जो तुम्हे नंगा कर के तुम्हारे सामने खुद नंगा होकर संबंध बनता हो उससे कैसी शर्म, जो तुम्हारे स्तन योनि नितंब आदि को स्पर्श किया हो उससे कैसी शर्म
जिसने तुम्हे ऐसी अवस्था में देखा हो जैसे तुम्हारी मां ने देखा था तो उससे कैसी शर्म
अमन और मेरी शादी को दो साल हो चुके थे। मैं बिहार के दरभंगा से हूं, जहां बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि लड़की की सबसे बड़ी इज्जत उसकी लज्जा होती है। इसी सोच के साथ मैं पली-बढ़ी थी। मेरे ससुराल में भी यही परंपरा थी, जहां घर की इज्जत पहले बेटी और फिर बहू से जुड़ी होती है।
शादी के बाद मेरी जिंदगी बहुत खूबसूरती से चल रही थी। अमन बहुत प्यार करने वाले पति थे। उनका स्पर्श मानो दिनभर की थकान को मिटा देता था। हमारे बीच रिश्ता सिर्फ पति-पत्नी का नहीं, बल्कि दोस्ती और अपनेपन का भी था। वह हर रूप में मेरे साथ खड़े थे।
कुछ समय बाद मैं गर्भवती हुई, और यह खबर पूरे परिवार के लिए खुशी लेकर आई। सबने मेरा ध्यान रखा। एक दिन, रूटीन चेकअप के लिए मैं अमन के साथ अस्पताल गई। अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में पता चला कि बच्चा स्वस्थ है। लेकिन अस्पताल से लौटते समय एक ई-रिक्शा ने मुझे टक्कर मार दी। अमन ने मुझे संभालने की कोशिश की, लेकिन मैं पेट के बल गिर गई। दर्द असहनीय था।
हमें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन रास्ते में ही मैं बेहोश हो गई। जब मुझे होश आया, तो लगा जैसे शरीर का कुछ हिस्सा काम नहीं कर रहा था। अमन ने मुझे दिलासा दिया और कहा कि सब ठीक है। बाद में उन्होंने बताया कि मेरी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट थी और कई नसें डैमेज हो गई थीं। इससे शरीर का निचला हिस्सा कभी काम करता था, कभी नहीं।
तीन दिन बाद जब मैं घर लौटी, तो अमन ने बताया कि एक्सीडेंट की वजह से हमारा बच्चा अब इस दुनिया में नहीं रहा। यह सुनकर मेरा दिल टूट गया। ऊपर से मेरी शारीरिक स्थिति ने मुझे और अधिक बेबस बना दिया। एक दिन, जब अमन मुझे खाना खिला रहे थे, अचानक पेशाब निकल गया। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के सफाई की। लेकिन मुझे यह सब देखकर गहरा दुख हुआ।
मैंने अपनी सास से अपनी समस्या बताई और उनसे कहा कि किसी दाई को रख लें। सास नाराज होकर बोलीं कि मुझे शर्म नहीं आती, जो पति से अपना मल-मूत्र साफ कराती हूं।
शाम को अमन से मैंने यह बात साझा की। मैंने कहा कि यह सब उनसे करवाना मुझे शोभा नहीं देता। अमन ने मेरी ओर देखा और कहा, "अगर मेरी जगह तुम्हारी यह स्थिति होती, तो क्या तुम मुझे ऐसा कहतीं?"
मैं चुप थी।
उन्होंने आगे कहा, "जिसने तुम्हें हर रूप में देखा और अपनाया है, उससे कैसी शर्म? अगर तुम्हें मुझसे शर्म आती है, तो मैं एक नर्स रख सकता हूं। लेकिन तब मुझे लगेगा कि हमारे बीच का रिश्ता कमजोर हो गया है।"
उनकी बातों ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। मैं सोचने लगी कि मैंने ऐसा कौन-सा सौभाग्य कमाया था, जो मुझे अमन जैसा जीवनसाथी मिला।
आज उस हादसे को दो साल हो चुके हैं। अमन रोज रात मेरे कमर की मालिश करते हैं, ताकि मैं जल्द से जल्द ठीक हो सकूं। उनके प्रेम और समर्पण ने मुझे हर कठिनाई से लड़ने का साहस दिया है।
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