Friday, 27 May 2022

पहले देवालय उसके बाद शौचालय और अन्य चीजेंमंदिर चाहिये रोजगार नहीं क्योंकि सनातन हिंदू सिख जैन बौद्ध पारसी लोगों के मठ मंदिर धर्म स्थान तो स्वयं ही रोजी-रोटी रोजगार के सबसे बड़े केंद्र हैं जितनी नौकरियां भारत सरकार और केंद्र तथा राज्य के सरकारी मिलकर नहीं दे पाती उससे ज्यादा लोगों को रोजगार बिना किसी डिग्री के मंदिर और धर्म स्थानों की वजह से मिलता है क्यों मिलता है उसको शांति से निष्पक्षता से पढ़ें तब आपको लगेगा कि पहले देवालय उसके बाद ही शौचालय का नारा सहीहै

पहले देवालय उसके बाद शौचालय और अन्य चीजेंमंदिर चाहिये  रोजगार नहीं क्योंकि सनातन हिंदू सिख जैन बौद्ध पारसी लोगों के मठ मंदिर धर्म स्थान तो स्वयं ही रोजी-रोटी रोजगार के सबसे बड़े केंद्र हैं जितनी नौकरियां भारत सरकार और केंद्र तथा राज्य के सरकारी मिलकर नहीं दे पाती उससे ज्यादा लोगों को रोजगार बिना किसी डिग्री के मंदिर और धर्म स्थानों की वजह से मिलता है क्यों मिलता है उसको शांति से निष्पक्षता से पढ़ें तब आपको लगेगा कि पहले देवालय उसके बाद ही शौचालय का नारा सहीहै

एक दिन मैं एक प्रसिद्ध मंदिर पर बैठा था तभी एक तथाकथित बुद्धिजीवी विधर्मी पत्रकार आकर पूछने लगा की मंदिर और धर्म स्थान का क्या फायदा है इसकी जगह तो रोजगार देने वाले केंद्र होने चाहिए मैंने उस विधर्मी को समझाते हुए कहा।यह मंदिर दो से ढाई हजार लोगों को रोजगार दे रहा है। यह काम तो हजार करोड़ लगाकर कोई कम्पनी नहीं कर सकती है।

लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात है। मंदिर किसको रोजगार दे रहा है ! यह वह लोग है ,जिनके पास किसी संस्थान से डिग्री नहीं है। इतना धन नहीं है कि कोई बड़ा निवेश कर सकें। अर्थव्यवस्था में समाज के निचले स्तर के लोग है।
*मंदिर*
*करोड़ो लोगों को रोजगार देते हैं।*
*कैसे...... ????*

१.धार्मिक पुस्तक बेचने वालों को और उन्हें छापने वालों को रोजगार देते हैं।

२. माला बेचने वालों को घंटी-शंख और पूजा का सामान बेचने वालों को रोजगार देते हैं।

३. फूल वालों को माला बनाने और किसानों को रोजगार देते हैं।

४. मूर्तियां-फोटुएं बनाने और बेचने वालों को रोजगार देते हैं।

५. मंदिर प्रसाद बनाने और बेचने वालों को रोजगार देते हैं।

६. कांवड़ बनाने-बेचने वालों को भी रोजगार देते हैं।

७. रिक्शे वाले गरीब लोग जो कि धार्मिक स्थल तक श्रद्धालुओं को पहुंचाते हैं उन रिक्शा और आटो चालकों को रोजगार देते हैं।

८. लाखों  पुजारियों को भी रोजगार देते हैं।

९. रेलवे की अर्थव्यवस्था का १८% हिस्सा मंदिरों से चलता है।

१०. मंदिरों के किनारे जो गरीबों की छोटी-छोटी दुकानें होती है उन्हें भी रोजगार मिलता है।

११. मंदिरों के कारण अंगूठी-रत्न बेचने वाले गरीबों का परिवार भी चलता है।

१२. मंदिरों के कारण दिया बनाने और कलश बनाने वालों को भी तो रोजगार मिलता है।

१३. मंदिरो से उन ६५,००० खच्चर वालों को रोजगार मिलता है जो किश्रद्धालुओ श्रद्धालुओं को दुर्गम पहाड़ों पर प्रभु के द्वार तक ले जाते हैं।

१४. भारत में दो लाख से अधिक जो भी होटल हैं और धर्मशालाएं हैं उनमें रहने वाले लोगों को मंदिर ही तो रोजगार देतें हैं।

१५. तिलक बनाने वाले- नारियल और सिंदूर आदि बेचने वालों को भी ये मंदिर रोजगार देते हैं।

१६. गुड-चना बनाने वालों को भी मंदिर रोजगार देते हैं।

१७. मंदिरों के कारण लाखों अपंग और भिखारियों और अनाथ बच्चों को रोजी-रोटी मिलती है।

१८. मंदिरों के कारण लाखों वानरों की रक्षा होती है और सांपों की हत्या होने से बचती है।

१९. मंदिरों के कारण ही हिंदू धर्म में पीपल-बरगद -पिलखन- आदिहै वृक्षों की रक्षा होती है।

२०. मंदिर के कारण जो हजारों मेले हर वर्ष लगते हैं- मेलों में जो चरखा-झूला चलाने वालों को भी तो रोजगार मिलता है।

२१. मंदिरों के कारण लाखों टूरिस्ट मंदिरों में घूमते हैं और छोटे-छोटे चाय-पकौडे-टिक्की बेचने वाले सभी गरीबों का जीवन यापन भी तो चलता है।

सनातन धर्म उन करोड़ों लोगों को रोजगार देता है जो गरीब हैं।
जो ज्यादा पड़े लिखे नहीं हैं और जिन के पास धन-जमीन और खेती नहीं है जो बचपन में अनाथ हो गए।

जिनका कोई नहीं उनका राम है।
उनका श्याम है उनका शिव है।

यह मंदिर कई सौ वर्ष तक रहेगा।
तब तक रोजगार देता रहेगा।

यह सामाजिक , धार्मिक उन्नयन का केंद्र है।
यदि आर्थिक दृष्टि से देखे तो मंदिर , अपने निवेश से कई हजार गुना रोजगार दे रहा है।
शायद हमनें अपनी धार्मिक आस्था के कारण इसको देखा नहीं। हमारे मंदिर , आर्थिक वितरण के बहुत बड़े , स्थाई केंद्र है।
Ab to aap samajh hi gaye honge ki इतना सब सुनने के बाद उस आतंक के फरिश्ते हरे विषय ले सांप रूपी बुद्धिजीवी पत्रकार का चेहरा उतर गया जाते-जाते मैंने उससे कहा की विधर्मी भी जब भोजन पानी के बिना मरते हैं तो छापा तिलक लगाकर मंदिर ही आते हैं मस्जिद से तो उन्हें कुछ मिलता नहीं
जय श्री राम

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