*हिंदी भाषा और इसके साथ किया गया भयानक षड्यंत्र*हमको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है हम नर नहीं हैं पशु निरा रा हैं और मृतक समान हैं*
*सभी राजनीतिक दलों और सभी राजनेताओं द्वारा हिंदी के विनाश करने का भयंकर काला नंगा सच डॉक्टर जयंती प्रसाद नौटियाल ने अपने भाषा शोध संस्थान से संपूर्ण विश्व की भाषाओं का अध्ययन करके यह बता दिया है कि हिंदी 137 करोड़ों लोगों की भाषा होने के साथ दुनिया की सबसे बड़ी भाषा है जबकि अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या दुनिया में 127 करोड़ और चीनी भाषा जिसे मंदारिन भाषा कहते हैं उसे बोलने वालों की संख्या 113 करोड़ है लेकिन न तो भारत के लोग और ना भारत की केंद्र सरकार और ना यहां के प्रधानमंत्री इस सच को जानते हैं मानते हैं और नए इसे जानने का प्रयास करते हैं*
*यह सुनने में परम विचित्र और अटपटा जरूर लगता है लेकिन यह सच है कि इस देश की कोई भी राजनीतिक पार्टी और अपवादों को छोड़कर कोई भी बड़ा राजनेता यह नहीं चाहता है कि हिंदी देश की राष्ट्रभाषा राजभाषा कार्यालय की भाषा और संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्व भाषा के रूप में आसीन हो इसका कारण चाहे जो भी हो लेकिन बंद पर्दे में सभी दलों के सभी बड़े बड़े राजनेता यह निश्चित कर चुके हैं कि तमाम अड़ंगा लगाकर हिंदी को ना तो राष्ट्रभाषा बनाना है और ना संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थाई भाषा बनने देना है*
*इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि सत्ता के हस्तांतरण में 1947 में कुछ ऐसे गुप्त प्रावधान रहे हो जिसमें भारत को एक औपनिवेशिक गुलाम देश माना गया और आज भी भारत राष्ट्रमंडल का सदस्य है और उन देशों में अपने उच्चयुक्त अर्थात हाई कमिश्नर नियुक्त करता है और अभी हाल में रानी एलिजाबेथ की मृत्यु पर भारत में राष्ट्रीय शोक पता नहीं किस आधार पर मनाया गया और तो और स्वयं राष्ट्रपति महोदया का वहां जाना और मातम मनाना समझ के परे है जबकि भारत में किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की मृत्यु या हत्या पर भी वहां से कोई राजा रानी नहीं आया था*
*इसके अलावा हिंदी को राष्ट्रभाषा और विश्व भाषा बनने में कोई भी परेशानी नहीं है लेकिन जब भारत की केंद्र सरकार और सभी बड़े दलों के राजनेता बंद कमरों में मिली मार और नूरा कुश्ती के अंतर्गत हिंदी को पूरी तरह मिटाने में लगे हैं और अंग्रेजी को पूरी तरह बढ़ाने में लगे हैं तो फिर हिंदी कैसे राष्ट्रभाषा और विश्व भाषा बनेगी जितने भी तर्क हिंदी को राष्ट्रभाषा और विश्व भाषा बनने के विरुद्ध दिए जाते हैं वह सब न केवल खोखले बल्कि हास्यास्पद भी हैं और यह दिखाते हैं कि हमारे देश के राजनेता और राजनीतिक दल मन वचन कर्म से विदेशी सभ्यता विदेशी भाषा और विदेशी सरकारों के कितने गुलाम हैं पहले कक्षा 6 से अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी अब शुरू से पढ़ाई जाती है और पहले हिंदी में बीएससी की विज्ञान की किताबें पढ़ाई जाती थी आज हिंदी का नामोनिशान नहीं है*
