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, इस समुदाय के कई लोग भारत की राजनीतिक पहचान को परिभाषित करने वाले लोकतांत्रिक ढांचे के बारे में आशावादी बने हुए हैं। 1949 में बनाया गया भारतीय संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय का वादा करता है। कई भारतीय मुसलमानों के लिए, यह संवैधानिक गारंटी उनके अपनेपन की भावना और भविष्य के लिए आशा का केंद्र है। यह शिकायतों को संबोधित करने के लिए एक मंच और एक रूपरेखा प्रदान करता है जिसके अंतर्गत वे अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं और व्यापक समाज में योगदान कर सकते हैं। सांप्रदायिक तनाव के दौर के बावजूद, भारत में मुसलमान चुनावों में मतदान से लेकर नागरिक समाज में शामिल होने तक, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे हैं।
लोकतंत्र में भारतीय मुसलमानों के विश्वास का एक कारण राजनीतिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी है। भारतीय मुसलमान ऐतिहासिक रूप से राजनीति में सक्रिय रहे हैं और ऐसे नेता तैयार करते रहे हैं जिन्होंने स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारतीय चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार होने वाले लोकसभा चुनाव में अकेले गुजरात की 26 में से 25 सीटों पर 35 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं.
राष्ट्रीय औसत की तुलना में मुसलमानों में गरीबी की उच्च दर और शिक्षा के निम्न स्तर के साथ यह स्थिति बनी हुई है। इस असमानता में कई कारक योगदान करते हैं, जिनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुंच, रोजगार में भेदभाव और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व शामिल हैं। इन मुद्दों के समाधान के लिए लक्षित नीतियों और समावेशी विकास के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, जिसकी वकालत कुछ राजनीतिक नेता और नागरिक समाज संगठन कर रहे हैं। इन चुनौतियों के जवाब में, विभिन्न मुस्लिम नेतृत्व वाली पहल और नागरिक समाज संगठन समुदाय के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं। मुस्लिम संगठनों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों का उद्देश्य वंचित छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। इसी तरह, गैर सरकारी संगठन और जमीनी स्तर के आंदोलन मुस्लिम समुदाय के भीतर गरीबी, स्वास्थ्य और लैंगिक समानता जैसे मुद्दों को संबोधित कर रहे हैं। ये प्रयास विपरीत परिस्थितियों में भारतीय मुसलमानों के लचीलेपन और अनुकूलन क्षमता का उदाहरण देते हैं। वे न्याय और समानता के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति समुदाय की प्रतिबद्धता को भी उजागर करते हैं, तब भी जब व्यवस्था लड़खड़ाती हुई प्रतीत होती है।
हालाँकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, भारतीय मुसलमानों के बीच समग्र भावना आशावाद की ओर झुकी हुई है। लोकतंत्र, प्रतिनिधित्व और न्याय के अपने वादे के साथ, एक मार्गदर्शक प्रकाश बना हुआ है। अधिक समानता और अवसर के लिए चल रहा संघर्ष एक व्यापक कथा का हिस्सा है जो भारत के मुस्लिम समुदाय की ताकत और लचीलेपन को रेखांकित करता है। अंततः, लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर भारतीय मुसलमानों का भविष्य प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित करने और अधिक समावेशी समाज को बढ़ावा देने के सामूहिक प्रयासों पर निर्भर करेगा। जब तक समुदाय लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जुड़ा रहेगा, तब तक एक अधिक न्यायसंगत भविष्य की आशा है जहां आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियों को दूर किया जा सकता है।

फरहत अली खान  
अध्यक्ष मुस्लिम महासंघ

Tuesday, 14 May 2024

भारत के इतिहास में पहला जौहर करने वाली उत्तराखंड की जिया रानी

भारत के इतिहास में पहला जौहर करने वाली उत्तराखंड की जिया रानी 

यूँ तो सम्पूर्ण भारत ही विभिन्न हस्तियों की शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है परंतु इसे साधनों का अभाव कहिए या फिर हमारी शिक्षा नीति की कमजोरी, प्रायः देखा गया है कि ऐसी बहुत सी हस्तियों के बारे में जानने से हम लोग हमेशा वंचित रहे हैं, जिनके त्याग औरबलिदान को कभी संवाद का ज़रिया नहीं मिल सका।

गत वर्ष हम लोगों को मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पद्मावत’ काव्य पर आधारित फ़िल्म देखने को मिली। लेकिन पद्मावती अकेली महिला नहीं थी, जिसे मुस्लिम आक्रान्ताओं के शोषण और व्यभिचारी प्रवृत्ति के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर करना पड़ा था। हालाँकि फ़िल्म आते ही देश का ‘लिबरल वर्ग’ यह भी कहता देखा गया कि सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर करना बेवकूफ़ी भरा निर्णय हुआ करता था। ख़ैर, सबकी अपनी विशिष्ट प्राथमिकताएँ हो सकती हैं।

आज हम इतिहास के पन्नों से किस्सा लेकर आ रहे हैं एक ऐसी वीरांगना का जिन्हें उत्तराखंड (कुमाऊँ) की लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है। यह नाम है- ‘रानी जिया’। जिस प्रकार झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम स्वतंत्रता संग्राम के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित है, उसी तरह से उत्तराखंड की अमर गाथाओं में एक नाम है जिया रानी का।

खैरागढ़ के कत्यूरी सम्राट प्रीतमदेव (1380-1400) की महारानी जिया थी। कुछ किताबों में उसका नाम प्यौंला या पिंगला भी बताया जाता है। जिया रानी धामदेव (1400-1424) की माँ थी और प्रख्यात उत्तराखंडी लोककथा नायक ‘मालूशाही’ (1424-1440) की दादी थी ।

उत्तराखंड के प्रसिद्ध कत्यूरी राजवंश का किस्सा

कत्यूरी राजवंश भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक मध्ययुगीन राजवंश था। इस राजवंश के बारे में माना जाता है कि वे अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज थे और इसलिए वे सूर्यवंशी कहलाते थे। इनका कुमाऊँ क्षेत्र पर छठी से ग्यारहवीं सदी तक शासन था। कुछ इतिहासकार कत्यूरों को कुषाणों के वंशज मानते हैं।

बागेश्वर-बैजनाथ स्थित घाटी को भी कत्यूर घाटी कहा जाता है। कत्यूरी राजाओं ने ‘गिरिराज चक्रचूड़ामणि’ की उपाधि धारण की थी। उन्होंने अपने राज्य को ‘कूर्मांचल’ कहा, अर्थात ‘कूर्म की भूमि’। ‘कूर्म’ भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिस वजह से इस स्थान को इसका वर्तमान नाम ‘कुमाऊँ’ मिला।

कत्यूरी राजवंश उत्तराखंड का पहला ऐतिहासिक राजवंश माना गया है। कत्यूरी शैली में निर्मित द्वाराहाट, जागेश्वर, बैजनाथ आदि स्थानों के प्रसिद्ध मंदिर कत्यूरी राजाओं ने ही बनाए हैं। प्रीतम देव 47वें कत्यूरी राजा थे जिन्हें ‘पिथौराशाही’ नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं के नाम पर वर्तमान पिथौरागढ़ जिले का नाम पड़ा।

जिया रानी

जिया रानी का वास्तविक नाम मौला देवी था, जो हरिद्वार (मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी। सन 1192 में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था, मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा। मौला देवी, राजा प्रीतमपाल की दूसरी रानी थी। मौला रानी से 3 पुत्र धामदेव, दुला, ब्रह्मदेव हुए, जिनमें ब्रह्मदेव को कुछ लोग प्रीतम देव की पहली पत्नी से जन्मा मानते हैं। मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को ‘जिया’ कहा जाता था इस लिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया।

पुंडीर राज्य के बाद भी यहाँ पर तुर्कों और मुगलों के हमले लगातार जारी रहे और न सिर्फ हरिद्वार बल्कि उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ में भी तुर्कों के हमले होने लगे। ऐसे ही एक हमले में कुमाऊँ (पिथौरागढ़) के कत्यूरी राजा प्रीतम देव ने हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की सहायता के लिए अपने भतीजे ब्रह्मदेव को सेना के साथ सहायता के लिए भेजा जिसके बाद राजा अमरदेव पुंडीर ने अपनी पुत्री मौला देवी (रानी जिया) का विवाह कुमाऊँ के कत्यूरी राजवंश के राजा प्रीतमदेव उर्फ़ पृथ्वीपाल से कर दिया।

उस समय दिल्ली में तुगलक वंश का शासन था। मध्य एशिया के लूटेरे शासक तैमूर लंग ने भारत की महान समृद्धि और वैभव के बारे में बहुत बातें सुनी थीं। भारत की दौलत लूटने के मकसद से ही उसने आक्रमण की योजना भी बनाई थी। उस दौरान दिल्ली में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के निर्बल वंशज शासन कर रहे थे। इस बात का फायदा उठाकर तैमूर लंग ने भारत पर चढ़ाई कर दी।

वर्ष 1398 में समरकंद का यह लूटेरा शासक तैमूर लंग, मेरठ को लूटने और रौंदने के बाद हरिद्वार की ओर बढ़ रहा था। उस समय वहाँ वत्सराजदेव पुंडीर शासन कर रहे थे। उन्होंने वीरता से तैमूर का सामना किया मगर शत्रु सेना की विशाल संख्या के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

उत्तर भारत में गंगा-जमुना-रामगंगा के क्षेत्र में तुर्कों का राज स्थापित हो चुका था। इन लुटेरों को ‘रूहेले’ (रूहेलखण्डी) भी कहां जाता था। रूहेले राज्य विस्तार या लूटपाट के इरादे से पर्वतों की ओर गौला नदी के किनारे बढ़ रहे थे।

इस दौरान इन्होंने हरिद्वार क्षेत्र में भयानक नरसंहार किया। जबरन बड़े स्तर पर मतपरिवर्तन हुआ और तत्कालीन पुंडीर राजपरिवार को भी उत्तराखंड के नकौट क्षेत्र में शरण लेनी पड़ी जहाँ उनके वंशज आज भी रहते हैं और ‘मखलोगा पुंडीर’ के नाम से जाने जाते हैं।

लूटेरे तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने के लिए भेजी। जब ये सूचना जिया रानी को मिली तो उन्होंने फ़ौरन इसका सामना करने के लिए कुमाऊँ के राजपूतों की एक सेना का गठन किया। तैमूर की सेना और जिया रानी के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें तुर्क सेना की जबरदस्त हार हुई।

इस विजय के बाद जिया रानी के सैनिक कुछ निश्चिन्त हो गए लेकिन दूसरी तरफ से अतिरिक्त मुस्लिम सेना आ पहुँची और इस हमले में जिया रानी की सेना की हार हुई। जिया रानी एक बेहद खूबसूरत महिला थी इसलिए हमलावरों ने उनका पीछा किया और उन्हें अपने सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में जाकर छिपना पड़ा।

जब राजा प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो जिया रानी से चल रहे मनमुटाव के बावजूद स्वयं सेना लेकर आए और मुस्लिम हमलावरों को मार भगाया। इसके बाद वो जिया रानी को अपने साथ पिथौरागढ़ ले गए।

पिता की मृत्यु के बाद अल्पवयस्क धामदेव बने उत्तराधिकारी

राजा प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद पुत्र धामदेव को राज्य का कार्यभार दिया गया किन्तु धामदेव की अल्पायु की वजह से जिया रानी को उनका संरक्षक बनाया गया। इस दौरान मौला देवी (जियारानी) ने बेटे धामदेव के संरक्षक के रूप में शासन किया, रानी स्वयं शासन संबंधी निर्णय लेती थी और राजमाता होने के चलते उन्हें जिया रानी भी कहा जाने लगा।

