*हल्की सोच की मारी यह शिक्षा हमारी*
भारत में शिक्षा के दो मॉडल हैं । मैकाले मॉडल और गुरुकुल मॉडल। 1858 में अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा अधिनियम बनाकर हमारे सर्वोच्च गुरुकुल मॉडल को खत्म कर मैकाले का कॉन्वेंट मॉडल लागू कर दिया था। दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी वही अधिनियम और वही मॉडल अत्यंत गतिशीलता के साथ भारत में चल रहा है। मैकाले मॉडल जनमानस के मनो मस्तिष्क में ऐसा छा गया है कि वे सीबीएसई, को ऐड, अंग्रेजी माध्यम के बिना अन्य किसी तरह की शिक्षा की कल्पना ही नहीं करते। जबकि इस मैकाले मॉडल की शिक्षा के दुष्परिणाम भी हम प्रत्यक्ष भुगत रहे हैं।
गुरुकुल का नाम आते ही जन सामान्य को लगता है कि गुरुकुल में तो पंडित या क्रियाकांडी बनाने की शिक्षा दी जाती है। ज्यादा हुआ तो थोड़े बहुत संस्कार दे देंगे ................... वगैरह.........वगैरह। दूसरा यह भी कि गुरुकुल में तो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के गरीब बच्चे ही पढ़ते हैं और धनाढ्य लोग उनकी व्यवस्था के लिए थोड़ा सा दान करके पुण्य कमाते हैं।
इसमें समाज का कोई दोष नहीं है। दरअसल वर्तमान में जो गुरुकुल चल रहे हैं, उन्होंने नाम भले ही गुरुकुल रखा है परंतु काम तो मैकाले मॉडल पर ही हो रहा है।
समाज को आगामी पीढ़ी संस्कारवान, सेवानिष्ठ चाहिए लेकिन शिक्षा मैकाले मॉडल की ही देना चाहेंगे। भला मैकाले मॉडल से कभी महापुरुष पैदा हुए हैं। यह मॉडल तो हमारे बच्चों को माइकल जैक्सन बनाने के लिए था। जबकि इतिहास गवाह है कि हमारे समस्त महापुरुष, सर्वज्ञ, महामुनि, चंद्रगुप्त जैसे सम्राट और चाणक्य जैसे महा मनीषी शिक्षक गुरुकुलों से ही निकाल कर आए हैं।
*श्री विद्यासागर गुरुकुलम् भोपाल* भी गुरुकुल मॉडल पर ही काम कर रहा है। हम केवल लौकिक शिक्षा या मात्र किताबी ज्ञान नहीं देते बल्कि ज्योतिष, वास्तु, आयुर्वेद, कुश्ती, शस्त्र विद्या, धर्मशास्त्र, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत भाषाएं, मलखम, घुड़सवारी, तैराकी, संगीत, वस्त्र निर्माण,गोपालन, कृषि सहित अनेकों विधाओं में बचपन से ही पारंगत करते हैं। प्रकृति के बीच शुद्ध हवा,पानी और जैविक भोजन ग्रहण करने का ही परीणाम है कि विगत सत्र में हमारे विद्यार्थियों को दवाओं और डॉक्टर की एक बार भी जरूरत नहीं पड़ी।
गुरुकुल क्या होते हैं। एक बार आकर भ्रमण कीजिए। *बच्चों का प्रवेश भी प्रारंभ हो चुका है।*
*संपर्क करें*- 9009 631008 7049512101
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