*जबकि डेढ़ हजार वर्षों से अधिक समय से संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ी-लिखी बोली जा रही है आदि सिद्ध कब सराफा से लेकर अब्दुल रहमान मलिक मोहम्मद जायसी चंद्रवरदाई जगनिक तुलसी कबीर सूरदास मीरा रहीम रसखान बिहारी घनानंद मतराम प्रसाद पंत निराला महादेवी वर्मा भारतेंदु हरिश्चंद्र मैथिलीशरण गुप्त हरि ओम सहित दुनिया के सभी बड़े बड़े महानतम कवि साहित्यकार हिंदी भाषा में ही हुए हैं हिंदी भाषा का सिद्ध साहित्य भक्ति साहित्य साहित्य आधुनिक साहित्य और संसार की सभी विधाओं जैसे कहानी नाटक उपन्यास निबंध और पृथ्वीराज रासो पद्मावत रामचरितमानस कामायनी जैसे अनगिनत महान ग्रंथ विश्व भाषा के किसी भी कविता कहानी एकांकी उपन्यास महाकाव्य एकांकी से श्रेष्ठ और उच्च स्तर के हैं*
*हिंदी संपूर्ण वैज्ञानिक और कंप्यूटर तथा इंटरनेट की भाषा के रूप में दुनिया की हर भाषा से सर्वश्रेष्ठ है इसमें हर शब्द के लिए उचित वर्ण हैं जबकि अंग्रेजी उर्दू अरबी सहित अधिकांश भाषाओं में बहुत अधिक भरम और संदेह है और किसी भी भाषा का व्याकरण हिंदी के सम्मान उन्नत और प्रामाणिक नहीं है हिंदी भाषा साहित्य में ऐसा कोई भी श्रेष्ठ तत्व नहीं है जो दुनिया की अन्य भाषाओं में ना हो*
*फिल्मों के बाद सोशल मीडिया पर भी हिंदी भाषा का डंका बज रहा है आज हिंदी भाषा पर इंटरनेट सोशल मीडिया कंप्यूटर की भाषा के रूप में प्रयोग करने वालों की संख्या पूरी दुनिया में तीसरे नंबर पर है और जल्दी ही पहले क्रमांक पर आ जाएगी यदि भाषा के आधार पर संविधान संशोधन करके भाषावाद राज्य बनाए जा सकते हैं तो राष्ट्रभाषा के लिए संविधान में संशोधन करके हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने कौन सी बड़ी बात है ऐसा भी नहीं कि अगर सरकार चाहे तो ऐसा ना कर सके लेकिन उनकी इच्छा ही ऐसी नहीं है क्योंकि भारत ऐसा देश है जहां अनुसूचित जाति जनजाति के लिए संविधान में संशोधन हो सकता है लेकिन भगवान श्री राम के मंदिर के लिए कट्टर से कट्टर सनातनी नेता और राजनीतिक दल अपने हाथ खड़े कर लेते हैं*
*अगर 137 करोड़ों लोगों की भाषा होने के बाद भी दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने के बाद भी दुनियाभर के 173 देशों में इसका प्रचार प्रसार होने के बाद और 15 देशों में या प्रमुख भाषा के रूप में स्थापित होने पर भी राष्ट्रभाषा और विश्व भाषा नहीं बन रही है तो इसके लिए केवल केंद्र सरकार पक्ष विपक्ष की सभी राजनीतिक पार्टियां और मन वचन कर्म से विदेशी भाषा विदेशी सभ्यता के गुलाम हमारे बड़े बड़े पदों पर आसीन लोग हैं कितनी लज्जा की बात है कि आज भी सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय सहित ऐसे तमाम स्थान है जहां पर हिंदी को मान्यता ही नहीं दी गई है इतना ही नहीं जिन जिन तथ्यों को बताकर राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को हटाया गया वह हमारे देश के सभी दलों के राजनेताओं की पोल पट्टी खोल देता है*
*अरबी स्पेनिश फ्रेंच रूसी भाषा बोलने वालों की संख्या 30 करोड़ से भी कम है और वह संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थाई भाषा और विश्व की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई हैं भला उन में कौन सा ऐसा गुण था जो जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गांधी नरसिंह राव अटल बिहारी वाजपेई और मोदी जी में नहीं है इसका अर्थ है यह सभी लोग खोखले नेता हैं और विश्वास पर पर इनका कोई भी मान सम्मान नहीं है इतना ही नहीं 113 करोड़ों लोगों की चीनी भाषा और 127 करोड़ों लोगों की अंग्रेजी भाषा विश्व के भाषा रूप में प्रतिष्ठित है अगर भारत को निकाल दिया जाए तो अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या 100 करोड़ से भी कम है लेकिन लगता है यही है कि यह बात सच है कि भारत को एक गुप्त समझौते के तहत सत्ता सौंपी गई जिसमें अभी प्रतिबंध रहा होगा कि हिंदी को कभी भी राष्ट्रीय भाषा नहीं बनाई जाए*