वर्तमान में जिया रानी की रानीबाग़ स्थित गुफा के बारे में एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। कत्यूरी वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुँचते हैं। कहते हैं कि कत्यूरी राजा प्रीतम देव की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही तुर्क सेना ने उन्हें घेर दिया।

इतिहासकारों के अनुसार जिया रानी बेहद खूबसूरत और सुनहरे केशों वाली सुन्दर महिला थी। नदी के जल में उसके सुनहरे बालों को पहचानकर तुर्क उन्हें खोजते हुए आए और जिया रानी को घेरकर उन्हें समर्पण के लिए मजबूर किया लेकिन रानी ने समर्पण करने से मना कर दिया।

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि जिया रानी के पिता ने उनकी शादी राजा प्रीतम देव के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध की थी जबकि कुछ कथाओं के आधार पर मान्यता है कि राजा प्रीतमदेव ने बुढ़ापे में जिया से शादी की। विवाह के कुछ समय बाद जिया रानी की प्रीतम देव से अनबन हो गयी और वो अपने पुत्र के साथ गौलाघाट चली गई, जहाँ उन्होंने एक खूबसूरत रानीबाग़ बनवाया। इस जगह पर जिया रानी 12 साल तक रही थी।

दूसरे इतिहासकारों के अनुसार एक दिन जैसे ही रानी जिया नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही उन्हें तुर्कों ने घेर लिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी। उन्होंने अपने ईष्ट देवता का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई।

लूटेरे तुर्कों ने उन्हें बहुत ढूंढा लेकिन उन्हें जिया रानी कहीं नहीं मिली। कहते हैं उन्होंने अपने आपको अपने लहँगे में छिपा लिया था और वे उस लहँगे के आकार में ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है जिसका आकार कुमाऊँनी पहनावे वाले लहँगे के समान हैं। उस शिला पर रंगीन पत्थर ऐसे लगते हैं मानो किसी ने रंगीन लहँगा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी का स्मृति चिन्ह माना जाता है।

इस रंगीन शिला को जिया रानी का स्वरुप माना जाता है और कहा जाता है कि जिया रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए इस शिला का ही रूप ले लिया था। रानी जिया को यह स्थान बेहद प्रिय था। यहीं उन्होंने अपना बाग़ भी बनाया था और यहीं उन्होंने अपने जीवन की आखिरी साँस भी ली थी। रानी जिया के कारण ही यह बाग़ आज रानीबाग़ नाम से मशहूर है।

रानी जिया हमेशा के लिए चली गई लेकिन उन्होंने वीरांगना की तरह लड़कर आख़िरी वक्त तक तुर्क आक्रान्ताओं से अपने सतीत्व की रक्षा की।

वर्तमान में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को चित्रशिला में सैकड़ों ग्रामवासी अपने परिवार के साथ आते हैं और ‘जागर’ गाते हैं। इस दौरान यहाँ पर सिर्फ ‘जय जिया’ का ही स्वर गूंजता है। लोग रानी जिया को पूजते हैं और उन्हें ‘जनदेवी’ और न्याय की देवी मना जाता है। रानी जिया उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र की एक प्रमुख सांस्कृतिक विरासत बन चुकी हैं।

इस देश के लगभग सभी क्षेत्र में शौर्य, बलिदान और त्याग की पराकाष्ठाओं के अनेक उदाहरण मौज़ूद हैं। लेकिन संसाधनों की कमी के कारण देशभर में तमाम ऐसे नायक-नायिकाओं को उस स्तर की पहचान नहीं मिल पाई, जिसके वो हक़दार हैं।

दूसरे पोस्ट में बहुत अधिक जानकारी दी गई है

इतिहास के भूले बिसरे पन्नों से रानी कत्युरी की कहानी----- जरुर पढ़ें और शेयर करें

कुमायूं (उतराखण्ड) के कत्युरी राजवंश की राजमाता वीरांगना जिया रानी(मौला देवी पुंडीर)----

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जय राजपुताना----------

मित्रों इतिहास में कुछ ऐसे अनछुए व्यक्तित्व होते हैं जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते मगर एक क्षेत्र विशेष में उनकी बड़ी मान्यता होती है और वे लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं,

आज हम आपको एक ऐसी ही वीरांगना से परिचित कराएँगे जिनकी कुलदेवी के रूप में आज तक उतराखंड में पूजा की जाती है.

उस वीरांगना का नाम है राजमाता जिया रानी(मौला देवी पुंडीर) जिन्हें कुमायूं की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है ------------

हरिद्वार(मायापुर) के शासक चन्द्र पुंडीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बड़े सामन्त थे,तुर्को से संघर्ष में चन्द्र पुंडीर,उनके वीर पुत्र धीरसेन पुंडीर और पौत्र पावस पुंडीर ने बलिदान दिया।

ईस्वी 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था,मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा,

ईस्वी 1380 के आसपास हरिद्वार पर अमरदेव पुंडीर का शासन था, जिया रानी का बचपन का नाम मौला देवी था,वो हरिद्वार(मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी,

इस क्षेत्र में तुर्कों के हमले लगातार जारी रहे और न सिर्फ हरिद्वार बल्कि गढ़वाल और कुमायूं में भी तुर्कों के हमले होने लगे,ऐसे ही एक हमले में कुमायूं (पिथौरागढ़) के कत्युरी राजा प्रीतम देव ने हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की सहायता के लिए अपने भतीजे ब्रह्मदेव को सेना के साथ सहायता के लिए भेजा, 

जिसके बाद राजा अमरदेव पुंडीर ने अपनी पुत्री मौला देवी का विवाह कुमायूं के कत्युरी राजवंश के राजा प्रीतमदेव उर्फ़ पृथ्वीपाल से कर दिया,

मौला देवी प्रीतमपाल की दूसरी रानी थी,उनके धामदेव,दुला,ब्रह्मदेव पुत्र हुए जिनमे ब्रह्मदेव को कुछ लोग प्रीतम देव की पहली पत्नी से मानते हैं,मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को जिया कहा जाता था इस लिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया,

कुछ समय बाद जिया रानी की प्रीतम देव की पहली पत्नी से अनबन हो गयी और वो अपने पुत्र के साथ गोलाघाट की जागीर में चली गयी जहां उन्होंने एक खूबसूरत रानी बाग़ बनवाया,यहाँ जिया रानी 12 साल तक रही.........

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तैमुर का हमला-------------

ईस्वी 1398 में मध्य एशिया के हमलावर तैमुर ने भारत पर हमला किया और दिल्ली मेरठ को रौंदता हुआ वो हरिद्वार पहुंचा जहाँ उस समय वत्सराजदेव पुंडीर(vatsraj deo pundir) शासन कर रहे थे,उन्होंने वीरता से तैमुर का सामना किया ,

मगर शत्रु सेना की विशाल संख्या के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा,

पुरे हरिद्वार में भयानक नरसंहार हुआ,जबरन धर्मपरिवर्तन हुआ और राजपरिवार को भी उतराखण्ड के नकौट क्षेत्र में शरण लेनी पड़ी वहां उनके वंशज आज भी रहते हैं और मखलोगा पुंडीर के नाम से जाने जाते हैं,

तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने भेजी,जब ये सूचना जिया रानी को मिली तो उन्होंने इसका सामना करने के लिए कुमायूं के राजपूतो की एक सेना का गठन किया,तैमूर की सेना और जिया रानी के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में युद्ध हुआ जिसमे मुस्लिम सेना की हार हुई,इस विजय के बाद जिया रानी के सैनिक कुछ निश्चिन्त हो गये,पर वहां दूसरी अतिरिक्त मुस्लिम सेना आ पहुंची जिससे जिया रानी की सेना की हार हुई,और सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में जाकर छिप गयी।

जब प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो स्वयं सेना लेकर आये और मुस्लिम हमलावरों को मार भगाया,इसके बाद में वो जिया रानी को पिथौरागढ़ ले आये,प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद मौला देवी ने बेटे धामदेव के संरक्षक के रूप में शासन भी किया था।वो स्वयं शासन के निर्णय लेती थी। माना जाता है कि राजमाता होने के चलते उसे जियारानी भी कहा जाता है। मां के लिए जिया शब्द का प्रयोग किया जाता था। रानीबाग में जियारानी की गुफा नाम से आज भी प्रचलित है। कत्यूरी वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुंचते हैं।

यहाँ जिया रानी की गुफा के बारे में एक और किवदंती प्रचलित है---------------

"कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीपाल उर्फ़ प्रीतम देव की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। वह बहुत सुन्दर थी। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, 

वैसे ही मुस्लिम सेना ने घेरा डाल दिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी।उसने अपने ईष्ट का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई। मुस्लिम सेना ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा परन्तु वे कहीं नहीं मिली। 

कहते हैं, उन्होंने अपने आपको अपने घाघरे में छिपा लिया था। वे उस घाघरे के आकार में ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे के समान हैं। उस शिला पर रंग-विरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं - मानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी। 

वह सदा के लिए चली गई परन्तु उसने अपने सतीत्व की रक्षा की। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है।कुमाऊं के प्रवेश द्वार काठगोदाम स्थित रानीबाग में जियारानी की गुफा का ऐतिहासिक महत्व है"""

कुमायूं के राजपूत आज भी वीरांगना जिया रानी पर बहुत गर्व करते हैं,

उनकी याद में दूर-दूर बसे उनके वंशज (कत्यूरी) प्रतिवर्ष यहां आते हैं। पूजा-अर्चना करते हैं। कड़ाके की ठंड में भी पूरी रात भक्तिमय रहता है।

महान वीरांगना सतीत्व की प्रतीक पुंडीर वंश की बेटी और कत्युरी वंश की राजमाता जिया रानी को शत शत नमन.....

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सत्येन्द्रनाथ बोस भारत के वह शोधकर्ता थे, जिन्हें 2012 में न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार में "गॉड पार्टिकल" के रूप में वर्णित किया गया था। वह अपने 1924 के शोध के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका यह शोध "बोस-आइंस्टीन क्वांटम" के लिए महत्वपूर्ण माना

#सत्येन्द्रनाथ बोस भारत के वह शोधकर्ता थे, जिन्हें 2012 में न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार में "गॉड पार्टिकल" के रूप में वर्णित किया गया था। वह अपने 1924 के शोध के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका यह शोध "बोस-आइंस्टीन क्वांटम" के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

तो चलिए जानते हैं "गॉड पार्टिकल" सत्येन्द्रनाथ बोस से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-
1.भौतिकी के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए, विज्ञानी पाल डिरक ने ‘बोसोन पार्टिकल’ का नाम उनके नाम पर रखा था।

2. सत्येंद्रनाथ बोस को बंगाली और अंग्रेजी के अलावा, फ्रेंच, जर्मन और संस्कृत भी आती थी। इसके साथ ही वह लॉर्ड टेनीसन, रबिन्द्रनाथ टैगोर और कालिदास की कविताओं में भी रुचि रखते थे।

3. जब सत्येंद्रनाथ बोस के शोध पत्र 'प्लैंक लॉ एंड द हाइपोथिसिस ऑफ लाइट क्वांटा' को छापने से मना कर दिया गया था, तब बोस ने अपना यह शोध पत्र एल्बर्ट आइंस्टीन को भेजा, जिन्होंने इस शोध पत्र के महत्व को समझा और इसका जर्मनी में ट्रांसलेशन कर बोस के नाम पर इसे छपवाया।

4. बोस ने 1926 में ढाका यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन तब वह इस पद के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाए थे, क्योंकि उनके पास डॉक्टरेट की डिग्री नहीं थी। लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन की सिफारिश के बाद, उन्हें विभाग का विभागाध्यक्ष बनाया गया।
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गत वर्षो की तरह इस वर्ष भी ज्ञानदीप पब्लिक स्कूल स्योहारा का 12th का परिणाम अति उत्तम रहा! स्योहारा/डॉ०उस्मान ज़ैदी)----

गत वर्षो की तरह इस वर्ष भी ज्ञानदीप पब्लिक स्कूल स्योहारा का 12th का परिणाम अति उत्तम रहा!
 स्योहारा/डॉ०उस्मान ज़ैदी)----
सीबीएसई द्वारा आज घोषित रिजल्ट में चाहत राजपूत सुपुत्री योगेश कुमार ने 92.6% प्राप्त किया  दूसरे स्थान पर  89.6% के साथ मानसी चौहान  रही.  वही वाणिज्य संकाय में 88% अंक प्राप्त करके ऋषिका शर्मा ने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया एवं नसरा परवीन ने 83  प्रतिशत अंक प्राप्त करें दूसरे स्थान पर रही ।।।
तथा सीबीएसई द्वारा आज घोषित दसवीं के परिणाम में सौम्या सिंह ने 93.8%  अंक प्राप्त करके विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया वहीं दूसरे स्थान पर 91.8% अंको  के साथ आयशा जमशेद एवं इशांत चंद्र ने  संयुक्त रूप से दूसरा स्थान प्राप्त किया विद्यालय के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शर्मा प्रबंधक डॉक्टर जे०पी०शर्मा उपप्रबंधिका डॉ० मीना शर्मा प्रबंध निर्देशक डॉ0 दिव्यंक शर्मा उपाध्यक्ष डॉ० सार्थक शर्मा प्रधानाचार्य श्रीमती कुसुम शर्मा एवं समस्त स्टाफ ने विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य की कामना की !