*जिस हिंदी के उग्र और हिंसक विरोध की बात करके हिंदी को बार-बार राष्ट्रभाषा होने से रोका गया वह विरोध जनता द्वारा नहीं बल्कि राजनेताओं द्वारा भड़का कर भाड़े के लोगों से कराया गया है आप पूरे देश में घूम कर चले आइए किसी भी स्टेशन दुकान संस्थान विभाग बस अड्डों पर ऐसा कोई नहीं मिलेगा जिसे हिंदी भाषा की जानकारी नहीं हो हिंदी के सबसे प्रबल विरोधी कहे जाने वाले तमिलनाडु की जनता हिंदी विरोधी नहीं है बल्कि वहां की अन्नाद्रमुक और द्रमुक पार्टी यही हिंदी की घोर विरोधी हैं क्योंकि उत्तर भारत और हिंदी का विरोध करके वह सत्ता पर काबिज हैं इसके बावजूद भी हिंदी पूरे तमिलनाडु और चेन्नई में बढ़ती चली जा रही हैं*
*मैंने पूरे देश का खुद कई कई बार भ्रमण किया है केरल कर्नाटक गोवा उड़ीसा आंध्र प्रदेश तेलंगाना महाराष्ट्र गुजरात सिक्किम अरुणाचल प्रदेश असम नागालैंड मिजोरम त्रिपुरा पश्चिम बंगाल जम्मू और कश्मीर पंजाब अंडमान निकोबार लक्ष्यदीप दादरा और नगर हवेली जैसे सभी प्रदेशों में हिंदी बोलने वाले बहुत बड़ी संख्या में हैं इसके अलावा सारी दुनिया में हर देश में हिंदीभाषी हैं जिसमें नेपाल भूटान बांग्लादेश पाकिस्तान अफगानिस्तान मारीशस मालदीव सूरीनाम जमैका हवाना क्यूबा जैसे तमाम देश तो ऐसे हैं जहां भारत के लोग ही अधिक संख्या में बसे हुए हैं अगर आज भारत की सरकार हिंदी को भाषा बना दे तो इन सभी देशों की भाषा हिंदी हो जाएगी रूस और अमेरिका तथा चीन में हिंदी की लोकप्रियता भयंकर गति से बढ़ रही है कहने का अर्थ यह है कि सरकार और पार्टियां जिन चीजों का दावा करती हैं वैसा हिंदी विरोध दुनिया में और देश में कहीं नहीं है*
*अब इसके असली कारण पर आते हैं 99% राजनेताओं सांसदों विधायकों मंत्रियों धनकुबेर लोगों माफिया और बड़े-बड़े अधिकारियों के बच्चे पूरी तरह विदेशी माहौल में और अंग्रेजी भाषा में रचे बसे हैं और अब तो कमेंट और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के अनुसार छुट्टियां भी होने लगी हैं पहले जुलाई में प्रवेश परीक्षा होती थी अब मार्च में ही होने लगी है और उसी हिसाब से अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग भी होने लगे हैं यह सब एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है जिसको भारत की जनता समझ नहीं पा रही है यह लोग अपना एक छोटा वर्ग बनाकर अंग्रेजों की तरह काले अंग्रेज बन कर भारत पर राज करने की लंबी अभिलाषा पाले हुए हैं*
*जब हिंदी राजभाषा बनने से 1 वोट से रह गई थी तब अगर नेहरू सहित किसी भी नेता ने चाहा होता तो आसानी से एक वोट मिल जाता लेकिन मिली मार नूरा कुश्ती के तहत जानबूझकर 1 वोट से हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित होने से रोका गया था कहने के लिए तो गांधी नेहरू अटल बिहारी इंदिरा नर्सिंगराव मोदी जी सभी घनघोर हिंदी समर्थक हैं लेकिन उसका कोई फायदा कहीं नहीं दिखता है इधर तो मोदी जी भी हिंदी छोड़कर घनघोर अंग्रेजी बोलने लगे हैं सच बड़ा नंगा कड़वा है लेकिन इस का काला सच यही है*