Monday, 13 May 2024

दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब, अमृतसर के धर्मुचक गांव में हुआ था। दारा सिंह कम उम्र में पढ़ाई छोड़कर खेती में लग गए थे। इसके बाद उन्होंने गैर-पेशेवर कुश्ती भी की और साल

दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब, अमृतसर के धर्मुचक गांव में हुआ था। दारा सिंह कम उम्र में पढ़ाई छोड़कर खेती में लग गए थे। इसके बाद उन्होंने गैर-पेशेवर कुश्ती भी की और साल 1947 में, दारा अपने चाचा के साथ सिंगापुर चले गए। दारा सिंह का पूरा नाम दीदार सिंह रंधावा था। दारा, अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे हैं।
भारत की आज़ादी के दौरान 1947 में सिंगापुर में ‘भारतीय स्टाइल’ की कुश्ती के मलेशियाई चैंपियन तरलोक सिंह से दारा सिंह का मुकाबला हुआ और इसी कुश्ती में तरलोक को चारों खाने चित करने के बाद से दारा सिंह का विजयी अभियान शुरू हुआ। कई देशों के पहलवानों को चित करने के बाद साल 1952 में भारत वापस लौट आए और सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने।
पाकिस्तान के माजिद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैंपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिलाने वाले दारा सिंह ने 500 से ज्यादा पहलवानों को हराया था। दारा सिंह की इस जीत में सबसे खास बात ये कि ज्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया था। दारा सिंह की कुश्ती कला को सलाम करने के लिए साल 1966 में रुस्तम-ए-पंजाब और साल 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाजा गया।
साल 1959 में पूर्व विश्व चैंपियन जार्ज गारडियांका को पराजित करके कामनवेल्थ की विश्व चैंपियनशिप जीती थी। 1968 में अमरीका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गये। 29 मई 1968 को दारा सिंह ने लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन का ख़िताब अपने नाम करते हुए भारत के सिर पर विश्व विजेता का ताज रख दिया था। उन्होंने पचपन वर्ष की आयु तक पहलवानी की और पाँच सौ मुकाबलों में किसी एक में भी पराजय का मुंह नहीं देखा। साल 1983 में दारा सिंह ने अपने जीवन का अंतिम मुकाबला जीतने के पश्चात कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया।

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आर्गन ट्रांसप्लान्ट के नरपिशाची धन्धे में ACB की शक की नज़र से ब्यावर मे एंगल तलाशा जायेगा*❓🫁

TnC 
 🔴
*आर्गन ट्रांसप्लान्ट के नरपिशाची धन्धे में ACB की शक की नज़र से ब्यावर मे एंगल तलाशा जायेगा*❓🫁🫀

राजस्थान के बहुचर्चित (आर्गन ट्रांसप्लांट ) मानव अंगों को अवैध रूप से प्रत्यारोपण करने के नरपिशाची धंधे में ब्यावर निवासी *डाँ जितेन्द्र गोस्वामी*
के गिरफ़्तार होने के बाद अब इस मामले मे ब्यावर के अन्य लोगों से तार जुड़े होने की संभावनाओं पर अनुसंधान किया जा सकता है . आज सुबह जब TnC 🔴 ब्यावर के डाक्टर की गिरफ़्तारी की खबर वायरल की तब से ही हमारे पास अनेक फ़ोन आये . ब्यावर निवासी *डाँ जितेन्द्र गोस्वामी* पहले मणीपाल हास्पीटल में कार्यरत थे लेकिन मणिपाल का 2023 मे लाइसेंस रिन्यू नहीं हुआ तो डाँ गोस्वामी ने फोर्टीज हास्पीटल ज्वाइन कर लिया . अब तक इस मामले मे 11 गिरफ़्तारी हो चुकी है तथा SMS के तीन दिग्गज डाक्टर स्तीफा दे चुके है . डाँ गोस्वामी के के *काले कारनामो* की *क्रियाक्रम* ACB की गिरफ़्त में आये एक दलाल भानुप्रताप लववंशी ने किया . भानु ने ACB को बताया डाँ गोस्वामी बंगला देश ओर नेपाल के गरीब लोगों को छोटी रक़म देकर किडनी दान के लिए लाये गये लोगों को प्राइवेट घरों ओर होटल में ठहराता था तथा किडनी ट्रांसप्लांट रोगियों की जाँच भी प्राइवेट घरों में करता था . डाँ गोस्वामी रोगियों से एक किडनी ट्रांसप्लान्ट के 12 से 15 लाख वसूलता था . ACB की गिरफ़्त में आये डाँ गोस्वामी से पूछताछ में ब्यावर के एंगल को भी सम्मिलित किया जा सकता है ख़ास बात क्या ब्यावर के किसी चिकित्सक या चिकित्साकर्मी भी इस गोरखधंधे में शामिल है ? साथ ही डाँ गोस्वामी ने अपना *काली कमाई* को ब्यावर मे एडजस्ट की है ? ऐसे कई प्रश्न है जो ACB डाँ गोस्वामी से रिमांड अवधि में उगला सकती है ▪️

Saturday, 11 May 2024

आयुर्वेदिक अस्पताल से पूरी दवा गायब होम्योपैथिक अस्पताल से सीसी गायब* *मरीज को कैसे मिलेगा इलाज इस पर गंभीर नहीं है उत्तरप्रदेश सरकार**सरकार का बड़ा बड़ा दावा सरकारी अस्पतालों में मरीज से कोई भी चीज बाहर से खरीद ना कराई जाए*

*आयुर्वेदिक अस्पताल से पूरी दवा गायब होम्योपैथिक अस्पताल से सीसी गायब* 

*मरीज को कैसे मिलेगा इलाज इस पर गंभीर नहीं है उत्तरप्रदेश सरकार*

*सरकार का बड़ा बड़ा दावा सरकारी अस्पतालों में मरीज से कोई भी चीज बाहर से खरीद ना कराई जाए*

*कौशाम्बी* आम जनता को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता में है लेकिन उत्तर प्रदेश की सरकार आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में गंभीर नहीं दिखाई पड़ रही है जिला अस्पताल मंझनपुर में संचालित आयुष आयुर्वेदिक अस्पताल में कई महीने से दवाएं उपलब्ध नहीं है जिसके बाद डॉक्टर भी मौजूद नहीं रहते हैं अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरे इस बात के प्रमाण है आयुर्वेदिक अस्पताल के कमरे में होम्योपैथी दवा का भंडार कर दिया गया है जब आयुर्वेदिक दवा नहीं है तो मरीज को वह क्या दवा देंगे जिससे आयुष आयुर्वेदिक अस्पताल जिला अस्पताल से कई महीने से मरीज वापस लौट रहे हैं इसके पहले भी आयुर्वेदिक अस्पताल में कुछ दवाओं को छोड़कर अन्य दवाएं मौजूद नहीं रहती थी आयुर्वेदिक अस्पताल भेलखा भी चौपट दिखाई पड़ रहा है वहां भी दवाएं पर्याप्त मौजूद नहीं रहती जिससे आयुर्वेदिक अस्पताल में मरीजों का इलाज नहीं हो पाता है जबकि स्वास्थ्य सेवाएं बहाल करने के लिए महीने में कई बार मीटिंग की जाती है और सब कुछ आल ओके कहकर खराब व्यवस्था को सुधारने से इनकार कर दिया जाता है जिन मरीजों ने पूरे जीवन में आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज किया है उन्हें आयुर्वेदिक अस्पताल से दवाएं नहीं मिल रही हैं जिससे उनके मर्ज गंभीर हो रहे हैं लेकिन आयुर्वेदिक अस्पताल में कई महीने से दवाई उपलब्ध न होने के बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी गंभीर नहीं है उन्होंने अस्पताल में दवाएं उपलब्ध कराने की पुरजोर व्यवस्थाएं नहीं की हैं बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े लोग सरकार पर दोषारोपण कर रहे हैं

जिला अस्पताल में आयुष के माध्यम से संचालित होम्योपैथिक अस्पताल में बीते कई वर्षों से सीसी और डिब्बी मौजूद नहीं रहती है जिससे दवा लेने पहुंचने वाले मरीजों को बाहर से सीसी और डिब्बी खरीद कर लाना पड़ता है कुछ मामले में तो होम्योपैथिक डॉक्टर अपने वेतन से सीसी और डिब्बी खरीद कर लाते हैं और तब मरीज को दवाई देते हैं आखिर डॉक्टर भी वेतन से कितने दिन तक सीसी और डिब्बी खरीदेंगे उनका भी हौसला टूट जाता है होम्योपैथी अस्पताल में सीसी और डिब्बी उपलब्ध न होने पर जब मरीज बाजार से सीसी और डिब्बी खरीद कर लाते हैं तो उन्हें होम्योपैथिक डॉक्टर दवा देते हैं एक तरफ सरकार का बड़ा बड़ा दावा है कि सरकारी अस्पतालों में मरीज से कोई भी चीज बाहर से ना खरीद कराई जाए लेकिन अब होमियोपेथी अस्पताल में जब सीसी डिब्बी सरकार उपलब्ध नहीं कर पा रही है तो मरीज को डॉक्टर दवा कैसे देंगे होम्योपैथिक दवा लिक्विड होती है इसलिए उसे कागज की पुड़िया बनाकर नहीं दिया जा सकता लेकिन सीसी और डिब्बी उपलब्ध न होने के बाद भी सीसी डिब्बी की उपलब्धता बनाने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने वर्षों बाद भी इस समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं किया है जिससे मरीज परेशान है उत्तर प्रदेश सरकार दावा कर रही है कि उन्होंने स्वास्थ्य सेवा बेहतर बनाई है लेकिन यहां मरीजों को दवा नहीं मिल रही है अस्पताल में दवा नहीं है और स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने का झूठा दावा किया जा रहा है

जिला अस्पताल में एलोपैथी से इलाज की व्यवस्था पूरी तरह से चौपट दिखाई पड़ रही है जिला अस्पताल में प्रतिदिन मरीजों की भारी भीड़ लग रही है गांव क्षेत्र के दूर-दूर से मरीज इस उम्मीद से अस्पताल पहुंचते हैं कि उन्हें दवाई मिल जाएंगे उनका मर्ज ठीक हो जाएगा लेकिन कहीं डॉक्टर नहीं है कहीं दवा नहीं है जिससे मरीजों का इलाज नहीं हो पाता और उनका मर्ज बना रह जाता है जिला अस्पताल में आधे से अधिक डॉक्टर प्रतिदिन अपने ड्यूटी से गायब रहते हैं मरीज के इलाज के समय आए दिन मुख्य चिकित्सा अधिकारी मीटिंग लगा देते हैं जिससे मुख्य चिकित्सा अधिकारी के दबाव में मरीजों को छोड़कर डॉक्टर मीटिंग में चले जाते हैं जहां योजनाओं का प्रचार प्रसार किया जाता है बंद कमरे में भूना काजू खा कर मिनरल वाटर का पानी पीकर डॉक्टर और मुख्य चिकित्सा सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के बहाने मौज करते हैं जिला अस्पताल के एलोपैथिक सिस्टम के कुछ कमरों में डॉक्टर मौजूद रहते हैं वहां मरीजों की भीड़ लगती है आधे मरीजों का इलाज किया जाता है और आधे मरीजों को यह कहकर वापस कर दिया जाता है कि दूसरे रूम में जाकर डॉक्टर को दिखाओ वहां तुम्हारे मर्ज के डॉक्टर स्पेशलिस्ट है जबकि दूसरे रूम में डॉक्टर मौजूद नहीं रहते जिससे मरीज इधर-उधर भटकते रहते हैं और उन्हें इलाज नहीं मिल पाता है ब्लैक और गांव स्तर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और न्यू प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति भी बदतर है जिससे गांव क्षेत्र में मरीजों को इलाज नहीं मिलता और वह इस उम्मीद से जिला अस्पताल आते हैं कि वहां उन्हें इलाज मिल जाएगा लेकिन यहां भी मरीज को इलाज नहीं मिल पाता एलोपैथी सिस्टम में भी तमाम दवाएं जिला अस्पताल में मौजूद नहीं है जिससे मजबूर होकर मरीज खुद बाजार से दवा खरीद कर इलाज करते हैं लेकिन सरकार दावा कर रही है कि उन्होंने स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर कर दी है लेकिन बेहतर स्वास्थ्य सेवा की हकीकत मरीज और उनके परिवार के लोग देख और सुन रहे हैं व्यवस्थाएं सुधारने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी तनिक भी गंभीर नहीं है इस संबंध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी से बात करने का प्रयास किया गया लेकिन मुलाकात ना होने से बात नहीं हो सकी

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Friday, 10 May 2024

सोनभद्र का गौरवशाली इतिहास भाग -०२

सोनभद्र का गौरवशाली इतिहास भाग -०२

यह किसी साधारण इमारत की दीवार का दृश्य नहीं अपितु यह उस किले की दीवार का दृश्य है जो सोनभद्र जनपद में अनपरा नगर के पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है 
यह दीवार एक उदाहरण है पुराने जमाने के लोगों के प्रेम गाथा कि जिन्होंने अपने प्रेम की निशानी इस दीवार पर छोड़ दिए जो सदियों पुरानी आज भी हूबहू मौजूद है।यह दीवार वर्तमान में कुछ सड़क छाप टिक टोकिये कलाकारों द्वारा इस अश्लीलता का संग्रह बन गया है जिस पर ये तुच्छ मूढ़ कलाकार अपने बेहूदे करतूतों से इसकी शोभा को कम कर दिए है पर इसकी महानता कभी कम न होगी।इस मीनार का निर्माण महाभारत काल में राजा अजय देव राय ने अपने प्रेयसी से विरह में कराया था।

  उनकी प्रेयसी चंदा देवी थी जो इतनी खूबसूरत थी कि पूरे विश्व में उनके रूप का गुणगान था। उस समय कहा जाता था कि इस इमारत के नीचे एक स्नान गृह बनवाया गया था जो स्वयं राजा अजय देव राय की मौजूदगी में बना हुआ था और ये भी कहा जाता है कि वो स्नान गृह सीधा तालाब से मिलता था और वहीं से सीधे उस स्नान गृह में पानी आता था वो तालाब आज भी मौजूद है झिंगुर्दह हनुमान मंदिर क्षेत्र में टिपा झरिया नामक तालाब के नाम से।
 ये भी कहा जाता है कि उस स्नान गृह में एक सर्प भी मौजूद था जो रानी के रक्षा के लिए स्वयं राजा ने उसे लगवाया था।वो सर्प आज भी वहा उन जंगलों में या वहीं उस तालाब में देखा जा सकता है और कहा जाता है कि उनकी प्रेयसी की भी आत्मा अभी वहीं के जंगलों में भटकती रहती है जो कभी कभी उस स्नान गृह के पास देखी गई है।

यदि आप सभी को इस गौरवशाली इतिहास से स्वयं अभिभूत होना हो तो आप स्वयं यहां जाकर देख सकते है।

  इतिहासकार - "अजय कुमार बिछड़ी वाले"

इस घर के निर्माता ने शायद कभी नहीं सोचा होगा कि मेरा बनाया यह घर एक दिन लावारिस भवन के रूप में विकसित हो जाएगा बनना और बिगड़ता यही प्रकृति का नियम है जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है इस घर के साथ भी कुछ ऐसी ही कहानी है.....

इस घर के निर्माता ने शायद कभी नहीं सोचा होगा कि मेरा बनाया यह घर एक दिन लावारिस भवन के रूप में विकसित हो जाएगा बनना और बिगड़ता यही प्रकृति का नियम है जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है इस घर के साथ भी कुछ ऐसी ही कहानी है.....

ये सूना घर ये सूनी दिवारे बता रही कि घर  वाले परदेशी हो गए .....कभी यहाँ आँगन मे चारपाइयाँ बिछती रही होंगी.........बच्चो कि शरारते और बेटी बहुओ कि खिलखिलाहते गूँजती रही होंगी..........कोई बहू इस घर मे सपने सजा कर आई होगी .... बाहर के अरवा मे दिया जलता रहा होगा या फिर किसी धन्नी के हुक लालटेन टंगी रहती होगी ......😞😞😞😞
बड़ा सा वो आँगन आज वीरान पड़ा है, कही जाले तो कहीं मिट्टी से भरा हुआ
जिसके हर कोने को किसी ने  प्यार से सजाया, आगे बढ़ने की दौड़ में उसे पीछे छोड़ आया....

घर के बाहर दोनों तरफ बनी ये "चौतरिया" यही बोलते थे मेरे यहाँ कितने काम आती थी।सहेलियों की  गप्पों से लेकर आस पड़ोस की चुगली करना सब इसी पर बैठ कर होता था सच मे जीवन का असली मजा तो इन्ही घरों में था। 
चिलचिलाती तपती धूप मे चबूतरा हो गाँव का ,
चाहता है चहचहाना बचपने की छांव मे 
पुकारता है चाव से चंचल हंसी को हर कही, यादों मे हरदम लिए वो खिलखिलाना गाँव मे 
कौन कौन मेरी इस बात से सहमत हैं...... 

जैसे ये घर कह रहा हो कि...... 

मेरी हालत पर मत हंस पगली 
कभी मैं गांव के शान हुआ करता था
मेरे छज्जे पर सब लोग आ कर बैठा करते थे
महफिल में मेरी तिबार में जगह नही मिलती थी
रात को वीसीआर लेकर लोग शोले देखा करते थे
मै लोगों के बोझ को खुशी खुशी झेला करता था
मेरे छत पर संटुली, बिट खोरी का घोंसला हुआ करता था
सुबह सुबह अम्मा उठकर जानवरों के लिए धुंआ लगाती थी
अब हालत बदल गए हैं, घर में छोटे भी सयाने बन गए हैं
लेकिन मै अभी भी अपने स्वाभिमान में खड़ा हूं
आंधी तूफानों में अडिग खड़ा हूं
मेरी हर दीवार लौह सी मजबूत है
मुझे उम्मीद हैं की मेरे आंगन में खेलते वो
बच्चे एक दिन मुझे याद जरूर करेंगे।

शहर जाकर बस गए हर शख्स पैसे के लिए,
       ख्वाहिशों ने मेरा पूरा गांव खाली कर दिया ।
ये सूना घर ये सूनी दिवारे बहुत कुछ बता रही हैं, 
हर कोने को किसी ने  प्यार से सजाया, आगे बढ़ने की दौड़ में उसे पीछे छोड़ आया....

तरक्की भले कितनी कर ली हो शहर जाकर पर ऐसा घर बनाने में शायद पूरी जिंदगी निकल जाये फिर भी 😢......

ऋतु चौधरी

एएमयू की पहली लेडी वीसी नेमा खातून नकाब और हिजाब से नही किताब से बनी*फरहत अली खान*

*एएमयू की पहली लेडी वीसी नेमा खातून नकाब और हिजाब से नही किताब से बनी*फरहत अली खान* 

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की कुलपति के रूप में डॉ. नैमा खातून की नियुक्ति भारतीय शिक्षा जगत में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस नियुक्ति के साथ, डॉ. खातून विश्वविद्यालय के इतिहास में इस प्रतिष्ठित पद को संभालने वाली पहली महिला बन गई हैं। यह उपलब्धि डॉ. खातून की शैक्षणिक उपलब्धियों और नेतृत्व गुणों का प्रमाण है और साथ ही शैक्षणिक नेतृत्व में लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम का प्रतिनिधित्व करती है। पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्र में शीर्ष नेतृत्व की स्थिति में एक महिला के रूप में, डॉ. खातून की नियुक्ति उन युवा महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है जो शैक्षणिक करियर को आगे बढ़ाने की इच्छा रखती हैं। यह पूरे शैक्षणिक समुदाय के लिए गर्व का क्षण है, और उम्मीद है कि यह नियुक्ति अकादमिक क्षेत्र में नेतृत्व की स्थिति लेने के लिए और अधिक महिलाओं के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी।

एक कुशल शिक्षाविद और एक सम्मानित विद्वान, डॉ. खातून इस भूमिका में शिक्षा, प्रशासन और सामाजिक न्याय में अनुभव का खजाना लेकर आई हैं।  इस प्रतिष्ठित पद तक पहुंचने की उनकी यात्रा में लचीलापन, दृढ़ संकल्प और दूसरों, विशेष रूप से महिलाओं और हाशिए के समूहों को सशक्त बनाने की प्रतिबद्धता की विशेषता है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर में जन्मी और पली-बढ़ी नईमा खातून ने शिक्षा और सामुदायिक सेवा में कम उम्र से ही रुचि दिखाई। सामाजिक दबावों और सीमित संसाधनों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने अटूट समर्पण के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। अपने पूरे करियर के दौरान, डॉ. खातून महिला अधिकारों और लैंगिक समानता की मुखर समर्थक रही हैं। उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने और सभी के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई परियोजनाओं पर काम किया है, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और कई पुरस्कार मिले हैं।

एएमयू के कुलपति के रूप में डॉ. खातून की नियुक्ति विश्वविद्यालय के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। 1875 में अपनी स्थापना के बाद से, विश्वविद्यालय में पुरुष शिक्षाविदों के नेतृत्व की एक लंबी परंपरा रही है, और डॉ. खातून का चयन अधिक समावेशी और विविध नेतृत्व संरचना की ओर बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। उनके जीवन में नकाब और हिजाब से ज्यादा किताब थी आज हर इंसान और खास तौर से महिलाएं उनको अपना आदर्श मानते हुए गर्व करती महसूस करती हैं।
फरहत अली खान 
अध्यक्ष मुस्लिम महासंघ

Wednesday, 8 May 2024

महाराणा प्रताप जी का चेतक घोड़ा इतना खतरनाक था कि बड़े से बड़े हाथी से भीड़ जाता था और हाथी घबरा कर पीछे हट जाते थे क्योंकि महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े चेतक को हाथी की सूंड का मुखौटा पहन रखा था बताया जाता है । की वह मुखौटा बहुत भारी था । जिस कारण से वह और भी ज्यादा भयंकर और खतरनाक लगता था जब युद्ध मैदान में चेतक हवा की तरह दौड़ लगाता हुआ युद्ध मैदान में महाराणा प्रताप के साथ मुगलों से युद्ध किया करता था तो मुगल सैनिक भी डर जाते थे। और युद्ध मैदान से भाग जाते थे