*जहां तक विरोध की बात है तो राजनीति में और आरक्षण पर इतने घन घोर विरोध हुए जिसके आगे हिंदी का विरोध कुछ नहीं है बंगाल और वामपंथी प्रदेशों में जितना खून की होली खेली जा रही है नक्सली जितने लोगों को मार रहे हैं आतंकी जितना आतंक मचा रहे हैं क्या हुआ ऐसा विरोध हिंदी के नाम पर कभी देश में हुआ कश्मीर दिल्ली महाराष्ट्र की रक्त रंजित घटनाएं और गुजरात के नरसंहार कांड से ज्यादा हिंदी का विरोध कभी हुआ जिसका उत्तर नहीं है अर्थात सत्ता पक्ष या विपक्ष का कोई भी नेता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना नहीं चाहता क्योंकि इससे सभी राजनेताओं का भयंकर नुकसान होने की आशा है*
*जिस एक अखंड और स्वदेशी भारत की हम कल्पना करते हैं क्या वह बिना हिंदी के संभव है और आज जो राजनेता हिंदी का विरोध करके अपने प्रदेश की जनता को भ्रमित किए हुए हैं उनको यह नहीं मालूम है कि हिंदी का विनाश होते ही तमिल तेलुगू कन्नड़ मलयालम मराठी गुजराती बंगाली असमिया पहाड़ी भाषाएं डोगरी भाषा है उर्दू अपने आप समाप्त हो जाएंगे जैसे भारत में अगर जनता ने राजपूतों का साथ दिया होता तो विदेशी कभी नहीं आते लेकिन जब लड़ने वाले राजपूत समाप्त हो गए तो अपने आप लोगों को विवश होकर विधर्मी बनना पड़ा आज इस भयानक नंगे सच का विरोध करना बहुत जरूरी है*
*हिंदी का व्याकरण इसका शब्दकोश दुनिया में सबसे बड़ा है यह इतनी लचीली भाषा है कि लगभग दुनिया के हर भाषाओं के शब्द इसके अंदर समा गए हैं और एक सामान्य हिंदी भाषी सब हिंदी शब्द बोलने पर 20 विदेशी शब्द अपने आप बोल लेता है इसमें अंग्रेजी उर्दू अरबी फारसी चीनी पुर्तगाली स्पेनी जर्मन फ्रेंच रूसी सभी भाषाएं शामिल है इसके बावजूद भी विभिन्न कारण बेशर्म होकर हमारी सरकार और राजनेताओं द्वारा गिने जाते हैं निश्चित रूप से देश के और हिंदी के गद्दार हैं जब एक वर्ग के तुष्टीकरण के लिए अथवा व्यक्तिगत अहंकार की पूर्ति के लिए संविधान के मूल ढांचे को ही बदला जा सकता है 42वां और 44 में संशोधन करके और भी ना जाने कितने संशोधन हुए तो क्या एक संशोधन संविधान में हिंदी भाषा के लिए नहीं किया जा सकता है*
*हिंदी को सामान्य मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग ने ही अपनाया हुआ है जो जरा सा धनी हुआ या बड़े पद पर पहुंचा या सांसद विधायक मंत्री हुआ उसमें से अधिकांश तत्काल ही विदेशी भाषा और अंग्रेजी अपनाकर अपने को अन्य जनता से विशिष्ट दिखाते हैं और खुद को जनता का सेवक चौकीदार और न जाने क्या-क्या लज्जा रहित होकर कहते हैं अगर आप में इच्छाशक्ति है तो 1 दिन में हिंदी राजभाषा हो सकती है और राष्ट्रभाषा भी आप सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में हर जगह हिंदी का प्रयोग अनिवार्य कर दो जो विरोध करते हैं उनके लिए विदेशी भाषा या अपनी राज्य की भाषा अनिवार्य कर दो कभी भी कहीं भी कोई भी विरोध नहीं होगा लेकिन जानबूझकर ऐसा नहीं किया जा रहा है आने वाले कुछ ही दिनों में भारत को हिंदी मुक्त और अंग्रेजी वाला देश घोषित होने की कोशिश हो रही है यद्यपि ऐसा कभी नहीं होगा क्योंकि भारत के लोग लाख प्रयास करके भी अंग्रेजी को पढ़ लिख बोल और समझ नहीं पाएंगे पूरी दुनिया के सामने ही समस्या है क्योंकि अंग्रेजी का निश्चित व्याकरण है और ना इसका कोई उच्चारण है न यह विज्ञान के अनुरूप है शेक्सपियर के समय तक अंग्रेजी को जंगली भाषा कहा जाता था*