महाराणा प्रताप जी का चेतक घोड़ा इतना खतरनाक था कि बड़े से बड़े हाथी से भीड़ जाता था और हाथी घबरा कर पीछे हट जाते थे क्योंकि महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े चेतक को हाथी की सूंड का मुखौटा पहन रखा था बताया जाता है । की वह मुखौटा बहुत भारी था । जिस कारण से वह और भी ज्यादा भयंकर और खतरनाक लगता था जब युद्ध मैदान में चेतक हवा की तरह दौड़ लगाता हुआ युद्ध मैदान में महाराणा प्रताप के साथ मुगलों से युद्ध किया करता था तो मुगल सैनिक भी डर जाते थे। और युद्ध मैदान से भाग जाते थे


जब यह बात अकबर को पता लगी थी तो अकबर ने चेतक घोड़े को पकड़ने के लिए शाही दरबार में बैठक बैठाई थी । और यह ऐलान कर दिया था कि जो भी चेतक घोड़े को पकड़ कर हमारे पास लता है उसे मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा किंतु अकबर की मनसा ये कभी पूरी ना हो पाई। 

ऐसे वीर चेतक घोड़े योद्धा को हमें हमेशा याद रखना चाहिए।👺
🙏🏼 जय हो चेतक वीर की 🙏🏼


बताया जाता है कि चेतक  की रफ्तार एक आम घोड़े से तीन गुना तेज थी

1. **नाम का उत्पत्ति**: चेतक घोड़े का नाम संस्कृत शब्द "चेतक" से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "चेतना" या "आत्मविश्वास"।

2. **उत्पत्ति**: चेतक घोड़ा भारत का नामी रसायनज्ञ चाणक्य द्वारा निर्मित किया गया था।

3. **विशेषताएं**: चेतक घोड़ा अत्यधिक तेजी से दौड़ने वाला और बहुत ही बुद्धिमान था।

4. **रक्त संबंध**: महाराणा प्रताप के चेतक को वे खास बचपन से पालते थे।

5. **धावकता**: इसकी तेजी और आत्मविश्वास की वजह से, यह घोड़ा दुश्मनों के लिए खतरनाक साबित होता था।

6. **महाराणा प्रताप के साथ साझेदारी**: चेतक घोड़ा महाराणा प्रताप के वफादार साथी और युद्धक के रूप में निरंतर उपस्थित था।

7. **वीरता**: चेतक को वीर और उत्तम योद्धा के रूप में सम्मानित किया गया।

8. **शोध कार्य**: चेतक के विज्ञानिक गुणों की प्रशंसा विभिन्न विद्वानों और वैज्ञानिकों ने की थी।

9. **पुरानी कहानियाँ**: चेतक के बारे में कई पुरानी कहानियां और लोककथाएं हैं जो इसे महान बनाती हैं।

10. **आज की महत्वपूर्णता**: आज भी चेतक को भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।

#चेतक #चेतकघोड़ा #महाराणाप्रताप #rajasthan

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ईसा पूर्व 322 में चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्दवंश को पराजित कर मौर्यवंश के संस्थापक भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट बने और भारत के छोटे-छोटे राज्यों को जोड़कर अखण्ड भारत का निर्माण किया मौर्यवंश ने दस पीढ़ी तक शासन किया। मौर्यवंश के 10 महाबली महान मौर्य सम्राटों के नाम~ ☸️

1.ईसा पूर्व 322 में चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्दवंश को पराजित कर मौर्यवंश के संस्थापक भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट बने और भारत के छोटे-छोटे राज्यों को जोड़कर अखण्ड भारत का निर्माण किया मौर्यवंश ने दस पीढ़ी तक शासन किया। 
मौर्यवंश के 10 महाबली महान मौर्य सम्राटों के नाम~ ☸️
.सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य   
.सम्राट बिन्दुसार मौर्य  
.सम्राट असोक महान मौर्य  
.सम्राट कुणाल मौर्य  
.सम्राट दशरथ मौर्य 
.सम्राट सम्प्रति मौर्य 
.सम्राट शालिसुक मौर्य 
.सम्राट देववर्मन मौर्य 
.सम्राट शतधन्वन मौर्य
.सम्राट बृहद्रथ मौर्य 

2.मौर्य वंश का शासन 184 ई०पू० (139 वर्ष) तक रहा मौर्यवंश के अन्तिम शासक वृहद्रथ मौर्य का धोखे से वध उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया गया एवं पुष्यमित्र द्वारा आदेशित किया गया कि जो व्यक्ति मौर्यवंशी बौद्धिक का एक सिर काट कर लायेगा उसे 100 सोने की मुद्रायें ईनाम में दी जाएंगी पुष्यमित्र शुंग द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर मौर्यवंशी जंगलों, पहाड़ों, गुफाओं में जाकर 

3.छिप गये और आर्थिक सामाजिक राजनीतिक और मानसिक रूप से पिछड़ गए और ब्रह्मणो के ब्राह्मणवाद के गुलाम हो गए 

आज मौर्यवंशियो की पहचान बिखंडित होकर मौर्य शाक्य कुशवाहा सैनी गहलौत और कई नामों से पहचाना जाता हैं।

4.1827 ई० में स्वजातीय सैनी परिवार (महाराष्ट्र) में ज्योतिबाराव फुले एवं माता सावित्री बाई फुले का जन्म हुआ फुले द्वारा नारी शिक्षा एवं शूद शिक्षा का आरम्भ किया गया बिहार में लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा ने मौर्यो को जगाया।

5.आज प्रगति के दौर में हम सभी स्वजातीय बंधुओं का दायित्व बनता है कि हम लोग संगठित होकर अपने गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेकर प्रगति के पथ पर फिर से स्थापित करने का प्रयत्न करें।

6.अग्रrसर होते हुए बौद्ध धम्म सम्राट असोक महान के संदेश- शांति एवं वीरता शिक्षित जागरूक एवं कर्मठ बनें तब हम जाकर फिर से सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के भारत को विश्व गुरु बना पाएंगे 
नमो बुद्धाय 🥀 🙏
जय सम्राट...जय मौर्यवंश ☸️🦁
#FUNFACT

हिंद केसरी व ‘रूस्तम -ए - हिंद’ मंगला राय (शाकाहारी वीर )

हिंद केसरी व ‘रूस्तम -ए - हिंद’ मंगला राय (शाकाहारी वीर )

गाजीपुर जिले के जोगा मुसाहिब गांव में 1916 के अगस्त महीने में पैदा हुए मंगला राय को पहलवानी विरासत में मिली थी। उनके पिता रामचंद्र राय और चाचा राधा राय अपने समय के नामी पहलवान थे।

बताया जाता है कि मंगला राय के शुरूआती दिन अभावों में बीते। पिता और चाचा रोजी-रोटी की जुगाड़ में बर्मा चले गए। दोनों भाई वहां भी कुश्ती का रियाज किया करते थे। मंगला राय के चाचा राधा राय काफी बेहतर पहलवान थे। उन्होंने ही मंगला को अखाड़े में दांव-पेंच सिखाना शुरू किया था. 

मंगला राय बहुत ही मजबूत कद-काठी के थे। उनका वजन 131 किलो था, जबकि लंबाई 6 फीट 3 इंच। वे रोज चार हजार बैठकें और ढाई हजार दंड लगाते थे। इसके बाद प्रतिदिन अखाड़े में 25 धुरंधर पहलवानों से तीन बार कुश्ती लड़ा करते थे। वे शुद्ध शाकाहारी और सात्विक व्यक्ति थे। उनके खाने में आधा किलो शुद्ध देसी घी, आठ से दस लीटर दूध और एक किलो बादाम शामिल होता था। कहा जाता है कि उनका जन्म मंगलवार को हुआ था, सो मां-बाप ने उनका नाम मंगला राय रख दिया। 

एक रोज हो गई मंगला की बर्मा के नामी पहलवान ईशा नट से भिड़ंत और देखते ही देखते भोजपुरिया माटी से रचे-बने मंगला राय ने उसे चारों खाने चित्त कर दिया। इसके बाद उन्हें ‘शेर-ए-बर्मा’ की उपाधि मिली। कुछ समय बाद वे पिता और चाचा के साथ अपने गांव लौट आए। यहां आते ही उन्होंने 1933 में उत्तर भारत के मशहूर पहलवान मुस्तफा के साथ कुश्ती लड़ी। इलाहाबाद में हुई यह कुश्ती मंगला राय के जीवन का टर्निंग प्वांइट साबित हुई। ढेर सारे पहलवानों को अखाड़े में धूल चटा चुके मुस्तफा ने कम उम्र मंगला को हल्के में लिया और यही बात भारी पड़ गई। मंगला राय ने अखाड़े में मुस्तफा के खिलाफ अपने सबसे प्रिय दांव ‘टांग’ और ‘बहराली’ का इस्तेमाल किया। मंगला के जोर के आगे मुस्तफा की एक न चली और वह चित्त हो गया। कुश्ती देख रहे लोगों को काठ मार गया। किसी को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक नौजवान ने मुस्तफा जैसे नामी पहलवान को अखाड़े की धूल चटा दी। इसके बाद तो मंगला राय के नाम का पूरे देश में डंका बज गया। उनकी कुश्ती देखने के लिये लोग दूर-दूर से आया करते थे।

आलम ऐसा हुआ कि महज एक साल के भीतर 32 साल के मंगला राय को सौ से ज्यादा कुश्तियां लड़नी पड़ी। उन्होंने अकरम लाहौरी, खड्ग सिंह, केसर सिंह, गोरा सिंह, निजामुद्दीन, गुलाम गौस, टाइगर योगेंद्र सिंह सहित कई मशहूर पहलवानों को हराया। चालीस-पचास के दशक में भारत का शायद ही कोई पहलवान रहा होगा, जिसे मंगला राय ने अखाड़े में शिकस्त न दी हो। 1952 में उन्हें ‘रूस्तम- ए-हिंद’ की उपाधि मिली। वहीं 1954 में ‘हिंद केसरी’ के खिताब से नवाजा गया। उन्होंने रोमानिया के पहलवान जार्ज कंटेस्टाइन को भी हराया था, जिसे ‘टाइगर आॅफ यूरोप’ का खिताब मिल चुका था। यह कुश्ती पश्चिम बंगाल के हावड़ा में 1957 में हुई थी। तब मंगला राय की उम्र 41 साल हो चुकी थी और जार्ज यूरोप और एशिया के पहलवानों को धूल चटाता हुआ भारत पहुंच चुका था। जार्ज के खिलाफ उतरने के लिए भारत का कोई पहलवान तैयार नहीं हुआ। तब यह बात मंगला राय को अखरी कि यह तो देश की इज्जत का सवाल है। उन्होंने तपाक से जार्ज की चुनौती स्वीकार की और अखाड़े में उतर गए। महज बीस मिनट चली थी यह कुश्ती, और मंगला राय ने जार्ज को उसकी औकात बता दी। आखिरी बार वे 1963 में अखाड़े में उतरे। इस कुश्ती की कहानी भी काफी दिलचस्प है। कहते हैं कि मंगला राय तब अपने गांव जोगा मुसाहिब में ही रहा करते थे।

गाजीपुर में एक बार कुश्ती हुई, तो वे भी वहां पहुंचे। उस वक्त एक कलक्टर था, जिसने अखाड़े में खड़े पहलवान मेहरूद्दीन के खिलाफ मंगला राय को ललकार दिया। लेकिन, उन्होंने ढलती उम्र का हवाला देते हुए लड़ने से इनकार कर दिया। कलक्टर ने उनकी दुखती रग पर हाथ रखते हुए कुछ ऐसी बात कह दी, जो वहां खड़े गाजीपुर के लोगों को लग गई। सबों ने मंगला राय से एक स्वर में कहा, ‘बाबा लड़ जाईं ना त गाजीपुर के इज्जत ना रही।’ इतनी बात सुनते ही बूढ़ी हो चली हड्डियों में जुंबिश हुई और दुनिया के नामी-गिरामी पहलवानों को धूल चटा चुके मंगला राय लंगोट पर हो गए। अखाड़े में दांव-पेंच शुरू हुए। एक तरफ शबाब लिए मेहरूद्दीन की जवानी और दूसरी तरफ मंगला की बूढ़ी हो चली काया। बावजूद मंगला राय ने गाजीपुर वालों को निराश नहीं किया। अपनी माटी की लाज रख ली। यह कुश्ती टाई हो गई। हालांकि उम्र के इस पड़ाव पर यही बहुत बड़ी बात थी कि मेहरूद्दीन उन्हें शिकस्त नहीं दे सका। गांव लौटने के बाद भी वे स्थिर नहीं रहे। उन्होंने गांव के विकास के लिए कई तरह के प्रयास किए।

खुद शिक्षा से वंचित रह गए मंगला राय देश-दुनिया घूमने के बाद शिक्षा का महत्व बखूबी समझ चुके थे। तभी तो उन्होंने गांव के लोगों को एकमत करके इंटरमीडिएट स्कूल खोलवाया। आसपास के युवकों को कुश्ती की कला सिखाई। उनके कई शिष्य भी नामी पहलवान हुए। इनमें सत्यनारायण राय, रामगोविंद राय, सुखदेव यादव, भोला यादव, राजाराम यादव, दुखहरण झा, नत्था गुंगई, रामविलास राय, मथुरा राय वगैरह के नाम शामिल हैं। देश और देश की मिट्टी से बेपनाह मोहब्बत करने वाले इस पहलवान ने 26 जून 1976 को अंतिम सांस ली।

हर साल मंगला राय की जयंती और पुण्य तिथि पर उनके गांव में कुश्ती सहित अन्य समारोहों का आयोजन किया जाता है.

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ईरानी मजदूर साबिर हका की कविताएं तडि़त-प्रहार की तरह हैं. साबिर का जन्‍म 1986 में ईरान के करमानशाह में हुआ. अब वह तेहरान में रहते हैं और इमारतों में निर्माण-कार्य के दौरान मज़दूरी करते हैं.

ईरानी मजदूर साबिर हका की कविताएं तडि़त-प्रहार की तरह हैं. साबिर का जन्‍म 1986 में ईरान के करमानशाह में हुआ. अब वह तेहरान में रहते हैं और इमारतों में निर्माण-कार्य के दौरान मज़दूरी करते हैं. 
साबिर हका के दो कविता-संग्रह प्रकाशित हैं और ईरान श्रमिक कविता स्‍पर्धा में प्रथम पुरस्‍कार पा चुके हैं. लेकिन कविता से पेट नहीं भरता. पैसे कमाने के लिए ईंट-रोड़ा ढोना पड़ता है. 

एक इंटरव्‍यू में साबिर ने कहा था, ''मैं थका हुआ हूं. बेहद थका हुआ. मैं पैदा होने से पहले से ही थका हुआ हूं. मेरी मां मुझे अपने गर्भ में पालते हुए मज़दूरी करती थी,मैं तब से ही एक मज़दूर हूं. मैं अपनी मां की थकान महसूस कर सकता हूं. उसकी थकान अब भी मेरे जिस्‍म में है.'' 

साबिर बताते हैं कि तेहरान में उनके पास सोने की जगह नहीं और कई-कई रातें वह सड़क पर भटकते हुए गुज़ार देते हैं. इसी कारण पिछले बारह साल से उन्‍हें इतनी तसल्‍ली नहीं मिल पाई है कि वह अपने उपन्‍यास को पूरा कर सकें.

1⃣ *शहतूत*

क्‍या आपने कभी शहतूत देखा है, 
जहां गिरता है, उतनी ज़मीन पर 
उसके लाल रस का धब्‍बा पड़ जाता है. 
गिरने से ज़्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं. 
मैंने कितने मज़दूरों को देखा है 
इमारतों से गिरते हुए, 
गिरकर शहतूत बन जाते हुए.

2⃣ *(ईश्‍वर)*

(ईश्‍वर) भी एक मज़दूर है 
ज़रूर वह वेल्‍डरों का भी वेल्‍डर होगा. 
शाम की रोशनी में 
उसकी आंखें अंगारों जैसी लाल होती हैं, 
रात उसकी क़मीज़ पर 
छेद ही छेद होते हैं.

3⃣ *बंदूक़*

अगर उन्‍होंने बंदूक़ का आविष्‍कार न किया होता 
तो कितने लोग, दूर से ही, 
मारे जाने से बच जाते. 
कई सारी चीज़ें आसान हो जातीं. 
उन्‍हें मज़दूरों की ताक़त का अहसास दिलाना भी 
कहीं ज़्यादा आसान होता.

4⃣ *मृत्‍यु का ख़ौफ़*

ताउम्र मैंने इस बात पर भरोसा किया 
कि झूठ बोलना ग़लत होता है 
ग़लत होता है किसी को परेशान करना

ताउम्र मैं इस बात को स्‍वीकार किया 
कि मौत भी जि़ंदगी का एक हिस्‍सा है

इसके बाद भी मुझे मृत्‍यु से डर लगता है 
डर लगता है दूसरी दुनिया में भी मजदूर बने रहने से.

5⃣ *कॅरियर का चुनाव*

मैं कभी साधारण बैंक कर्मचारी नहीं बन सकता था 
खाने-पीने के सामानों का सेल्‍समैन भी नहीं 
किसी पार्टी का मुखिया भी नहीं 
न तो टैक्‍सी ड्राइवर 
प्रचार में लगा मार्केटिंग वाला भी नहीं

मैं बस इतना चाहता था 
कि शहर की सबसे ऊंची जगह पर खड़ा होकर 
नीचे ठसाठस इमारतों के बीच उस औरत का घर देखूं 
जिससे मैं प्‍यार करता हूं 
इसलिए मैं बांधकाम मज़दूर बन गया.

6⃣ *मेरे पिता*

अगर अपने पिता के बारे में कुछ कहने की हिम्‍मत करूं 
तो मेरी बात का भरोसा करना, 
उनके जीवन ने उन्‍हें बहुत कम आनंद दिया

वह शख़्स अपने परिवार के लिए समर्पित था 
परिवार की कमियों को छिपाने के लिए 
उसने अपना जीवन कठोर और ख़ुरदुरा बना लिया

और अब 
अपनी कविताएं छपवाते हुए 
मुझे सिर्फ़ एक बात का संकोच होता है 
कि मेरे पिता पढ़ नहीं सकते.

7⃣ *आस्‍था*

मेरे पिता मज़दूर थे 
आस्‍था से भरे हुए इंसान
जब भी वह नमाज़ पढ़ते थे 
(अल्‍लाह) उनके हाथों को देख शर्मिंदा हो जाता था.

8⃣ *मृत्‍यु*

मेरी मां ने कहा 
उसने मृत्‍यु को देख रखा है 
उसके बड़ी-बड़ी घनी मूंछें हैं 
और उसकी क़द-काठी,जैसे कोई बौराया हुआ इंसान.

उस रात से 
मां की मासूमियत को 
मैं शक से देखने लगा हूं.

9⃣ *राजनीति*

बड़े-बड़े बदलाव भी 
कितनी आसानी से कर दिए जाते हैं. 
हाथ-काम करने वाले मज़दूरों को 
राजनीतिक कार्यकर्ताओं में बदल देना भी 
कितना आसान रहा, है न!
क्रेनें इस बदलाव को उठाती हैं 
और सूली तक पहुंचाती हैं. 

🔟 *दोस्‍ती*

मैं (ईश्‍वर) का दोस्‍त नहीं हूं 
इसका सिर्फ़ एक ही कारण है 
जिसकी जड़ें बहुत पुराने अतीत में हैं : 
जब छह लोगों का हमारा परिवार 
एक तंग कमरे में रहता था 
और (ईश्‍वर) के पास बहुत बड़ा मकान था  
जिसमें वह अकेले ही रहता था

1⃣1⃣ *सरहदें*

जैसे कफ़न ढंक देता है लाश को 
बर्फ़ भी बहुत सारी चीज़ों को ढंक लेती है. 
ढंक लेती है इमारतों के कंकाल को 
पेड़ों को, क़ब्रों को सफ़ेद बना देती है

और सिर्फ़ बर्फ़ ही है जो 
सरहदों को भी सफ़ेद कर सकती है.

1⃣2⃣ *घर*

मैं पूरी दुनिया के लिए कह सकता हूं यह शब्‍द 
दुनिया के हर देश के लिए कह सकता हूं 
मैं आसमान को भी कह सकता हूं 
इस ब्रह्मांड की हरेक चीज़ को भी. 
लेकिन तेहरान के इस बिना खिड़की वाले किराए के कमरे को 
नहीं कह सकता, 
मैं इसे घर नहीं कह सकता.

1⃣3⃣ *सरकार*

कुछ अरसा हुआ 
पुलिस मुझे तलाश रही है 
मैंने किसी की हत्‍या नहीं की 
मैंने सरकार के खि़लाफ़ कोई लेख भी नहीं लिखा

सिर्फ़ तुम जानती हो, मेरी प्रियतमा 
कि जनता के लिए कितना त्रासद होगा 
अगर सरकार महज़ इस कारण मुझसे डरने लगे 
कि मैं एक मज़दूर हूं 
अगर मैं क्रांतिकारी या बाग़ी होता
तब क्‍या करते वे?

फिर भी उस लड़के के लिए यह दुनिया 
कोई बहुत ज़्यादा बदली नहीं है 
जो स्‍कूल की सारी किताबों के पहले पन्‍ने पर 
अपनी तस्‍वीर छपी देखना चाहता था.

1⃣4⃣ *इकलौता डर*

जब मैं मरूंगा 
अपने साथ अपनी सारी प्रिय किताबों को ले जाऊंगा 
अपनी क़ब्र को भर दूंगा 
उन लोगों की तस्‍वीरों से जिनसे मैंने प्‍यार किया. 
मेर नये घर में कोई जगह नहीं होगी 
भविष्‍य के प्रति डर के लिए.

मैं लेटा रहूंगा. मैं सिगरेट सुलगाऊंगा 
और रोऊंगा उन तमाम औरतों को याद कर 
जिन्‍हें मैं गले लगाना चाहता था.