*यह कहना बहुत आसान है कि जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है और यह कि निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल इसका उद्धरण नेहरू इंदिरा नरसिंहाराव मनमोहन सिंह अटल बिहारी और मोदी जी सब देते हैं लेकिन जब कार्य रूप में परिणत करने की बात आती है तो सब की हिम्मत जवाब दे जाती है हिंदी के प्रबल समर्थक भारत रत्न स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय हत्या के पीछे भी एक कारण यही था कि उन्होंने आते ही हिंदी को राष्ट्रभाषा अनिवार्य कर दिया जिसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष ने उनके साथ घनघोर छल कपट करते हुए दंगे फसाद करा दिए फिर भी अगर वे जीवित रहते तो आज हिंदी देश की राष्ट्रभाषा और संयुक्त राष्ट्र संघ की अस्थाई भाषा होती कितने गए बीते हमारे राजनेता हैं जो विदेशी भाषा में अपनी उन्नति देखते हैं और उनको जरा भी लज्जा या शर्म नहीं आती है जानबूझकर रेडियो टेलीविजन अखबारों में विज्ञापनों में हिंदी भाषा के साथ विदेशी शब्द अनावश्यक रूप से घुसाकर हिंदी को विकृत करने का सफल प्रयास किया जा रहा है*
*राजनेताओं के भरोसे ही भारत कभी भी हिंदू राष्ट्र नहीं घोषित हुआ ना कभी यहां एक समान नागरिक संहिता बन पाई नया का राष्ट्रगान बना और नहीं यहां एक समान नागरिकता दी गई न जनसंख्या की कोई नीति बनाई गई सभी दलों के सभी राजनेताओं के विश्वास पर रहने के कारण ही 9000000 सनातनी हिंदू 1947 के अनावश्यक विभाजन में मारे गए और देश कई टुकड़ों में बट गया और वे अंतिम क्षण तक कहते रहे की बटवारा उनकी लाश पर होगा आज भी अन्यथा उसी प्रकार के हैं जरा भी बदले नहीं है*
*जितने भी प्रहार किए गए सब सनातन धर्म के ऊपर ही किए गए और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला माखनलाल चतुर्वेदी प्रसाद पंत भारतेंदु हरिश्चंद्र आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी आचार्य रामचंद्र शुक्ल सहित जॉर्ज ग्रियर्सन प्रोफेसर वारानीकोव डॉक्टर कामिल बुल्के अभिमन्यु अनत जैसे करो विद्वानों ने जिन्होंने हिंदी के लिए अथक प्रयास और संघर्ष किया उनको भुला दिया गया निराला तो नेहरु से इतने नाराज थे कि अंत तक में नेहरू से मिलने नहीं गए क्योंकि उन्हीं के कारण हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई थी दक्षिण भारत के अधिकांश लोग हिंदी के प्रबल समर्थक थे इस चित्र में हिंदी के अध्यापक प्राध्यापक भी बहुत अधिक दोषी हैं जो अपने बच्चों को हिंदी के माध्यम में ना डालकर अंग्रेजी माध्यम में पालते हैं जिसकी खाते हैं उसी में छेद करते हैं उसकी भी परवाह नहीं करते हैं*
*संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी भी भाषा के वहां की कामकाजी भाषा बनाने के लिए केवल 2 शर्ते हैं 196 देशों में से 130 देशों का अर्थात दो तिहाई देशों का समर्थन होना चाहिए और 1 वर्ष तक उस भाषा पर आने वाला खर्च वहन करना चाहिए इसी शर्त पर स्पेनिश रूसी और अरबी भाषाएं संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रवेश पा सकी थी अगर मोदी जी खुद को विश्व के सबसे बड़े नेताओं में मानते हैं तो क्यों नहीं यह दोनों कार्य पूरा करते आंकड़ों से ज्ञात होता है कि 66 करोड रुपए 1 वर्ष हिंदी के खर्च के लिए चाहिए और इसका कई सौ गुना घपला घोटाला तो केवल एक एक राजनेता और धन कुबेर कर रहे हैं हमारे उच्चतर स्तर के राजनेताओं को उस समय जरा भी लज्जा नहीं आती जब वह अपने को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणराज्य का कर भी बाहर जाकर हिंदी की जगह विदेशी भाषा मैं बोलते हैं*