इन सारी प्रसन्‍नताओं के बीच भी 
एक डर बचा रहता है : 
कि एक रोज़, भोरे-भोर, 
कोई कंधा झिंझोड़कर जगाएगा मुझे और बोलेगा -

'अबे उठ जा साबिर, काम पे चलना है.'
---चाय मजदूर 🙏🙏🙏

एक वास्तविक घटना ओह घटना नहीं दुर्घटना 😉वर्तमान पाकिस्तान में स्थित लुनागढ़ रियासत के पहले नवाब थे नवाब कल्लन मिर्जा। उनके बारे में प्रसिद्ध है कि वे अपने दौर के बेहतरीन लड़ाकू थे। जब वे गधे पर बैठ कर जंगे मैदान में उतरते तो आधे से अधिक दुश्मन उनकी लचकती कमर देख कर ही शहीद हो जाते थे

एक वास्तविक घटना ओह घटना नहीं दुर्घटना 😉
वर्तमान पाकिस्तान में स्थित लुनागढ़ रियासत के पहले नवाब थे नवाब कल्लन मिर्जा। उनके बारे में प्रसिद्ध है कि वे अपने दौर के बेहतरीन लड़ाकू थे। जब वे गधे पर बैठ कर जंगे मैदान में उतरते तो आधे से अधिक दुश्मन उनकी लचकती कमर देख कर ही शहीद हो जाते थे
    उनकी आँखें बिल्कुल हिरनी जैसी थीं। ऐसी कि जो देख ले वो उसी में डूब कर मर जाय। वे अपनी रियासत के जिस हिस्से में चले जाते, उस हिस्से के लोग अपनी मर्जी से लगान दुगुना कर देते थे। यह उनकी करामाती आंखों का कमाल था।
     एक बार लुनागढ़ पर अंग्रेजों ने आक्रमण कर दिया। अंग्रेज सेनापति डगलस टोंटी एक महानतम योद्धा था। उसके साथ दस लाख की फौज थी, और लगभग एक लाख तोपें थी। नवाब साहब को जब अंग्रेजों की इस हरकत का पता चला तो उनका चंगेजी खून खौल उठा। उन्होंने खुद लड़ाई में उतरने का फैसला कर लिया।
     नवाब साहब के खानदान में किसी ने भी कभी लड़ाई में भाग नहीं लिया था। वे हमेशा भाड़े के सैनिकों से काम चलाते थे। पर मिर्जा कल्लन को यह रिकॉर्ड तोड़ना था। मिर्जा कल्लन अपनी डेढ़ करोड़ की सेना लेकर लाहौर के फुरफुरी मैदान में डट गए।
     एक ओर अंग्रेजों की दस लाख की सेना तो दूसरी ओर नवाब साहब की डेढ़ करोड़ की सेना... एक तरफ डगलस टोंटी तो दूसरी ओर मिर्जा कल्लन। दुनिया खौफ में आ गयी। लगा कि आज ही कयामत आ जायेगी।
    अचानक मिर्जा कल्लन अपनी मुमताज नाम की गधी पर सवार हो कर अकेले ही अंग्रेजों की ओर बढ़ने लगे। उनकी बलखाती कमर, लहराते बाल, मचलती आंखें, थरथराते होठ, थिरकते पांव दुश्मनों में एक अलग ही खौफ पैदा करने लगे। मुस्कुराते कल्लन ठीक डगलस टोंटी के सामने जा खड़े हुए। आश्चर्य में डूबा डगलस टोंटी मिर्जा की आंखों में देखने लगा। अचानक मिर्जा ने अपनी बायीं आँख से आँख मार दी।
      महान इतिहासकार रंगीला थप्पड़ ने अपनी पुस्तक 'फर्जीनाम' में लिखा है कि नवाब साहब के एक बार आँख मारने भर से अंग्रेजों की आधी सेना बेहोश हो गयी। डगलस टोंटी गिड़गिड़ाने लगा। उसने तुरंत सुलह कर ली और शपथ लिया कि अंग्रेज फिर कभी लुनागढ़ पर आक्रमण नहीं करेंगे।
       कल्लन मिर्जा ने अपने जीवन में डेढ़ लाख किले बनवाये थे। लाहौर के अनारकली बाजार में उनका बनवाया मशहूर किला झोलु महल अब भी है, जिसकी आठवीं मंजिल से कूदने पर आदमी जमीन पर आने के बाद उछल कर फिर आठवीं मंजिल पर पहुँच जाता है। हजारों साइंसदान वहाँ की खुदाई कर चुके हैं, पर वह रहस्य नहीं खुल पाया है।

बरेली. से बडी खबर ...👉माननीय योगीजी एवं डीएम साहब आपकी नजर...

👉बरेली. से बडी खबर ...
👉माननीय योगीजी एवं डीएम साहब  आपकी नजर...

👉
👉सुपर एक्सक्लूसिव खबरों का बेताज बादशाह,

👉 सिर्फ सुदर्शन न्यूज़ चैनल पर .

👉सिर्फ नाम ही काफी..

👉EXCLUSIVE
BIG BREAKING NEWS
DIST:-BAREILLY U.P
DATE:08 MAY 2024
ANOOP RAIZADA
pH 6395636271
👉बरेली में भू-माफियाओं का कहर बदस्तूर जारी,

👉30 अरब की ब्रिटिश गवर्नमेंट की संपत्ति को बरेली के दिगगजों और भू-माफियाओं  ने किया सोसायटी बनाकर बंदरवांट,

👉 ब्रिटिश गवर्नरमेंट के शासनकाल में भारत से 1960 में जाते समय केयरटेकर के रूप में सिर्फ देखरेख करने के लिए दी गई क्रिश्चियन मिशनरियों को उनकी  जमीन और संपत्तियों को भारत निवासी क्रिश्चियन मिशनरी के दिगगजों और भू-माफियाओं ने फर्जी रूप से बेंचकर कर दिया बडा खेल,

👉चंद दिनों में बन गए फकीर से बादशाह,

👉यही नहीं रामपुर के मरहूम नबाब साहब दवारा दान में चर्च बनाने के लिए  में दी गई ब्रिटिश गवर्नमेंट को करोडों की जमीन को भी भू-माफियाओं ने लगा दिया ठिकाने,

👉बरेली में दबंग और दिग्गज भू- माफियाओं ने ब्रिटिश शासन काल द्वारा केयरटेकर के रूप में दी गई  क्रिश्चियन मिशनरी बेशकीमती  जमीन को कर दिया खुर्दबुर्द ,

👉देश के समस्त जिलों में चर्च की बेवकीमती जमीन बेंचने शेष अभियान तेजी से  जारी ,

👉जनपद बरेली के क्रिश्चियन मिशनरी को केयरटेकर के रूप में दी गई ब्रिटिश गवर्नमेंट की अपनी जमीन को भूमाफियाओं ने अजीबोगरीब और रहस्यमयी तरीके से फर्जी  पावर ऑफ अटॉर्नी बनवाकर व  संबंधित विभागीय आपसी वित्तीय सांठगांठ के चलते  फर्जी रूप से मैथोडिस्ट चर्च के नाम से संपत्ति दर्ज कराई और बेंच दी चर्च की अरबों की जमीन ,

👉 काटी सभी ने मोटी चांदी ,

👉 लगभग 30 अरब रुपए की क्रिश्चियन मिशनरी की बेशकीमती अकूत संपत्ति को केवल जनपद बरेली में ही दिया गया बेंच,

👉 नहीं किया सरकारी कोष में टैक्स जमा ,

👉 ब्रिटिश गवर्नमेंट की जमीन की मालकिनी टाइटल अमेरिकन ....***नाम से केयरटेकर के रूप में दी गई थी भारत के क्रिश्चियन मिशनरी को अरबों की जमीन ,

👉जो मैथोडिस्ट चर्च के नाम में कन्वर्ट कराकर बरेली के दिगगजों और संबंधित विभागीय अधिकारी गणों ने कर दिया बडा खेला,

👉👉भू-माफियाओं ने फर्जी सरकारी मुहर बनाकर लगाकर किया बडा खेल,

👉किया जिला प्रशासन को गुमराह,

👉मामले में पूर्व में प्रशासनिक सेवा में तैनात रहे काबिल हसतियों ने भी धोए बहती गंगा में हाथ,

👉आनन फानन में फरजी पावर आफ अटार्नी के आधार पर कर दिया विदेशी संपत्ति के टाईटल को चेंज,

👉संबंधित विभागीय अधिकारियों ने  मोटी चांदी काटने के चलते कर दिया संशोधन, दर्ज कर दी मेथाडिस्ट चर्च के नाम में अवैध संपत्ति दर्ज ,

👉सुदर्शन नयूज चैनल  टीम की दूर दूर शहरों और जिलों में जाकर जुटाए गए तथ्यों से हुआ साक्ष्यों के आधार पर बडा खुलासा,

👉 सुदर्शन नयूज चैनल टीम दवारा मामले में दिग्गज लीगल एडवाईजरों से बातचीत पर पुख्ता और शासनादेश के तहत की जानकारी पर बोले लीगल एडवाईजर,

👉 कोई भी विदेशी भारतीय को अपनी पावर ऑफ अटॉर्नी नहीं दे सकता यह है प्रावधान ,

👉 बरेली ही नहीं  बदायूं , शाहजहांपुर, उत्तराखंड के अल्मोड़ा नैनीताल समेत तमाम जगहों में बेंच दी भूमाफिया ने फर्जी रूप से ब्रिटिश गवर्नमेंट की जमीन ,

 👉की सरकारी सटांप की करोड़ों के टैक्स की चोरी,

👉सोसायटी बनाकर किया गया पूरा गेम,


👉वहीं पादरी बनकर समाज में दिखाई पहले अपनी अलग झलक,

👉 बाद में कर दिया बड़ा खेल,

👉 जिला प्रशासन बरेली की जांच से पूरे मामले का हो गया पर्दाफाश,

👉 वही महाराष्ट्र मुंबई दिल्ली से सुदर्शन नयूज चैनल टीम  द्वारा सर्वेक्षण कराने और प्रमाणित साक्ष्य हासिल करने के बाद , दस्तावेजों से हो गया पूरा खुलासा,

👉 बनाए गए फर्जी प्रमाण पत्र ,शपथ पत्र और पावर ऑफ अटॉर्नी ,

👉फर्जी बनाए गए शपथ पत्रोँ की एक्सपायरी डेट है 2027 दर्ज  ,

👉जो बरेली में किसी भी शपथ पत्र पर एक्सपायरी डेट नहीं होती ,

👉 मामले में जिला प्रशासन को किया भू- माफिया ने गुमराह,

👉 पूरा मामला उत्तर प्रदेश जनपद बरेली के क्रिश्चियन मिशनरी के दिग्गजों और भू-माफियाओं का...

👉🧐😨👉शेष क्रिश्चियन मिशनरी की अन्य एकसकलूसिव खबरों के लिए.....जो कर देंगी आपको दंग.और हैरान...होगा बडा उजागर...जहाँ धर्म को अपवित्र किया ,धर्म गुरू ने ही..मानवता को किया शरमसार, और बहुत कुछ....सिर्फ सुदर्शन नयूज चैनल पर ...🧐

क्रमशः........

Tuesday, 7 May 2024

UPSC: मुस्लिम समुदाय में हो रहे शैक्षिक परिवर्तन के प्रमाण के मिल रहे संकेत फरहत अली खान*

*UPSC: मुस्लिम समुदाय में हो रहे शैक्षिक परिवर्तन के प्रमाण के मिल रहे संकेत फरहत अली खान* 


भारत की प्रतिष्ठित संघ लोक सेवा परीक्षा में सफल मुस्लिम उम्मीदवारों की बढ़ती जनसांख्यिकी मुस्लिम समुदाय में हो रहे शैक्षिक परिवर्तन का प्रमाण है। 
योग्य मुस्लिम उम्मीदवारों के प्रतिशत की निगरानी करके, कोई भी व्यक्ति परीक्षा में उनकी सफलता को प्रभावित करने वाले कारकों की बेहतर समझ प्राप्त कर सकता है। उनकी उपलब्धियाँ निष्पक्ष चयन प्रक्रिया का प्रमाण हैं, जो हाशिए पर पड़े वर्गों को सफल होने और बड़े सपने देखने की आकांक्षा रखने की अनुमति देती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2023 की UPSC परीक्षा में सफल मुस्लिम उम्मीदवारों का प्रतिनिधित्व 49 प्रतिशत है। पिछले वर्षों में, यह प्रतिशत 2021 में 3.64 प्रतिशत से लेकर 2022 में 3.10 प्रतिशत तक रहा है। इस वर्ष, 50 से अधिक सिविल सेवा उम्मीदवारों ने प्रतियोगी परीक्षाएँ उत्तीर्ण की हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 70% से अधिक की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है।