*मैं संपूर्ण भारत वासियों से आग्रह करूंगा कि वह काले अंग्रेज और विदेशी गुलाम ना बने हिंदी को हृदय से अपनाएं क्योंकि हिंदी के नष्ट होने पर भारत की सभी राज्यों की भाषाएं अपने आप नष्ट हो जाएंगे राजनेताओं के चक्कर में ना पड़ें यह लोग केवल कुर्सी वोट और अपार धन दौलत चाहते हैं जिन्हें आप कट्टर हिंदी के समर्थक राजनेता समझते हैं वह भी अंदर ही अंदर पूरी तरह काले अंग्रेज हैं और मौका पाते ही धुआंधार अंग्रेजी बोल कर इस असलियत को प्रकट कर देते हैं इन राजनीतिक दलों के नेताओं से आग्रह है कि वह इंग्लैंड में जाकर एमपी एमएलए मंत्री प्रधानमंत्री हो जाएं और जी भरकर अंग्रेजी भाषा दिन-रात बोलेऔर जितने हिंदी भाषी राज्य हैं उनसे भी निवेदन है कि वह अंग्रेजी सीखने के बजाय अन्य प्रदेशों की भाषाओं को सीखने का प्रयास करें इसी में उनकी भलाई है रही बात हिंदी की तो उसे राष्ट्रीय भाषा और विश्व भाषा बनने से कोई भी राजनेता कोई भी राजनीतिक पार्टी कभी नहीं रोक सकती सभी दलों के सभी राजनेताओं के लिए अंत में मैं यही कहना चाहूंगा तुम आज समय के सैलाबो को मत रोको खुशहाल हवाओं में खिड़कियां बंद करो यदि तूने ऐसा किया कभी तो याद रहे इतिहास में तुमको माफ करेगा याद रहे पीढ़ियां तुम्हारी करनी पर पछताएंगे भारत की लाली में कालिख पुत जाएगी डॉ दिलीप कुमार सिंह*
[9/20, 7:44 AM] Dileep Singh Rajput Jounpur: *23 सितंबर दुनिया में अद्भुत भौगोलिक दिन 2,3 सितंबर और 21मार्च दुनिया के लिए बहुत अद्भुत दिन होते हैं क्योंकि इस समय सारी दुनिया में (अब उत्तरी गोलार्ध में क्योंकि पहले दक्षिणी गोलार्ध की खोज नहीं हुई थी और उत्तरी गोलार्ध को ही दुनिया माना जाता था और वैसे भी आज भी आस्ट्रेलिया अंटार्कटिका दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका में जनसंख्या बहुत कम है) दिन और रात गर्मी और सर्दी औसत रूप से बराबर रहती हैं*,,,
*सौरमंडल में हमारी धरती अद्भुत और परम विचित्र ग्रह है क्योंकि एक तो यह अंतरिक्ष से नीली और हल्की सफेद दिखती है दूसरे अभी तक की ज्ञात अनंत ब्रह्मांड में केवल धरती पर ही जीव जंतु और वनस्पतियां प्रत्यक्ष रूप से पाई गई है यहां पर चार तिथियां अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं 21 मार्च और 23 सितंबर 1 जून और 22 दिसंबर आते हैं*
*ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पृथ्वी अपनी धुरी पर बहुत तेजी से घूमती हुई सूर्य के चारों तरफ 106000 किलोमीटर प्रति घंटा के भयंकर वेग से प्रदक्षिणा करती रहती है और इसका एक दिन रात मिलाकर 23 घंटे 55 मिनट 41 सेकंड के बराबर होता है और यह अपने अक्ष पर साढे 23 अंश झुकी हुई है इसीलिए धरती पर दिन और रात तथा सूर्य का उदय और अस्त एक समान नहीं होता है*
*पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने से जहां दिन और रात होते हैं वहीं पर सूर्य के चारों ओर इसके परिक्रमा करने से ऋतु में परिवर्तन होता है सामान्य रूप से पृथ्वी की इस गति को परिभ्रमण और परिक्रमण कहा जाता है अगर धरती तेइस सही एक बटे दो अंश झुकी नहीं होती और पूरी तरह गोल होती तो सारी धरती पर दिन और रात बराबर होते हैं और सर्दी गर्मी भी बराबर होती लेकिन ऐसा इसलिए नहीं है कि धरती अपने अक्ष पर 23/1/2 अंश झुकी हुई है*
*इस भौगोलिक परिवर्तन का एक और कारण है की पृथ्वी पूरी तरह गोल न होकर नाशपाती अथवा संतरा की तरह अपने दोनों ध्रुवों पर चिपटी है जैसे जैसे हम दोनों ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं वैसे वैसे दिन और रात का अंतर बढ़ता जाता है यहां तक कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर छह छह महीने के दिन और रात होते हैं*