यह प्रवृत्ति सरकारी संस्थानों के भीतर अधिक प्रतिनिधित्व और विविधता की ओर बदलाव का संकेत देती है, जो समानता और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।  चूंकि मुसलमान बाधाओं को तोड़कर भविष्य की पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, इसलिए समाज के लिए उनके प्रयासों का समर्थन और प्रोत्साहन करना महत्वपूर्ण है। आवश्यक संसाधन और अवसर प्रदान करके, मुस्लिम युवाओं को अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने और इस राष्ट्र के विकास में सकारात्मक योगदान देने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है। अल्पसंख्यक पृष्ठभूमि के छात्र अधिक जागरूक हो रहे हैं और उत्कृष्टता प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, हम सिविल सेवाओं में शामिल होने की आकांक्षा रखने वाले मुस्लिम छात्रों, विशेष रूप से महिला छात्रों की संख्या में वृद्धि देख रहे हैं, जो एक सकारात्मक विकास है। इस वर्ष, 9वीं रैंक धारक एक मुस्लिम महिला है, जो मुस्लिम परिवारों द्वारा गरीबी के जाल और मुस्लिम समुदाय से जुड़ी रूढ़ियों से बचने के लिए शिक्षा और सरकारी सेवाओं पर जोर देने को दर्शाता है। यह सच है कि दशकों से मुसलमान पिछड़े हुए हैं, जिसने उन्हें आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने और करियर के विकल्प के रूप में नौकरशाही की आकांक्षा रखने से रोका है। मुस्लिम उम्मीदवारों को प्रशासित करते समय पक्षपात किए जाने की गलत धारणा भी थी, लेकिन अब यह दृष्टिकोण बदल गया है।  यूपीएससी में चयन प्रक्रिया में निष्पक्षता और समानता के प्रति प्रतिबद्धता न केवल यह सुनिश्चित करती है कि सबसे योग्य व्यक्ति सिविल सेवा के लिए चुने जाएं, बल्कि सिस्टम में विश्वास और आत्मविश्वास की भावना भी पैदा करती है। यह विविध पृष्ठभूमि और हाशिए के वर्गों के उम्मीदवारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कड़ी मेहनत का फल मिलता है और मेहनती और प्रतिभाशाली व्यक्ति ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, यह मुस्लिम युवाओं को अपने लक्ष्यों पर केंद्रित रहने और सिविल सेवक बनने की आकांक्षा रखने के लिए प्रोत्साहित करता है, उन्हें अपने चुने हुए क्षेत्र में सफलता की खोज में बाहरी कारकों से विचलित न होने का आग्रह करता है। शिक्षा और योग्यता-आधारित चयन के महत्व पर जोर देकर, मुस्लिम छात्र विकास को गति देने और लोगों को ईमानदारी से सेवाएं प्रदान करने में योगदान दे सकते हैं। यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि परिवर्तन और प्रगति के दृश्यमान एजेंटों का श्रेय जामिया हमदर्द, जामिया मिलिया इस्लामिस, अंगद मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को दिया जाता है, साथ ही अन्य सामुदायिक समूहों को भी जो आवासीय कोचिंग, पुस्तकालय सुविधाएं, अनुकूल शिक्षण वातावरण, मेंटरशिप, तैयारी सत्र और शिक्षण सामग्री प्रदान कर रहे हैं जो सराहनीय है ।
 फरहत अली खान 
अध्यक्ष मुस्लिम महासंघ

Friday, 3 May 2024

बांस के बारे में कुछ तथ्य:

बांस के बारे में कुछ तथ्य:

1. तेजी से विकास: बांस दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला पौधा है। यह 24 घंटे में 47.6 इंच बढ़ने दर्ज किया गया है। कुछ प्रजातियां इष्टतम परिस्थितियों में प्रति दिन एक मीटर से अधिक बढ़ सकती हैं। एक नया बांस शूट एक साल से भी कम समय में अपनी पूरी ऊंचाई पर पहुंच गया।

2. ऑक्सीजन रिलीज: बांस का एक पेड़ किसी भी अन्य पेड़ की तुलना में 35% अधिक ऑक्सीजन रिलीज करता है।

3. कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषण: बांस हर साल 17 टन प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित करता है। यह एक बहुमूल्य कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकता है, यह देखते हुए कि पौधे कितनी तेजी से बढ़ता

4. कोई उर्वरक की आवश्यकता नहीं है: बांस को उगाने के लिए उर्वरक की आवश्यकता नहीं है। यह अपने पत्तों को गिराकर आत्म-मल्च कर सकता है और पोषक तत्वों का उपयोग विकसित करने के लिए कर

5. सूखा प्रतिरोध: बांस सूखा-सहिष्णु पौधे हैं। वे रेगिस्तान में विकसित हो सकते हैं।

6. लकड़ी का प्रतिस्थापन: सबसे सॉफ्टवुड पेड़ों के 20-30 वर्षों की तुलना में बांस की कटाई 3-5 वर्षों में की जा सकती है।

7. निर्माण सामग्री: बांस अविश्वसनीय रूप से मजबूत और मजबूत है। इसका उपयोग कंक्रीट के साथ-साथ मचान, पुलों और घरों के लिए समर्थन के रूप में किया गया है।

8. मिट्टी की स्थिरता: बांस में भूमिगत जड़ों और राइज़ोम्स का एक विस्तृत नेटवर्क है जो मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं।

9. प्राकृतिक एयर कंडीशनर: बांस गर्मियों में अपने आसपास की हवा को 8 डिग्री तक ठंडा करता है।

10. आक्रामकता: बांस की कुछ प्रजातियां, विशेष रूप से 'दौड़ रहे' बांस, उनके व्यापक रूट सिस्टम के कारण आक्रामक हो सकती हैं, जो उन्हें तेजी से फैलने की अनुमति देते हैं। हालांकि, सभी प्रजातियां आक्रामक नहीं हैं, और उचित प्रबंधन के साथ, पर्यावरण के प्रभाव को कम से कम किया जा सकता है।

टेक्स्ट क्रेडिट: पृथ्वी अवास्तविक
छवि क्रेडिट: आयोजक बांस नर्सरी

लोकसभा चुनाव का रण: मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में जब बैलेट पर हावी थी बंदूक.!!**बुंदेलखंड की सियासत बिसात पर कभी बजता था, इन कुख्यात डकैतों के खौफ का डंका खात्मे के साथ खत्म हो गई हनक*

*!!.लोकसभा चुनाव का रण: मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में जब बैलेट पर हावी थी बंदूक.!!*
*बुंदेलखंड की सियासत बिसात पर कभी बजता था, इन कुख्यात डकैतों के खौफ का डंका खात्मे के साथ खत्म हो गई हनक*
*पंकज पाराशर छतरपुर✍️*
बुंदेलखण्ड में राजनीति की बिसात पर कभी कुख्यात डकैतों का डंका बजता था और शह मात का खेल इनकी मर्जी पर अपना रुख बदल देता था लेकिन कहा जाता है न कि वक्त बड़ा बलवान होता है । सो दहशत के सौदागर इन खूंखार डकैतों पर वक्त की मार पड़ी और इनके खात्में के बाद बुन्देलखण्ड की सियासी जमीं पर इनकी और इनके परिवार की हनक भी खत्म हो गई। ये दस्यु सरगना जब तक कानून के शिकंजे से बाहर थे तब तक किसी की क्या मजाल कि जंगल के फरमान के बिना सियासी ख्वाब भी देख ले और अपनी मर्जी का मालिक बन बैठे। जो भी होता था जंगल से आए हुए फरमानों के मुताबिक होता था। जिसने सिर उठाने की कोशिश की उसे बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया।
*राजनीति में खौफ का दूसरा नाम था ददुआ*
बुंदेलखण्ड की सियासी ज़मीं गवाह है कि वर्ष 1980 से लेकर 1990 व 2000 के शुरुआती दौर तक इस इलाके की राजनैतिक फिजाओं में यदि किसी की तूती बोलती थी वो था दुर्दांत ददुआ और ठोकिया, चित्रकूट के रैपुरा थाना क्षेत्र अंतर्गत देवकली गांव का रहने वाले ददुआ ने अपने दस्यु जीवन के दौरान जब जिसको चाहा प्रधान से लेकर जिला पंचायत सदस्य अध्यक्ष और यहां तक कि सांसद विधायक तक बनवाया। आज भी फिज़ाओं में ददुआ और बुन्देलखण्ड की राजनीति के किस्से आम हैं। कोई भी सफेदपोश विजयी होता तो वो जंगल में ददुआ से मिलने उसका इस्तकबाल करने जरूर जाता। जो भी ददुआ की मर्जी के खिलाफ जाने की कोशिश करता मौत उसका इंतजार कर रही होती। सन 2005 में ददुआ के बेटे वीर सिंह ने निर्विरोध जीत दर्ज की जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर इससे पहले व बाद में भी ददुआ के जिंदा रहने (2007 में इनकाउंटर से पहले) तक उसके फरमानों पर चित्रकूट सहित बुन्देलखण्ड की राजनीतिक सूई घूमती थी। चित्रकूट के न जाने कितने गांवों में सिर्फ ददुआ के नाम पर उसके आदमी ग्राम प्रधान से लेकर पंचायत के विभिन्न पदों पर आसीन हुए। 2002 के यूपी विधानसभा चुनाव में तो बकायदा ददुआ की ओर से एक विशेष राजनीतिक दल के लिए फरमान जारी किया गया था कि ”मुहर लगाओ……पर वरना गोली खाओ छाती पर” ये फरमान सिर्फ बुन्देलखण्ड में ही नहीं बल्कि चित्रकूट के पड़ोसी जिलों में भी काफी चर्चित हुआ था, 2009 में ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल ने मिर्जापुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
*ठोकिया भी चला ददुआ के नक्शे कदम पर*
वर्ष 2000 के आस पास एक और खूंखार डकैत बीहड़ का बेताज बादशाह बन चुका था और उसका नाम था अंबिका पटेल उर्फ़ ठोकिया, वर्ष 2007 में 7 एसटीएफ जवानों को मौत के घाट उतारकर खौफ की इबारत लिखने वाले ठोकिया ने भी अपनी दहशत से अपने परिजनों की राजनीतिक ज़मीन तैयार की. सन 2005 में दस्यु ठोकिया की चाची सरिता कर्वी ब्लाक प्रमुख के पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुई थी जबकि उसकी दूसरी चाची सविता निर्विरोध जिला पंचायत सदस्य व एक अन्य चाची निर्विरोध ग्राम प्रधान निर्वाचित हुई थी। यही नहीं सन 2007 में ठोकिया की मां पियरिया देवी बांदा जिले के नरैनी विधानसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के टिकट पर चुनाव लड़ी लेकिन उसे हार का मुंह देखना पड़ा और 27 हजार मत पाकर वह दूसरे स्थान पर रही।
*खात्में के साथ खत्म हुई हनक*
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश एसटीएफ द्वारा सन 2007 में ददुआ व् 2008 में ठोकिया का इनकाउंटर करने के बाद बुन्देलखण्ड में काफी हद तक इन कुख्यात डकैतों की तैयार की गई दहशत की ज़मीं दरकने लगी और इनके शागिर्द सिपहसलार एक एक करके नेपथ्य के पीछे जाने लगे. हालांकि आज भी ददुआ को एक तबका पूज्यनीय मानता है । अपने समाज के लिए. ठोकिया की तो मौत के बाद उसके परिजनों की राजनीतिक महत्वकांक्षा दम तोड़ गई और आज सभी साधारण जीवन जी रहे हैं। इसके इतर ददुआ के परिजनों मसलन पुत्र वीर सिंह, ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल, बाल कुमार के बेटे राम सिंह ने अपनी राजनैतिक बिसात कायम रखी और आज भी पूरा परिवार समाजवादी पार्टी में खासा सक्रीय है । 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में वीर सिंह कर्वी विधानसभा से विजयी हुए थे सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर तो उनके चचेरे भाई राम सिंह ने सपा के ही टिकट पर पट्टी विधानसभा से चुनाव लड़कर विजयश्री हासिल की थी ।