*परिक्रमण के कारण ही धरती पर सर्दी गर्मी और वर्षा ऋतु होती है 21 जून को उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे छोटी रात होती है जबकि 22 दिसंबर को उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ी रात और सबसे छोटा दिन होता है 22 दिसंबर के 2 महीने बाद तक उत्तरी गोलार्ध में भयंकर ठंड पड़ती है जबकि दक्षिणी गोलार्ध में भयंकर गर्मी पड़ती है जबकि 21 जून को उत्तरी गोलार्ध में सबसे भयंकर गर्मी और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे भयंकर ठंड पड़ती है इस समय उत्तरी ध्रुव पर बसंत और दक्षिणी ध्रुव अर्थात अंटार्कटिका पर घनघोर प्रचंड ठंड पड़ती है यहां तक कहा जाता है कि रामायण का भीम भयंकर पात्र कुंभकरण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर 6 महीने सोया करता था*
*अगर आपका कोई परिचित ऑस्ट्रेलिया दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में होगा तो आपने देखा होगा कि उनके यहां अवकाश जून में होता है जैसे अपने यहां पर 24 दिसंबर से शीत अवकाश होता है दिसंबर मैं ही हमारे भारत से और सभी उत्तरी गोलार्ध के देशों द्वारा इसी कारण अंटार्कटिक अभियान शुरू किया जाता है क्योंकि तब वहां पर बसंत ऋतु होती है और अगर गर्मियों में यहां से शोध के लिए जहाज और मानव भेजे जाएं तो उस समय वहां महा भयंकर तापमान - 80 से -95 के बीच रहता है हो जाता है और ऐसे समय में कोई भी शोध अनुसंधान संभव नहीं है*
*23 सितंबर और 21 मार्च को धरती पर बसंत ऋतु होती है दिन रात बराबर होते हैं सर्दी गर्मी भी बराबर होती है इस प्रकार धरती का परिभ्रमण और परिक्रमण जीव जंतु और वनस्पतियों के तथा पृथ्वी के चक्कर को पूरा करने का एक मुख्य कारण है और इसीलिए उपर्युक्त चारों तिथियों अर्थात 21 मार्च 23 सितंबर 21 जून और 22 दिसंबर को धरती का अद्भुत भौगोलिक दिन माना जाता है डॉ दिलीप कुमार सिंह निदेशक अलका शिप्रा बाल गोपाल ज्योतिष मौसम और विज्ञान अनुसंधान केंद्र*
[9/20, 7:44 AM] Dileep Singh Rajput Jounpur: *पितृ विसर्जन कब और कैसे पितृ विसर्जन एक महापर्व है जो भादो मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या को समाप्त हो जाता है जो इस वर्ष 25 सितंबर को अंग्रेजी तिथि के अनुसार रविवार के दिन पढ़रहा है अगर किसी ने पूरे पितृपक्ष के दौरान पित्रों को जल अंजलि न दिया हो तो केवल अमावस्या के दिन ही जल अंजलि पिंडदान और तर्पण करने से उसको सारे फल प्राप्त हो जाते हैं क्योंकि इस दिन सारे पितर अपने घर पर आकर अपने मुक्ति के लिए और अपने परिजनों को देखने के लिए द्वार पर बैठे रहते हैं और ऐसा मानना जा चाहिए किसी भी रुप में आ सकते हैं*
*फिर विसर्जन श्रद्धांजलि और तर्क कार्यक्रम वैदिक काल से आज तक चला रहा है स्वयं भगवान श्री राम लक्ष्मण और भगवती सीताद्वारा सम्राट दशरथ के पिंडदान का महत्व पर उनके साथ और पारण का कार्य किया गया था यह सभी सनातन धर्मी लोग करते हैं पांडवों के द्वारा महाभारत के अंत में किया गया पिंडदान विसर्जन और उसमें भी विशेष रूप से करण के लिए किया गया पिंड दान इस संदर्भ में उल्लेखनीय है पिंडदान पाने के बाद ही कर्ण की मुक्ति हुई थी*
*तर्पण श्राद्घ और जल अंजलि पितृ पक्ष मात्रि पक्ष एवं अज्ञात पक्ष के लिए श्रद्धा सहित किया जा सकता है इस वर्ष यह पितृ विसर्जन का महापर्व रविवार के दिन पढ़ रहा है जब मित्रों का पूरे सम्मान के साथ दूर चावल और तिल का मन हुआ पेन बनाकर उनकी विदाई करते हैं और अगले वर्ष के लिए सादर आमंत्रित करते हैं*
*श्राद्ध का अर्थ है देश काल परिस्थितियों के अनुसार अपनी क्षमता के अनुसारभगवान से पित्रों को लक्ष्य करके ईश्वर द्वारा उनकी मुक्ति की कामना करते हुए किसी भी सदाचारी सुपात्तर एवं विद्वान व्यक्ति को दान देना श्राद्ध कहा जाता है ध्यान रखें कि अगर सदाचारी नैतिक और नशे से दूर रहने वाले विद्वान या ब्राह्मण ना मिले तो श्राद्ध और पिंडदान की क्रिया स्वयं करनी चाहिए अत्यंत ही सरल है चावल पका कर उसने तिल और गुड़ मिलाकर पिंडी बनाकर दक्षिण मुंह करके उसको दान कर देना चाहिए*
*विसर्जन के तीन प्रकार होते हैं इसमें प्रेत विसर्जन पितृ विसर्जन देव विर्सजन आता है पित्रों के लिए तिलक अक्षत और फूल तथा गुड गंगाजल जौ एवं मिलाकर जान जल्दी और केवल पुष्प एवं जल के द्वारा जो विसर्जन किया जाता है जबकि पिंडों डो पर जल डालकर उनका विसर्जन किया जाता है*
*वैसे तो जल अंजलि तर्पण और श्राद्ध तथा पिंडदान नदी सरोवर तालाब के पास करना चाहिए लेकिन नदी और तालाब कुएं न होने तथा इनका जल दूषित होने से अब इसको घर पर ही विधि विधान से किया जा सकता है श्रद्धा सहित कोई भी व्यक्ति किसी का भी श्राद्ध कर सकता है लेकिन अगर किसी ने मृतक की संपत्ति लिया है तो उसे श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए*
*महाभारत में पृथ्वी सम्राट मांधाता और इंद्र के संबंध में इसका वर्णन है जिसमें यवन कीरात और दस्यु जैसे लोग भी श्राद्ध कर सकते हैं और दान दे सकते हैं बाय पुराण ने तो मलेचछों को भी श्राद्ध करने की योग्यता प्रधान किया है पुत्र इन पत्नी को पति द्वारा पिंड नहीं दिया जाना चाहिए पिता द्वारा पुत्र को और बड़े भाई द्वारा छोटे भाई को विपिन नहीं देना चाहिए वैसे तो विशेष श्रद्धा होने पर कोई किसी के लिए दान और श्राद्ध कर सकता है*
*श्राद्ध का लौकिक धार्मिक और अध्यात्म पक्ष तो है लेकिन इसका दार्शनिक और वैज्ञानिक महत्व भी है हमारे वेद पुराण वेदांत दर्शन और महाकाव्य में इस पर विस्तृत वर्णन किया गया है जन्म लेने वाले की मृत्यु होना और मरे हुए व्यक्ति का फिर से जन्म लेना प्रकृति का शाश्वत नियम है क्योंकि नष्ट शरीर होता है आत्मा नहीं जैसे पदार्थ और उर्जा नष्ट नहीं होते बल्कि एक दूसरे में बदल जाते हैं श्राद्ध में प्रेतक्रिया और पितृ क्रिया दोनों होती है पहले 1 वर्ष में श्राद्ध किया जाता था लेकिन फिर गरुड़ पुराण के अनुसार इसे 6 महीने से 12 दिन का करके तेरहवें दिन किया जाने लगा है क्योंकि कलयुग में व्यक्तियों की आयु तथा स्वास्थ अच्छी हो जाता है*
*मरने के बाद दाह संस्कार तक आत्मा प्रेत के रूप में रहती है और परिक्रमा करके जलाने के साथ ही अन्न मय कोश मनोमय कोश में बदल जाता है और प्रेत पितृ के रूप में बदल जाता है तो गया नाशिक और हरिद्वार में पितरों कातर्पण अधिक श्रद्धा से किया जाने वाला विधि विधान के अनुरूप कार्य श्राद्ध कहा जाता है जल में दूध अक्षत काला तिल और फूलसफेद कुश डालकर हो सके तो जौ और गंगाजल भी डाल देना चाहिए क्योंकि आत्मा की तृप्ति स्कूल भोजन से नहीं होती बल्कि दिए गए भोजन से निकलने वाले ऊर्जा का ही वे पान करते हैंडॉ दिलीप कुमार सिंह ज्योतिष शिरोमणि एवं निदेशक ज्योतिष मौसम और विज्ञान अनुसंधान केंद्र जौनपुर*